फ्रोबेल के शिक्षा-दर्शन की सीमाएं |Limitations of Froebel's Philosophy of Education
फ्रोबेल के शिक्षा-दर्शन की सीमाएं
फ्रोबेल के शिक्षा-दर्शन की सीमाएं
फ्रोबेल ने शिक्षा के दार्शनिक पक्ष पर अत्यधिक जोर देकर शिक्षा की दार्शनिक संकल्पना को अध्यापकों एवं छात्रों के लिए अत्यधिक जटिल बना दिया है। डीवी के अनुसार "एक निष्पक्ष निरीक्षक को उसके (फ्रोबेल के ) अधिकांश कथन बड़े विचित्र एवं असम्बद्ध लगेंगे इनमें उसने व्यर्थ में ही साधारण सरल तथ्यों को आत्मगत दार्शनिक तर्कों के आधार पर समझाया है ।
फ्रोबेल ने आन्तरिक विकास पर बहुत अधिक जोर दिया है। इससे बाह्य विकास की उपेक्षा हुई। वस्तुतः आन्तरिक एवं बाह्य दोनों पक्षों का ही समन्वित विकास होना चाहिए
फ्रोबेल के द्वारा प्रस्तावित चित्र और गीत बहुत पूराने हो गये हैं। सभी स्थानों और संदर्भों में उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
उपहारों और कार्यों को उपस्थित करने में जड़ता एवं नियन्त्रण है 'उपहार' आधुनिक युग की आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। डीवी ने इस तथ्य का उल्लेख करते हुए कहा "वस्तुओं को यथासंभव वास्तविक जीवन से सम्बन्धित होना चाहिए ।"
साथ ही किण्डरगार्टन के गीत, खेल उपहारों के प्रयोग में अनुकरण एवं निर्देश पर काफी जोर है। वस्तुतः बच्चों को स्वतः क्रिया करने का अवसर मिलना चाहिए ।
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