महात्मा गाँधी का जीवन-परिचय | महात्मा गाँधी की जीवन दृष्टि| Mohan Das Karam Chand Gandhi Short Biography in Hindi

 महात्मा गाँधी का जीवन-परिचय , महात्मा गाँधी की जीवन दृष्टि

महात्मा गाँधी का जीवन-परिचय | महात्मा गाँधी की जीवन दृष्टि| Mohan Das Karam Chand Gandhi Short Biography in Hindi

महात्मा गाँधी कौन थे 

महात्मा गाँधी उन कतिपय विचारकों में से एक हैं, जिनके पास एक समग्र जीवन दृष्टि थी । व्यक्ति और समाज के जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जो उनकी दृष्टि से अछूता रहा हो। शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण पक्ष पर उन्होंने मौलिक एवं क्रांतिकारी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। साथ ही इन सिद्धान्तों को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। महात्मा गाँधी ने शिक्षा को अपनी अहिंसक क्रांति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन माना । औपनिवेशिक शासन के विरूद्ध संघर्ष एवं नई राजनीतिक-सामाजिक पुनर्रचना में उन्होंने शिक्षा को एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में प्रयोग किया । बुनियादी शिक्षा या नई तालीम के उनके सिद्धान्त के केन्द्र में भारत का गाँव किसान एवं मजदूर है। शिल्प पर आधारित शिक्षा को अगर स्वतंत्र भारत में ईमानदारी से लागू किया जाता तो न केवल हमारी शिक्षा व्यवस्था अधिक प्रभावशाली होती वरन् समतामूलक समाज के संवैधानिक एवं मानवीय लक्ष्य को प्राप्त करने में भी हम सफल होते ।


महात्मा गाँधी का जीवन-परिचय Short Biography of Gandhi


  • महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के काठियावाड़ जिले के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता करमचंद गाँधी पोरबन्दर रियासत के दीवान थे। बाद में वे राजकोट और कुछ समय बाद बीकानेर के भी दीवान बने । वे ईमानदार, साहसी एवं उदार प्रकृति के व्यक्ति थे। उन्हें लोभ रंचमात्र छू नहीं गया था। महात्मा गाँधी की माता पुतली बाई साध्वी श्रद्धालु एवं धर्मपरायण महिला थी। बालक मोहन दास पर माता-पिता के उच्च नैतिक संस्कारों का गहरा असर पड़ा।

 

  • गाँधी जी की सहज बाल्यवस्था पोरबंदर में प्रारंभ हुई। प्रारम्भिक शिक्षा का श्रीगणेश सात वर्ष की अवस्था में राजकोट पाठशाला से हुआ । शैक्षिक दृष्टि से तो वे एक सामान्य छात्र थे पर वे निष्ठावान, विनयी एवं कर्त्तव्य के प्रति समर्पित थे। 1881 में इनका अल्फ्रेड हाईस्कूल में प्रवेश हुआ । हाईस्कूल मे इंस्पेक्टर के निरीक्षण के दौरान अध्यापक द्वारा संकेत करने पर भी इन्होंने नकल नहीं की। यह इनके चरित्र की दृढ़ता को प्रदर्शित करता है। बाल्यावस्था में गाँधी जी ने हरिश्चन्द्र नाटक का मंचन देखा तथा श्रवण कुमार की पितृ भक्ति से सम्बन्धित चलचित्र का अवलोकन किया। इन दोनों का ही अमिट प्रभाव बालक मोहन पर पड़ा। श्रवण कुमार सी पितृ भक्ति तथा हरिश्चन्द्र की सत्यवादिता को उन्होंने अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लिया। तेरह वर्ष की अल्पावस्था मे इनका विवाह कस्तूरबा बाई से हुआ। अपने बुरे अनुभवों के आधार पर गाँधी जी जीवन पर्यन्त बाल विवाह के विरोधी बने रहे। सन् 1885 मे इनके पिताजी का देहावसान हो गया। पिता की मृत्यु से इन्हें गहरा धक्का लगा और वे महसूस करते रहे कि पिता के प्रति अपने कर्तव्यों के पालन मे वे अंतिम समय में चूक गये । 

  • तमाम विरोधों के बावजूद उच्च शिक्षा ग्रहण करने गाँधी जी लंदन चले गये। 18910 में बैरिस्टर की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर वे भारत लौट आए।

 

  • महात्मा गाँधी के राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ 1893 ई० में माना जाता है, जब वे एक भारतीय के मुकदमे की पैरवी हेतु दक्षिण अफ्रीका पहुँचे । रंगभेद के अन्याय के विरूद्ध इन्होंने सफलतापूर्वक आन्दोलन कर अपने सत्याग्रह के सिद्धान्त का प्रारम्भ किया। भारतीयों के हितो की सुरक्षा एवं बच्चों की शिक्षा के लिए टाल्स्टॉय आश्रम की स्थापना की, जहाँ इन्होंने बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त का विकास किया। शारीरिक श्रम को सम्मान एवं उत्पादन कार्य की महत्ता इनके शिक्षा सिद्धान्त का एक अनिवार्य हिस्सा बन गयी।

 

  • 1914 तक दक्षिणी अफ्रीका में सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, कार्य आधारित शिक्षा जैसे सिद्धान्तों का सफलतापूर्वक प्रतिपादन कर वे भारत लौटे। चम्पारण के किसान हो या अहमदाबाद के मिल मजदूर वंचितों के पक्ष में गाँधी जी लगातार संघर्ष करते रहे। शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ वे लगातार सत्य एवं अंहिसा के बल पर लड़ते रहे। इस दौरान इन्होंने सामाजिक सुधार हेतु अनेक कार्यक्रम चलाये, जैसे मद्य निषेध, अश्पृश्यता निवारण आदि । 1937 में इन्होंने बुनियादी शिक्षा के अपने सिद्धान्त को विस्तृत रूप दिया। गाँधी जी के संघर्षो एवं रचनात्मक कार्यों के परिणामस्वरूप भारत राजनीतिक-सामाजिक दासता की बेड़ियों को तोड़ने में सफल रहा। प30 जनवरी, 1948 को अहिंसा का यह पुजारी हिंसा का शिकार हो गया। इस महामानव को श्रद्धांजलि देते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने सही कहा था "आनेवाली पीढ़ियाँ इस बात पर शायद ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस का कोई ऐसा आदमी इस धरती पर कभी चला था । "

 

महात्मा गाँधी की जीवन दृष्टि Gandhi Life Philosophy in Hindi

 

  • आधुनिक भारतीय जीवन और सोच पर सर्वाधिक प्रभाव महात्मा गाँधी के विचारो का पड़ा, क्योंकि उनका तत्त्व चिंतन केवल वैचारिक न होकर प्रत्यक्ष अनुभूति तथा प्रयोग पर आधारित था। महात्मा गाँधी के विचारो और कार्यों पर भारतीय चिन्तन विशेषतः उपनिषदो का तो प्रभाव पड़ा ही, साथ ही रस्किन, टाल्स्टॉय, थोरो जैसे विद्वानों के सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण का भी प्रभाव पड़ा। इन सबका समन्वित रूप गाँधी जी का सर्वोदय दर्शन है जिसमें केन्द्र बिन्दु व्यक्ति से बढ़कर समष्टि तक हो गया है। लक्ष्य है आत्मोदय के साथ-साथ सबका उदय । 
  • गाँधी जी पर भारतीय दार्शनिक परम्परा का अत्यधिक प्रभाव था। इस महान परम्परा के दो श्रेष्ठ तत्त्वों- सत्य और अहिंसा को गाँधी जी ने अपने सम्पूर्ण विचारों और कार्यों के केन्द्र मे रखा।

 

1 सत्य 

  • गाँधी जी ने सत्य को अपनी आस्था के मूल केन्द्र में बताते हुए कहा "मेरे लिए सत्य सर्वोच्च सिद्धान्त है जिसमें अनेक अन्य सिद्धान्त भी अन्तर्भूत हो जाते है । यह सत्यवाणी की सत्यता ही नहीं बल्कि विचारो की सत्यता है। और यह केवल हमारी मान्यता सम्बन्धी सत्य ही नहीं, बल्कि परम सत्यसनातन सिद्धान्त अर्थात् ईश्वर है।" गाँधी जी ने सत्य को सवर्था हितकर शक्ति मानते हुए कहा "मृत्यु के बीच जीवन जागता है, असत्य के बीच सत्य जागता है और अन्धकार के बीच प्रकाश जागता है। अतः मेरा निष्कर्ष है कि ईश्वर जीवन है, सत्य है, ज्योति है, वह प्रेम है, वह परमेश्वर है ।" 
  • गाँधी जी के अनुसार सत्य तथा ईश्वर एक दूसरे के पर्याय हैं। ईश्वर प्राप्ति का साधन अहिंसा है। अहिंसा वह भौतिक आधार है जिसमें अन्य मानवीय गुण विकसित होते है ।

 

2 अहिंसा 

  • महात्मा गाँधी का अहिंसा का विचार अद्वितीय है। उन्होंने अहिंसा के व्यक्तिवादी नैतिक आधार को सामाजिक आधार प्रदान किया। गाँधी जी के अनुसार अहिंसा केवल व्यक्ति का धर्म ही नहीं है, इसकी व्याप्ति राजनीति, अर्थनीति, शिक्षा, विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में होनी चाहिए।

 

  • गाँधी जी का मानना था कि न्यूनतम मात्रा में भी सामाजिक न्याय हिंसा से प्राप्त नहीं किया जा सकता। संसार में मानवता का अस्तित्व सत्य एवं अहिंसा के कारण है। अहिंसा का तात्पर्य है सभी प्राणियों के प्रति द्वेष का सम्पूर्ण अभाव। अर्थात् सभी जीवों के प्रति सद्भाव रखने का कार्यान्वित रूप ही अहिंसा है। अहिंसा के पथ पर चलने के लिए अटूट धैर्य और साहस की आवश्यकता है। अहिंसा के भाव से प्रेरित व्यक्ति को सत्ता प्राप्त करने की कोशिश नही करनी पड़ती है, न ही सत्ता प्राप्ति उसका उद्देश्य होता है। समाज के उपेक्षित तबके को न्याय तभी प्राप्त हो सकता है जब सरकार चलाने वाले भी अहिंसा के सिद्धान्त का पालन करें। गाँधी जी के शब्दों में "मेरे विचार से जनतंत्र उसे कहते है जिसमें कमजोर से कमजोर को भी वही अधिकार और अवसर मिले जो सबसे अधिक शक्तिशाली को प्राप्त होता है। ऐसा केवल अहिंसा के द्वारा ही संभव है।" एक अन्य स्थल पर अहिंसा को शाश्वत प्रेम से जोड़ते हुए महात्मा गाँधी ने कहा " अहिंसा का अर्थ है अनंत प्रेम और प्रेम का अर्थ है कष्ट सहने की असीम क्षमता।"

 

3 गाँधी जी के राजनीतिक सिद्धान्त

 

  • महात्मा गाँधी ने राजनीति को कोई स्वतंत्र पेशा न मानकर जीवन का एक अंग माना जिस पर जीवन की मान्यताएं और मूल्य लागू होते हैं। मनुष्य का अंतिम लक्ष्य धर्माचरण है और राजनीति भी इसके अनुरूप होनी चाहिए । वस्तुतः राजनीति धर्म की अनुगामिनी है । 

  • महात्मा गाँधी की राजनैतिक कल्पना रामराज्य' की है। राम तानाशाह नहीं थे, वे समस्त राज्य के प्रतीक थे। वे केवल शासन ही नहीं करते थे वरन् स्वयं शासित भी थे। उनके द्वारा राज्य का परित्याग इसी भावना का परिचायक है । मानव एवं समाज के नैतिक विकास में जब रामराज्य' की स्थिति आती है तो दण्ड विधान को संचालित करने वाली राज्यसत्ता की आवश्यकता स्वतः ही समाप्त हो जाती है। 
  • गाँधी जी की राजनैतिक धारणाओं का मूल आधार 'सर्वोदय' है 'सर्वोदय' का तात्पर्य है प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास का पूरा अवसर मिले। महात्मा गाँधी कहते हैं "मेरा लक्ष्य समाज में एक ऐसी व्यवस्था को कायम करना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने उत्थान का समान अवसर एवं सुविधायें प्राप्त हों। ऐसे समाज को सर्वोदय समाज नाम देना उचित होगा।" गाँधी जी ने केवल समाज को ही नहीं वरन् व्यक्ति को भी अपने चिंतन का विषय बनाया। उन्होंने जीवन को उसकी सम्पूर्णता में ग्रहण किया है। उनका विश्वास था कि व्यक्ति के पुनर्निर्माण के बिना समाज का पुनर्निर्माण असम्भव है। 

  • महात्मा गाँधी ने सत्ता के अन्यायपूर्ण कार्यों का विरोध हिंसा की जगह अहिंसक ढंग से करने हेतु जिस अमोघ अस्त्र का आविष्कार किया- वह है सत्याग्रह । सत्याग्रह का अर्थ है शान्तिपूर्ण आग्रह । इसका उद्देश्य है असत् राजनीति का अनुसरण करने वाली सरकार या अन्य सम्बन्धित व्यक्ति का हृदय परिवर्तन सत्याग्रह के द्वारा ही गाँधी जी ने विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य के विरूद्ध लड़ाई जीती।

 

4 गाँधी जी के आर्थिक सिद्धान्त

 

  • महात्मा गाँधी भौतिकवाद एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के खिलाफ थे । उनके आर्थिक विचार भी सत्य एवं अहिंसा के सिद्धान्तों पर आधारित थे । वे धन एकत्र करने के लिए धनोपार्जन करने के कट्टर विरोधी थे। उनकी दृष्टि मे धनी और निर्धन मे कोई अन्तर नहीं है। जिनके पास आवश्यकता से अधिक धन है उनसे यह आग्रह किया जा सकता है कि वे अपनी सम्पत्ति का प्रयोग उनके लिए भी करें जो निर्धन हैं। गाँधी जी ने कहा "मैं चाहता हूँ कि धनी लोग गरीबों के ट्रस्टी बनकर उनके लिए अपने धन का इस्तेमाल करें। क्या आपको पता है कि 'टाल्स्टॉय फार्म' की स्थापना करते समय मैंने अपनी सारी सम्पत्ति का त्याग कर दिया था।" 

  • गाँधी जी ने आर्थिक व्यवस्था के संचालन के लिए कुछ साधनों की सिफारिश की, ये मुख्य साधन हैं चरखा, स्वदेशी तथा खादी । उनका विचार था कि हम सुखी एवं नीति संगत जीवन तभी बिता सकते हैं, जब हम अपनी सांस्कृतिक आस्थाओं के अनुरूप कार्य करें। भारत की मूल संस्कृति ग्रामीण संस्कृति है, अतः इस देश के लिए चरखे का जो महत्व है वह बड़ी मशीनों का नहीं हो सकता है। 

  • भूमंडलीकरण के नाम पर यूरोप और अमेरिका के बढ़ते प्रभाव एवं तृतीय विश्व को नए सिरे से आर्थिक उपनिवेश बनाने के प्रयासों के प्रति वे गंभीर थे। विकास की निरंतर प्रक्रिया की गलती के प्रति वे सचेत थे। यूरोप और अमेरिका में अपनाई गई आधुनिकीकरण की प्रक्रिया की अपर्याप्तता और दमनकारी चरित्र को पहले ही समझ गये थे। साथ ही शायद वे एकमात्र नेता थे जिन्होंने इन देशों की अंधी नकल करने के बजाए विकल्प के बारे में सोचा। मानव के भविष्य के लिए विकल्प के रूप में उन्होंने ग्राम-आधारित अर्थतंत्र और कार्य आधारित शिक्षा की कल्पना की थी। गाँधी जी के लिए शिक्षा वास्तव में उनके संपूर्ण राजनीतिक कार्यक्रम का हिस्सा थी ।

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