मध्यप्रदेश धनवार जनजाति की जानकारी | MP Dhanvaar Tribes Details in Hindi
मध्यप्रदेश धनवार जनजाति की जानकारी (MP Dhanvaar Tribes Details in Hindi)
मध्यप्रदेश धनवार जनजाति की जानकारी
धनवार जनजाति की जनसंख्या
- कुल जनसंख्या 2175 आंकी गई हैं, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.003 प्रतिशत हैं।
धनवार जनजाति निवास क्षेत्र
- धनवार जनजाति की जनसंख्या जिला मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, छतरपुर, सागर, सतना, रीवा, शहडोल,सीधी, नीमच, रतलाम, उज्जैन, देवास, झाबुआ, धार, इन्दौर, बड़वानी, पश्चिम निमाड़, राजगढ़, विदिशा, भोपाल, सीहोर, रायसेन, बैतूल, होंशगाबाद, जबलपुर, नरसिंहपुर, डिण्डौरी, मण्डला, छिदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट में पायी जाती है।
धनवार जनजाति गोत्र
- इनमें पाये जाने वाले कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार हैंः- कमरों, मरई, उइके, उर्रे आदि हैं।
धनवार जनजाति रहन-सहन
- मकान सामन्यतः मिट्टी के बने होते हैं। जिनकी छत घासफूस एवं देशी खपरैल की होती है। मकान बनाने के पूर्व तथा बनने के बाद पूजन कार्य होता है। यह कार्य ग्राम का पुजारा करता है। मकान में सामान्यतः दो कमरे होते हैं। पशुओं को बांधने का अलग कोटा होता है। इसे धनवार लोग कुडपू कहते हैं। घरेलु वस्तुओं में रोटी बनाने का मिट्टी का तवा, दाल सब्जी बनाने का मिट्टी से बनी मटकी, इसे डोकसी कहते हैं, पानी के घड़े आदि रखने के लिये मचान बनाते हैं। अनाज रखने की कोठी, जिसे ये लोग गंधार कहते है। कपडे, रसोई के बर्तन, कृषि उपकरण आदि इनकी घरेलू सामग्री हैं।
धनवार जनजाति खान-पान
- इनका मुख्य भोजन कोदो, चावल का भात, बासी पेज, मौसमी सागसब्जी, उड़द, मूंग, गुल्थी की दाल मुख्य हैं। मछली मुर्गा, बकरे का मांस खाते हैं।
धनवार जनजाति वस्त्र-आभूषण
- स्त्रियाँ बालो का खोदा (जुड़ा) बनाती हैं। लुगड़ा पोलका पहनती हैं। पुरूष पंछा बंड़ी पहनते हैं। हाथ में चूड़ियाँ, ऐंठी, गले में सुतिया सूर्रा, नाक में फुली, कान में खिनवा, ऐरिंग पहनती हैं।
गोदना
- स्त्रियाँ हाथ पैरों पर गुदना गुदाती हैं।
धनवार जनजाति तीज-त्यौहार
- हरेली, पोला, पितर, नवाखानी, दशहरा, दीवाली, होली आदि इनके प्रमुख त्यौहार/पर्व हैं।
धनवार जनजाति नृत्य
- धनवार जनजाति के लोग मादल ढोलकी, थाली बजाकर नाचते गाते हैं। इस जनजाति में पुरुष महिलाऐं एक साथ नाचते हैं । कर्मा गीत गाकर पुरुष महिलाऐं तथा लड़कियां सभी नाचते हुए गाना गाती है। नाचने का तरीका लय वद्ध होता है, ढोलक की थाप के अनुसार जैसे ही थाप में परिवर्तन है वैसे ही नाचक का तरीका बदल जाता है। कुछ गीत गाते हुए भी नाचते हैं। नृत्य के समय ढोल, मांदल, थाली आदि बजाकर नाचते गाते हैं। विवाह में विवाह गीत व नाचते हैं। होली में रहस, दिवाली में महिलाऐं पड़की नृत्य करती हैं। अन्य लोकगीत में ददरिया, रामसत्ता आदि हैं।
धनवार जनजाति व्यवसाय
- धनवार जनजाति का जीविकोपार्जन के लिए प्रमुख रूप से कृषि, जंगली उपज संग्रह, शिकार आदि पर निर्भर हैं। इनकी मुख्य फसल धान हैं। सहायक के रूप में ज्वार, कोदो, कुटकी, उड़द, मक्का, अलसी, तुवर आदि फसल पैदा करते हैं। जंगल से महुआ चार, गोंद तेन्दूपत्ता, हर्रा, शहद आदि एकत्र कर बेचते हैं।
धनवार जनजाति जन्म-संस्कार
- बच्चे के जन्म के समय गांव की जानकार महिला को बुलाया जाता हैं। बच्चा होने के एक दिन बाद या उसी दिन उसका नरा हंसिया या धार दार औजार से काटा जाता हैं। दाई को 5-10 किलो धान, दाल तथा रूपये नगद दिये जाते हैं। प्रसूता को गुड़ खिलाया जाता हैं।
धनवार जनजाति विवाह-संस्कार
- धनवार जनजाति में विवाह एक गोत्र में नहीं होता। लड़के के माता पिता विवाह प्रस्ताव लेकर लड़की वालो के यहां जाते हैं। यदि दोनों पक्ष के लोग विवाह हेतु तैयार हो जाते हैं, तो बातचीत कर सगाई तय की जाती हैं। सगाई रस्म में गुड़ बाँटा जाता है। इसी दौरान एक बकरा मारा जाता हैं, जिसे दोनों पक्ष के लोग तथा गांव के कुछ लोग और रिश्तेदार को बुलाकर खिलाया जाता है। सगाई के बाद लड़के वाले लड़की के यहां सूक “भरना” के रूप में चावल, दाल, गुड़, तेल, हल्दी, नगद रूपये तथा कपड़े चढ़ाने जाते हैं। विवाह का पूरा कार्य गांव का पुजारा करता है। विवाह मुख्य रूप से चार चरणों में पूरा होता है। यथा सगाई, फलदान, विवाह, गौना/फेरे लगने के बाद बारात दुल्हन को लेकर वापस अपने गांव आ जाती हैं। गांव में वर वधु को ग्राम देवता, कुल देवी का पूजन कराकर घर लाते हैं। धनवार जनजाति मेे सहपलायन, विधवा विवाह, पुनर्विवाह प्रथा भी मान्य हैं।
धनवार जनजाति मृत्यु संस्कार
- मृत्यु होने पर मृतक को जलाया जाता है। घर की साफ-सफाई कर दसवे दिन दशकर्म कार्य किया जाता है। इस दिन पूर्वजों की पूजा कर रिश्तेदारों को भोजन कराया जाता है।
धनवार जनजाति देवी-देवता
- इस जनजाति में बूढ़ादेव, ठाकुर देव, बूढ़ीमाई, कुलदेवी, चन्द्र, सूर्य, पक्षी, पहाड़ आदि की पूजा की जाती हैं।
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