मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति के बारे में जानकारी | MP Gond Tribes Details in Hindi
मध्यप्रदेश गोंड जनजाति के बारे में जानकारी (MP Gond Tribes Details in Hindi)
गोंड जनजाति की जनसंख्या
गोंड जनजाति की कुल जनसंख्या 5093124 आंकी गई हैं, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 7.013 प्रतिशत हैे।
गोंड जनजाति का निवास क्षेत्र
गोंड जनजाति मध्यप्रदेश में विन्ध्य, सतपुड़ा क्षेत्र, नर्मदा नदी के किनारे
पाये जाते हैं। अर्थात इनका प्रमुख निवास क्षेत्र मंडला, डिण्डोरी, बालाघाट, शहडोल, उमरिया, छिन्दवाड़ा, सिवनी, बैतूल, जबलपुर, होशंगाबाद, हरदा, रायसेन, सीधी, पन्ना, सागर, दमोह, सतना, खण्डवा, सीहोर, नरसिंहपुर आदि जिले हैें।
प्रदेश के अन्य जिलों में इनकी जनसंख्या कम हैं।
गोंड जनजाति गोत्र
- इनके प्रमुख गोत्र कुर्राम, नेताम, मरकाम, मरावी, भलावी, सरयाम, करयाम, सिरसाम, उइका, उसेण्डी, घुरवा, परतेती, पोर्ते, मर्सकोले आदि हैं। इनके गोत्र के टोटम पाये जाते हैं।
गोंड जनजाति रहन-सहन
गोंड जनजाति खान-पान
इनका मुख्य भोजन चावल, दाल,
कोदों, कुटकी का भात व पेज, गेहू, ज्वार, बाजरा की रोटी आदि शामिल
हैं। महुआ के फल व गुल्ली के तेल से ये कई प्रकार के पकवान भी बनाते हैं।
गोंड जनजाति वस्त्र-आभूषण
गहनों में पैरों में पैड़ी, पैरपट्टी, कमर में करधन, कलाईयों में चूड़ियाँ, ऐठी,
ककना, गुलेठा, बाहों में पहँूची, गले में सुतिया, सुरड़ा, कानों में खिनवा, एरिंग, नाक में फुली सिर के
बालों में खोचनी आदि गहनें इनके प्रमुख है। अधिकांश गहने चांदी या गिलट के होते
हैं। पुरूष कलाई में चांदी का चूड़ा, गले में मोहर तथा कानों में बुन्दा पहनते हैं। वस्त्र
विन्यास में गोंड समाज में रंग, बिरंगे परिधान रूप सज्जा के साथ-साथ सुरक्षा के लिए धारण
किये जाते हैं। पुरूष पंछा,
घुटनों तक धोती, बंडी, कमीज, कंधें पर पिछोरा, सिर पर मुरेठा बांधते
हैं। स्त्रियाँ 6-8 गज की रंग
बिरंगी धोती (साड़ी व पोलका) पहनती हैं।
गोंड जनजाति गोदना
महिलाएँ हाथ, पैर,
चेहरे पर गुदना
गुदवाती हैं।
गोंड जनजाति तीज-त्यौहार
मुख्य तीज त्यौहार हरेली, पोला, नवाखानी, दशहरा, दीवाली, जवारा, जिरोती, विदरी पूजा, होली, नवाखानी, जवारा, भुजलिया आदि त्यौहार बड़े उत्साह पूर्वक परम्परिक रूप से
मनाये जाते हैं।
गोंड जनजाति नृत्य
गोंड जनजाति के लोग दीवाली पर शैला, होली पर रहस होली नृत्य, कर्मा जिसमें स्त्री
पुरूष दोनों भाग लेते हैं तथा झूमर रीना इत्यादि नृत्य के समय रंग बिरंगें
परिधानों व आभूषणें में स्त्री पुरूष दोनों ही शृंगार करते हैं। लोकगीत लोकवाद्य -
कर्मा रीना, सुआगीत, ददरिया, फाग विवाह गीत सीहर
इत्यादि लोकगीत विभिन्न उत्सवों पर गाये जाते हैं। इनके प्रमुख वाद्ययंत्र मादल, टिमकी, मंजीरा, खरताल, चुटकी, झांझ आदि हैं। नाटक
स्वांग का मंचन होता है।
गोंड जनजाति व्यवसाय
गोंड जनजाति का मुख्य व्यवसाय पहले आदिम तरीके से कृषि करना, वनोपज संग्रह करना था। इस
जनजाति समूह की उपजाति ओझा,
नृत्य, गुदना गोदने का कार्य
करती हैं। गोंड गोवारी पशु चराती हैं। नगारची वाद्ययंत्रों का वादन करती हैं।
तेन्दू, अचार, हर्रा, बहेड़ा, महुवा, गुल्ली आदि के साथ कंदमूल
फल व शहद का संग्रह करते हैं।
गोंड जनजाति जन्म-संस्कार
प्रसव सामान्यतः बुजुर्ग महिला या स्थानीय दायी कराती हैं।
छठी के दिन ननद प्रसुता व बच्चे को सूपा का साया कर धु्रवतारा दिखाते हैं। प्रसूता
व शिशु को नहलाकर नये कपड़े पहनाकर देवी-देवता का प्रणाम कराते हैं।
गोंड जनजाति विवाह-संस्कार
विवाह संस्कार, गोंड जनजाति गोत्र के बाहर विवाह करती हैं। इस जनजाति में
वधू मूल्य की प्रथा है। मामा तथा बुआ के लड़के लड़कियों के बीच आपस में वैवाहिक
संबंध होता है। विवाह की उम्र लड़कियों की 12-16 वर्ष तथा लड़कों की 14-18 वर्ष है। विवाह के लिए लड़के लड़कियों के शरीर के रंग व
सुन्दरता की बजाय परिश्रम,
कार्य कुशलता व
शारीरिक पुष्टता देखी जाती है। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष से प्रारंभ होता है। वर
के पिता द्वारा वधू के पिता को खर्ची के रूप में अनाज, दाल, तेल, गुड़ और नगद रूपये दिये
जाते हैं। मंगनी, सगाई फलदान, लगुन आदि रस्मों के बाद
जब बारात कन्या के गांव में पास पहुॅचती है, पूरी बारात छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम करती है। इसके
बाद कन्यापक्ष की ओर से लोग गांव की सरहद पर जाकर बारात का स्वागत करते हैं, और गांव के अंदर बारात को
जनवासा में पहुॅचाया जाता है। समधी मिलन, बरजोड़ी (अंगूठी पहनाना), द्वारचार, मंगलगान आदि संस्कार पूरे किये जाते हैं। कन्या के मामा व
मामी कन्या को गोद मेें लेते हैं। कन्या का भाई कन्या के पैरों में पानी डालता
जिससे मामा मामी आचमन कर कन्या के पैर छूते हैं। तद्उपरांत कन्यादान, चढ़ाव, सिंदूरदान आदि संस्कार
पूर्ण होता है। सुवासिन इसके बाद दूल्हा दुल्हन की गठजोड़ कर भांवर की रस्म पूरी
कराती हैं। इस जनजाति में भावर की रस्म के समय कन्या के माता पिता भांवर संस्कार
को नही देखते। इस रस्म के बाद कन्या व बारात की विदाई होती हैं। वर वधु को अनेक
प्रकार के आशीर्वाद देकर देवी देवताओं का स्मरण कर कन्या व बारात को विदा किया
जाता है। भाई वधू को पानी पिलाता है, मंुह धुलाता हैं। इसके बाद बारात वर के ग्राम प्रस्थान करती
है। ससुराल में आगमन के उपरान्त वधू का स्वागत अत्यन्त उल्लास से भरा होता हैं।
वधु की मुंह दिखाई (मौचायना) द्वार छिकाई कंगन खेलना, हल्दी छुड़ावन आदि संस्कार
पूर्ण किये जाते हैं। इस जनजाति मंे चढ़ विवाह, लमसेना विवाह, पलायन विवाह, विधवा विवाह ( चूड़ी पहनाना) भी प्रचलित हेैं।
गोंड जनजाति मृत्यु संस्कार
मृतक संस्कार गोंड जनजाति में आमतौर पर पुनर्जन्म की
मान्यता नही है। परन्तु मृतक के ऐसे कई
संस्कार किये जाते हैं, जिससे पुनर्जन्म
की मान्यता की पुष्टि होती हैं। स्वर्ग, नर्क व कर्म का फल की अवधारणा भी क्षीण हैं। देवयोनि
प्रेतयोनि की मान्यता है,
जो मृतक के पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर मानी
जाती हैं। गोंड जनजाति में मान्यता है, कि मृत्यु के बाद भी आत्मा का मेाह घर परिवार से बना रहता
है। इस कारण शव यात्रा में रास्ते में विश्राम के लिए जहां रखते हैं। वहां बैर, बबूल की झाड़ी
पत्थर से दबा देते हैं, इसके पीछे
मान्यता हैं, यदि मृत आत्मा
किसी प्रकार घर वापस आना चाहे तो वह झाड़ी में ही उलझकर रह जाय। मृतक का विधिवत
अग्नि संस्कार किया जाता है। बच्चों को दफनाया जाता है। अग्नि संस्कार के तीसरे
दिन मुण्डन, घरद्वार की
साफ-सफाई व स्नान सामूहिक तौर पर किया जाता हैं। दशवे व तेरहवे दिन दशकरम व
मृत्युभोज दिया जाता है।
गोंड जनजाति देवी-देवता
इनके प्रमुख देवी देवता इस प्रकार हैंः- बड़ादेव, (सृष्टि और संहार का देवता) नारायण देव, धमसेन देव, मूठिया देव, ठाकुर देव खेरमाई (ग्राम रक्षक) बंजारिन माई, बूढ़ी माई (चेचक से रक्षा करने वाली) शीतला माई, शारदा माई, भैरोदेव, दूल्हा देव, जोगनी माई, कंकालिन माई आदि मुख्य हैं।
गोंड, अरख,
अर्राख, अगरिया, असुर, बडी मारिया, बड़ा मारिया, भटोला, भिम्मा, भूता, कोइलाभूता, कोलियाभूती, भार, बायसनर्हान, मारिया, छोटा मारिया, दंडामी मारिया, धुरू, धुरवा, धोबा, धुलिया, दोरला, गायकी, गत्ता, गत्ती, गैता, गोंड गोवारी, हिल मारिया, कंडरा, कलंगा, खटोला, कोइतर, कोया, खिरवार, खिरवारा, कुचा मारिया, कुचकी मारिया, माडिया, मारिया, माना, मन्नेवार, मोघ्या, मोगिया, मोंघ्या, मुड़िया, मुरिया, नगारची, नागवंशी, ओझा, राजगोंड, सोन्झारी झरेका, थाटिया, थोटया, वडे मारिया, वडेमाड़िया, दरोई
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