मध्यप्रदेश की हलबा, हलबी जनजाति की जानकारी | MP Halba Tribes Details in Hindi
मध्यप्रदेश की हलबा, हलबी जनजाति की जानकारी
(MP Halba Tribes Details in Hindi)
मध्यप्रदेश की हलबा, हलबी जनजाति की जानकारी
हलबा जनजाति की कुल जनसंख्या
- हलबा जनजाति की कुल जनसंख्या 4438 आंकी गई है, जो मध्यप्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.020 प्रतिशत है।
हलबा, हलबी जनजाति निवास क्षेत्र
- हलबा जनजाति की जनसंख्या जिला मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह, सतना, रीवा, उमरिया, शहडोल, सीधी, नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, देवास, झाबुआ, धार, इन्दौर, पश्चिम निमाड़, बड़वानी, पूर्वी निमाड, राजगढ़, विदिशा, भोपाल, सीहोर, रायसेन, बैतूल, हरदा, होशगाबाद, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, डिण्डौरी, मण्डला, छिंदवाड़ा में पायी जाती है।
हलबा, हलबी जनजाति गोत्र
- गोत्र - राऊत, राना, चौरका, चनाव, ओरसा, भंडारी, भोयर, भेड़िया, माहला, धरत, मानकर, नाइक, पीस्दा, चौधरी कश्यप, धनगुन, लेड़िया, करपाल, सहारे, कोठारी, मांझी, समरथ, नाग, इस्दा, भैसारा आदि मुख्य हैं।
हलबा, हलबी जनजाति रहन-सहन
- ग्रामों का आकार आयताकार, वृत्ताकार रूप में बसा होता है। गांव के बीचों बीच गली, जिसके दोनों तरफ या एक तरफ मिट्टी के घर बने होते हैं। जिसके ऊपर खपरैल या देशी कवेलू की छत होती हैं। अपने घर स्वयं बनाते हैं। इनके साथ गोंड, भतरा, मुरिया आदि जनजाति के लोग भी निवास करते हैं। सामन्यतः घर में दो-तीन कमरे होते हैं। घर के पीछे निकासी द्वार होता है, जहां गाय, बैल व अन्य पशु रहते हैं। घर की स्वच्छता पर हलबा महिलाये काफी ध्यान देती हैं।
हलबा, हलबी जनजाति खान-पान
- इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो, कुटकी का भात के साथ दाल सब्जी तथा बासी व पेज, रात्रि में रोटी भी बनाते हैं। मांसाहार में मुर्गा, मछली, बकरा आदि का मांस खाते हैं।
हलबा, हलबी जनजाति वस्त्र-आभूषण
- पुरूष धोती, पटका, बंडी, सलूका पहनते हैं। नवयुवक कुर्ता पजामा, पेंट शर्ट पहनते हैं। महिलायें साड़ी, ब्लाउज पहनती हैं। पुरूष सिर पर पागा बांधते हैं।
हलबा, हलबी जनजाति गोदना
- महिलायें अपने हाथ पैरों पर गोदना गुदवाती हैं। जिसमें कई विभिन्न प्रकार की आकृतियां होती हैं।
हलबा, हलबी जनजाति तीज-त्यौहार
- व्रत/त्यौहार हलबा जनजाति की स्त्रियां एकादशी व महाशिवरात्री का व्रत रखती हैं। पोला, हरेली, नवाखानी, रक्षाबंधन, दिवाली आदि त्यौहार मनाते हैं। त्यौहारों के साथ कई उत्सव मनाते हैं। यथा बिज्जा, मड़ई, दशहरा, होली आदि मुख्य हैं।
हलबा, हलबी जनजाति नृत्य
- हलबा जनजाति में कई लोक नृत्य लोक गीत, भजन आदि प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त नाटक भी खेलते हैं। हलबा जनजाति में पहले कर्मा नृत्य काफी प्रचलित था, किन्तु अब उतने हर्ष उल्लास से नहीं मनाया जाता। होली, दिवाली, शादी विवाह व देव पूजन के समय राहस या रामसता आदि नृत्य करते हैं। रहस नृत्य के समय गाये जाने वाले रहस गीत, गौरा गीत व माता सेवा गीत भी गाते हैं। लड़के-लड़कियां लोक गीतों में एक-दूसरे से सवाल-जबाब भी करते रहते हैं। नवरात्रि के दिनों में रामलीला का नाटक खेला जाता है।
हलबा, हलबी जनजाति व्यवसाय
- कृषि कार्य के अतिरिक्त जंगली उपज संग्रह करना है। अपने खेतो में धान कोदों, अरहर, उड़द, मूंग, तिली, चना, तिवड़ा, कुटकी आदि बोते हैं। यह जनजाति चिवड़ा कूटने का कार्य भी करती है।
हलबा, हलबी जनजाति जन्म-संस्कार
- प्रसव पति के घर पर ही होता हैं। परिवार व गांव की बड़ी बूढ़ी औरतें सूइन (दायी) की देखरेख में प्रसव कराया जाता हैं। प्रसव हो जाने के बाद सुइन बच्चे का नेरूआ नाल ब्लेड से काटती है। बच्चे को कुनकुने पानी से अंगोछा (पोछा) जाता है। यह कार्य सुइन ही करती है। जन्म स्थान पर गड्डा खोदकर नाल को उसमें गाढ़ दिया जाता हैं। प्रसूता से तीन दिन तक कसा का पानी (पुड़हर की जड़, सोंठ, तुलसी के पत्ते डालकर) देते हैं। उसके बाद मूंग या अरहर की दाल तथा घी सोंठ अजवाइन, काली मिर्च, गुड़ आदि का लड्डू बनाकर दिये जाते हैं। बच्चे की नाल गिरने के बाद का कार्य किया जाता है।
हलबा, हलबी जनजाति विवाह-संस्कार
- हलबा जनाित में एक गोत्र वाले आपस में विवाह नही करते। इस जनजाति में सामान्यतः वयस्क होने पर विवाह किया जाता है। लड़के का पिता, लड़की वालो के यहां जाकर विवाह तय करता है। लड़की पंसद आने पर फलदान की तारीख तय की जाती है। इनमें दहेज प्रथा नही है। लड़के का पिता फलदान की निश्चित तिथि पर अपने गांव व रिश्तेदारों के साथ लड़की के घर जाते हैं। लडकी के लिए कांच की चूड़िया, साड़ी, ब्लाउज, नारियल, मिठाई, हल्दी, सुपारी आदि वस्तुएं लेकर जाते हैं। विवाह की तिथि तय की जाती है। वर पक्ष की ओर से वधू के पिता को सुक के रूप में धान, तेल, मंद दिया जाता है। विवाह का कार्य समाज का ही व्यक्ति जिसे भण्डारी या जोशी कहा जाता हैं, द्वारा सम्पन्न कराया जाता हैं। विवाह के समय वर धोती, कुरता, गले में सूता सिर में पगड़ी तथा छींद की मौर पहनता है। वधु लुगड़ा पहनती है। छह भावर वधु के घर तथा एक भांवर वर के घर में होती है। इस जनजाति मे सहपलायन, घुसपैठ, घर जमाई, विधवा को चूड़ी पहनाना आदि विवाह भी प्रचलित हैं।
हलबा, हलबी जनजाति मृत्यु संस्कार
- हलबा जनजाति में मृतक को जलाते हैं। छोटे बच्चों को दफनाने की प्रथा है। तीसरे दिन तीसरा किया जाता है। मृत्यु के दसवे दिन दशकरम किया जाता है। इसी दिन परिवार के लोग बाल मुड़वाते हैं, तथा स्त्रियाँ मृतक की पत्नी अपनी चूड़ियाँ उतारती हैं। इसी दिन गांव व रिश्तेदारों केा भोजन कराया जाता हैं। घर की पूजा आदि करके घर पवित्र किया जाता हैं।
हलबा, हलबी जनजाति देवी-देवता
हलबा जनजाति के लोग देवी देवताओं में काफी आस्था रखते हैं।
सभी हिन्दू धर्म को मानते हैं। अपने कुल देवी देवताओं के साथ हिन्दू देवी देवताओं
की पूजा करते हैं, तथा त्यौहार को
मनाते हैं। हलबा जनजाति के मुख्य देवी देवता व त्यौहार निम्न प्रकार से हैः-
1. ग्राम देव
2. कुल देव
- ग्राम देवी देवताओं की गांव में रहने वाले सभी जाति के लोग एक साथ पूजा करते हैं। इनमें दुल्हा देव, ठाकुर देव, धुरवा (करिया) माता, देवाला, (शीतलामाता) कंकालिन माता, शंकर भगवान, हनुमान आदि की पूजा करते हैं। हलबा जनजाति में कुछ कुलदेवी देवता भी होते हैं। जिनकी पूजा में लोग घर मे ही अपने गोत्र वाले साथ करते हैं। इनमंे दूल्हादेव की पूजा प्रति तीन वर्ष में की जाती हैं। पूजा में बकरा की बलि दी जाती है। गुसई पुसई, कुवरदेव, मौली माता आदि मुख्य कुल देव हैं।
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