मध्यप्रदेश की कोंध जनजाति की जानकारी | MP Kondh Tribes Details in Hindi
मध्यप्रदेश की कोंध जनजाति की जानकारी (MP Kondh Tribes Details in Hindi)
मध्यप्रदेश की कोंध जनजाति की जानकारी
कोंध जनजाति की जनसंख्या
- कोंध जनजाति की जनसंख्या 109 मात्र आंकी गई हैं।
कोंध जनजाति का निवास क्षेत्र
कोंध जनजाति की जनसंख्या
जिला मुरैना, ग्वालियर, गुना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, सतना, रीवा, उमरिया, शहडोल, सीधी, रतलाम, उज्जैन,धार, इन्दौर, बड़वानी, पूर्वी निमाड़,
भोपाल, बैतूल,नरसिंहपुर, मण्डला, में पायी गई है।
कोंध जनजाति गोत्र
इनके मुख्य गोत्र बच्छा, छत्रा, हिकोका, कोंजाका, कदम, नरसिंघा आदि हैं।
कोंध जनजाति का रहन-सहन
इनके घर सामान्यतः मिट्टी
के होते हैं। घर में घासपूस या देशी खपरैल का छप्पर होता है। घर प्रायः दो कमरे का
होता हैं। घरेलू वस्तुओं में अनाज रखने की कोठी, धान कूटने का मूसल, अनाज पीसने की चक्की
(जांता) चूल्हा, मिट्टी व
एल्यूमोनियम के बर्तन, कृषि उपकरण, वाद्ययंत्र, मछली पकड़ने के जाल आदि
हैं।
कोंध जनजाति खान-पान
मुख्य भोजन चावल, कोदो की पेज व भात, बासी, उड़द, मूंग की दाल, मौसमी सब्जी कंदमूल, भाजी आदि है। मांसाहार
में मछली, मुर्गा, बकरा आदि का मांस खाते
हैं। जंगली कंदमूल और भाजी फल आदि एकत्र कर खाते हैं।
कोंध जनजाति वस्त्र-आभूषण
वस्त्र विन्यास में पुरूष
छोटी धोती (पंछा) व बंडी पहनते हैं। महिलाएँ लुगड़ा, पोलका पहनती हैं। महिलाएँ हाथ, पैरों, मस्तक आदि पर गुदना
गुदवाती हैं। आभूषणों में खिनवा, कान में सुरड़ा गले में माला पहनती हैं। ये आभूषण सामान्यतः
गिलट या नकली चांदी के होते हैं।
कोंध जनजाति तीज-त्यौहार
इनमें मनाये जाने वाले
प्रमुख त्यौहार दशहरा, अगहन, जात्रा, चैत्र जात्रा दीवाली, होली आदि हैं। चावल
जात्रा में नया चावल और चैत्र जात्रा में नवा महुआ खाते हैं। देवी देवता पूर्वजों
की पूजा दशहरा के दिन करते हैं।
कोंध जनजाति नृत्य
कोंध जनजाति में प्रमुख
लोक नृत्य विवाह नृत्य, होली नृत्य, जागा नृत्य आदि है। विवाह
एवं नृत्य के अवसर पर लोकगीत गाते हैं। वर्तमान में भजन फाग आदि भी गाते हैं।
कोंध जनजाति व्यवसाय
कोंध जनजाति का परम्परागत
व्यवसाय पोडुखेती (आदिम कृषि), शिकार, खाद्य संकलन आदि था। वर्तमान में स्थायी कृषि, जंगली उपज संग्रह करते
हैं। इनके मुख्य कृषि उत्पादन में धान, कोदो, उड़द,
मूंग, कुल्थी, मड़िया आदि है, जंगल से तेन्दूपत्ता, गोंद, अचार, तेन्दू महुआ, हर्रा आदि एकत्र कर बेचते
हैं।
कोंध जनजाति जन्म-संस्कार
कोंध जनजाति में प्रसव
प्रायः घर में ही स्थानीय दायी या घर की
बुजुर्ग महिलाएँ कराती हैं। छठवे दिन बच्चे के सिर के बाल मुण्डन कराते हैं
तथा प्रसूता के नाखून काटते हैं। प्रसूता व बच्चे को नहलाकर बच्चे को तीर कमान का
स्पर्श कराते हैं।
कोंध जनजाति विवाह-संस्कार
इस जनजाति में विवाह उम्र
लड़कांे की 15-19 वर्ष तथा
लड़कियांे की विवाह उम्र 13-16 वर्ष के बीच
मानी जाती हैं। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह के लिए मामा या
बुआ की लड़की को प्राथमिकता देते हैं। वर
के पिता वधू के पिता को वधू मूल्य के रूप में चावल, दाल, तेल,
शराब नगद रूपये, बकरा, लुगड़ा आदि सामग्री देते
हैं। विवाह की रस्म बुजुर्गो की देखरेख में सम्पन्न होती हैं। इस जनजाति में
सहपलायन, घुसपेठ प्रथा को
कुछ सामाजिक जुर्माना लेकर विवाह की सामाजिक मान्यता दी जाती है। विधुर त्यागता, देवर भाभी पुनर्विवाह
पाया जाता है। पहले इस जनजाति में युवागृह पाया जाता था। लड़को का धांगड़ाघर और
लड़कियों का धांगड़ीघर कहलाता था।
कोंध जनजाति मृत्यु संस्कार
मृत्यु होने पर शव को
दफनाते हैं। ये अब जलाने लगे हैं। दसवे दिन रिश्तेदार सिर के बाल, दाड़ी, मूंछ के बाल मुण्डन कराते
हैं, तथा स्नान करते
हैं। इस दिन घर की साफ सफाई की जाती हैं। मृतक की आत्मा भी वापसी की आशा में
दोराहे पर मुर्गे के सामने चावल बिखेरते हैं। मूर्गे द्वारा चुगने पर आत्मा का
आगमन माना जाता है। मुर्गे की बली देकर धनुष से कपड़ा उठाकर आत्मा को उसमें बैठने
कहकर घर के कोन में ले जाकर स्थापित करते हैं। रिश्तेदारों को भोज देते हैं।
कोंध जनजाति देवी-देवता
कोंध जनजाति के प्रमुख देवी देवता
बेला या बूरापेन्जू तथा इनकी पत्नी “तारी माता” धरती माता, शीतला माता आदि हैं। नदी, पर्वत, वृक्ष, नाग आदि को भी देवता
मानकर पूजा करते हैं।
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