मध्यप्रदेश में इसकी कुल
जनसंख्या 920 मात्र आंकी गई
है, जो प्रदेश की कुल
जनसंख्या का 0.001 प्रतिशत है।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति निवास क्षेत्र
मध्यप्रदेश में कोरवा
जनजाति की जनसंख्या जिला मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, सतना, उमरिया, शहडोल, सीधी, नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, देवास, झाबुआ, धार,
इन्दौर, पश्चिम निमाड़, बड़वानी, पूर्वी निमाड, राजगढ़, विदिशा, भोपाल, सीहोर, रायसेन, बैतूल, हरदा, होशगाबाद, कटनी, जबलपुर,नरसिंहपुर,मण्डला, छिंदवाड़, सिवनी, बालाघाट में पायी जाती
है।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति गोत्र
इनमें चार बहिर्विवाही
गोत्र पाये जाते हैं। यथा- हंसदा, मुण्डी और सामत प्रत्येक गोत्र के टोटम पाये जाते हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति रहन-सहन
कोरवा जनजाति मुख्यतः
पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती है। कुछ मैदानी ग्रामों में ये कंवर, उरांव, नगेसिया, मुण्डा आदि जनजातियों के
साथ निवास करती है। इस जनजाति के घर सामान्यतः मिट्टी के बने होते हैं जिसमें
घासपूस की छप्पर होती है। कुछ कोरवा जो पहाड़ी क्षेत्र में रहते है। घर की दीवार
लकड़ी व बांस से भी बनाते हैं। फर्श मिट्टी का बनाते है, जिसे गोबर से या मिट्टी
से लीपते हैं। घर में सामान्यतः एक या दो कमरे होते हैं। घरेलु वस्तुओं में भोजन
बनाने के बर्तन, तीर, धनुष, कुल्हाड़ी, बांस के टोकरे आदि होती
हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति खान-पान
इनका मुख्य भोजन कोदो, कुटकी की पेज, कभी कभी चावल की भात व
जंगली कंदमूल भाजी, मौसमी सब्जी हैं।
मासांहार में मुर्गी, मछली, केकड़ा, बकरा, सुअर आदि का मांस खाते
हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति वस्त्र-आभूषण
स्त्रियाँ गिलट के कुछ
गहने जैसे हाथ में कड़े, ऐढ़ा, नाक कान में लकड़ी या गिलट
का आभूषण पहनती हैं। पुरूष सामान्यतः कमर के नीचे लंगोटी लगाता हैं, ऊपर बंडी पहनता हैं।
स्त्रियां सिर्फ लुगड़ा पहनती हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति तीज-त्यौहार
इनके प्रमुख त्यौहार-
दशहरा, नवाखानी, दिवाली, होली आदि हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति नृत्य
कोरवा जनजाति के लोग करमा, बिहाव, परधनी, रहस आदि नाचते हैं।
लोकगीतों में करमागीत, विहावगीत, फाग आदि प्रमुख हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजातिव्यवसाय
इस जनजाति का व्यवसाय
खाद्य संकलन, जंगली उपज संग्रह, शिकार पर आधारित था। कोदो, कुटकी, मक्का, उड़द, मूंग आदि की खेती करने
लगे हैं। जंगली उपज में मुख्यतः कंदमूल, भाजी, महुआ, अचार, गोंद, तेन्दूपत्ता, शहद,
आंवला आदि एकत्र
करते हैं। गोंद, तेन्दूपत्ता, अचार, शहद, आवंला स्थानीय बाजार में
बेचते हैं। पुरूष महिलाएँ मछली, केकड़ा वर्षा ऋतु में छोटे नदी नाले से स्वयं के खाने हेतु
पकड़ते हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति जन्म-संस्कार
कोरवा जनजाति शिशु जन्म
को भगवान की देन मानते हैं। प्रसव के लिए पत्तों से निर्मित अलग झोपड़ी बनाते हैं।
जिसे “कुम्बा” कहते हैं। प्रसव इसी झोपड़ी में स्थानीय दायी जिसे “डोगिन” कहते हैं, की सहायता से कराते हैं।
बच्चे का नाल तीर की नोक या चाकू से काटते हैं। नाल झोपड़ी में ही गड़ाते हैं।
प्रसूता को हल्दी मिला भात खिलाते हैं। साथ ही कुल्थी, एड़ीमुड़ी, छींद की जड़, सरई छाल, सोंठ, गुड़ से काढ़ा बनाकर पिलाते
हैं। छठे दिन छठी मनाते हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति विवाह-संस्कार
विवाह उम्र लड़को की 12-15 वर्ष तथा लड़कियों की 11-13 वर्ष अनुमानित मानी जाती
हैं। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता हैं। विवाह मंेे अनाज, दाल, तेल, गुड़, नगद रूपये वधु के पिता को
“सूक” के रूप में दिये जाते हैं। विवाह में मंगनी, सूत, बधौनी, ब्याह और गौना इस प्रकार चार चरण में पूरा होता हैं। विवाह
के दो-तीन वर्ष बाद गौना होता हैें। फेरा करवाने का कार्य जाति का मुखिया संपन्न
कराता है। इस जनजाति में विनिमय, सेवा विवाह, घुसपैठ, सहपलायन, विवाह आदि पाया जाता है। विधवा पुनर्विवाह देवर, भाभी का पुनर्विवाह भी
मान्य हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति मृत्यु संस्कार
मृत्यु होने पर मृतक को
दफनाते हैं। 10 वे दिन स्नान कर
देवी देवता पूर्वजों की पूजा करते हैं। मृत्यु भोज देते हैं। जिस झोपड़ी में मृत्यु
हुई थी, उसे नष्ट कर नई
झोपड़ी बनाकर रहते हैं।
कोरवा, कोड़ाकू जनजाति देवी-देवता
इनके प्रमुख देवी देवता-
ठाकुर देव, खुरियारानी, शीतलामाता, दूल्हादेव आदि हैें। इसके
अतिरिक्त नाग, वाध, वृक्ष, पहाड़, सूरज, चांद, धरती, नदी आदि को भी देवता
मानकर पूजा करते हैं।
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