स्वामी दयानंद सरस्वती के समाज दर्शन पर प्रकाश डालिए ?| MPPSC Old Question With Answer
स्वामी दयानंद सरस्वती के समाज दर्शन पर प्रकाश डालिए।
(प्रश्न MPPSC MAINS PAPER 4 2017)
स्वामी दयानंद सरस्वती के समाज दर्शन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने तत्कालीन भारतीय समाज की कुरीतियों और समस्याओं पर सम्यक दृष्टि से विचार किया तथा इस सम्बन्ध में उद्गार प्रकट किए, जो संक्षेप में इस प्रकार हैं-
(1) जाति प्रथा का विरोध-
स्वामीजी के काल में दलित वर्ग को जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में अपमान और घुटन के वातावरण में रहना पड़ता था। उन्हें समाज में स्वतन्त्र अस्तित्व अथवा व्यक्तित्व के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं थी । बल्कि उन्हें हीन समझा जाता था। उन्हें मन्दिरों में जाने नहीं दिया जाता था और ना ही उन्हें वेद अध्ययन के योग्य माना जाता था। दयानन्दजी ने इसे पंडितों और ब्राह्मणों का पाखण्ड जाल बताया। वे कहा करते थे कि जैसे परमात्मा ने सभी प्राकृतिक वस्तुओं को समान रूप से प्रत्येक मनुष्य को प्रदान की है, उसी प्रकार वेद सबके लिए प्रकाशित है। वे जाति के ..आधार पर शूद्र नहीं मानते थे किन्तु वे कहते थे, जिसे • पढ़ना-पढ़ाना न आये, वह निर्बुद्धि और मूर्ख होने से शूद्र है। इस व्याप्त जाति प्रथा के कारण ही हिन्दू समाज असंगठित एवं शक्तिविहीन है। समाज को सशक्त और उन्नत बनाने हेतु जाति प्रथा एवं अस्पृश्यता को नष्ट करना ही होगा। इनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन को महात्मा गांधी ने सम्बल प्रदान किया। इस विषय में महात्मा गांधी कहा करते थे कि स्वामी दयानन्द की समाज व राष्ट्र को बहुत-सी देन है । उनकी अस्पृश्यता के विरुद्ध घोषणा निःसन्देह एक महानतम् देन है।
(2) कुप्रथाओं का विरोध -
स्वामी दयानन्द वैदिक धर्म की कट्टरता की सीमा तक अनुयायी थे। फिर भी कभी उन्होंने कुप्रथाओं का समर्थन नहीं किया। वे हमेशा समाज में फैली कुप्रथाओं का विरोध किया करते थे। वे बाल-विवाह, दहेज प्रथा, जैसी प्रथाओं का कड़ा विरोध करते थे।
विवेकपूर्ण जीवन साथी का चुनाव करने हेतु तथा सबल व स्वस्थ सन्तान हेतु वे कहा करते थे कि विवाह के समय लड़कों की आयु 25 वर्ष और लड़कियों की आयु कम से कम 16 वर्ष होनी चाहिए। इससे कम उम्र में विवाह से नैतिक जीवन तथा स्वास्थ्य जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
दहेज प्रथा को समूल नष्ट करना चाहते थे तथा इस प्रथा को समाज के लिये अभिशाप बताया करते थे। वे विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया करते थे। उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज आज भी समाज के उत्थान में कार्यरत हैं।
(3) वर्णाश्रम व्यवस्था के समर्थक
यद्यपि स्वामी दयानन्द जातिवाद तथा अस्पृश्यता आदि कुप्रथाओं केकड़े विरोधी थे तथापि वे वर्णाश्रम व्यवस्था के समर्थक थे। वर्णाश्रम व्यवस्था के समर्थक होने पर भी प्रचलित वर्णाश्रम व्यवस्था का विरोध इस बात पर करते थे कि वर्ण, कर्म के आधार पर निश्चित किया जाना चाहिए न कि जन्म के आधार पर। वे कर्म के साथ-साथ गुणों एवं प्रकृति का भी ध्यान रखने को कहते थे। यह सर्वविदित है कि आर्य समाज वर्णाश्रम व्यवस्था का इच्छित रूप प्राप्त नहीं कर सका परन्तु इसके बन्धनों को ढीला करने में अवश्य सफल हुआ।
(4) मूर्ति पूजा का विरोध :-
राजा राममोहन राय की तरह ही स्वामी दयानन्द ने भी मूर्तिपूजा का विरोध किया। वे अंधविश्वास तथा पाखण्ड को मूर्तिपूजा के द्वारा ही जन्मा मानते थे। इसलिए वे मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे। उनका कहना था- “यद्यपि मेरा जन्म आर्यवर्त में हुआ और मैं यहाँ का निवासी भी हूँ, परन्तु मैं पाखण्ड का विरोधी हूँ और यह मेरा व्यवहार अपने देशवासियों तथा विरोधियों के समान है। मेरा मुख्य उद्देश्य मानव जाति का उद्धार करना है।" वे आगे कहते हैं कि वेदों में मूर्तिपूजा की आज्ञा नहीं है। अत: उनके पूजने में आज्ञा भंग का दोष है । इसलिये इसे साथ मैं धर्म विरोधी कृत्य मानता हूँ।
(5) नारी अधिकारों के रक्षक-
स्वामी दयानन्द को भारतीय समाज में नारी की गिरती हुई स्थिति ने व्यथित कर दिया। उन्होंने पर्दा प्रथा, शिक्षा, तथा नारी की उपेक्षित और विपन्न स्थिति का घोर विरोध किया। इस प्रकार उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने नारी को समान अधिकार दिलवाए। नारी से सम्बन्धित उनके कुप्रथाओं के विरुद्ध आंदोलन चलाकर आर्य समाज में स्त्रियों को समाज में उच्च स्थान दिलवाया।
इस प्रकार दयानंद सरस्वती महान समाज सुधारक देशभक्त के रूप में भारतीय समाज का सदैव मार्गदर्शन करते रहे।
MP-PSC Study Materials |
---|
MP PSC Pre |
MP GK in Hindi |
MP One Liner GK |
One Liner GK |
MP PSC Main Paper 01 |
MP PSC Mains Paper 02 |
MP GK Question Answer |
MP PSC Old Question Paper |
Post a Comment