प्लेटो का शिक्षा-दर्शन |प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य |Plato Education Philosophy Details in Hindi
प्लेटो का शिक्षा-दर्शन, प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य
प्लेटो का शिक्षा-दर्शन
- सुकरात एवं प्लेटो के पूर्व सोफिस्टों का प्रभाव था पर उनकी शिक्षा अव्यवस्थित थी तथा इससे कम ही व्यक्ति लाभान्वित हो सकते थे क्योंकि सोफिस्टों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा निःशुल्क नहीं थी और इस शुल्क को चुकाने में कुछ ही लोग सक्षम थे। सोफिस्टों ने शिक्षा के उद्देश्य को सीधी उपयोगिता से जोड़ दिया इससे भी वे लोगों की घृणा के पात्र बने। क्योंकि ग्रीस की प्रबुद्ध जनता शिक्षा को अवकाश हेतु प्रशिक्षण मानती थी न कि जीवन के भरण-पोषण का माध्यम । पेलोपोनेसियन युद्ध में एथेन्स की हार को लोगों ने सोफिस्टों की शिक्षा का परिणाम माना फलतः उनका प्रभाव क्षीण हुआ और सुकरात तथा उसके योग्तम शिष्य प्लेटो को एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था के विकास के लिए उचित पृष्ठभूमि मिली।
- मानव इतिहास में शिक्षा के सम्बन्ध में प्रथम पुस्तक प्लेटो 'रिपब्लिक' है। जिसे रूसो ने शिक्षा की दृष्टि से अनुपम कृति माना। इसके द्वारा रचित अतिरिक्त 'लाज' में भी शिक्षा के सम्बन्ध में प्लेटो के विचार मिलते हैं । तत्कालीन प्रजातंत्र हो या कुलीनतंत्र, राजनीति स्वार्थ पूर्ति का साधन बन गई था। षड्यंत्रों, संघर्षो एवं युद्धों की जगह समदर्शी शासन जो नागरिकों के बीच सद्भावना को बढ़ा सके के महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्लेटो ने एक नये समाज की रचना आवश्यक माना। इस तरह के समाज की रचना का सर्वप्रमुख साधन प्लेटो ने शिक्षा को माना । समाज संघर्ष विहीन तभी होगा जब अपने-अपने गुणों के अनुसार सभी लोग शिक्षित होंगे।
- प्लेटो ने शिक्षा को अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय माना है। दि रिपब्लिक में प्लेटो इसे युद्ध, युद्ध का संचालन एवं राज्य के शासन जैसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक मानता है । दि लॉज में शिक्षा को प्रथम तथा सर्वोत्तम वस्तु माना है जो मानव को प्राप्त करनी चाहिए। दि क्रिटो में अपनी बात पर बल देते हुए प्लेटो कहते हैं "वैसे मानव को बच्चों को जन्म नही देना चाहिए जो उनकी उचित देखभाल और शिक्षा के लिए दृढ़ नहीं रह सकते।"
- जैसा कि हमलोग देख चुके हैं आदर्शवादी विचारक भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक या वैचारिक जगत को अधिक वास्तविक और महत्वपूर्ण मानते है। अंतिम या सर्वोच्च सत्य भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक या वैचारिक जगत के अधिक समीप है क्योंकि 'सत्य' या 'वास्तविक' की प्रकृति भौतिक प्रकृति न होकर आध्यात्मिक है। अतः आदर्शवादियों के लिए भौतिक विज्ञानों की जगह मानविकी- यानि जो विषय स्वयं मानव का अध्ययन करता है अधिक महत्वपूर्ण है। वस्तृनिष्ठ तथ्यों के अध्ययन की जगह संस्कृति कला, नैतिकता, धर्म आदि का अध्ययन हमें सही ज्ञान प्रदान करता है।
प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य
प्लेटो शिक्षा को सारी बुराइयों को जड़ से समाप्त करने का प्रभावशाली साधन मानता है। शिक्षा आत्मा के उन्नयन के लिए आवश्यक है। शिक्षा व्यक्ति में सामाजिकता की भावना का विकास कर उसे समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाती है। यह नैतिकता पर आधारित जीवन को जीने की कला सिखाती है। यह शिक्षा ही है जो मानव को सम्पूर्ण जीव जगत में सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने का गौरव प्रदान करता है।
प्लेटो ने शिक्षा के निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्य बतायेः
1. बुराइयों की समाप्ति एवं सद्गुणों का विकासः
अपने सर्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रिपब्लिक में प्लेटो स्पष्ट घोषणा करता है कि अज्ञानता ही सारी बुराइयों की जड़ है। सुकरात की ही तरह प्लेटो सद्गुणों के विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक मानता है। प्लेटो बुद्धिमत्ता को सद्गुण मानता है। हर शिशु में विवेक निष्क्रिय रूप में विद्यमान रहता है - शिक्षा का कार्य इस विवेक को सक्रिय बनाना है। विवेक से ही मानव अपने एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी हो सकता है।
2. सत्य, शिव (अच्छाई एवं सुन्दर) की प्राप्तिः-
प्लेटो एवं अन्य प्राच्य एवं पाश्चात्य आदर्शवादी चिन्तक यह मानते हैं कि जो सत्य है वह अच्छा (शिव) है और जो अच्छा वही सुन्दर है । सत्य, शिव एवं सुन्दर ऐसे शाश्वत मूल्य हैं जिसे प्राप्त करने का प्रयास आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री लगातार करते रहे हैं। प्लेटो ने भी इसे शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य माना।
3. राज्य को सुदृढ़ करना:-
- सुकरात एवं प्लेटो के काल में ग्रीस में सोफिस्टों ने व्यक्तिवादी सोच पर जोर दिया था। लेकिन आदर्शवादी शिक्षाशास्त्रियों की दृष्टि में राज्य अधिक महत्वपूर्ण है। राज्य पूर्ण इकाई है और व्यक्ति वस्तुतः राज्य के लिए है। अतः शिक्षा के द्वारा राज्य की एकता सुरक्षित रहनी चाहिए। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में सहयोग, सद्भाव और भातृत्व की भावना का विकास होना चाहिए।
4. नागरिकता की शिक्षा:-
- न्याय पर आधारित राज्य की स्थापना के लिए अच्छे नागरिकों का निर्माण आवश्यक है जो अपने कर्तव्यों को समझें और उसके अनुरूप आचरण करें। प्लेटो शिक्षा के द्वारा नई पीढ़ी में दायित्व बोध, संयम, साहस, युद्ध-कौशल जैसे श्रेष्ठ गुणों का विकास करना चाहते थे। ताकि वे नागरिक के दायित्वों का निर्वहन करते हुए राज्य को शक्तिशाली बना सकें।
5. सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास:-
- प्लेटो के अनुसार मानव-जीवन में अनेक विरोधी तत्व विद्यमान रहते हैं। उनमें सन्तुलन स्थापित करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य है। सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास एवं उचित आचार-विचार हेतु 'स्व' को नियन्त्रण में रखना आवश्यक है। शिक्षा ही इस महत्वपूर्ण कार्य का सम्पादन कर सकती है।
6. विभिन्न सामाजिक वर्गों को सक्षम बनाना:-
- जैसा कि हमलोग देख चुके हैं प्लेटो ने व्यक्ति के अन्तर्निहित गुणों के आधार पर समाज का तीन वर्गों में विभाजन किया है। ये हैं: संरक्षक, सैनिक तथा व्यवसायी या उत्पादक वर्ग दासों की स्थिति के बारे में प्लेटो ने विचार करना भी उचित नहीं समझा। पर ऊपर वर्णित तीनों ही वर्णों को उनकी योग्यता एवं उत्तरदायित्व के अनुरूप अधिकतम विकास की जिम्मेदारी शिक्षा की ही मानी गई।
इस प्रकार प्लेटो शिक्षा को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानता है। व्यक्ति और राज्य दोनों के उच्चतम विकास को प्राप्त करना प्लेटो की शिक्षा का लक्ष्य है। वस्तुतः शिक्षा ही है जो जैविक शिशु में मानवीय गुणों का विकास कर उसे आत्मिक बनाती है। इस प्रकार प्लेटो की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य अत्यन्त ही व्यापक है।
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