रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय जीवनी (जीवन वृत्त) | Rabindranath Tagore Biography in Hindi
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय जीवनी (जीवन वृत्त)
रवीन्द्रनाथ टैगोर कौन थे ?
रवीन्द्रनाथ टैगोर
विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। उनका व्यक्त्वि बहुआयामी था। वे एक ही साथ महान
साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार एवं संस्थाओं के
निर्माता थे। वे एक स्वप्नदृष्टा थे, जिन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए अनवरत् कर्मयोगी
की तरह काम किया। उनकी कालजयी सफलताओं से भारतीयों में आत्मसम्मान का भाव आया।
उनके विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र की सीमांए बांध नहीं पायी। वे एक विश्व नागरिक
थे। उनका शिक्षा दर्शन सम्पूर्ण वसुधा के संरक्षण एवं विकास का उद्देश्य लेकर चलती
है, जिसमें
सौन्दर्याभूति है, सत्य है और जीव
मात्र का कल्याण है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (जीवन वृत्त)
रवीन्द्रनाथ टैगोर का
जन्म बंगाल के एक अत्यंत ही सम्पन्न एवं सुसंस्कृत परिवार में 6 मई, 1861 को हुआ था। धर्मपरायणता, साहित्य में अभिरूचि तथा
कलाप्रियता उन्हें विरासत में मिली। वे महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर के कनिष्ठ पुत्र
थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान एवं उत्साही समाज
सुधारक थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम 1863 ई0 में बोलपुर के
पास अपनी साधना के लिए एक आश्रम की स्थापना की। कालान्तर मे यही स्थल रवीन्द्रनाथ
टैगोर की कर्मस्थली बनी। यहीं पर गुरूदेव ने शांतिनिकेतन, विश्वभारती, श्रीनिकेतन जैसी विश्व
प्रसिद्ध संस्थाओं की स्थापना की ।
समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण रवीन्द्रनाथ का बचपन बड़े आराम से बीता। पर विद्यालय का उनका अनुभव एक दुःस्वप्न के समान रहा जिसके कारण भविष्य में उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। कुछ माह तक वे कलकत्ता में ओरिएण्टल सेमेनरी में पढ़े पर उन्हें यहाँ का वातावरण बिल्कुल पसंद नहीं आया। इसके उपरांत उनका प्रवेश नार्मल स्कूल में कराया गया। यहाँ का उनका अनुभव और कटु रहा। विद्यालयी जीवन के इन कटु अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने बाद में लिखा "जब मैं स्कूल भेजा गया तो, मैने महसूस किया कि मेरी अपनी दुनिया मेरे सामने से हटा दी गई है। उसकी जगह लकड़ी के बेंच तथा सीधी दीवारें मुझे अपनी अंधी आखों से घूर रही है।" इसीलिए जीवन पर्यन्त गुरूदेव विद्यालय को बच्चों की प्रकृति, रूचि एवं आवश्यकता के अनुरूप बनाने के प्रयास में लगे रहे ।
इस प्रकार रवीन्द्रनाथ को
औपचारिक विद्यालयी शिक्षा नाममात्र की मिली। पर घर में ही उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, संगीत, चित्रकला आदि की श्रेष्ठ
शिक्षा निजी अध्यापकों से प्राप्त की ।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने
के उद्देश्य से वे 1878 में इंग्लैंड
गये। वहाँ भी कुछ ही दिन तक बाइटन स्कूल के विद्यार्थी के रूप में रह पाये। अंततः
वे वे भारत लौट आये । पुनः 1881 ई0 मे कानून की
पढ़ाई के विचार से वे विलायत गये। पर वहाँ पहुंचने के उपरांत वकालत की पढाई का
विचार उन्होंने त्याग दिया,
और वे स्वदेश
वापस आ गये। इस प्रकार उन्होंने औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नही की, पर पूर्व और पश्चिम की
संस्कृतियों का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला। दोनों ही संस्कृतियों
का सर्वश्रेष्ठ तत्व गुरूदेव के व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया।
1901 में बोलपुर के समीप
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम के नाम से एक विद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में
शान्तिनिकेतन के नाम से पुकारा गया। तत्पश्चात उन्होंने अपने को पूर्णतः शिक्षा
साहित्य एवं समाज की सेवा में अर्पित कर दिया।
गुरूदेव को सक्रिय
राजनीति में रूचि नहीं थी,
पर जब अंग्रेजों
ने अन्याय पूर्वक बंगाल का विभाजन किया तो गुरूदेव ने इसके विरूद्ध चलने वाले
स्वदेशी आन्दोलन का नेतृत्व किया। वे कलकत्ता की गलियों में एकता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व
का गीत गाते हुए निकल पड़े। बंगाल का विभाजन रद्द हुआ।
कवि, साहित्यकार, अध्यापक एवं समाजसेवी के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर की ख्याति बढ़ती गयी। 1913 में उन्हें गीतांजली नामक काव्य पुस्तक पर साहित्य का विश्वप्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार मिला। वे एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें यह विश्व प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था। अब पूरा विश्व उन्हें विश्वकवि के रूप में देखने लगा। उन्होंने अमेरिका, एशिया एवं यूरोप के अनेक देशों का भ्रमण किया। 1915 में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 'नाइटहुड' की उपाधि प्रदान की।
1919 में जब जालियाँवाला बाग
में हजारों निहत्थे भारतीयों की औपनिवेशिक सरकार द्वारा हत्या की गई, तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'नाइटहुड' की उपाधि लौटा दी और वे
पीड़ित भारतीयों के साथ खड़े हो गये। इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने देश को
राजनीतिक नेतृत्व भी प्रदान किया। सन् 1941 में इस महान कवि एवं ऋषितुल्य गुरूदेव का देहावसान हो गया।
उनकी मृत्यु पर गुरूदेव के प्रशंसक महात्मा गाँधी ने कहा था "गुरूदेव के
पार्थिव शरीर की राख पृथ्वी में मिल गई है, लेकिन उनके व्यक्तित्व का प्रकाश सूर्य की ही तरह तब तक बना
रहेगा जब तक पृथ्वी पर जीवन है.. गुरूदेव एक महान अध्यापक ही नहीं थे वरन एक ऋषि
थे।"
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा संबन्धी कृत्तियां
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ
टैगोर एक महान रचनाकार थे। उनकी रचनाओं का संसार बहुत ही विस्तृत था शिक्षा से
संबंधित उनकी चार महत्त्वपूर्ण पुस्तकें है सबसे अधिक प्रसिद्ध पुस्तक शिक्षा है
जो प्रथम बार 1908 में प्रकाशित
हुई। प्रारंभ में इसमें सात निबंध थे, बाद में इसमें गुरूदेव द्वारा लिखित 16 अन्य निबंधों को भी
संकलित किया गया। अन्य तीन पुस्तकें है 'शान्तिनिकेतन ब्रह्मचर्य आश्रम', 'आश्रम रूप दो विकास
तथा विश्वभारती । इसके अतिरिक्त सौ से भी अधिक प्रकाशित निबंध एवं व्याख्यान है -
जिनका अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है।
शिक्षा से संबंधित गुरूदेव की रचनांए शिक्षा के विभिन्न स्तरों एवं पक्षों— 'प्राथमिक-उच्च', 'ग्रामीण-शहरी', 'व्यक्ति - समुदाय का चित्रण करते है। उनकी कई कविताएं शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लिपिका में संग्रहित तोता कहानी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सर्वाधिक तीखा व्यंग है। यह दर्शाता है कि विभिन्न स्तरों पर शिक्षा की व्यवहारिक समस्याओं की उनको कितनी गहरी समझ थी।
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