रूसो के अनुसार पाठ्यक्रम |Rousseau's Curriculum in Hindi

 रूसो के अनुसार  पाठ्यक्रम (Rousseau's Curriculum in Hindi)

रूसो के अनुसार  पाठ्यक्रम |Rousseau's Curriculum in Hindi



रूसो के अनुसार  पाठ्यक्रम (Rousseau's Curriculum in Hindi)


  • जैसा कि हमलोग देख चुके है रूसो प्रथम बारह वर्षों तक औपचारिक शिक्षा देने का विरोधी है। साथ ही पाठ्यक्रम में कई विषयों एवं उनके परम्परागत शिक्षण विधियों का भी विरोध करता है। रूसो भाषा की शिक्षा को व्यर्थ मानता है। भूगोल में विश्व कैसा है यह पढ़ाने की जगह केवल नक्शा पढ़ाया जाता है। "उसे शहरोंदेशोंनदियों के केवल नाम पढ़ाये जाते हैं जिसका उसके लिए कोई अस्तित्व नहीं है केवल उसके सामने रखे कागज पर छोड़कर। यह और अधिक हास्यापद गलती है कि इस स्तर पर इतिहास पढ़ाया जाता है जबकि वे उन सम्बन्धों को नहीं समझ पाते जिन्हें राजनीतिक क्रिया कहते हैं ।"

 

जिन विषयों की शिक्षा देने की रूसो संस्तुति करता है वे हैं-


शारीरिक शिक्षा 

  • बारह वर्ष तक की अवस्था तक धनात्मक शिक्षा शारीरिक व्यायाम तथा इन्द्रियों के प्रशिक्षण तक सीमित है। शारीरिक शिक्षा स्पार्टा के मॉडल पर आधारित है। अच्छे स्वास्थ्य पर प्रकाश डालते हुए रूसो कहता है: “अगर आप अपने छात्र की बुद्धि विकसित करना चाहते है तो पहले उस शक्ति का विकास करो जिसे बुद्धि नियंत्रित करेगा। उसके शरीर को लगातार व्यायाम दोउसे शक्तिशाली एवं स्वस्थ होने दो ताकि वह अच्छा एवं बुद्धिमान बने। उसे दौड़ने दोचिल्लाने दोकुछ न कुछ करने दो। इससे वह एक शक्तिशाली एवं विवेकशील मानव होगा। उसमें खिलाड़ी का बल और दार्शनिक की दृष्टि होगी ।"

 

इन्द्रियों का प्रशिक्षण : 

  • रूसो इन्द्रियों के प्रशिक्षण पर अत्यधिक जोर देता है। वह कहता है कि हमारा पहला अध्यापक हाथपैरआंख आदि है । इनकी जगह हम पुस्तक रखते हैं तो यह दूसरे के अनुभव या तर्कों का प्रयोग करना हुआ न कि अपना । इन्द्रियों के प्रशिक्षण से रूसो का तात्पर्य औपचारिक व्यायाम न होकर वास्तविक परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना है - जैसी परिस्थितियों का वह भविष्य में सामना करेगा ।

 

  • प्रथम इन्द्रिय जिसे रूसो प्रशिक्षित करने का सुझाव देता है वह स्पर्श है । इसका प्रशिक्षण अंधेरे में देना चाहिए। स्पर्श अगर देखते हुए किया जाय तो मस्तिष्क देखने की क्रिया से वस्तु के बारे में निर्णय ले लेता है। दूसरी तरफस्पर्श के द्वारा विभेदीकरण सुनिश्चित है। यह अन्य इन्द्रियों के जल्दीबाजी में लिए गये गलत निर्णयों को सही करता है . 

 

  • दृष्टि के प्रशिक्षण हेतु रूसो ऐसे कार्यों को बताता है- यह तय करना कि सीढ़ी इतनी लम्बी है या नहीं कि वह पेड़ की उच्चतम शाखा तक पहुँच जायकोई लकड़ी इतनी लम्बी है कि नहीं वह किसी जलधारा को ढँक देमछली पकड़ने हेतु धागे की लम्बाई पर्याप्त है या नहींदो वृक्षों के मध्य झूला बाँधने के लिए रस्सी की लम्बाई कम ता नहीं है। दौड़ में असमान दूरी देकर तथा बच्चे को तय करने देना कि कौन सी दूरी सबसे छोटी है ताकि वह उसे चुन सके । रूसो के अनुसार दृष्टि सभी इन्द्रियों में से वह है जिसे हमें मस्तिष्क के निर्णय से सबसे कम अलग कर सकते हैंइसलिए स्पर्श की तुलना में देखना सीखना में अधिक समय लगता है । दृष्टि को प्रशिक्षित करना आवश्यक है जिससे वह दूरी और आकार के बारे में सही जानकारी दे सके। इसी तरह रूसो अन्य इन्द्रियों- श्रवणस्वादघ्राण के प्रशिक्षण की आवश्यकता बताता है।

 

  • इस पूरे काल में रूसो एमिल को पढ़ाता नहीं है वरन् भावी शिक्षा के लिए तैयार करता है। इस समय 'समय को व्यतीत करना और उसे बचानामुख्य उद्देश्य है। इस काल की शिक्षा के संदर्भ में रूसो कहते हैं: "उसके विचार कम है लेकिन स्पष्ट हैवह रट कर कुछ नहीं जानता पर अनुभव के द्वारा बहुत जानता है। अगर वह अन्य बच्चों की तुलना में किताब खराब ढंग से पढ़ता है तो वह प्रकृति की पुस्तक को काफी बेहतर पढ़ता हैउसके विचार उसके जिह्वा नहीं उसके मस्तिष्क में रहता हैउसे याद कम है और निर्णय अधिक है। वह केवल एक भाषा बोल सकता है पर वह समझता है कि वह क्या बोल रहा हैऔर अगर उसकी भाषा उतनी अच्छी नहीं है जितना अन्य बच्चों के तो उसके कार्य दूसरों से बेहतर हैं ।" "उसने बचपन का सर्वोत्तम प्राप्त किया हैउसने बच्चों का जीवन जिया हैउसकी प्रगति उसकी खुशियों की कीमत पर नहीं खरीदी गई हैउसने दोनों प्राप्त किया है ।"

 

रूसो के अनुसार बारह वर्ष की आयु के उपरांत पाठ्यक्रम : 

  • यह काल बाल्यावस्था से किशोरावस्था के मध्य परिवर्तन का काल है। पहला काल आवश्यक से सम्बन्धित थायह काल उपयोगी से सम्बन्धित है तथा आगे का काल क्या सही है इससे सम्बन्धित है। रूसो कहते है: "प्रारम्भिक बाल्यवस्था में लम्बा समय था- हमने केवल अपना समय व्यतीत करने का प्रयास किया ताकि इसका दुरूपयोग न होअब विपरीत स्थिति है- हमलोगों के पास उन सभी के लिए जो उपयोगी हैंपर्याप्त समय नहीं है।

 

  • जिन ज्ञान को प्राप्त करना है उनका चुनाव बड़ी सावधानी से होना चाहिए। यह निश्चित रूप से बच्चे की वर्तमान आवश्यकता के अनुकूल हो । "इसका क्या उपयोग हैयही पवित्र सूत्र है।" विगत काल में जिन विषयों को छोड़ दिया गया था- उन पर उपयोगिता की दृष्टि से पुनर्विचार होने चाहिएतथा जो विषय उपयोगी होने की परीक्षा उत्तीर्ण करे उनकी शिक्षा दी जानी चाहिए। यह अध्यापक का काम नहीं है कि छात्र को विभिन्न विषय / विज्ञान पढ़ाये। पर उसे विषयों की जानकारी दे और जब छात्र में रूचि हो सीखने की विधि बताये ।

 

रूसो के अनुसार शिल्प की शिक्षा : 

  • एमिल को एक शिल्प या हस्तउद्योग अवश्य सीखना चाहिएसीखने के लिए कम पर इसे बिना प्राप्त न करने से उत्पन्न होने वाले पूर्वाग्रह से मुक्त होने के लिए अधिक। रूसो इसके महत्व को मानते हुए कहते हैं "अगर मैं एक बच्चे को पुस्तक से मुक्त कर एक कार्यशाला में काम करने हेतु भेजता हूँ तो यह उसके मस्तिष्क के विकास के लिए । यद्यपि वह कार्य करते हुए एक शिल्पी या मजदूर होने की कल्पना करता है पर वह एक दार्शनिक बन रहा होता है।" एमिल के लिए जिस कार्य की कल्पना रूसो करते हैं वह है काष्ठकार्य । "यह साफ - सुथरा एवं उपयोगी है: इसे घर में किया जा सकता हैयह पर्याप्त व्यायाम देता हैयह कौशल और परिश्रम चाहता है तथा प्रतिदिन के प्रयोग के लिए वस्तुओं का निर्माण करते हुए परिष्कार और सुरुचि के विकास की संभावना बनी रहती है।" रूसो के अनुसार एमिल को अनिवार्यतः एक किसान की तरह काम करना चाहिए तथा एक दार्शनिक की तरह सोचना चाहिए।" रूसो के अनुसार शिक्षा का महान रहस्य है शरीर और मस्तिष्क के व्यायाम को एक-दूसरे के आराम के लिए प्रयोग करना ।

 

औद्योगिक एवं यांत्रिक कला: 

  • अब तक विद्यार्थी जहाँ तक संभव हो वस्तुओं पर निर्भर करता था। "बच्चा तब तक वस्तुओं पर निर्भर करता है जब तक वह मानव के अध्ययन के लिए बड़ा एवं योग्य नहीं हो जाता है।"

 

  • सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं की समझ अब आवश्यक है । आदमियों के परस्पर सम्बन्धों एवं कर्तव्यों को सीधे तौर पर सिखाने की जगह- अध्यापक को विद्यार्थी का ध्यान औद्योगिक एवं यांत्रिक कला की ओर खींचना चाहिए जिसमें परस्पर सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। मानव की मानव पर आर्थिक निर्भरता के आधार पर अध्यापक अपने विद्यार्थियों में सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता को महसूस करायेगा। रूसो के अनुसार सारी सम्पत्ति समुदाय की है तथा प्रत्येक व्यक्ति समुदाय के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करता है।

 

पन्द्रह वर्ष तक की शिक्षा का निचोड़ रूसो के शब्दों में निम्न है-

 

"अपने ऊपर आधिपत्य पाकरहमारा बच्चा अब बच्चा रहने के लिए तैयार नहीं है। उसके शरीर और मस्तिष्क को क्रियाशील कराने के बाद आपने उसके मस्तिष्क एवं उसके निर्णय को क्रियाशील किया है। और अंततः उसके अंगो और बौद्धिक क्षमताओं को जोड़ दिया है। हम लोगों ने उसे एक मजदूर या शारीरिक श्रम करने वाला तथा एक विचारक बनाया है। अब उसे हम स्नेहसिक्त और कोमल हृदय का बनायें।"

 

पन्द्रह वर्ष के उपरांत पाठ्यक्रम: 

छात्र अब नैतिक स्तर पर पहुँच जाता है। उसे एक जवान व्यक्ति का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए। रूसो इस आयु की शिक्षा के संदर्भ में कहता है -

"उसे यह जानने दो कि मानव प्रकृति से अच्छा हैउसे यह महसूस करने दोउसे अपने पड़ोसियों के संदर्भ में स्वयं निर्णय लेने दोलेकिन उसे यह भी देखने दो कि समाज ने मानव को किस तरह से विकृत किया है। उसे महसूस करने दो कि मानव के पूर्वनिर्धारित विचारों या पूर्वाग्रह ही सारी बुराइयों की जड़ है। उसे व्यक्ति को आदर देने दो पर समूह को नापसन्द करने दोउसे महसूस करने दो कि सभी मानव एक ही मुखौटा लगाते हैं लेकिन उसे यह भी जानने दो कि कुछ चेहरे उस मुखौटे से बेहतर होते हैं जो उसे छिपाता है।"

 

इतिहास : 

  • रूसो के अनुसार अब इतिहास की शिक्षा दी जानी चाहिए। इतिहास के माध्यम से वह बिना दर्शन पढ़े मानव के हृदय को समझ सकता है। वह उन्हें बिना किसी भावना या पक्षपात के निरपेक्ष दर्शक की तरह देखेगा - न्यायाधीश की दृष्टि से देखेगा। "इतिहास को क्रांति और बर्बादी रूचिकर बनाता है। जब तक राष्ट्र शांतिपूर्ण ढंग से विकास करता है इतिहास उस ओर ध्यान नहीं देता है- पतन की प्रक्रिया पर जोर देता है। शैतान चरित्र सिद्ध हो जाते हैं- अच्छे को भूला दिया जाता है। इस तरह से इतिहासदर्शन की तरह मानव को गिराता है ।" दूसरी कठिनाई यह है कि इतिहास मानव की जगह क्रिया को दिखाता है। वह मानव को कुछ चुने हुए समय में ही दिखाता है । घटनाओं के धीमे विकास की प्रक्रिया को इतिहास नहीं देख पाता है। युद्ध उन घटनाओं को दिखाता है जो नैतिक कारणों द्वारा सुनिश्चित होता हैजिसे कुछ ही इतिहासकार समझ पाते हैं। इतिहास के चरित्र को आदर्श (मॉडल) नहीं माना जा सकता।

 

नैतिकता : 

  • रूसो प्राचीन जीवनियों जैसे प्लूटार्क की जीवनी पढ़ने का सुझाव देता है वह आधुनिक जीवनियों को महत्व प्रदान नहीं करता है। विद्यार्थी के प्रशिक्षण में बरती गई तमाम सावधानियों के बावजूद गलतियाँ हो सकती हैं- इनका सुधार अप्रत्यक्ष रूप से होना चाहिए। "गलतियों का समय (लोककथाओं) का समय है।" एक कहानी की सहायता से अगर हम गलतियों का एहसास कराते हैं तो वह अपमानित महसूस नहीं करता है। लेकिन कहानी की शिक्षा अलग से बताने की जरूरत नहीं है- क्योंकि वह तो कहानी में ही स्पष्ट रहता है।

 

धार्मिक शिक्षा: 

  • पन्द्रह वर्षों तक विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा देने का रूसो विरोध करता है। उसके अनुसार अभी तक एमिल ने शायद ही ईश्वर का नाम सुना होगा । पन्द्रहवें वर्ष तक वह शायद ही यह जान पाया होगा कि उसके पास एक आत्मा हैअठारहवें वर्ष में भी शायद इसकी शिक्षा के लिए तैयार न हुआ हो। रूसो एमिल को किसी सम्प्रदाय से जोड़ने का सुझाव नहीं देता है - वह स्वयं अपनी समझ के अनुसार निर्णय लेगा । यद्यपि रूसो 'दि क्रीड ऑफ ए सवोयाड प्रिस्ट' के पक्ष में है। रूसो यह नहीं बताता है कि क्यों कोई सम्प्रदाय बेहतर है।

 

  • रूसो आन्तरिक प्रकाश पर जोर देता है। सत्य स्वयं स्पष्ट है। जिस पर ईमानदारी से विश्वास करने से इन्कार नहीं कर सकता है। रूसो एमिल के लिए प्राकृतिक धर्म दिये जाने का प्रस्ताव रखता है।

 

  • सौन्दर्यशास्त्र रूसो किशोर के लिए सौन्दर्यशास्त्र पढ़ने की अनुशंसा करता है- रूचि के सिद्धान्त का दर्शन । रूचि जो हृदय में प्रवेश करता हैशास्त्रीय ग्रन्थों में ही उपलब्ध है। इन्हें नैतिकता की ही तरह सौन्दर्यशास्त्र के शिक्षण में रूसो उपयोग में लाना चाहता है।

 
शारीरिक प्रशिक्षण: 

  • किशोरावस्था में शारीरिक प्रशिक्षण की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। छात्र को किसी एक व्यवसाय में लगा होना चाहिए जो उसे परिश्रमी बनायेगा। किसी एक पेशे जिसमें वह अत्यधिक रूचि लेने लगता हैजिसमें वह अपने को पूर्णतः लगा देता है उसे और अधिक गहनता से प्राप्त करने का सुझाव देता है।

 

यौन शिक्षा : 

  • रूसो के अनुसार अगर आवश्यक हो तो शुचिता या पवित्रता हेतु नैतिक उपदेश दिए जा सकते है। छात्र को प्रकृति के नियम का संपूर्ण सच बतायें। विवाह पवित्रम तथा मधुरतम सामाजिक सम्बंध है। इसके विरूद्ध जाने वाला निन्दा का पात्र बनते हैं। शुचिता या पवित्रता की इच्छा पर स्वास्थ्य मजबूतीसाहसनैतिकताप्यार आदि अच्छे गुण निर्भर करते हैं । यौन-प्रवत्ति को आदर्श स्त्रियोचित गुण के प्रति अनुराग के रूप में परिष्कृत करना चाहिए। आदर्श संगिनी के रूप में रूसो सोफीएमिल की भावी पत्नीके लिए शिक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

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