रूसो का शिक्षा दर्शन |रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य |Rousseau's philosophy of education

 रूसो का शिक्षा - दर्शन (Rousseau's philosophy of education)

रूसो का शिक्षा - दर्शन |रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य |Rousseau's philosophy of education

 रूसो का शिक्षा - दर्शन (Rousseau's philosophy of education)

 

  • रूसो के अनुसार शिक्षा में तीन महत्वपूर्ण पक्ष हैं- बच्चे की अन्तर्निहित शक्तिसामाजिक वातावरण तथा भौतिक वातावरण.  
  • शिक्षा प्रकृतिमानव या वस्तुओं से ली जा सकती है। तीनों के मध्य सहयोग या समन्वय हो तो आदर्श शिक्षा हो सकती है। पर यह सहयोग सम्भव नहीं है क्योंकि प्रकृति एवं मानव संघर्षरत रहता है। रूसो के शब्दों में "हम बाध्य हैं मानव या प्रकृति से संघर्ष करने के लिए। आप मनुष्य या नागरिक में से एक का चुनाव कर लें- दोनों को आप साथ-साथ प्रशिक्षित नहीं कर सकते। रूसो का चुनाव प्राकृतिक शिक्षा है न कि सामाजिक शिक्षा।

 

  • रूसो दो तरह की शिक्षा व्यवस्था की बात करता है- पब्लिक या सार्वजनिकजो बहुतों के लिए समान है तथा दूसरा प्राइवेट या घरेलू । पब्लिक शिक्षा का संचालन सरकार करती है क्योंकि यह लोकप्रिय सरकार की मूल आवश्यकता है। दि न्यू हेलॉयज् में रूसो प्राइवेट या निजी शिक्षा या घरेलू शिक्षा का वर्णन करता है। इस घरेलू शिक्षा में माँ मुख्य अध्यापिका है।

 

  • रूसो का विद्यार्थी कोई विशेष बालक नहीं बल्कि सामान्य बालक है । रूसो ने कहा "हम लोगों को सामान्य को देखना चाहिए न कि विशेष कोअपने विद्यार्थी को हम अमूर्त मानें।" इस तरह से रूसो मानव के सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक प्रकृति पर बल देता हैअतः एमिल को प्रजातांत्रिक शिक्षा का स्रोत माना जाता है। रूसो पहला शिक्षाशास्त्री है जो सार्वजनिक शिक्षा पर जोर देता है।

 

  • रूसो का शिक्षा-दर्शन इस सिद्धान्त पर आधारित है कि बच्चे को इस तरह से तैयार किया जाय कि वे अपनी स्वतंत्रता का भविष्य में सही उपयोग कर सकें। बड़ों के पूर्वाग्रह से मुक्त रहते हुए बच्चे को अपने बचपन का आनन्द उठाने का अधिकार है ।

 

  • रूसो के अनुसार बालक की शिक्षा के तीन प्रमुख स्रोत हैं— (i) प्रकृति (ii) पदार्थ (ii) मनुष्य । रूसो के अनुसार बालक का विकास प्रकृति तथा पदार्थ के माध्यम से होता है। मानव यानि अध्यापक जब अपनी ओर से शिक्षा देने लगता है तो बच्चे की स्वाभाविक शिक्षा प्रभावित होती है और कुशिक्षा प्रारम्भ हो जाती है। रूसो के अनुसार शिक्षक पर समाज की बुराइयों का इतना अधिक प्रभाव पड़ चुका होता है कि वह बच्चों में सद्गुणों का विकास नहीं कर सकता क्योंकि उसमें स्वयं सद्गुण बचे नहीं रहते हैं। अतः कम से कम प्रारम्भिक स्तर पर बच्चे की शिक्षा में रूसो अध्यापक की कोई भूमिका नहीं देखता है। माता-पिता ही इस अवस्था में बच्चों के सहज शिक्षक होते हैं। उन्हें भी कम से कम हस्तक्षेप करते हुए बच्चे को अपनी प्रकृति के अनुसार विकास करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

 

रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य 

 

  • रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य मानव को प्रकृति के अनुरूप जीवन जीने के योग्य बनाना है। शिक्षा द्वारा मानव संसर्ग के परिणामस्वरूप जो कृत्रिमता उसमें आती हैउससे उसकी रक्षा करता है। रूसो सामाजिक संस्थाओं और उनमें विद्यमान रूढ़ियों के कटु आलोचक हैं। वे कहते हैं- "तुम समाज सम्मत व्यवहार के ठीक विपरीत कार्य करो। और तुम प्रायः सही होगे।" वे मानवीय सामाजिक संस्थाओं को 'मूर्खता तथा विरोधाभास का समूह बताते हैं।" रूसो प्रकृति को ईश्वर निर्मित मानता है और बच्चे को ईश्वरीय कृति । वह मानता है कि जब तक बच्चा प्रकृति के प्रभाव में रहता है तब तक वह सद्गुणीशुभ तथा पवित्र रहता है परन्तु मानव के हस्तक्षेप से उसमें गिरावट आने लगती है। इस प्रकार रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालकों में अन्तर्निहित प्रकृत स्वभाव एवं गुणों को सुरक्षित रखना है. 

 

  • रूसो ने शिक्षा को केवल अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित न रखकर उसे जनसामान्य तक पहुँचाने का प्रयास किया। रूसो ने अमीर घर के बच्चों को भी प्राकृतिक शिक्षा देने की वकालत की। रस्क  के शब्दों में यह अमीर घर के बच्चों को भी गरीबी की शिक्षा देना चाहते थे ताकि भावी जीवन में जो भी स्थिति बने वह सफलता पूर्वक विपत्ति या दुर्भाग्य का सामना कर सके। रूसो सामान्य या प्राकृतिक मानव के आदर्श पर जोर देता है न कि प्लेटो की तरह सुपरमैन के आदर्श पर।

 

  • रूसो मजबूतअच्छे शरीर सौष्ठव का स्वस्थ बच्चा चाहता है। रूसो कमजोर शरीर एवं कमजोर मस्तिष्क के बच्चे को पसन्द नहीं करता है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन एवं उच्च नैतिक चरित्र का आधार है। रूसो का कहना था " कमजोर शरीर कमजोर मस्तिष्क का निर्माण करता है।"

 

  • रूसो शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता का विकास मानते हैं। पर नैतिकता का विकास प्राकृतिक परिणामों के द्वारा होना चाहिए न कि व्याख्यानों के द्वारा। रूसो कहते हैं "बच्चे के लम्बे अवकाश काल ( प्रथम बारह वर्ष) में नैतिक शिक्षा का कोई प्रत्यक्ष पाठ नहीं पढ़ाया जाना चाहिए एकमात्र नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए "किसी को आघात मत पहुँचाओं ।" रूसो लोककथाओं द्वारा भी अप्रत्यक्ष रूप से नैतिक शिक्षा देने के विरूद्ध हैं।

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