रूसो का सामाजिक दर्शन |Rousseau's Social Philosophy in Hindi
रूसो का सामाजिक दर्शन (Rousseau's Social Philosophy in Hindi)
रूसो का सामाजिक दर्शन
- रूसो रूमानी प्रकृतिवादी विचारधारा के प्रतिपादक थे। इनके अध्ययन का विषय सृष्टि की संरचना न होकर सृष्टि की आह्लादकारी प्रकृति तथा मानव प्रकृति है। इस विचारधारा को प्रकृतिवादी केवल इन अर्थों में कहा जा सकता है कि यह सामाजिक कृत्रिमता का विरोध करता है तथा मानव के प्रकृत जीवन को श्रेष्ठ मानता है। दार्शनिक दृष्टि से यह सम्प्रदाय आदर्शवाद के समीप है क्योंकि रूसो ने प्रकृति को ईश्वर की कृति माना है।
- अठारहवीं शताब्दी की सामाजिक कृत्रिमताओं, वर्गभेद, धार्मिक अंधविश्वास एवं राजनीतिक निरंकुशता से उठकर रूसो प्रकृति की ओर लौटने का नारा देता है। तत्कालीन समाज को वह सारी बुराइयों का जड़ मानता है। उसका मानना है कि समाज के नियम प्रकृति के सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक नियमों पर आधारित होने चाहिए। रूसो ने स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा की कि प्रकृति पर अधिकार उसके नियमों पर चल कर ही किया जा सकता है।
- अठारहवीं शताब्दी की सामाजिक बुराइयों के विरूद्ध जो विद्रोह हुआ उसको सबसे मुखर वाणी रूसो ने दी। रूसो का मानना था कि पूर्व में मानव निश्छल एवं अज्ञानी तो था पर उसका जीवन शांत और सरल था । उसकी आवश्यकतायें अल्प थी अतः वह उन्हें आसानी से संतुष्ट कर लेता था । लेकिन यह सुखद स्थिति बहुत दिनों तक नहीं रही और उसकी लालसायें बढ़ती गई- उसने अपने अधिकार को स्थापित करने हेतु सभ्यता का विकास किया। निजी सम्पत्ति पर अत्यधिक जोर दिया जाने लगा । इस कृत्रिम आवश्यकता ने ही लोभ की प्रवृत्ति को जन्म दिया। समाज का वर्गों में विभाजन होने लगा। एक तरफ तो प्रभुत्व वाले व्यक्ति थे और दूसरी ओर दास या गुलाम । अतः रूसो सभ्यता को एक भारी भूल बताता है तथा समाज को सारी बुराइयों का जड़ । रूसो कहते हैं "बच्चा जन्म स्वतंत्र - प्राणी के रूप में लेता है पर उसे सभी ओर से जंजीरों से बाँध दिया जाता है।" अतः रूसो का कहना है कि समाज को और अधिक पतन से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि समाज का पुनर्गठन मूल प्राकृतिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाय ।
- रूसो के अनुसार राज्य के अस्तित्व का आधार आम सहमति (जनरल विल) है जिसका भाव सभी की भलाई है। अगर राज्य जनसामान्य की भलाई में असमर्थ है तो उसे समाप्त कर देना चाहिए। राज्य के नियम नागरिकों की सहमति के आधार पर बनने चाहिए न कि उनके प्रतिनिधियों की राय के आधार पर। इस प्रकार रूसो के राजनीतिक विचार अपने समय से काफी आगे था। सही अर्थों में रूसो को लोकतंत्र का अग्रदूत कहा जा सकता है।
- रूसो का मानना था कि धर्म के संदर्भ में व्यक्ति को स्वयं निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए । संस्थाबद्ध संगठनों द्वारा इसे व्यक्ति पर थोपना नहीं चाहिए ।
- रूसो मानव को जन्मजात अच्छा मानता है । मानव समाज के सम्पर्क में आकर बुराइयों को ग्रहण करता है । वह घोषणा करता है " प्रकृति के " हाथों आने वाली हर चीज अच्छी होती है; मानव समाज हस्तक्षेप करता है और वह दूषित हो जाती है ।" रूसो के अनुसार अच्छाई, सहानुभूति, दया, न्याय आदि गुण मानव में जन्मजात होते हैं । आवश्यकता है इन गुणों को समाज की बुराइयों से बचाये रखने की ।
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