स्वामी विवेकानन्द और शिक्षा का प्रसार |Swami Vivekanand And Education in Hindi
स्वामी विवेकानन्द और शिक्षा का प्रसार
(Swami Vivekanand And Education in Hindi)
स्वामी विवेकानन्द और शिक्षा का प्रसार
स्वामी विवेकानन्द ने राष्ट्र और मानव की समस्याओं का निदान शिक्षा को माना । वे शिक्षा को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के प्रभावशाली माध्यमों के प्रयोग पर बल दिया ।
1 भ्रमणकारी सन्यासियों द्वारा शिक्षा
- स्वामी विवेकानन्द की यह योजना श्रमण प्रकृति से मिलती-जुलती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के प्रसार का कार्य उन हजारों सन्यासियों के माध्यम से हो सकता है जो गाँव-गाँव धर्मोपदेश करते हुए घूमते रहते हैं। उन्हीं के शब्दों में "हमारे देश में एकनिष्ठ और त्यागी साधु हैं जो गाँव-गाँव धर्म की शिक्षा देते फिरते हैं। यदि उनमें से कुछ लोगों को शैक्षिक विषयों में भी प्रशिक्षित किया जाये तो गाँव-गाँव दरवाजे जाकर वे न केवल धर्म की ही शिक्षा देंगे बल्कि ऐहिक शिक्षा भी दिया करेंगे।" उन्होंने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि यदि इनमें से एक दो शाम को साथ में एक मैजिक लैन्टर्न, एक - एक ग्लोब और कुछ नक्शे आदि लेकर गाँव में जायें तो इनकी सहायता से वे अनपढ़ों को बहुत कुछ गणित, भूगोल, नक्षत्र - विज्ञान, ज्योतिष आदि की शिक्षा दे सकते हैं। ये सन्यासी विभिन्न देशों के बारे में कहानियाँ सुनाकर निर्धन लोगों को नाना प्रकार का समाचार दे सकते हैं जिनसे उनका ज्ञानव न हो सके। बातचीत के माध्यम से सीधी सूचना के कारण ज्यादा प्रभावकारी जानकारी दी जा सकती है जो शायद पुस्तकों के माध्यम से संभव न हो सके।
- विवेकानन्द ने गरीब लड़कों की आर्थिक मजबूरी को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट किया कि गरीब लड़के पाठशाला जाने की बजाय अर्थोपार्जन हेतु खेतों में माता-पिता की सहायता करने अथवा किसी अन्य तरीके से धन अर्जित करना ज्यादा पसन्द करते हैं, उनके लिए ऐसे सन्यासियों का घर-घर जाकर शिक्षा देना ज्यादा सराहनीय कदम होगा।
- स्वामी जी शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने हेतु निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था चाहते थे। स्वामी जी मानते थे कि शिक्षा देने का कार्य त्यागी और तपस्वी पुरूषों का है। उन्हें लोभ से दूर रहते हुए ऐसे बालकों के पास पहुँचकर शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जो आर्थिक अभाव के कारण शिक्षा ग्रहण करने हेतु अध्यापक के पास न आ पायें। स्वामी जी की मान्यता थी कि अशिक्षित जनसमूह को साक्षर बनाने की अपेक्षा जीवनोपयोगी शिक्षा देना अधिक आवश्यक है। इसलिए स्वामी जी औपचारिक शिक्षा के बजाय अनौपचारिक शिक्षा पर अधिक जोर देते थे।
स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण मिशन
- स्वामी विवेकानन्द ने मानव जाति के उत्थान के लिए नवीन सन्यासी सम्प्रदाय का गठन किया, जो रामकृष्ण मिशन के नाम से प्रसिद्ध है। विवेकानन्द ने इसका उद्देश्य निश्चित किया - "आत्मनो मोक्षार्थ जगत् हिताय च।" - 'अपनी मुक्ति तथा जगत के कल्याण के लिए। रामकृष्ण मठ की स्थापना 1897 में की गई तथा रामकृष्ण मिशन का पंजीकरण 1909 में किया गया। मठ और मिशन स्वामीजी के शिक्षा सम्बन्धी विचारों को साकार रूप देने का माध्यम है। मठ का मुख्य कार्यालय बेलूर मठ में है। देश में तो मठ और मिशन की अनेक शाखायें हैं ही, विदेशों में भी 130 शाखायें स्थापित की गई हैं। रामकृष्ण मठ और मिशन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से समाज-सेवा है। पुनरूजीवित हिन्दू धर्म के लिए विश्व की सांस्कृतिक विजय को इसने अपना साध्य माना।
- भारत में मठ और मिशन का कार्य है मठ से चरित्रवान व्यक्ति निकलकर समाज को आध्यात्मिक शांति और संसारिक वैभव से प्लावित करे। मनुष्य की संसारिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए विद्यादान' तथा 'ज्ञानदान', शिल्पकारों एवं श्रमजीवियों को प्रोत्साहित करना तथा वेदान्त एवं दूसरे धर्मों के भावों का प्रसार करना मिशन का उद्देश्य है ।
- स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन की मुहर के लिए साँप द्वारा घेरे हुए कमल दल के बीच में हंस का छोटा सा चित्र तैयार किया था । इस चित्र का तरंगपूर्ण जल समूह कर्म का, कमल दल भक्ति का और उदयीमान सूरज ज्ञान का प्रतीक है। चित्र में जो साँप का घेरा है, वह योग और जाग्रत कुण्डलिनी शक्ति का द्योतक है। चित्र के मध्य में जो हंस की मूर्ति है उसका अर्थ है परमात्मा । अर्थात् कर्म, भक्ति, ज्ञान और योग के साथ सम्मिलित होने से ही परमात्मा का दर्शन होता है।
- रामकृष्ण मिशन का एक महत्वपूर्ण कार्य है जनसेवा । यह आपदा की स्थिति में पूरी निष्ठा से लोगों की सेवा करता है । मठ के शैक्षिक उद्देश्यों पर जोर डालते हुए विवेकानन्द ने कहा "इस मठ को धीरे-धीरे एक सर्वांग सुन्दर विश्वविद्यालय के रूप में परिणत करें। इसमें दर्शनशास्त्र तथा धर्मशास्त्र के साथ-साथ औद्योगिक विषयों की भी शिक्षा देनी होगी।" उनके विचार में राष्ट्र की उन्नति उसी अनुपात में होगी जिस अनुपात में जनता के मध्य शिक्षा का प्रसार होगा। विवेकानन्द के इन सुझावों पर मठ एवं मिशन चलने का प्रयास कर रहे हैं। इनके द्वारा अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, धार्मिक विद्यालय, औद्योगिक विद्यालय, कृषि संस्थान, संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय, पालीटेकनीक स्कूल, कम्प्यूटर सेन्टर, अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र आदि प्रभावशाली ढंग से चलाये जा रहे हैं।
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