टी० पी० नन शिक्षाशास्त्री का (जीवन - वृत्त) जीवन परिचय |टी० पी० नन का जीवन-दर्शन |T. P. Nunn Short Biography in Hindi
टी० पी० नन शिक्षाशास्त्री का (जीवन - वृत्त) जीवन परिचय
T. P. Nunn Short Biography in Hindi
टी० पी० नन शिक्षाशास्त्री के बारे में सामान्य जानकारी
सर टी० पी० नन बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक प्रभावशाली शिक्षाशास्त्रियों में से एक हैं। उनके शिक्षा सिद्धान्तों ने न केवल इंग्लैंड की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया वरन् प्रजातांत्रिक व्यवस्था वाले सभी राष्ट्रों को स्वतंत्रता के लिए शिक्षा प्रक्रिया के संचालन हेतु एक आधार प्रदान किया। नन व्यक्ति की स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हुए शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य वैयक्तिकता या व्यक्तित्व का विकास करना मानते हैं। पर नन का व्यक्तिवाद सामजिक है। वह मानव में सामाजिकता का विकास कर उसे उच्चतर आदर्शों के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। वस्तुतः नन का मानव प्राणीशास्त्र की सीमा से ऊपर उठकर दर्शन का विषय बन जाता है। इसीलिए नन के विचारों का पूरे विश्व के शिक्षाशास्त्रियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
टी० पी० नन शिक्षाशास्त्री का (जीवन - वृत्त) जीवन परिचय
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री
सर टी० पी० नन का जन्म 1870 में इंग्लैंड
में हुआ था। नन अध्यापकों के परिवार से जुड़े थे। उनके पिता और पितामह ने ब्रिस्टल
नामक स्थान पर एक विद्यालय की स्थापना की थी। बाद में इसे वेस्टन- सुपर–मेयर नामक
स्थान में स्थानान्तरित कर दिया गया। सोलह वर्ष आयु से ही टी० पी० नन अपने परिवार
के इस विद्यालय में अध्यापन में रूचि लेने लगे। 1790 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इस तरह से
बीस वर्ष की अवस्था में ही विद्यालय की संपूर्ण जिम्मेदारी टी० पी० नन के कन्धों
पर आ गई। पर अपने को कम वय और अल्प अनुभव का मानकर उन्होंने प्रधानाचार्य का पद
स्वीकार नहीं किया और लन्दन डे ट्रेनिंग कॉलेज में अध्यापन करने लगे। 1905 में वे इस कॉलेज के
उपप्राचार्य बने तथा 1910 में उनकी
नियुक्ति लन्दन विश्वविद्यालय में शिक्षाशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में हुई।
लन्दन के विश्वविख्यात संस्थान 'इंस्टीट्यूट ऑफ एडुकेशन' के निदेशक पद को उन्होंने 1913 से 1936 तक सुशोभित किया। वे इस सुप्रसिद्ध संस्थान के संस्थापक
निदेशक थे। चौहत्तर वर्ष की अवस्था में, 1944 में सर टी० पी० नन का देहान्त हो गया ।
सर टी० पी० नन की
सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'एडुकेशन: इट्स
डाटा एण्ड फर्स्ट प्रिन्सिपुल्स' है। इसमें उन्होंने समाज एवं राज्य की तुलना में व्यक्ति के
महत्व को स्थापित किया। वे व्यक्तिवाद ( इण्डिविडुवेलिटि) को अत्यधिक महत्वपूर्ण
मानते हैं पर उनका व्यक्तिवाद उच्छृंखलता या अनियन्त्रित आचरण की अनुमति प्रदान
नहीं करता है।
टी० पी० नन का जीवन-दर्शन
हीगल के कार्य से राज्य
की सर्वोच्चता को सैद्धान्तिक आधार मिला । हीगल के आदर्शवाद से प्रशा के मस्तिष्क
में राज्य के सर्वोच्च महत्व का भाव आया । राज्य किसी अन्य नैतिक शक्ति को अपने
ऊपर नहीं मान सकता, यह खतरनाक विश्वास
स्थापित हुआ। इसका सीधा अर्थ था कि प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय जनसामान्य
की आत्मा में इन सिद्धान्तों को भरने के साधन के रूप में कार्य करे।
ब्रिटेन के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर टी० पी० नन ने अपनी पुस्तक "एडुकेशन: इट्स डाटा एण्ड फर्स्ट प्रिन्सिपुल्स' में हीगल के विचारों का खण्डन करते हुए व्यक्तिवाद एवं व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अत्यधिक जोर दिया। उन्होंने अपनी पुस्तक में दिखलाया कि हॉब्स के समय से ही इंग्लैंड व्यक्तिवादी दर्शन की प्रधानता रही है । यद्यपि लेवियाथा के लेखक के अतिरंजित व्यक्तिवाद को नन नहीं मानते पर उन्होंने समाज की जगह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया है। टी० पी० नन ने स्पष्ट शब्दों में कहा "व्यक्ति विशेष (महिला एवं पुरूष) की स्वतंत्र गतिविधियों से ही मानव जगत में अच्छाई का प्रवेश होता है तथा शैक्षिक क्रियाओं को इस तथ्य को ध्यान में रखकर संचालित किया जाना चाहिए।" नन एक ऐसा सिद्धान्त चाहते हैं जो व्यक्ति के महत्व को पुनः स्थापित करे तथा उसके अधिकार को सुरक्षित रखे।
नन ने स्पष्ट शब्दों में कहा 'इंडिविडुवेलिटि इज आइडियल ऑफ लाइफ' यानि 'वैयक्तिकता जीवन का आदर्श है । आचार्य रामशकल पाण्डेय इस वाक्य की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि “जीवन अपने में स्वतंत्र है तथा एकता की ओर सतत् प्रयत्नशील है।" जीवन की यह स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव अपने इसी स्वतंत्रता के कारण इच्छानुसार कार्य कर पाता नन के अनुसार मनुष्य पर प्रकृति के नियम लागू होते हैं। मानव समस्त वैज्ञानिक खोजों से परे है। वह अभिव्यक्ति के लिए लगातार प्रयासरत रहता है। शिक्षा का कार्य है व्यक्तित्व की पूर्णता में सहायता प्रदान करना ।
व्यक्तित्व वस्तुतः शरीर और मनस् दोनों की सम्मिलित अभिव्यक्ति है। इस प्रकार नन वाटसन जैसे व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों की सीमा से परे, दर्शन की ओर बढ़ जाते हैं।
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