कार्बोहाईड्रेट क्या होता है | कार्बोहाईड्रेट संगठन वर्गीकरण कार्य कमी अधिकता |भोजन में कार्बोहाइड्रेट के स्रोत | Carobohydrate in Hindi
कार्बोहाईड्रेट संगठन वर्गीकरण कार्य कमी अधिकता
कार्बोहाईड्रेट : परिचय
भोज्य पदार्थों में कार्बोहाईड्रेट या कार्बोज का विशेष स्थान है, क्योंकि प्रकृति में यह अद्वितीय कार्य करता है। वास्तव में काबोहाईड्रेट पशु जगत के पोषण का मुख्य साधन है। पौधों में पाये जाने वाले हरे तत्व क्लोरोफिल (chlorophyll) में असंख्य रासायनिक परिर्वतन होते हैं। यह क्लोरोफिल सूर्य की रोशनी की उपस्थिति में वायु में कार्बनडाई आक्साईड (CO) एवं पृथ्वी की सतह (Soil) से पानी (H2O) लेकर संश्लेषित (Synthesis) क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस को प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं। इस प्रकार कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत पौधे ही हैं। यह तत्व प्रकृति में अधिक मात्रा में पाया जाता है। स्टार्च के रुप में कार्बोज विभिन्न प्रकार के अनाजों तथा पौधों की जड़ों में पाया जाता है। चावल, शर्करा, आलू, गेहूँ, बाजरा, अन्य सभी धान्य और जड़दार सब्जियों में यह तत्व बहुतायत में पाया जाता है।
कार्बोहाईड्रेट संगठन
कार्बोहाईड्रेट एक यौगिक है, जो विभिन्न तत्वों के संयोग से बना है। इसमें निहित तत्व हैं- कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन। इन तीनों तत्वों के पारस्परिक रासायनिक संयोग के परिणामस्वरुप कार्बोहाईड्रेट का संगठन होता है।
कार्बोहाईड्रेट वर्गीकरण
1) मोनोसैक्राइड (Monosaccharide)
यह कार्बोहाइड्रेट की सबसे सरल इकाई है। ये वह एकल रासायनिक इकाई है जिसके संयोजन से जटिल कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। मोनोसैक्राइड में तीन प्रकार की शर्करा पाई जाती है -
ग्लूकोज़ (Glucose)-
समस्त कार्बोहाइड्रेट पदार्थ के पाचन के पश्चात् ग्लूकोज के रुप में ही शरीर में शोषित होती है। ये सबसे सरल शर्करा है।
फ्रक्टोज़ (Fructose)-
यह ठोस, रवेदार, स्वाद में मीठा और पानी में घुलनशील है। यह फलों के रस में पाया जाता है।
ग्लेक्टोज़ (Galactose) -
यह शरीर में पाचन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होता है।
2) डाईसैक्राइड (Disaccharide)
मोनोसैक्राइड की दो इकाई (units) मिलाकर डाईसैक्राइड की एक इकाई बनती है। इसमें तीन प्रकार की शर्करा पाई जाती हैं-
मालटोज़ (Maltose)-
यह विशेषकर अंकुर निकले अनाजों में पाई जाती है। लेक्टोज़ (Lactose)- यह शर्करा दूध में पाई जाती है, इसलिए इसे दुग्ध शर्करा भी कहते हैं।
सक्रोज़ ( Sucrose) -
इसे गन्ने की शर्करा कहते हैं।
3) पॉली-सैक्राइड (Polysaccharide)
ये कार्बोज पदार्थ दो से अधिक शर्करा इकाइयों से मिलकर बनती हैं। यह निम्न रूपों में पाया जाता है
स्टार्च (Starch)-
यह पौधों की जड़ों व बीज में पाया जाता है।
सैल्युलोज़ (Cellulose)-
यह केवल पौधों में पाया जाता है तथा मनुष्यों में इसका पाचन नहीं होता।
डैक्सट्रीन (Dextrin)-
स्टार्च युक्त भोजन को पकाने व भूनने से वह डैक्सट्रिन में परिवर्तित हो जाता है।
ग्लाईकोज़न (Glycogen)-
इ से पशु स्टार्च (Animal starch) भी कहते हैं क्योंकि यह पशुओं के यकृत में जमा होता है।
पेक्टिन (Pectin)-
पेक्टिन पके हुए फल में उपस्थित होता है। यह चीनी की उपस्थिति में जैली का रुप धारण कर लेता है, अतः फल का पेक्टिन जैली जमाने के प्रयोग में लाया जाता है।
भोजन में कार्बोहाइड्रेट के स्रोत
कार्बोहाइड्रेट की प्राप्ति के समस्त स्रोत वनस्पति जगत में ही विद्यमान हैं। यह विभिन्न अनाजों, फलों, सब्जियों तथा अन्य भोज्य पदार्थों में विद्यमान रहता है। अनाजों में मुख्य रुप से गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा तथा चना आदि में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा पाया जाता है। खजूर, अंगूर, केला, किशमिश, मुनक्का, सूखी खुबानी तथा अंजीर जैसे फल भी कार्बोहाइड्रेट के अच्छे स्रोत हैं। अनाजों एवं फलों के अतिरिक्त कुछ अन्य पदार्थों में भी कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इस प्रकार के भोज्य पदार्थ हैं- गुड़, शहद, अरारोट, शीरा, शक्करकंद, आलू आदि। वैसे न्यूनाधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट प्रायः सभी भोज्य पदार्थो में विद्यमान रहता है।
कार्बोहाईड्रेट की दैनिक आवश्यकताएँ
विभिन्न विशेषज्ञ समूह (ICMR, FAO, WHO) द्वारा प्रस्तावित दैनिक आहारीय एवं पोषकीय आवश्यकताओं की तालिकाओं के अन्तर्गत भारतीयों के लिए कार्बोहाइड्रेट की दैनिक आवश्यकता की कोई मात्रा निर्धारित नहीं की गयी है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार वसा, प्रोटीन आदि से शरीर को जितनी मात्रा में कैलोरीज़ मिल जाये, बाकी शेष बची कैलोरीज़ कार्बोहाइड्रेट से ही प्राप्त होनी चाहिए। अतः लगभग 50-65 प्रतिशत कैलोरीज कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होनी चाहिए।
कार्बोहाईड्रेट पाचन एवं अवशोषण
कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुँह से प्रारम्भ होता है। जब भोजन चबाया जाता है तो वह लार के सम्पर्क में आता है। लार में एक तरह का अल्फाएमायलेज पाया जाता है जिसे 'टायलिन' कहते हैं। टायलिन की क्रिया से स्टार्च का परिवर्तन डैक्स्ट्रीन तथा माल्टोज में हो जाता है। पके हुए भोज्य पदार्थों पर यह क्रिया अधिक अच्छी तरह से होती है क्योंकि पकाने की क्रिया के परिणामस्वरुप स्टार्च कोशिकाओं की भित्तियाँ फट जाती हैं और इन पर एन्जाइम की क्रिया शीघ्रता से होने लगती है । आमाशय में भोजन के पहुँचने पर इस एन्जाइम की क्रियाशील बन्द हो जाती है। पाचन की प्रमुख क्रिया छोटी आँत में सम्पन्न होती है और सरलतम शर्कराएं तैयार होती हैं।
पाचन के अन्त में एकल शर्करा इकाई में ग्लूकोज, फ्रुक्टोज व गैलेक्टोज बनते हैं जिनका अवशोषण आँतों के द्वारा होता है। कार्बोहाइड्रेटस के कुछ रुप जो पच नहीं सकते, जैसे- सेल्यूलोज, आदि व्यर्थ पदार्थों के साथ उत्सर्जित कर दिये जाते हैं। अवशोषण की क्रिया छोटी आँत में होती है। सरल शर्कराएं यकृत में पहुँचाई जाती हैं। ग्लूकोज का कुछ भाग माँसपेशियों द्वारा भी ले लिया जाता है। आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज यकृत में ग्लायकोज़न के रुप में संग्रहित कर लिया जाता है।
कार्बोहाइड्रेट के कार्य
भोजन के एक अतिआवश्यक तत्व के रुप में कार्बोहाइड्रेट शरीर में विभिन्न महत्वपूर्ण कार्य करता है। शरीर के लिए कार्बोहाइड्रेट के कार्यों एवं उपयोगिता का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. ऊर्जा प्रदान करना-
कार्बोहाइड्रेट का शरीर में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य शरीर को विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा देना है। यह ऊर्जा का उत्तम स्रोत है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से शरीर चार कैलोरी ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। इससे शरीर को प्रत्यक्ष रुप से ऊर्जा प्राप्त होती है तथा यह शरीर में संग्रहित होकर भी आवश्यकता पड़ने पर ऊर्जा प्रदान करता है।
2. प्रोटीन की बचत में सहायक-
भोजन में ग्रहण किया गया कार्बोहाइड्रेट शरीर में संग्रहित प्रोटीन की बचत में भी सहायक है। यदि हम पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ग्रहण करते हैं तो इससे शरीर को समुचित मात्रा में कैलोरी प्रदान होगी। अतः प्रोटीन की मात्रा अन्य कार्यों के लिए सुरक्षित रहती है।
3. कैल्सियम के अवशोषण में सहायक-
लैक्टोज के रुप में कार्बोहाइड्रेट शरीर में कुछ बैक्टीरिया की वृद्धि में सहायक होता है। लैक्टोज शरीर में कैल्सियम के अवशोषण में सहायक होता है।
4. वसा की बचत में सहायक-
पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ग्रहण करने से यह शरीर में वसा की बचत में सहायक होता है। कार्बोहाइड्रेट वसा के अत्यधिक प्रज्जवलन को रोकने में भी सहायक होता है।
5. पाचन संस्थान को स्वस्थ्य बनाना-
सेल्यूलोज, नामक कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर में से व्यर्थ पदार्थों अर्थात मल के विर्सजन में सहायक होते हैं। इन कार्बोहाइड्रेट का कोई पोषण मूल्य तो नहीं है परन्तु यह हमारी आतों की माँसपेशियों की गति को तीव्रता प्रदान करती है। ये फीके व रेशेयुक्त होते हैं। इन्हें रेशा कहते हैं। इसके द्वारा मल अधिक देर आँत में नहीं रहता और मल द्वार से बाहर आ जाता है जिससे कब्ज की शिकायत नहीं रहती ।
6. भोजन को स्वाद प्रदान करना-
कार्बोहाइड्रेट युक्त प्रायः सभी भोज्य पदार्थ मीठे तथा उत् स्वाद वाले होते हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि आहार में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थ के समावेश से भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है तथा रुचिपूर्वक ग्रहण किया जाता है।
7. अनेक गम्भीर रोगों से सुरक्षा
अधिक रेशा युक्त भोज्य पदार्थों के सेवन से हृदय रोगी को आराम मिलता है क्योंकि ऐसे आहार में वसा, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम रहती है। यह स्ट्रॉल की मात्रा भी कम करने में भी सहायक है।
कार्बोहाइड्रेट की कमी
विभिन्न भोज्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट की समुचित मात्रा विद्यमान होने के कारण सामान्य रुप से हमारे आहार में इसकी कमी नहीं हुआ करती । कार्बोहाइड्रेट से शरीर मुख्य रुप से ऊर्जा ग्रहण करता है। कमी होने की स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है तथा त्वचा में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। व्यक्ति दुर्बलता महसूस करने लगता है तथा चेहरे से चमक भी कम होने लगती है।
कार्बोहाइड्रेट की अधिकता
सामान्य से अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ग्रहण करने से भी शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरुप मोटापा (obesity) हो जाता है। वास्तव में जब शरीर में सामान्य से अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट एकत्र हो जाता है तो वसा तन्तुओं (adipose tissue) के रुप में बदल जाता है। परिणामस्वरुप वजन में वृद्धि हो जाती है। शरीर की चुस्ती कम होने के कारण व्यक्ति साधारण परिश्रम से ही थक जाता है। इस स्थिति में मस्तिष्क की क्रियाशील तथा माँसपेशियों की कार्यक्षमता घट जाती है।
इस स्थिति में व्यक्ति को अपने दैनिक आहार में से कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को घटा कर नियमित रुप व्यायाम करना चाहिए।
मधुमेह (Diabetes)
वास्तव में मधुमेह रोग कार्बोहाइड्रेट की कमी से अथवा अधिकता से नहीं होता। जब 'कार्बोहाइड्रेट' का चयापचय नहीं होता हो ऐसी अवस्था में रक्त शर्करा (Blood sugar) बढ़ जाती है, उसका कुछ भाग मूत्र के साथ शरीर में विसर्जित होता रहता है। साधारणतः रक्त में शर्करा की मात्रा रहती है किन्तु मधुमेह में यह मात्रा बढ़ जाती है।
कार्बोज का चयापचय इन्सुलिन नामक हारमोन पर निर्भर करता है। इन्सुलिन अन्तःस्रावी ग्रन्थि (Pancreas) से निकलने वाला रस है। जब शरीर में इन्सुलिन बनना कम हो जाता है या किसी कारणवश बन्द हो जाता है तो ग्लूकोज़ रक्त में बढ़ जाता है।
इसके मुख्य लक्षण हैं- बार-बार पेशाब जाना, अधिक प्यास व भूख लगना, कमजोरी, पैरों में जलन, अधिक पसीना आना व सिर चकराना आदि।
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