केन्द्र एवं राज्यों के बीच विभाजन निश्चित ही केन्द्र की ओर झुका हुआ है ? | Central Vs State Govt in Hindi
केन्द्र एवं राज्यों के बीच विभाजन निश्चित ही केन्द्र की ओर झुका हुआ है ?
केन्द्र एवं राज्यों के बीच विभाजन निश्चित ही केन्द्र की ओर झुका हुआ है ?
उत्तर
भारतीय संविधान निर्माताओं ने अपने लम्बे अनुभव और विश्व की प्रशासनिक व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन करने के पश्चात् भारत के लिए संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया। जिसमें संघ तथा राज्य सरकारें संविधान से शक्ति प्राप्त कर अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से शासन संचालित करती है। चूँकि केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण संघीय संविधान की मुख्य विशेषता है। केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण कुछ इस प्रकार होना चाहिए कि दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र हो, लेकिन एक-दूसरे के साथ सहयोग भी करते हों।
भारतीय संविधान में एक शक्तिशाली केन्द्र की व्यवस्था की गई, जिससे देश की एकता और अखण्डता को सुरक्षित किया जा सके। संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। भारत के संविधान में ऐसे अनेक प्रावधान हैं, जो केन्द्र को राज्यों की तुलना में अधिक शक्ति सम्पन्न बनाते हैं। आपातकालीन परिस्थितियों में केन्द्र की स्थिति अधिक शक्तिशाली हो जाती है तथा केन्द्र को शक्ति विभाजन में अधिक शक्तियाँ देने, राज्यपाल की भूमिका नीति आयोग की भूमिका आदि ने केन्द्र व राज्यों के बीच विवाद को बढ़ाया है।
इस प्रकार भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संघ तथा राज्यों के मध्य संबंधों को संविधान ने इस तरह परिभाषित करने का सम्पूर्ण प्रयास किया कि इन सम्बन्धों की वजह से संघ तथा राज्यों के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो तथा संघ और राज्यों के मध्य स्वतंत्र तथा सहयोगात्मक संबंध रहे। परन्तु वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन सम्बन्धों की वजह से भारतीय संविधान के समक्ष नई चुनौतियों के कारण केन्द्र और राज्यों के बीच विभाजन निश्चित ही केन्द्र की ओर झुका होना, जिससे निम्न स्थिति निर्मित हो रही है-
- राज्यों की स्वायत्तता की माँग
- राज्यपाल की नियुक्ति और प्रसाद पर्यन्त सिद्धान्त
- अनुच्छेद 356 का प्रयोग नए राज्यों का निर्माण
- सहायता निधि के अंशों का बँटवारा
- राज्यों के मध्य स्त्रोतों को लेकर विधान
- आन्तरिक विस्थापित लोगों का पुनर्वास
- अन्तर्राज्यीय विवादों के केन्द्र की भूमिका
- 356 अनुच्छेद तथा 365 के अधीन केन्द्र द्वारा राज्यों को निर्देश
- राष्ट्रहित में राज्य सूची के विषयों पर संसद की विधि बनाने की शक्ति अनुच्छेद 219
- आर्थिक संसाधनों का दोहन
- राज्यों के संसाधनों पर केन्द्र का नियंत्रण
- अवशिष्ट शक्तियाँ
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत में केन्द्र राज्य संबंध विविध प्रकार के संवैधानिक उपबन्धों से प्रभावित हैं, जिनसे केन्द्र की स्थिति राज्यों पर प्रभावी दिखाई देती है। राज्यपाल की नियुक्ति, अनुच्छेद 356, अखिल भारतीय सेवाएँ, योजना आयोग, वित्त आयोग, आपातकालीन प्रावधान, तथा केन्द्र को दिए गए विपुल वित्तीय स्त्रोत ऐसे बिन्दु हैं, जो सदैव ही विवाद के विषय रहे हैं फिर भी यह कहा जा सकता है कि भारत के राज्यों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने हेतु अनेक संवैधानिक संरक्षण प्रदान किए गए हैं। यह राज्य की राजनीतिक कार्यपालिका पर निर्भर करता है कि वह राज्य के विकास हेतु केन्द्र सरकार के साथ शासन व्यवस्थाओं में अब पूर्व की भाँति प्रतियोगी संघवाद नहीं, बल्कि सहकारी संघवाद का जन्म हो चुका क्योंकि वहाँ आक्रमण युद्ध की आशंका, संचार तकनीकी एवं यातायात साधनों का विकास तथा कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के कारण राज्य अब स्वयं को केन्द्र का प्रतिद्वन्द्वी नहीं अपितु सहयोगी मानने लगे हैं ।
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