सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र । Consultative Jurisdiction of the Supreme Court
सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र
सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति को किन्हीं वैधानिक समस्याओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार है। जब कभी राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि कोई वैधानिक समस्या उत्पन्न हो गई है तो वह समस्या को सर्वोच्च न्यायालय की वैधानिक राय लेने के लिए भेज सकता है। जब राष्ट्रपति की ओर से सर्वोच्च न्यायालय को वैधानिक परामर्श देने के लिए कोई विषय भेजा जाता है तो न्यूनतम 5 न्यायाधीशों के बेंच द्वारा उस मामले के प्रति निर्णय करना अनिवार्य है। किसी विषय के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई वैधानिक राय को मानना राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य नहीं है।
प्रेसीडेंशियल रेफरेंस
भारत के संविधान में प्रेसीडेंशियल रेफरेंस (अध्यक्षीय संदर्भ) का प्रावधान अनुच्छेद- -143 में किया गया है। इस प्रावधान के तहत यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा उपस्थित हुआ है, या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना आवश्यक है, तो वह उस पर विचार करने के लिए उसे न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और न्यायालय ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।
राष्ट्रपति द्वारा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश एक विशेष संवैधानिक पीठ की स्थापना करते हैं. जिसमें कम से कम 5 न्यायाधीश होते हैं, जो सरकार द्वारा 'उठाए गए मुद्दों पर विचार करते हैं। प्रेसीडेंशियल रेफरेंस के मामले में निर्णय सामान्य निर्णय से भिन्न है, क्योंकि ऐसे मामले में दो पक्षकारों के बीच कोई वाद नहीं होता तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसे निर्देश में दी गई राय सरकार पर आबद्धकारी नहीं होती। यह राय केवल सलाहकारी है और सरकार किसी विषय पर कार्यवाही करने में उस पर विचार कर सकती है, किंतु इस प्रकार की राय के अनुरूप कार्य करने के लिए वह बाध्य नहीं है।
उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है कि यदि अनुच्छेद- 143 के अधीन उससे पूछा गया व्यर्थ या अनावश्यक है तो वह उसका उत्तर देने से मना कर सकता है। वह पूछे गए का उत्तर कभी भी दे सकता है, क्योंकि संविधान में इसके लिए कोई स्पष्ट समय सीमा का उल्लेख नहीं है।
अगस्त 2004 में सरकार ने पंजाब और हरियाणा राज्य के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर प्रेसीडेंशियल रेफरेंस लिया था। इससे पूर्व 1991 में कावेरी जल विवाद, 1993 में राम जन्मभूमि मामला, 1998 में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले आदि में उच्चतम न्यायालय से सलाह माँग चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मामले में मुख्य न्यायाधीश एम. एन. वैंकटचेलैया की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा माँगी गई सलाह का कोई जवाब देने से मना कर दिया था। दी गई सलाह राज्य सरकार पर आबद्धकारी नहीं होती।
देश में 2-जी स्पेक्ट्रम और कोल ब्लॉक आवंटन के घोटालों के बीच देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह बताया कि प्राकृतिक संसाधनों को बेचने का एकमात्र जरिया नीलामी ही नहीं है। न्यायालय के अनुसार सरकार व्यापक जनहित में इन संसाधनों को अन्य तरीके से भी वितरित कर सकती है। 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2 फरवरी, 2012 के फैसले के संदर्भ में एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के उत्तर में शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर, 2012 को यह व्यवस्था दी तात्कालिक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले में स्पष्ट किया कि संविधान यह निर्देश नहीं देता कि प्राकृतिक संसाधनों का वितरण सिर्फ नीलामी से ही किया जाए। यह संवैधानिक रूप से आवश्यक भी नहीं है। अधिकतम राजस्व के लिए नीलामी सर्वश्रेष्ठ तरीका हो सकता है, लेकिन जनता की भलाई के लिए यह उपयोगी नहीं होती है। प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन सरकार की अपनी आर्थिक नीति के तहत किया जाता है क्योंकि नीति निर्धारण सरकार का विशेषाधिकार है। आवंटन प्रक्रिया में किसी तरह की धाँधली होने पर अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए स्वतंत्र हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से संवैधानिक स्थिति स्पष्ट हो गई तथा केंद्र सरकार देश की आर्थिक नीतियों के अनुरूप संसाधनों के आवंटन हेतु अब स्वतंत्र है। न्यायालय ने मात्र 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में ही नीलामी की प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी। इसका अर्थ है कि स्पेक्ट्रम के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे तेल, गैस, कोयला, लोहा तथा अन्य अयस्क और खनिजों को सरकार बिना नीलामी के बेच सकेगी। 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लाइसेंस रद्द करने का निर्णय न्यायालय के इस निर्णय से अप्रभावित रहेगा।
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के परामर्शीय अधिकार की उपयोगिता देश के कल्याण, विकास व जनहित में बनी रहेगी।
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