पूरक पोषण कार्यक्रम |पूरक पोषण हेतु शासकीय कार्यक्रम| Government program for supplementary nutrition

 पूरक पोषण हेतु शासकीय कार्यक्रम

पूरक पोषण कार्यक्रम |पूरक पोषण हेतु शासकीय कार्यक्रम| Government program for supplementary nutrition



पूरक पोषण हेतु शासकीय कार्यक्रम

ग्रामीण और शहरी इलाकों में, समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों और औरतों को उपयुक्त पोषण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने केंद्र और राज्य स्तरों पर कुछ पोषण कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं इसे पोषण स्तर को सुधारने के महत्त्वपूर्ण तरीकों के रूप में माना जा रहा है इसीलिए, केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा देश की विविध पंचवर्षीय योजनाओं में इन कार्यक्रमों के लिए धन की विशेष रूप से व्यवस्था की गई है।

 

पोषण कार्यक्रमों का उद्देश्य

 

पोषण कार्यक्रमों का प्रमुख उद्देश्य जनसमूह के पोषण स्तर को सुधारना है जैसा कि आप पाठ्यक्रम दो में पढ़ चुके हैं, भारत के सामने कुपोषण एक प्रमुख समस्या है। अल्पपोषण को कपोषण की एक स्थिति के रूप में माना जाता है जिसका कारण है आवश्यकता से कम आहार लेना। अल्पपोषण प्रायः ग्रामीण जनजातियों तथा शहरी गन्दी बस्तियों में रहने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों में पाया जाता है। राष्ट्रीय पोषण ब्यूरो द्वारा किये गये आहार सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ है कि विभिन्न राज्यों में जितने भी घरों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें से पचास प्रतिशत लोग ऐसा भोजन करते हैं जो उनकी ऊर्जा और प्रोटीन संबंधी अथवा दोनों ही आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है पोषण संबंधी जानकारी होने के कारण कुपोषण समाज के अन्य वर्गों में भी हो सकता. 

 

अतः पोषण कार्यक्रमों का उद्देश्य है :

 

1 अल्पपोषण का मुकाबला करना 

2. अल्पपोषण का मुकाबला करने के लिए लोगों को शिक्षित करना  


पूरक भोजन की आवश्यकता
 

उद्देश्यों की पूर्ति तथा सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों को लाभान्वित करने के लिए पोषण स्तर को मापने के लिए कोई मापदंड होना जरूरी है

 

शिशु एवं बाल मृत्यु 

किसी समुदाय में शिशु मृत्यु दर से उस समुदाय के लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त की जा सकती है यद्यपि भारत में पिछले तीन दशकों में शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है फिर भी अन्य विकासशील देशों की तुलना में यह बहुत ज्यादा है प्रायः चालीस से पैंतालीस प्रतिशत शिशुओं की मृत्यु उनकी नवजात अवस्था अर्थात् जन्म के एक माह की अवधि में ही हो जाती है। शिशु मृत्यु दर का इतना अधिक होने का प्रमुख कारण माताओं का कुपोषित होना होता है गर्भावस्था में जन्म के बाद शिशु अपनी पोषण आवश्यकताओं के लिए माँ पर निर्भर रहते हैं इसलिए शिशु मृत्यु को रोकने या कम करने के लिए गर्भावस्था स्तनपान के दौरान माताओं को उपयुक्त पोषण दिया जाना चाहिए

 

भारत में बाल मृत्यु दर अर्थात् एक वर्ष से पाँच वर्ष की अवस्था के बच्चों की मृत्यु दर भी बहुत अधिक है राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार, इस आयु वर्ग के बच्चे कुल आबादी का प्रायः साढ़े सोलह प्रतिशत हैं, पर इस आयु वर्ग में मृत्यु, सम्पूर्ण देश की कुल मृत्यु दर का चालीस प्रतिशत है बाल मृत्यु दर के इतना अधिक होने का प्रमुख कारण अपर्याप्त तथा कम पोषक भोजन है जैसा कि आप पाठ्यक्रम दो में पढ़ चुके हैं कि छः माह की अवस्था के बाद शिशु को माँ के दूध के अलावा पूरक आहार की आवश्यकता होती है। भारत में निम्न आयु वर्ग के बच्चों को पूरक आहार मिलना तब शुरू होता है, जब वह डेढ़ वर्ष से दो वर्ष के हो जाते हैं। पूरक आहार की देर से शुरुआत होने के कारण बच्चे की बढ़त में बाधा आती है तथा पोषण की कमी के अन्य लक्षण पैदा हो जाते हैं भोजन की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण स्कूल जाने से पूर्व के आयु वर्ग वाले बच्चों की एक प्रमुख समस्या है। अतः मृत्यु दर को कम करने के लिए बच्चों के भोजन में ऊर्जा प्रोटीनयुक्त भोजन सही मात्रा में देना चाहिए

 

पोषण संबंधी अन्य समस्याएँ 

गर्भवती औरतों और बच्चों में खून की कमी, और बच्चों में विटामिन "" की कमी, दो पोषण संबंधी मुख्य समस्याएँ हैं, जिनका पूरे देश को सामना करना पड़ रहा है। जैसा कि आप जानते हैं एनिमिया (खून की कमी) मुख्यतः लौह तत्त्व की कमी से होता है। खून बनाने के लिए लोह तत्त्व एक महत्त्वपूर्ण खनिज लवण है सामान्य स्त्री की अपेक्षा गर्भवती स्त्री को अधिक मात्रा में लौह तत्त्व की आवश्यकता होती है। इसका कारण उसकी निजी आवश्यकता तो होती ही है, साथ ही गर्भ में पलते शिशु को भी इसकी आवश्यकता होती है शैशवकाल में गर्भावस्था के दौरान बने लौह तत्त्व के संग्रह से ही बच्चे की पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है क्योंकि इस समय शिशु का प्रमुख भोजन माँ का दूध होता है जिसमें लौह तत्त्व काफी कम मात्रा में होता है संभवतः लौह तत्त्व का संग्रह शिशु को लौह तत्त्व उपलब्ध कराने का एक प्राकृतिक तरीका है। अतः बच्चे में लौह तत्त्व के संग्रह के लिए माँ को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में लौह तत्त्व लेना चाहिए। भारत में गर्भवती माताओं में एनिमिया एक प्रमुख समस्या है जिसके कारण बच्चे के जन्म के दौरान माताओं की मृत्यु दर बहुत अधिक है एनिमिया अथवा खून की कमी शिशु मृत्यु का भी बहुत बड़ा कारण है अतः गर्भावस्था में बच्चा पैदा होने के दौरान मृत्यु दर को कम करने के लिए माताओं को प्रोटीन ऊर्जा के अतिरिक्त खून बनाने में सहायक पोषक तत्त्व जैसे लौह तत्त्व, फोलिक एसिड इत्यादि पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए

 

विटामिन "" की कमी से उत्पन्न अंधापन देश की एक अन्य प्रमुख पोषण समस्या है। बच्चों को विटामिनयुक्त पर्याप्त आहार देने से 80 प्रतिशत तक अंधापन रोका जा सकता है भारतीयों के आहार में विटामिन "" का प्रमुख स्रोत बीटा कैरोटीन है सब्जियों या फलों का पीला/संतरी भाग वीटा कैरोटीन विटामिन "" का पूर्वगामी पदार्थ है अर्थात यह शरीर में विटामिनमें परिवर्तित हो जाता है। बीटा कैरोटीन से भरपूर फल सब्जियाँ (जैसे गाजर, पपीता, आम, हरी पत्तेदार सब्जियाँ) मौसमी होती हैं ये वर्ष भर उपलब्ध नहीं रहती लेकिन हमारे शरीर में इस विटामिन को संग्रह करने की क्षमता होती है। अतः बच्चों में अंधेपन को रोकने के लिए विटामिन "" के पर्याप्त संग्रह की आवश्यकता है। अतः बच्चों को विटामिन "" की ज्यादा मात्रा देनी चाहिए

 

भारत के कुछ भागों में गलगंड एक अन्य पोषण की समस्या है। यह आयोडीन की कमी के कारण होता है। आयोडीन हमें समुद्री भोजन और आयोडीन से भरपूर मिट्टी में उगाये खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है यह खनिज, पहाड़ी प्रदेशों की मिट्टी और समुद्र से दूरी पर स्थित इलाकों में कम पाया जाता है इसलिए ऐसे प्रदेशों में उत्पन्न होने वाले भोजन में आयोडीन की कमी होती है थाइराइड ग्रन्थियों के द्वारा थाइराक्सिन हारमोन के निर्माण के लिए आयोडीन की आवश्यकता पड़ती है आहार में आयोडीन की अपर्याप्त मात्रा होने से थाइराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है इसे गलगंड कहते हैं आपने कुछ व्यक्तियों की गर्दन में बढ़े हुए भाग को देखा होगा। यह गलगंड के कारण होता है। क्योंकि धाइराइड ग्रंथि गले में पायी जाती है गलगंड एक स्थानिक बीमारी है। अर्थात् विशेषतः कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है अतः उस क्षेत्र के लोगों के आहार में आयोडीन की कमी को पूरा करना आवश्यक है

 

आहार में पोषक तत्त्वों के सम्मिलित करने के संबंध में निम्नलिखित पूरक उपाय करने होंगे -

1 छः वर्ष से कम आयु के बच्चों में कुपोषण को रोकने के लिए गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं तथा स्कूल जाने से पूर्व की आयु के बच्चों के आहार में ऊर्जा एवं प्रोटीन युक्त आहार की पूर्ति  

2 गर्भवती माताओं और शिशुओं में एनिमिया (खून की कमी) को रोकने के लिए उनके आहार में लौह तत्त्व फोलिक एसिड की पूर्ति 

3 बच्चों में अंधेपन की कमी को रोकने के लिए आहार में विटामिनकी पूर्ति " 

4 आयोडीन की कमी वाले क्षेत्र के लोगों के आहार में आयोडीन की पूर्ति  


पोषण कार्यक्रम

 

अनेक राज्यों में कई प्रकार के पोषण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं केन्द्र सरकार परामर्श देने वाली संस्था के रूप में काम करती है, जबकि अन्य कार्यक्रमों के लिए अधिकांश धन राज्य सरकारों से आता है यद्यपि कुपोषण की समस्या, पंचवर्षीय योजनाओं के शुरू होने के समय से ही पहचान ली गई थी तथा इससे जूझने के लिए अनेक योजनाएँ प्रारंभ की गई थीं, फिर भी प्रथम तीन योजनाओं अर्थात 1950 से 1969 तक पोषण स्वास्थ्य क्षेत्र का मात्र एक घटक ही बना रहा चौथी योजना में ही इस संबंध में समन्वित दृष्टिकोण अपनाया गया

 

1 व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम (Applied Nutrition Programme)

 

व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम का प्रारंभ 1960 में हुआ और 1973 तक इस पर प्रायः सभी राज्यों में तेजी से कार्य होता रहा इसका अब केवल ऐतिहासिक महत्त्व ही है इसके तीन प्रमुख घटक थेः उत्पादन, उपभोग और प्रशिक्षण उत्पादन घटक के माध्यम से किसानों को अधिक पौष्टिक भोजनजैसे अंडे, मछली, सब्जियों, फल आदि जो विटामिन "" और "सी" से भरपूर होते हैं, उगाने के लिए बढ़ावा दिया जाता था इसके लिए ग्रामीण इलाकों में सामूहिक मुर्गी पालन तथा मछली पालन की इकाइयों की व्यवस्था करना, विद्यालयों में सामूहिक उद्यान और ग्रामीण घरों में रसोई लगाने के प्रयत्न किए गए थे। इसके लिए औजार, बीज, जानकारी इत्यादि सरकार द्वारा उपलब्ध कराये जाते थे उपभोग घटक के अन्तर्गत इस प्रकार से उत्पन्न भोजन का एक हिस्सा छः वर्ष से छोटे बच्चों, गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दिया जाता था। इस कार्यक्रम का तीसरा घटक था शिक्षा, जो सरकार तथा इसकी विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा मुर्गी पालन, मछली पालन, बागवानी तथा गृह विज्ञान के माध्यम से दी गई

 

2 मध्याहन भोजन कार्यक्रम (Mid-day Meal Programme)

 

मध्याहन भोजन कार्यक्रम की शुरूआत शहरी इलाकों में प्रायः व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम के साथ ही हुई थी इसका प्रमुख उद्देश्य बच्चों को नियमित रूप से स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करना तथा बीच में स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या को कम करना था छः से ग्यारह वर्ष तक की आयु के स्कूल जाने वाले बच्चे इस योजना से मुख्यतः लाभान्वित हुए। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों को ऐसा आहार दिया जाता है जो उन्हें प्रतिदिन 300 कैलोरी और 8 से 12 ग्राम तक प्रोटीन प्रदान करता है। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से 'केयर' नामक संस्था द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा दी गई वित्तीय सहायता से प्रारंभ हुआ था। जिन स्थानों पर व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम प्रचलित थे वहाँ सामुदायिक बगीचे लगाये गए और उनसे उत्पन्न खाद्य पदार्थों का इस कार्यक्रम के लिए इस्तेमाल किया गया

 

3 विशिष्ट पोषण कार्यक्रम (Special Nutrition Programme)

 

पोषण की कमी से अधिक प्रभावित होने वाले वर्गों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार ने क्रैश (लघु) कार्यक्रमों के रूप में केन्द्र सरकार द्वारा 1970-71 में विशिष्ट पोषण कार्यक्रम की शुरूआत की। बाद में पंचवर्षीय योजना के दौरान न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अन्तर्गत इसे राज्यों को सौंप दिया गया यह कार्यक्रम 'केयर' द्वारा दी गई बाहरी सहायता तथा विश्व खाद्य कार्यक्रमों पर भी बड़ी मात्रा में निर्भर था। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत जन्म से लेकर छः वर्ष की आयु तक के प्रत्येक बच्चे को प्रति दिन तीन सौ कैलोरी और आठ से बारह ग्राम तक प्रोटीनयुक्त भोजन दिया जाता है | गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रतिदिन पाँच सौ कैलोरी तथा पच्चीस ग्राम तक प्रोटीन युक्त पूरक भोजन दिया जाता है। छठी पंचवर्षीय योजना की समाप्ति तक ग्यारह करोड़ लोग इस योजना से फायदा उठा चुके हैं

 

4 समन्वित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services) 

देश को पोषण समस्याओं के लिए उत्तरदायी विभिन्न तत्त्वों के महत्त्व को समझते हुए 1975-76 के वर्ष में इन कार्यक्रमों में एक समन्वित प्रयास की शुरुआत हुई।  इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों का सर्वागीण विकास भी सम्मिलित है इसके अन्तर्गत पोषण स्तर स्वास्थ्य विज्ञान, स्वच्छता, शिक्षा जैसे तत्त्व भी जाते हैं यह आंगनवाड़ियों के माध्यम से कार्य करता है सामान्यतः आंगनवाड़ी की कार्यकर्त्ता कोई स्थानीय औरत होती है, जो गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं तथा छः वर्ष से कम आयु के बच्चों को स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षण की समन्वित सहायता प्रदान करती है। जिन क्षेत्रों में समन्वित वाल विकास सेवा शुरू की गई है, वहीं इस योजना के अन्तर्गत व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम को भी शामिल कर लिया गया है

 

5 रोग निरोधक पोषण कार्यक्रम (Nutrition Prophylaxis)

 

रोग निरोध के नाम से जाने जाने वाले ये कार्यक्रम राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए जा रहे हैं इस योजना के अन्तर्गत तीन से छः वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को 2,00,000 आई. यू. से युक्त विटामिन "" का कैप्सूल दिया जाता है ये कंप्सूल अंधेपन को रोकने के लिए छः महीने में एक बार दिया जाता है। इतनी ही मात्रा स्तनपान कराने वाली माताओं को भी दी जाती है जिससे माँ के दूध में विटामिन "" की मात्रा पर असर पड़ता है

 

पोषण में विटामिन की कमी से उत्पन्न अंधेपन को रोकने के लिए दूध में विटामिन "" कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह कार्यक्रम 1980 में दिल्ली की मदर डेयरी से प्रारंभ किया गया था। तब से देश के तेरह राज्यों तथा दो संघ शासित क्षेत्रों को मिलाकर इकतीस डेयरियों में इसका विस्तार हो चुका है इन डेयरियों में प्रतिदिन 29.5 लाख लीटर दूध में विटामिन "" का फोरटिफिकेशन किया जाता है महिलाओं में खून की कमी को दूर करने के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के उत्तरार्द्ध में लौह तत्त्व फोलिक एसिड की गोलियाँ दी जाती हैं

 

गलगंड की रोकथाम के लिए एहतियात के तौर पर साधारण नमक में ज्यादा आयोडीन की मात्रा मिलाकर दी जाती है शायद आपने खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले आयोडीन युक्त नमक की थैलियाँ बाजार में देखी होगी .

 

पोषण के  अन्य कार्यक्रम ( Other Programmes )

 

उपर्युक्त आहार कार्यक्रमों के अतिरिक्त, भारत सरकार के खाद्य विभाग ने देश के विभिन्न भागों में 34 गतिशील इकाइयों (mobile units) की स्थापना की है इनका उद्देश्य कम मूल्य या सस्ते स्थानीय आहार को लोकप्रिय बनाना, उपयुक्त भोजन करने की आदतों का विकास करना और पोषण शिक्षा का प्रचार करना है इसे प्रभावशाली ढंग से चलाने के उद्देश्य से निदर्शनों का आयोजन, फिल्म तथा अन्य प्रचार सामग्री (फोल्डर, पैम्फ्लेट, पुस्तिकाएँ, पोस्टर आदि) का उपयोग किया जाता है खाद्य विभाग ने पोषण शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए, देश के विभिन्न भागों में 33 आहार एवं पोषण प्रसार केंद्रों की स्थापना की है ( इन्हें पहले डिब्बाबंदी एवं संरक्षण केन्द्र के रूप में जाना जाता था) भारत सरकार द्वारामिलटोन" नामक एक विशेष पेय भी प्रारंभ किया गया है जो दूध और सब्जियों के प्रोटीन के मिश्रण से बनाया गया है इसके लिए पाँच संयंत्र लगाए गए हैं तथा वितरण के लिए 43,000 लीटर (1987-88 ) मिलटोन का उत्पादन किया जा रहा है

 

ऊर्जा युक्त स्नैक्स के उत्पादन कुछ एक्सट्रेडेड खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए भी संयंत्र लगाये गये हैं जो प्रतिदिन 63 मीट्रिक टन खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं इन खाद्य पदार्थों का प्रयोग विशिष्ट पोषण कार्यक्रमों तथा मध्याहन पोषण कार्यक्रमों के अंतर्गत किया जा रहा है

 

कुछ राज्य सरकारों ने भी समाज के कमजोर वर्गों को पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थों को एक निश्चित मात्रा में रियायती मूल्यों पर देना शुरू किया है


आहार एवं पोषण की अवधारणायें सम्पूर्ण अध्ययन के लिए यहाँ क्लिक करें 

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