भारत में वृद्धजनों के कल्याणकारी कार्यक्रमों का वर्णन करो | MPPSC 2014 Mains Question Answer
भारत में वृद्धजनों के कल्याणकारी कार्यक्रमों का वर्णन करो?
भारत में वृद्धजनों के कल्याणकारी कार्यक्रमों का वर्णन करो?
उत्तर-
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 103.84 मिलियन है और ये भारत की कुल आबादी के 8.58 प्रतिशत हैं। वर्ष 1951 में इनकी संख्या 19.8 मिलियन थी, जो वर्ष 2001 में बढ़कर 76 मिलियन हो गई थी । स्पष्ट है कि वृद्ध लोगों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी जारी है। यह एक तरह से सकारात्मक लक्षण है क्योंकि यह जीवन प्रत्याशा में वृद्धि ला सकते है। पर सच्चाई यह भी है कि इनकी संख्या में वृद्धि के साथ ही इनसे जुड़ी समस्याओं में भी बढ़ोतरी हो रही हैं। इन्हें आश्रित जनसंख्या माना जाता है। आज तेजी से बढ़ते शहरीकरण और आधुनिक परिस्थितियों की अनिवार्यता से पारंपारिक संयुक्त परिवार परंपरा टूट रही है और जिसके परिणामस्वरूप एकल परिवारों की वृद्धि हो रही है।
भारतीय समाज के परंपरागत मूल्य में वृद्धजनों को सम्मान देना और देखभाल करने पर बल दिया जाता रहा है। पर हाल के समय में धीरे-धीरे पर निश्चित तौर पर संयुक्त परिवार प्रणाली में विघटन हो रहा है, परिणामस्वरूप भावनात्मक. शारीरिक और वित्तीय सहायता की कमी से काफी संख्या में माता-पिता की उनके परिवारों द्वारा उपेक्षा की जा रही है। ये वृद्धजन पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा की कमी में अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। यह स्पष्ट करता है कि वृद्धावस्था एक बड़ी सामाजिक चुनौती बन गई है और वृद्धजनों की आर्थिक और स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने और वृद्धजनों की भावनात्मक जरूरतों के प्रति संवेदनशील वातावरण बनाए जाने की भी आवश्यकता है। वृद्ध लोगों की एक बड़ी आबादी काम करने में असमर्थ होगी। इस प्रकार वे आर्थिक रूप से दूसरे पर निर्भर होंगे। पारिवारिक सहारे के अभाव में उन्हें सरकार से मदद की उम्मीद होगी। भले ही राज्य सरकार एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने विकलांगों या अति गरीबों की कुछ वित्तीय सहायता की योजना चालू की है पर ऐसे पेंशन की राशि 30 से 60 रुपए प्रतिमाह ही है। इसके अलावा फंड की उपलब्धता की कमी के कारण इस पेंशन योजना के तहत कुछ लोग ही आ पाते हैं। भारत में बुजुर्गा की बेहतर स्थिति को बढ़ावा देने वाले सकारात्मक पहलुओं में एक परिवार के सदस्यों का उनके साथ गहरा जुड़ाव है। ऐसे लोग जो अपने बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी नहीं उठा पाते, उन पर सामाजिक दबाव बना रहता है। इसलिए इन मूल्यों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण हो जाता है। परिवार के बुजुर्गों को मानव संसाधन के तौर पर देखा जाना चाहिए तथा उनके समृद्ध अनुभवों का उपयोग देश के ज्यादा से ज्यादा विकास में करना चाहिए। सरकार द्वारा उनके स्वस्थ एवं सार्थक जीवन की क्षमता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जब बच्चे अन्य शहरों में रहने लगते हैं तब माता-पिता अपने परिवार के पुराने स्थान पर रहना पसंद करते हैं और वे स्वयं को अकेला पाते हैं। बढ़ती उम्र की परेशानियों के साथ स्वास्थ्य समस्याएँ जुड़ जाती हैं, असामाजिक तत्वों द्वारा किए जाने वाले अपराध और अपर्याप्त आय से उनकी असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है। बच्चे अपने नए जीवन में व्यस्त होने के कारण उनके पास नियमित रूप से आने में सक्षम नहीं होते। माता पिता को अकेले ही गुजारा करना होता है जो कई बार सीमित आय के कारण कठिन होता है।
समस्याएँ:
वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है;
1. आर्थिक समस्याः इसमें रोजगार का खोना, आय की कमी और आय की असुरक्षा शामिल है।
2. शारीरिक समस्याएँ: स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी समस्या, पोषण की कमी तथा आवास की समस्या आदि।
3. मानसिक-सामाजिक समस्याः इसके तहत वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार व मानसिक तथा सामाजिक असहजता शामिल है।
कल्याणकारी उपाय :
माता पिता और वरिष्ठ नागरिक समाज का एक भौतिक और मानसिक रूप से सक्रिय हिस्सा बनते हैं, जो उपभोक्ता तथा मतदाता की दोहरी ताकत वाला होता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2007 में देश . के वृद्ध भारतीय नागरिकों के मन से असुरक्षा के भय को समाप्त करने के लिए वरिष्ठ नागरिक अधिनियम लागू किया । वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007: यह केंद्रीय सामाजिक और अधिकारिता मंत्रालय की एक पहल है। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
1. ऐसे माता-पिता जो अपनी आय अथवा अपनी संपत्ति की आय से अपना खर्च उठाने में असक्षम हैं, वे अपने वयस्क बच्चों से अपने रखरखाव के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस रख-रखाव में उचित भोजन, आवास, कपड़े और चिकित्सा उपचार का व्यय शामिल है।
2. माता-पिता में जैविक गोद लिए गए और सौतेले माता-पिता शामिल हैं, चाहे वे वरिष्ठ नागरिक हों या नहीं।
3. संतानहीन वरिष्ठ नागरिक जो 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र के हैं, वे भी अपने रिश्तेदारों से रखरखाव का दावा कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति पर कब्जा रखते हैं या बाद में इसकी संभावना है।
4. रखरखाव के लिए यह आवेदन वरिष्ठ नागरिक द्वारा स्वयं अथवा उसके द्वारा अधिकृत या स्वयंसेवी संगठन द्वारा किया जा सकता है। ट्रिब्यूनल द्वारा इस पर अपने आप कार्रवाई की जा सकती है।
5. ट्रिब्यूनल में आवेदन प्राप्त होने पर बच्चों / रिश्तेदारों के खिलाफ छानबीन या आदेश दिया जा सकता है कि वे अपने माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव के लिए एक अंतरिम मासिक भत्ता प्रदान करें।
6. यदि ट्रिव्यूनल इस बात से संतुष्ट है कि बच्चों या रिश्तेदारों ने अपने माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल से इंकार किया है या इसकी उपेक्षा की है तो वे प्रतिमाह अधिकतम 10000 रुपए की राशि का मासिक रखरखाव भत्ता देने का आदेश देंगे।
7. राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक उपसंभाग में ऐसे एक या इससे अधिक ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाएगी। यह प्रत्येक जिले में एक अपीलीय ट्रिब्यूनल भी गठित करेगा जो ट्रिब्यूनल के विरुद्ध वरिष्ठ नागरिकों की अपील की सुनवाई करेगा।
8. दोषी व्यक्ति को 3 माह की कैद या 5000 रुपए का जुर्माना अथवा दोनों का दंड दिया जा सकता है।
लाभार्थियों के लिए वृद्धाश्रम की स्थापना तथा अस्पतालों में वृद्ध नागरिकों के लिए अलग से विस्तर प्रदान किए जाने का प्रावधान भी इस अधिनियम में है। वृद्धजनों के अधिकार माता-पिता को उनके आवास से बिना विहित विधिक प्रक्रिया के नहीं हटाया जा सकता, यदि वे बहुत पहले से उसमें रह रहे हैं। इसके लिए तीन अधिनियम बनाए गए हैं। सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार कोई मजिस्ट्रेट 'मेन्टेनेंस ऑफ पैरेंट एक्ट' के तहत बच्चों को उनके माता-पिता की देखभाल की आज्ञा दे सकता है।
हिंदू उत्तराधिकार और देखभाल अधिनियम के अनुसार वरिष्ठ माता-पिता अपने बच्चों से वैसे ही रखरखाव की माँग कर सकते हैं जैसा कि एक पत्नी अपने पति से रखती है।
घरेलू हिंसा अधिनियम भी किसी दुरुपयोग के विरुद्ध माता-पिता को राहत प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
2. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम इसकी शुरुआत 15 अगस्त, 1995 को हुई थी। यह संविधान के अनुच्छेद 41 एवं 42 के नीति-निर्देशक तत्वों के अनुपालन की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कार्यक्रम गरीब परिवारों में वृद्धावस्था, जीविकोपार्जन करने वाले मुख्य सदस्य की मृत्यु तथा मातृत्व जैसी स्थितियों में लाभ पहुँचाने के लिए सामाजिक सहायता की एक राष्ट्रीय नीति प्रस्तुत करता है।
इस कार्यक्रम के तीन अंग हैं जिनके नाम हैं। राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (एनओएपीएस) राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस) कई क्षेत्रों से मिले परामर्श तथा राज्य सरकारों से मिली प्रतिक्रिया के बाद वर्ष 1998 में इन योजनाओं में आंशिक सुधार किया गया।
वर्तमान सुधारों के बाद इन योजनाओं की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-
3. इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
इस योजना के अंतर्गत निम्न शर्तों के अनुसार केंद्रीय सहायता उपलब्ध है आवेदनकर्ता (पुरुष या महिला ) 60 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के हों। पहले उम्र 65 वर्ष थी पर जून 2011 में संशोधन कर इसे 60 वर्ष कर दिया गया। इसके अलावा 80 वर्ष से इससे अधिक आयु के वृद्धों को 500 रुपए प्रतिमाह पेंशन प्राप्त होगी। पहले यह दर 200 रुपये प्रतिमाह थी ।
ऐसे आवेदनकर्ता जो अपने जीविकोपार्जन के स्रोतों या परिवार अथवा दूसरे स्रोतों से मिलने वाली अल्प आर्थिक सहायता या अनियमित रोजगार साधनों पर निर्भर करता / करती हो, 'दरिद्र' की श्रेणी में आएगा /आएगी
केंद्रीय सहायता के दावे के लिए वृद्धावस्था पेंशन की राशि 200 रुपए प्रतिमाह है। इस स्कीम के उपर्युक्त शर्तें पूरी
4. वृद्धजनों के लिए राष्ट्रीय नीतिः
वृद्धजनों के लिए करने पर 75 रुपए प्रतिमाह की राशि उपलब्ध कराई जाती है।
राष्ट्रीय नीति की घोषणा जनवरी 1999 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति को स्वयं या अपने और अपने सहयोगी के वृद्ध जीवन की तैयारी हेतु प्रोत्साहन देना, परिवारजनों को अपने बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल करना ।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता
कार्यक्रम (National
Social Assistance Programme)
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता
कार्यक्रम (NSAP) ग्रामीण विकास मंत्रालय
द्वारा प्रशासित एक कल्याणकारी कार्यक्रम है।
इस कार्यक्रम को ग्रामीण
के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम की शुरुआत
पहली बार 15 अगस्त 1995 को केंद्र प्रायोजित
योजना के रूप में की गई थी। वर्ष 2016 में इसे केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) की प्रमुखतम (Core of Core) योजनाओं में शामिल किया
गया था।
वर्तमान में वर्ष 2019 में, इसके पाँच घटक हैं:
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
वृद्धावस्था पेंशन योजना (Indira
Gandhi National Old Age Pension Scheme-IGNOAPS) – इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।
राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ
योजना (National Family
Benefit Scheme-NFBS)- इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।
अन्नपूर्णा योजना (Annapurna Scheme)- यह योजना वर्ष 2000 में शुरू की गई।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
विधवा पेंशन योजना (Indira
Gandhi National Widow Pension Scheme-IGNWPS) - 2009 में शुरू की गई।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (Indira Gandhi National Disability Pension Scheme) - 2009 में शुरू की गई।
Post a Comment