म.प्र. में महिलाओं के लिए उपचारात्मक कार्यक्रम? | MPPSC Mains 2014 Question Answer
म.प्र. में महिलाओं के लिए उपचारात्मक कार्यक्रम?
म.प्र. में महिलाओं के लिए उपचारात्मक कार्यक्रम?
उत्तर-
म.प्र. में महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित निम्नलिखित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जननी सुरक्षा योजना (JSY) (पूर्व में संचालित राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना)
निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की महिलाओं के लिए एक नई जननी सुरक्षा योजना 1 अप्रैल, 2005 से प्रारम्भ की गई है। 100% केन्द्र प्रायोजित इस योजना ने पूर्व में संचालित राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना का स्थान लिया है तथा यह 2005-06 के बजट में प्रस्तावित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का घटक है।
मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर पर अंकुश लगाकर गर्भवती महिलाओं के हितार्थ लागू की गई इस योजना का लाभ 19 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को पहले दो जीवित प्रसवों के समय प्राप्त होता है।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के दायरे में आने वाली कार्यशील महिला कर्मियों को मिलने वाली मातृत्व बोनस राशि में वृद्धि की गई है। इसके लिए मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक 2007 मार्च 2008 में संसद में पारित किया गया था. लक्षित महिलाओं को देय मातृत्व बोनस की राशि 250 रुपए से बढ़ाकर 1000 रुपए करने का प्रावधान इस विधेयक में किया गया है।
प्रसव हेतु परिवहन एवं उपचार योजना)
उद्देश्य- मातृ- मृत्यु दर गरीब एवं समाज के कमजोर वर्गों में अपेक्षाकृत अधिक है। प्रसवों में जटिलता की पहचान न कर पाने और सही समय पर रेफरल न होने के कारण 5 महिलाओं की असामयिक मृत्यु हो जाती है। अतः उपरोक्त वर्गों में संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने के लिए प्रसव हेतु परिवहन एवं उपचार योजना प्रदेश में प्रारम्भ की गई है।
पात्रता -
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग की समस्त गर्भवती महिलाएं एवं अन्य वर्गों की गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की सभी गर्भवती महिलाएँ इस योजना में लाभ लेने की पात्र हैं।
(B) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर टिप्पणी लिखिए?
भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में किए प्रमुख प्रयास इस प्रकार हैं-
1. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002
2. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM ), 2005
3. विभिन्न स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ आदि।
4. ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में काम करने के लिए डॉक्टरों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा विनियम (Regulation), 2000 में संशोधन किया गया है। संशोधन के जरिए, सरकारी सेवाओं में दूरस्थ तथा कठिन क्षेत्रों में कम से कम तीन वर्ष सेवा करने वाले चिकित्सा अधिकारियों को स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में 50 फीसदी आरक्षण दिया जाता है।
5. स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा में, दूरस्थ या कठिन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष की गई सेवा के लिए प्राप्तांक के 10 फीसदी और प्राप्तांक के अधिकतम 30 फीसदी अंक तक प्रोत्साहन किया जाता है।
सुझाव-
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए आवश्यक है कि स्वास्थ्य सेवाओं की प्राप्ति को कानूनी अधिकार बनाया जाना चाहिए। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के आधारभूत ढाँचे का विकास किया जाए। भारत सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के खर्च को भी बढ़ाया जाना चाहिए। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर GDP का 1.3 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है जबकि विश्व के अन्य देशों में यह 8-10 फीसदी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की उपलब्धता
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और समस्या तथा किए गए प्रयास स्वास्थ्य सेवाएँ सभी नागरिकों का अधिकार है लेकिन गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य ढांचे की कमी और प्रशिक्षित डॉक्टरों की अनुपलब्धता के कारण भारत की ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली लगभग 70% जनसंख्या मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं से भी वंचित है। ग्रामीण क्षेत्रों में समय पर व पहुँच योग्य स्वास्थ्य सेवाओं के न मिलने का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक आर्थिक परिदृश्य पर भी पड़ता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति
भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में समय समय पर विभिन्न नीति और कार्यक्रम संचालित किए गए हैं लेकिन फिर भी ग्रामीण सेवाओं की वास्तविक स्थिति को हम निम्न बिन्दुओं में देख सकते हैं-
1. ग्रामीण भारत में अधिकांश मौतें डायरिया, टाइफाइड व मीजल्स जैसी उपचार योग्य बीमारियों से होती हैं।
2. 66% ग्रामीण भारतीयों तक सघन (Critical) दवाओं की उपलब्धता नहीं है।
3. 31% ग्रामीणजनों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 30km से ज्यादा यात्रा करनी पड़ती है।
4. देश में स्त्री रोग विशेषज्ञों और चिकित्सकों के 40 प्रतिशत पद खाली हैं और वो भी ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में।
5. वर्ष 2011 के ग्रामीण स्वास्थ्य आँकड़ों के अनुसार गाँवों में 88 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों तथा 53 फीसदी नर्सों की कमी है।
6. शहरों में 6 डॉक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह 3 डॉक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में हैं।
7. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में मौजूद स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए लगभग 16,000 डॉक्टरों और 12,000 विशेषज्ञों की कमी है। कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों में लगभग 12,236 डॉक्टरों और पब्लिक हेल्थ सेंटरों में लगभग 3,789 डॉक्टरों की कमी है।
8. डॉक्टरों की उपलब्धता का वैश्विक औसत प्रति एक हजार व्यक्तियों पर 1.3 है, जबकि भारत में यह केवल 0.7 है
9. देश में 85 फीसदी रेडियोग्राफरों तथा 80 फीसदी लैब तकनीशियनों की कमी है।
10. 8 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ नहीं है. साथ ही 39% PHCS में लेबटेक्नीशियन नहीं है। इसके अलावा 18% PHCS में फार्मासिस्ट नहीं है।
उपरोक्त तथ्यों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की भयावह तस्वीर दिखाई देती है। इस संबंध में अनिवार्य और आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
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