पोषक तत्व - प्रोटीन: परिचय एवं इतिहास | प्रोटीन संगठन वर्गीकरण | Protein History Compositon and Classfication
पोषक तत्व - प्रोटीन: परिचय एवं इतिहास , प्रोटीन संगठन वर्गीकरण
पोषक तत्व- प्रस्तावना
शरीर के लिए आहार अनिवार्य है। शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए शरीर के तन्तुओं के निर्माण एवं क्षतिपूर्ति हेतु, विभिन्न रोगों से बचने तथा शरीर के रखरखाव के लिए नियमित रुप से आहार ग्रहण किया जाता है। हम भोजन में विभिन्न सामग्री खाते हैं। कुछ व्यक्ति सब्जियाँ, रोटी, चावल, दालें अधिक खाते हैं। इससे भिन्न कुछ व्यक्ति अण्डा, मांस तथा मछली आदि का सेवन रुचिपूर्वक करते हैं। भोजन का वास्तविक उद्देश्य अनिवार्य तत्व ग्रहण करना होता है। ये तत्व आहार के पोषक तत्व (Nutrients) कहलाते हैं। इन्हें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों से प्राप्त किया जा सकता है।
शरीर के पोषण के लिए छ: तत्व अनिवार्य होते हैं। ये तत्व हैं.
- प्रोटीन (Protein)
- कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)
- वसा (Fat)
- खनिज लवण (Mineral)
- विटामिन (Vitamin)
- जल ( Water )
प्रोटीन: परिचय एवं इतिहास
प्रोटीन नाम सर्वप्रथम सन् 1938 में वैज्ञानिक मुल्डर (Mulder) द्वारा प्रस्तावित किया
गया। इस शब्द का उद्गम ग्रीक भाषा के प्रोटियोस " ( Proteose) शब्द से हुआ जिसका आशय है
'पहले आने वाला' (To come first ) | यह नाम इसलिए
प्रस्तावित हुआ क्योंकि उस समय भी यह तत्व जीवन के लिए सबसे प्रमुख तत्व माना जाता
था।
मानव शरीर सूक्ष्मतम् इकाईयों कोशिकाओं (cells) से बना है। मानव शरीर इन
सूक्ष्म इकाइयों से उसी प्रकार बनता है जिस प्रकार कोई भवन ईटों को एक के ऊपर एक
चुनने से बनता है। प्रोटीन कोशिकाओं का मुख्य अवयव है।
प्रोटीन की अधिकांश मात्रा मांसपेशीय ऊतकों में पाई जाती है
तथा शेष मात्रा रक्त, अस्थियों, दाँत, त्वचा, बाल, नाखून तथा अन्य कोमल
ऊतकों आदि में पाई जाती है। शरीर में पाई जाने वाली प्रोटीन का 1/3 भाग माँसपेशियों (Muscles) में, 1/5 भाग अस्थियों, उपस्थियों (Cartilage), दाँतों तथा त्वचा में
पाया जाता है तथा शेष भाग ऊतकों (Tissues) व शरीर के तरल द्रवों जैसे रक्त हीमोग्लोबिन, ग्रन्थिस्त्राव आदि में
पाया जाता है।
प्रोटीन संगठन
प्रोटीन अपने आप में एक कार्बनिक यौगिक है, जो विभिन्न अमीनो अम्लों
से बना है। प्रोटीन में मुख्य रुप से कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन होते हैं। इससे अतिरिक्त प्रोटीन के
कुछ प्रकारों में फॉसफोरस तथा सल्फर की भी अल्प मात्रा विद्यमान होती है। प्रोटीन
में उपस्थित मुख्य अवयवों की प्रतिशत मात्रा इस प्रकार होती कार्बन 50 प्रतिशत, हाइड्रोजन 7 प्रतिशत, ऑक्सीजन 23 प्रतिशत, नाइट्रोजन 16 प्रतिशत, सल्फर 0.3 प्रतिशत तथा फॉसफोरस 0.3 प्रतिशत।
प्रोटीन वर्गीकरण
आवश्यक अमीनो अम्ल (Essential Amino Acid) 10 माने गए हैं:
- मिथियोनिन (Methionine)
- थ्रियोनिन (Threonine)
- लाइसिन (Lysine)
- ल्यूसिन (Leusine)
- फिनाइएलेनिन (Phenylalanine)
- वैलिन (Valine)
- ट्रिपटोफेन (Tryptophan )
- आइसोल्यूसिन (Isoleucine)
- आर्जिनिन (Arginine)
- हिस्टिडिन (Histidine)
इन अमीनो अम्ल को भोजन में लेना अनिवार्य है। अन्य अमीनो
अम्ल हैं जो भी आवश्यक हैं,
परन्तु इन्हें
शरीर स्वयं संश्लेषित कर लेता है।
साधन की दृष्टि से प्रोटीन को दो वर्गों में बाँटा गया है:
पशु जगत का प्रोटीन (Animal Source) :
समस्त पशु जगत से प्राप्त होने वाले पदार्थों
में पाया जाने वाला प्रोटीन इस वर्ग में आता है। माँस, मछली, अण्डा, दूध और दूध से बनी हुई
वस्तुओं में यही प्रोटीन होता है। अण्डा सर्वोत्तम प्रोटीन का उदाहरण है, क्योंकि इसमें सभी आवश्यक
अमीनो अम्ल गुण और मात्रा में उपयुक्त पाये जाते हैं।
वनस्पति जगत का प्रोटीन (Plant Source):
पशु जगत की तरह वनस्पति जगत से प्राप्त वाले भोज्य पदार्थों में पाई जाने वाला प्रोटीन वनस्पति प्रोटीन कहलाता है। यह विभिन्न प्रकार की दालों, सोयाबीन, अनाजों और मेवों, मूंगफली आदि से प्राप्त होती है।
गुण की दृष्टि से प्रोटीन को तीन वर्गों में रखा गया है:
पूर्ण या उत्तम प्रोटीन (Complete protein):
वह भोज्य पदार्थ, जिसमें सभी आवश्यक अमीनो
अम्ल पाये जाते हैं, उत्तम प्रोटीन
हैं। इनमें सभी आवश्यक अमीनो अम्ल उत्तम अनुपात में होते हैं। इसलिए यह कोशिकाओं (Cells) के बनने में तथा शारीरिक
विकास के लिए सहायक है। विशेषकर पशु जगत से प्राप्त हुई प्रोटीन उत्तम प्रोटीन का
उदाहरण है। दूध में पाई जाने वाली केसीन (casein) और अण्डे का प्रोटीन उत्तम प्रोटीन है। माँस, मछली भी उत्तम प्रोटीन के
उदाहरण हैं। सोयाबीन का प्रोटीन भी उत्तम प्रकार का है।
आंशिक रूप से पूर्ण या मध्यम प्रोटीन (Partially complete protein):
वह भोज्य पदार्थ, जिसमें एक अथवा दो आवश्यक
अमीनो अम्ल अनुपस्थित रहते हैं, ये मध्यम प्रकार का प्रोटीन कहलाता है। जब केवल इसी प्रोटीन
का प्रयोग होता है, तो उत्तम प्रोटीन
की भांति कोशिकाओं की वृद्धि तथा विकास व पालन पोषण नहीं होता। इसलिए यदि मनुष्य
केवल इसी प्रोटीन का प्रयोग करता है तो शारीरिक बढ़वार रुक जाती है, किन्तु वजन में कमी नहीं
आती। दालों में पाई जाने वाली प्रोटीन मध्यम प्रोटीन का उदाहरण है।
अपूर्ण या निकृष्ट प्रोटीन ( Incomplete protein):
निकृष्ट प्रोटीन
वह है, जिसमें बहुत कम
आवश्यक अमीनो अम्ल होते हैं। इससे न तो शरीर की वृद्धि होती है न ही नई कोशिकाओं
का निर्माण होता है और न ही अन्य क्रियाएं होती हैं। इसका उदाहरण मक्के की ज़ीन
प्रोटीन (Zein protein) है। यदि इस
प्रोटीन को अन्य उत्तम व मध्यम प्रोटीन के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाए तो ये भी
उपयोगी बन सकता है, जैसे रोटी के साथ
दूध। इसे प्रोटीन का सम्पूरक मान (Supplementary value of protein) कहते हैं।
रासायनिक क्रिया की दृष्टि से प्रोटीन को तीन वर्गों में बाँटा गया है -
साधारण प्रोटीन (Simple protein):
इस प्रोटीन का निर्माण केवल अमीनो अम्ल के
द्वारा होता है तथा ये प्रोटीन जल अपघटन (Hydrolysis) के पश्चात् सिर्फ अमीनो अम्ल में विभक्त होते
हैं। अण्डे का एल्बुमिन, रक्त की ग्लोबिन, मक्के की ज़ीन तथा त्वचा
व बाल का कॉलेजन व किरेटिन आदि इस प्रोटीन वर्ग में आते हैं।
संयुग्मी प्रोटीन (Conjugated protein):
संयुग्मी प्रोटीन में अमीनो अम्ल के अतिरिक्त दूसरे पदार्थ की भी उपस्थिति होते हैं, जैसे -
- हीमोग्लोबिन में प्रोटीन के साथ लौह लवण की उपस्थिति होती है। हीमोग्लोबिन रक्त में पाया जाता है।
- लाइपोप्रोटीन प्रोटीन के साथ वसा की उपस्थिति होती है।
व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived protein ) :
ताप व एन्जाइम्स की क्रिया तथा भौतिक शक्तियों या जल - विश्लेषण अभिकरणों की क्रिया द्वारा प्रोटीन के आंशिक खण्डन के परिणामस्वरुप उत्पन्न प्रोटीन व्युत्पन्न प्रोटीन कहलाते हैं, जैसे जमे हुए रक्त में फाइब्रिन (Fibrin) प्रोटीन तथा पकाए हुये
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