रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन (अर्थ समिट) |पृथ्वी सम्मेलन 1992 | Earth Summit 1992 in Hindi
रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन (अर्थ समिट)
रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन (अर्थ समिट)
पृथ्वी सम्मेलन की
पृष्ठभूमि 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित
हुए ‘मानवीय पर्यावरण पर
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’
में ही तैयार हो जाती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 1983 में नार्वे के प्रधानमंत्री ग्रो हार्लेम ब्रटलैण्ड की
अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था जिसका कार्य था।
रियो+20 पृष्ठभूमि
- सामाजिक – आर्थिक प्रगति की विचारधारा और रणनीति के रूप में सतत विकास पर 1980 के दशक के लगभग विश्व स्तर पर चर्चा आरंभ हुई। पर्यावरण एवं विकास पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीईडी) का आयोजन वर्ष 1992 में रियो डि जेनारियो में किया गया था। इस शिखर स्तरीय बैठक में अन्य बातों के साथ-साथ एजेण्डा 21 को अंगीकार किया गया जो बाद के वर्षों में सतत विकास को बढ़ावा देने की दिशा में वैश्विक रूपरेखा बन गई।
- यूएनसीईडी अथवा इसके लोकप्रिय नाम 'रियो अर्थ शिखर सम्मेलन' के बाद वर्ष 2002 में जोहानसबर्ग में सतत विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन (डब्ल्यूएसएसडी) का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य सतत विकास प्रतिमानों को और संवेग प्रदान करना था। इस शिखर सम्मेलन में जोहानसबर्ग घोषणा तथा जोहानसबर्ग कार्य योजना (जेपीओआई) पारित की गई।
- एजेण्डा 21 ने रियो सम्मेलन की प्रभावी अनुवर्ती कार्रवाई को बढ़ावा देने तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करने और पर्यावरण एवं विकास संबंधी मुद्दों के समेकन हेतु किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्णय प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाने और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एजेण्डा 21 के कार्यान्वयन की प्रगति की जांच करने के लिए एक संस्थागत तंत्र की स्थापना किए जाने की अनुशंसा की।
- तदनुरूप वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (इकोसोस) के एक कार्यात्मक आयोग के रूप में सतत विकास से संबद्ध संयुक्त राष्ट्र आयोग (सीएसडी) का सृजन किया, जिसे पर्यावरण एवं विकास पर रियो घोषणा के कार्यान्वयन में होने वाली प्रगति की समीक्षा करने का अधिदेश दिया गया।
वर्ष 2000 के बाद विकास की समीक्षा
- पृथ्वी सम्मेलन से 5 वर्ष पहले 1987 में ‘आवर कॉमन फ्यूचर- हमारा सांझा भविष्य’ नाम से ब्रटलैण्ड रिपोर्ट का प्रकाशन हुआ इस रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया कि वर्तमान विकास का मॉडल आगे जाकर टिकाऊ साबित नहीं होगा एवं इससे हमारा भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। ब्रटलैण्ड रिपोर्ट द्वारा बताए गए भविष्य के खतरे को प्राथमिकता प्रदान करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 22 दिसम्बर, 1989 को दो प्रस्ताव पारित किये गए। इन प्रस्तावों में 1992 में ब्राजील में एक सम्मेलन को बुलाया जाने का आग्रह भी शामिल था। पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित इस शिखर सम्मेलन को ही 'पृथ्वी सम्मेलन' या ‘रियो सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है। यह शिखर सम्मेलन ब्राजील की राजधानी रिओ डि जेनेरियों में 3 जून 1992 से 14 जून 1992 तक चला जिसमें 182 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
पृथ्वी सम्मेलन के दौरान निम्न विचारणीय विषय विद्यमान थे
- विश्व को प्रदूषण से बचाने के लिए वित्तीय प्रबन्ध
- वनों का प्रबंधन
- संस्थागत प्रबंधन
- तकनीक का हस्तांतरण
- जैविक विविधता
- सतत् विकास।
- पृथ्वी सम्मेलन की उपलब्धियाँ
पृथ्वी सम्मेलन के दौरान 2 दस्तावेजों (एजेंडा-21 और रियो घोषणा) को
प्रस्तुत किया गया तथा इसमें तीन महत्वपूर्ण कन्वेंशन ( यूएनएफसीसीसी, जैव विविधता और
मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन) को जन्म दिया.
एजेंडा-21
एजेंडा- 21 पर्यावरण एवं विकास के संदर्भ में एक अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है जिसे सम्मेलन में उपस्थित 182 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। यद्यपि एजेंडा-21 सदस्य राष्ट्रों पर बाध्यकारी नहीं है फिर भी राष्ट्रों से यह अपेक्षा की गई कि अपनी भावी विकास की नीतियां एजेंडा-21 की नीतियों के अनुरूप निर्माण करेंगे।
एजेंडा-21 पारिस्थितिकी एवं आर्थिक विकास के संदर्भ में संतुलन स्थापित करते हुए निम्न विषयों पर बल प्रदान करता है -
- गरीबी
- उपभोग के ढंग
- स्वास्थ्य
- मानवीय व्यवस्थापन
- वित्तीय संसाधन
- प्रौद्योगिकीय उपकरण
एजेंडा-21 में निहित घोषणाओं के अनुपालन हेतु 1993 में एक आयोग का गठन किया गया जिसे सतत् विकास पर आयोग कहा गया। इस आयोग ने मई, 1993 से कार्य करना शुरू कर दिया।
रियो घोषणा या पृथ्वी चार्टर
रियो घोषणा या पृथ्वी चार्टर को अपनाया जाना पृथ्वी शिखर सम्मेलन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। रियो सम्मेलन के दौरान धनी विकसित देशों यानी उत्तरी गोलार्ध और गरीब एवं विकासशील देशों के पर्यावरण के मुद्दे पर मतभेद भी सामने आए। गौरतलब है कि विकसित एवं विकासशील देशों के लिए पर्यावरण को लेकर अपनाए जाने वाली नीतियों में मतभेद थे विकसित देश जहां ग्लोबल वार्मिंग और ओजोन परत में छिद्र को वरीयता प्रदान करते थे वही विकासशील देश आर्थिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सामंजस्य स्थापित करने हेतु ज्यादा प्रयत्नशील थे।
रियो घोषणापत्र 27 सिद्धांतों पर आधारित थी जिसके दो प्रमुख विषय थे-
- पर्यावरण और उसकी स्थायित्व क्षमता का ह्रास, तथा;
- दीर्घकालीन आर्थिक प्रगति और पर्यावरण सुरक्षा की अंतर्निर्भरता।
- यह घोषणा पत्र औद्योगिक विश्व के उत्तरदायित्वों और विकासशील देशों की विकासात्मक आवश्यकताओं के मध्य संतुलन स्थापित करता है। इस घोषणापत्र के 11वें सिद्धांत में राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण मानकों की स्थापना पर बल देता है। इस घोषणापत्र के 16 वे सिद्धांत में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पर्यावरण मूल्यों का अंतरराष्ट्रीयकरण होना चाहिए तथा प्रदूषक को इसका भुगतान करना चाहिये।
- यद्यपि यह घोषणा कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है फिर भी सभी सदस्य देशों से अपेक्षा की गई कि वह नैतिक समर्पण की भावना से इन पर्यावरण विषय पर जिम्मेदारीपूर्वक रुख अपनाते हुए इस दिशा में अपेक्षित कार्य करें।
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