जैव विविधता अधिनियम, 2002 महत्वपूर्ण तथ्य | जैव विविधता विधेयक 2021 में किये गये संशोधन |Biological Diversity Act), 2002
जैव विविधता अधिनियम, 2002 महत्वपूर्ण तथ्य
जैव विविधता अधिनियम इतिहास
जैव विविधता अधिनियम (Biological Diversity Act), 2002 का निर्माण जैव
विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CBD), 1992 में निहित उद्देश्यों को प्राप्त करने के
लिये भारत के प्रयास के परिणामस्वरूप हुआ जो राज्यों को स्वयं के जैविक संसाधनों
का उपयोग करने के लिये उनके संप्रभु अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।
जैव विविधता:
जैव विविधता का आशय अर्द्धस्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय
पारिस्थितिक तंत्रों एवं पारिस्थितिक परिसरों में विविधता तथा सजीवों के मध्य होने
वाली परिवर्तनशीलता से है,
इसमें प्रजातियों व
पारिस्थितिक तंत्रों के मध्य विविधता भी शामिल होती है।
जैव संसाधन किसे कहते हैं :
जैव संसाधनों
का अर्थ है ऐसे पौधों, जानवरों एवं सूक्ष्म
जीवों अथवा उनके अंगों, उनकी आनुवंशिक सामग्री और
उत्पाद (मूल्य वर्द्धित उत्पादों के अलावा) जिनका कोई वास्तविक या संभावित उपयोग
अथवा मूल्य होता है, किंतु इनमें मानवीय
आनुवंशिक पदार्थ शामिल नहीं होते हैं।
जैव विविधता अधिनियम, 2002
इस अधिनियम को वर्ष 2002
में अधिनियमित किया गया था,
इसका उद्देश्य जैविक
संसाधनों का संरक्षण, इनके धारणीय उपयोग का
प्रबंधन और स्थानीय समुदायों के साथ उचित व न्यायसंगत साझाकरण तथा भारत की समृद्ध
जैव विविधता को संरक्षित रखकर वर्तमान और भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये इसके लाभ
के वितरण की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
- अधिनियम राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना निम्नलिखित गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है:
- किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन (भारत में स्थित अथवा नहीं) द्वारा शोध या व्यावसायिक उपयोग हेतु भारत में उत्पादित किसी भी जैव संसाधन की प्राप्ति ।
- भारत में पाए जाने वाले या भारत से प्राप्त जैव संसाधन से संबंधित किसी भी प्रकार के शोध परिणामों का स्थानांतरण।
- भारत से प्राप्त जैव संसाधनों पर किये गए शोध पर आधारित किसी भी आविष्कार पर बौद्धिक संपदा अधिकारों का दावा।
अधिनियम ने जैव संसाधनों
तक पहुँच को विनियमित करने के लिये एक त्रिस्तरीय संरचना की परिकल्पना की:
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA)।
- राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB)।
- जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC) (स्थानीय स्तर पर)।
अधिनियम इन प्राधिकरणों
हेतु देश के जैव प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित किसी भी अनुसंधान परियोजना को
निष्पादित करने के लिये विशेष वित्त एवं एक पृथक बजट का प्रावधान करता है।
यह जैव संसाधनों के
धारणीय उपयोग की निगरानी करेगा तथा वित्तीय निवेश व प्राप्तियों पर नियंत्रण रखेगा
तथा पूंजी एवं बिक्री की उचित व्यवस्था करेगा।
इस अधिनियम के तहत NBA के परामर्श से केंद्र
सरकार निम्नलिखित उपाय करेगी:
- संकटग्रस्त प्रजातियों के बारे में सूचित करेगी और उनके संग्रहण को प्रतिबंधित या विनियमित करने के साथ ही पुनर्वास को संरक्षित करेगी।
- जैव संसाधनों की विभिन्न श्रेणियों के लिये कोष के रूप में संस्थानों को नामित करेगी।
- अधिनियम के तहत सभी अपराधों को संज्ञेय एवं गैर-जमानती रूप में निर्धारित करना।
- इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण या राज्य जैव विविधता बोर्ड के आदेश अथवा लाभ के बँटवारे के निर्धारण से संबंधित किसी भी शिकायत को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) के पास ले जाया जाएगा।
अन्य कानून जिनसे NGT सरोकार रखती है, में शामिल हैं:
- जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974
- जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
- वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- लोक दायित्त्व बीमा अधिनियम, 1991
अधिनियम से छूट
- अधिनियम में उन भारतीय जैव संसाधनों को शामिल नहीं किया गया है जिनका सामान्य वस्तुओं के रूप में व्यापार किया जाता है।
- इस प्रकार की छूट केवल तब तक होती है जब तक जैव संसाधनों को वस्तुओं के रूप में उपयोग किया जाता है, किसी अन्य उद्देश्य के लिये नहीं।
- यह अधिनियम भारतीय जैविक संसाधन एवं संबंधित ज्ञान के पारंपरिक उपयोगों को भी शामिल नहीं करता है तथा जब जैव संसाधनों का उपयोग केंद्र सरकार की अनुमति के साथ भारतीय व विदेशी संस्थानों के मध्य सहयोगी अनुसंधान परियोजनाओं में किया जाता है, तो उन्हें भी शामिल नहीं करता है।
- विभिन्न प्रकार के काश्तकारों यथा- किसान, पशुपालक एवं मधुमक्खी पालक तथा पारंपरिक उपचारक, उदाहरण के लिये वैद्य और हकीमों को भी अधिनियम से छूट प्रदान की गई है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण
- भारत में जैव विविधता अधिनियम (2002) को लागू करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की स्थापना की गई थी।
- यह एक वैधानिक निकाय है जो जैव संसाधनों के संरक्षण एवं धारणीय उपयोग के मुद्दे पर भारत सरकार के लिये विनियामक एवं सलाहकार संबंधी कार्य करता है।
- इसका मुख्यालय चेन्नई, तमिलनाडु में है।
NBA की संरचना
राष्ट्रीय जैव विविधता
प्राधिकरण में निम्नलिखित सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त
किया जाता है:
एक अध्यक्ष
तीन पदेन सदस्य जिनमें एक
जनजातीय मामलों से संबंधित मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करता है और दो पर्यावरण एवं
वन से संबंधित मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करते हैं।
निम्नलिखित मामलों से
संबंधित केंद्र सरकार के मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले सात पदेन सदस्य
हैं:
1. कृषि अनुसंधान एवं
शिक्षा।
2. जैव प्रौद्योगिकी।
3. महासागरीय विकास।
4. कृषि एवं सहयोग।
5. भारतीय चिकित्सा
पद्धति एवं होम्योपैथी।
6. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी।
7. वैज्ञानिक एवं
औद्योगिक अनुसंधान।
आवश्यक मामलों में विशेष
ज्ञान एवं अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों में से पाँच गैर-सरकारी
सदस्य नियुक्त किये जाते हैं।
NBA के कार्य
- जैव विविधता के संरक्षण एवं धारणीय उपयोग को बढ़ावा देने के लिये उचित, सक्षम वातावरण तैयार करना।
- केंद्र सरकार को परामर्श देना, जैव विविधता से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करना एवं जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अनुसार, जैव संसाधनों तक पहुँच तथा समान लाभ साझा करने हेतु उचित दिशा-निर्देश जारी करना।
- भारत से बाहर किसी भी देश में अवैध रूप से प्राप्त भारतीय जैव संसाधन अथवा ऐसे जैव संसाधनों से संबंधित ज्ञान पर बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान किये जाने का विरोध करने के लिये आवश्यक उपाय करना।
- राज्य सरकारों को जैव विविधता के महत्त्व वाले क्षेत्रों को विरासत स्थलों के रूप में अधिसूचित करने हेतु परामर्श देना एवं उनके प्रबंधन के लिये उपाय सुझाना।
राज्य जैव विविधता बोर्ड
राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Board- SBB) की स्थापना राज्य सरकारों द्वारा अधिनियम की धारा 22 के अनुसार की जाती है।
संरचना: राज्य जैव
विविधता बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य होते हैं:
एक अध्यक्ष।
राज्य सरकार से संबंधित
विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले पदेन अधिकारी (पाँच से अधिक नहीं)।
ये जैव विविधता संरक्षण, जैव संसाधनों के धारणीय
उपयोग एवं जैव संसाधनों के उपयोग से प्राप्त लाभों के समान बँटवारे से संबंधित
मामलों के विशेषज्ञ (पाँच से अधिक सदस्य नहीं) होते हैं।
राज्य जैव विविधता
बोर्ड के सभी सदस्यों की नियुक्ति संबंधित
राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
राज्य जैव विविधता बोर्ड
के कार्य
संरक्षण, धारणीय उपयोग या समान लाभ
साझा करने से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार द्वारा जारी किसी भी दिशा-निर्देश के
अधीन राज्य सरकारों को परामर्श देना।
अन्य व्यावसायिक उपयोग
अथवा जैव-सर्वेक्षण एवं लोगों द्वारा किसी भी जैव संसाधन के जैविक उपयोग हेतु
अनुरोधों को अनुमोदन के माध्यम से विनियमित करना।
नोट:
केंद्रशासित प्रदेशों के
लिये कोई राज्य जैव विविधता बोर्ड का गठन नहीं किया गया है।
राष्ट्रीय जैव विविधता
प्राधिकरण केंद्रशासित प्रदेशों के लिये राज्य जैव विविधता बोर्ड की शक्तियों का
प्रयोग करता है एवं उनके कार्य करता है।
जैव विविधता प्रबंधन
समितियाँ
अधिनियम की धारा 41 के
अनुसार, प्रत्येक स्थानीय निकाय
अपने क्षेत्र के भीतर जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (Biodiversity Management Committees-
BMC) का गठन करेगा जिसका उद्देश्य जैव विविधता के संरक्षण, धारणीय उपयोग एवं प्रलेखन
को बढ़ावा देना है। इसमें शामिल हैं:
- आवासों का संरक्षण।
- स्थनीय जैव किस्मों का संरक्षण।
- लोक किस्में एवं कृषि उपजातियाँ।
- पालतू एवं वन्य जीवों की नस्लें।
- सूक्ष्मजीव एवं जैव विविधता से संबंधित ज्ञान कालक्रम अभिलेखन।
संरचना
- इसमें एक अध्यक्ष होगा एवं स्थानीय निकाय द्वारा नामित छह से अधिक सदस्य नहीं होंगे।
- जैव विविधता प्रबंधन समिति के कुल सदस्यों में से कम-से-कम एक-तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये एवं कम-से-कम 18% सदस्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों से होने चाहिये।
- जैव विविधता प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को समिति के सदस्यों के बैठक द्वारा चुना जाएगा।
- इस बैठक की अध्यक्षता स्थानीय निकाय का अध्यक्ष करेगा।
- स्थानीय निकाय के अध्यक्ष के पास समान मत होने की स्थिति में निर्णायक मत का अधिकार होगा।
कार्य
- जैव विविधता प्रबंधन समिति का मुख्य कार्य स्थानीय लोगों के परामर्श से पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर तैयार करना है।
- रजिस्टर में स्थानीय जैव संसाधनों की उपलब्धता एवं ज्ञान, उनके औषधीय या अन्य उपयोग अथवा कोई अन्य व्यापक जानकारी होगी।
पीपल्स बायोडायवर्सिटी
रजिस्टर (PBR):
- पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (Peoples Biodiversity Register- PBR) के तहत स्थानीय जैव विविधता, पारंपरिक ज्ञान एवं कार्यों के सहभागी अभिलेखन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- रजिस्टर में स्थानीय जैव संसाधनों की उपलब्धता एवं ज्ञान, उनके औषधीय या अन्य उपयोग अथवा अन्य व्यापक जानकारियाँ होंगी।
- इन्हें जैव संसाधनों एवं संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर स्थानीय लोगों के अधिकार निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ों के रूप में देखा जाता हैं।
जैव विविधता विरासत स्थल
- जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 के तहत स्थानीय निकायों के परामर्श से राज्य सरकारें जैव विविधता के क्षेत्रों को जैव विविधता विरासत स्थलों (Biodiversity Heritage Sites- BHS) के रूप में अधिसूचित कर सकती हैं।
- जैव विविधता विरासत स्थल ऐसे पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जिसमें अनूठे, सुभेद्य पारिस्थितिक तंत्र स्थलीय, तटीय एवं अंतर्देशीय जल तथा समृद्ध जैव विविधता वाले निम्नलिखित घटकों में से किसी एक अथवा अधिक विशेषता युक्त समुद्री पारिस्थितिक तंत्र शामिल होते हैं:
- वन्य प्रजातियों के साथ-साथ घरेलू प्रजातियों या अंतर-विशिष्ट श्रेणियों की प्रचुरता।
- उच्च स्थानिकता।
- दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियों की उपस्थिति।
- कीस्टोन प्रजाति।
- क्रमिक विकास वाली प्रजातियाँ।
- घरेलू/कृषि प्रजातियों या उन किस्मों की वन्य प्रजातियाँ।
- पूर्व प्रधान जैविक घटकों का जीवाश्मों द्वारा प्रतिनिधित्व।
- महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक, नैतिक या सौंदर्य परक मूल्यों वाली सांस्कृतिक विविधता के रखरखाव के लिये महत्त्वपूर्ण।
जैव विविधता विधेयक 2021 में किये गये संशोधन
- भारतीय चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देना: यह "भारतीय चिकित्सा प्रणाली" को बढ़ावा देना चाहता है, और भारत में उपलब्ध जैविक संसाधनों का उपयोग करते हुए अनुसंधान, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया, अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण के तेज़ ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान करता है।
- यह स्थानीय समुदायों को विशेष रूप से औषधीय मूल्य जैसे कि बीज के संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम होने के लिये सशक्त बनाना चाहता है।
- यह विधेयक किसानों को औषधीय पौधों की खेती बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के उद्देश्यों से समझौता किये बिना इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है।
- कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करना: यह जैविक संसाधनों की शृंखला में कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रयास करता है।
- इन परिवर्तनों को वर्ष 2012 में भारत के नागोया प्रोटोकॉल (सामान्य संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण) के अनुसमर्थन के अनुरूप लाया गया था।
- विदेशी निवेश की अनुमति: यह जैव विविधता के अनुसंधान में विदेशी निवेश की भी अनुमति देता है हालाँकि यह निवेश आवश्यक रूप से जैवविविधता अनुसंधान में शामिल भारतीय कंपनियों के माध्यम से करना होगा
- विदेशी संस्थाओं के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यक है।
- आयुष चिकित्सकों को छूट: विधेयक पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिये जैविक संसाधनों तक पहुँचने हेतु राज्य, जैवविविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता
Post a Comment