लोकतंत्र का व्यापक अर्थ |Broad meaning of democracy
लोकतंत्र का व्यापक अर्थ
लोकतंत्र का व्यापक अर्थ
लोकतंत्र बहुआयामी अर्थ लिए हुए है। यह मात्र शासन व्यवस्था अथवा सरकार का एक रूप मात्र नहीं है, अपितु यह समाज और आर्थिक व्यवस्था का भी एक प्रमुख रूप है। हर्नशॉ के शब्दों में “प्रजातंत्र केवल सरकार का स्वरूप नहीं है, बल्कि राज्य और समाज का भी स्वरूप है। " गिडिंग्स ने इस सन्दर्भ में कहा-“प्रजातंत्र केवल शासन का ही नाम नही है, वरन् राज्य का भी एक रूप है तथा समाज के रूप का भी एक नाम है या फिर तीनों का सम्मिश्रण है।" प्रजातंत्र के नैतिक स्वरूप का वर्णन करते हुए डा0 बेनीप्रसाद ने कहा है कि -"लोकतंत्र जीवन का एक ढंग है। यह इस मान्यता आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के सुख का महत्व उतना ही है जितना अन्य किसी के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जा सकता। “मैक्सी ने लोकतंत्र का व्यपक अर्थ करते हुए लिखा है-“बीसवीं सदी में लोकतंत्र से तात्पर्य एक राजनीतिक नियम, शासन की विधि व समाज के ढांचे से ही नहीं है, वरन् यह जीवन के उस मार्ग की खोज है जिसमें मनुष्यों की स्वतंत्र एवं ऐच्छिक बुद्धि के आधार पर उनमें अनुरूपता और एकीकरण लाया जा सके। “
इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में लोकतंत्र के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं
1. लोकतंत्र का राजनीतिक स्वरूप-
लोकतंत्र का प्रत्यक्ष सम्बन्ध शासन-प्रणाली से होता है। इस अर्थ में लोकतंत्र सरकार का वह संगठन है जो कि जनता के द्वारा निर्मित नियंन्त्रित एवं संचालित होता है। वास्तव में लोकतंत्र में शासन की सत्ता की बागडोर जनता में ही निहित होती है। जनता अपनी सत्ता का प्रयोग स्वयं या अपने प्रतिनिधियों द्वारा करती है। शासन व्यवस्था पर अंतिम अधिकार एवं निर्णय जनता का ही होता है शासन शासितों का हित समान ही होता है। लोकतंत्र के राजनीतिक स्वरूप का अर्थ यही है कि राज्य के प्रत्येक वयस्क स्त्री एवं पुरूष को मतदान का अधिकार प्राप्त हो । प्रत्येक व्यक्ति को शासन की निंदा करने का अधिकार हो तथा समाचार पत्र एवं प्रेस की भूमिका स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हो। जनता व सत्ता के मध्य सम्बन्ध समन्वय पूर्ण होने चाहिए ।
2. लोकतंत्र का सामाजिक स्वरूप-
लोकतांत्रिक समाज समता में फलता एवं फूलता है। समानता की भावना ही लाकतांत्रिक समाज की एक विशिष्ट विशेषता होती है। यह सिद्धान्त जन्म, जाति, वर्ण, चरित्र तथा योग्यता इत्यादि के भेदों से परे प्रत्येक के मनुष्य समान नैतिक गुण आत्मिक गौरव पर बल देता हुआ समाज में सामाजिक तथा सांस्कृतिक समानता की स्थापना है। यह समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने व्यक्तित्व के विकास अवसर उपलब्ध कराता है। इस प्रकार, जिस समाज में विचारों, अधिकारों, भावानाओं और आदेशों की समानता होती है। उसे ही लोकतांत्रिक समाज कहा जा सकता है। और
क्रोजियर के कथनानुसार “मनुष्य की भौतिक एवं सामाजिक दशाओं की समानता लोकतंत्र का सार है। “
आर्शीवार्दम के शब्दों में- “प्रजातान्त्रिक समाज वह है, जिसमें समानता तथा भ्रातृत्व की भावना सम्भवता वर्तमान रहती है। “
अतः सामाजिक दृष्टि से लोकतंत्र का अर्थ सामाजिक समानता के रूप में जाना जाता है।
3. लोकतंत्र का नैतिक स्वरूप-
लोकतंत्र का स्वरूप नैतिक भी है। यह स्वरूप एक आदर्श एवं आध्यात्मिक जीवन की कल्पना करता है, जिसके अन्तर्गत घृणा, स्वार्थ, द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि बुरी प्रवृत्तियों का नाम नही रहना चाहिए। मनुष्यों में प्रेम, देश-प्रेम, सहयोग, भ्रातृत्व इत्यादि गुणों की वृद्धि करके नागरिकों में नैतिकता का विकास होना चाहिए। लोकतंत्र की सफलता के लिए राष्ट्रीय एकता तथा लोगों में उच्च नैतक मूल्यों के प्रति निष्ठा नितान्त जरूरी है। प्रजातंत्र के नैतिक स्वरूप का वर्णन करते हुए जैकरसन ने लिखा है “प्रजातंत्र शासन इस विश्वास पर आधारित है कि अधिकांश जनता स्वशासन की योग्यता रखती है तथा साधारण व्यक्ति के अन्दर भी इतनी योग्यता होती है कि वह ऐसे शासकों का निर्वाचन करे, जो सामाजिक हित को दृष्टि में रखकर कार्य करे।
4. लोकतंत्र का आर्थिक स्वरूप
आर्थिक स्वरूप से आशय है आर्थिक समानता से है। आर्थिक स्वतंत्रता और समानता ही वास्वविक प्रजातंत्र का आधार मानी जाती है। भूखे व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई महत्व नहीं हो सकता। इस कारण आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना आवश्यक है। आर्थिक लोकतंत्र से आशय है ऐसी व्यवस्था से होता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भौतिक सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित साधन उपलब्ध हो और जहाँ पर किसी का शोषण न किया जाये। यह कहा भी जाता है कि आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक लोकंत्र सामान्य मनुष्यों को अपनी इच्छाओं की पूर्णता में सहायता नहीं दे सकता। राजनीतिक शक्ति आर्थिक शक्ति की दासी है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि समाज में धन का वितरण इस तरह होना चाहिए कि अधिक से अधिक व्यक्ति उसका उपभोग कर सकें और सभी लोगों को भोजन, वस्त्र, शिक्षा आदि की पर्याप्त सुविधाएं प्राप्त हो। सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना भ सम्भव है।
5. जीवन का एक रूप-
लोकतंत्र जीवन का एक रूप भी है। यह जीवन के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण अपनाता है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान होता है तथा उसकी आन्तरिक नैतिक एवं आध्यात्मिक क्षमता का विकास किया जाता है। जिससे व्यक्ति की गरिमा में बढ़ोतरी होती है और उसका नैतिक स्तर ऊपर उठता है।
उपयुक्त विभिन्न व्यापक दृष्टिकोणों से यह पूर्णतः स्पष्ट है कि लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था का सिद्वान्त है जिसकी एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति होती है और जिसका एक आर्थिक आधार होता है और जिसमें सामाजिक, राजनीतिक और दैनिक व्यवहार के सारे सांस्कृतिक मापदंड निहित होते हैं। संक्षेप में लोकतंत्र एक विशेष प्रकार का शासन है सामाजिक व्यवस्था का एक सिद्वान्त है, एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति है। इसका सही अर्थ अपने कर्तव्यों का उचित निर्वहन है।
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