पृथ्वी तथा सौरमंडल में इसकी स्थिति |पृथ्वी की आकृति तथा आकार अक्षांश व देशांतर | Earth Places in Solar System

 पृथ्वी तथा सौरमंडल में इसकी स्थिति

पृथ्वी तथा सौरमंडल में इसकी स्थिति |पृथ्वी की आकृति तथा आकार अक्षांश व देशांतर | Earth Places in Solar System


 

पृथ्वी तथा सौरमंडल में इसकी स्थिति

सौरमंडल 

  • अन्य ग्रहों की भांति पृथ्वी भी सौरमंडल की एक सदस्य है। सूर्य तथा इसकी परिक्रमा करने वाले ग्रह (बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण तथा वरुण) मिलकर सौरमंडल का निर्माण करते हैं। इन ग्रहों के अतिरिक्त अनेक उपग्रह, धूमकेतु . और उल्कापिंड आदि भी इस परिवार के सदस्य हैं।

 

  • ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता। सभी ग्रह अपने अक्ष पर घूमते हैं। शुक्र और अरुण को छोड़कर शेष सभी ग्रह अपनी-अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते हैं। सूर्य की परिक्रमा भी ये सभी ग्रह पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करते हुए लगाते हैं कई उपग्रह इन ग्रहों की परिक्रमा करते हैं। उदाहरण के लिए पृथ्वी का एक उपग्रह चंद्रमा है। शनि के 60 से भी अधिक उपग्रह हैं, जबकि बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। अनेक छोटे-छोटे पिंड मंगल तथा बृहस्पति के बीच सूर्य की परिक्रमा करते हैं इन छोटे पिंडों को अवांतर ग्रह कहा जाता है। सूर्य सौरमंडल में केंद्र में स्थित है। सूर्य के केंद्र में स्थित होने का विचार सर्वप्रथम कॉपरनिकस ने अपने सूर्य केंद्रीय सिद्धांत में दिया था। इससे पहले पृथ्वी को सौरमंडल का केंद्र माना जाता था। इस विचार को भूकेंद्रीय दृष्टिकोण के नाम से जाना जाता है। यह विचार टॉलमी द्वारा प्रस्तुत किया गया था ।

 

  • सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी 150,000,000 कि.मी. मानी जाती है। सूर्य से दूरी के अनुसार पृथ्वी, बुध और शुक्र के बाद तीसरे स्थान पर स्थित ग्रह है। बुध और शुक्र सूर्य के पृथ्वी से अधिक निकट होने के कारण निम्न ग्रह कहलाते हैं जबकि अन्य ग्रह जिनकी दूरी सूर्य से पृथ्वी की दूरी से अधिक है उच्च ग्रह कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रहों को आंतरिक व बाह्य ग्रहों के वर्गों में भी विभाजित किया जा सकता है । बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल को आंतरिक ग्रह कहा जाता है जबकि वृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, बाह्य ग्रह हैं । शुक्र अन्य ग्रहों से अधिक चमकीला ग्रह है। बुध अन्य सभी ग्रहों से छोटा है जबकि वृहस्पति सबसे बड़ा ग्रह है। मंगल ग्रह को लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। सभी ग्रहों में केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां जीवन है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा निश्चित पथ में रहकर करते हैं ।

 

पृथ्वी की आकृति तथा आकार 

  • पृथ्वी की आकृति गोल मानी जाती है किंतु यह पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। इसका आकार मंडलाकार है। पृथ्वी का विषुवतीय व्यास लगभग 12,762 कि.मी. (7,927 मील) है, जबकि इसका ध्रुवीय व्यास लगभग 12,714 कि.मी. (7,900 मील) है। इस प्रकार पृथ्वी उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर अपेक्षाकृत चपटी है और इसलिए ध्रुवों पर आकलित पृथ्वी के व्यास व विषुवत रेखा पर आकलित पृथ्वी के व्यास में अंतर है। पृथ्वी की आकृति के एक अधिक निश्चित अध्ययन लिए इसके तल की विषमताओं को न मानते हुए यदि समुद्रतल को सतत मान लिया जाए तो इस आकृति को 'जीओयड' कहा जा सकता है। इसे पृथ्वी की अधिक शुद्ध आकृति कहा जाता है। परंतु सामान्यतया पृथ्वी की आकृति को गोलाकार  माना जाता है। पृथ्वी की आकृति गोल है इस तथ्य को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण हैं। उदाहरण के लिए चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पर पृथ्वी की आकृति की छाया तथा अंतरिक्ष से लिए गए पृथ्वी के चित्र पृथ्वी की गोलाकार आकृति को दर्शाते हैं।


अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ

अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ द्वारा 2006 में स्वीकृत ग्रहों की परिभाषा के अनुसार किसी खगोलीय पिंड को ग्रह कहलाने के लिए निम्नलिखित तीन मापदंडों को पूरा करना चाहिए:

 

1. यह सूर्य की परिक्रमा कर रहा हो । 

2. इसका द्रव्यमान इतना हो ताकि इसका अपना गुरुत्व आकर्षण इतना हो कि यह एक अलोचशील पिंड की शक्तियों (rigid body forces) से अधिक हो ताकि यह पिंड एक लगभग गोलाकार (hydrostatic equilibrium) आकृति ग्रहण कर सके तथा 

3. इसने अपने परिक्रमा पथ के आस-पास के क्षेत्र को अन्य पिंडों से खाली कर लिया हो।

 

केवल पहले दो मापदंडों को पूरा करने वाले खगोलीय पिंडों को क्षुद्र ग्रह ( dwarf planets ) माना जाएगा। इन मापदण्डों के आधार पर पहले ग्रह माने जाने वाले यम को ग्रहों की श्रेणी से हटा दिया गया है।

 

पृथ्वी पर स्थिति तथा अक्षांश व देशांतर

 

भूगोल एक स्थानिक विज्ञान है और भौगोलिक अध्ययन क्षेत्रों तथा स्थानों की स्थिति से संबंधित अध्ययन है। किसी क्षेत्र अथवा स्थान की स्थिति का वर्णन सापेक्षिक एवं निरपेक्ष स्थिति के रूप में किया जा सकता है। जब किसी क्षेत्र या स्थान की स्थिति को पहले से ज्ञात क्षेत्र अथवा स्थान के संदर्भ में प्रदर्शित करते हैं तो इसे सापेक्ष स्थिति कहते हैं । उदाहरण के लिए नेपाल, भारत के उत्तर में स्थित है निरपेक्ष स्थिति का वर्णन, किसी क्षेत्र एवं स्थान के देशांतरों व अक्षांशों के आधार पर किया जा सकता है। अतः अक्षांश व देशांतर रेखाओं की संकल्पना धरातल पर किसी स्थान अथवा क्षेत्र की स्थिति बताने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार हैं । अतः हम कह सकते हैं कि पृथ्वी पर किसी स्थान की अवस्थिति अक्षांश व देशांतर के माध्यम से अभिव्यक्त की जाती है अक्षांश व देशांतर रेखाएं वह कल्पित रेखाएं हैं जो पृथ्वी पर किसी स्थान की स्थिति का निर्धारण करती हैं। अक्षांश रेखाएं भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण में किसी स्थान की कोणिक दूरी को दर्शाती हैं। दूसरे शब्दों में अक्षांश रेखाएं वे रेखाएं हैं जो कि भूमध्य रेखा के समांतर खींची जा सकती हैं। एक अक्षांश रेखा पर सभी स्थान भूमध्य रेखा से समान दूरी पर होते हैं । भूमध्य रेखा ° का अक्षांश वृत्त है तथा अक्षांश भूमध्य रेखा से 90° उत्तर तथा दक्षिण तक गिने जाते हैं। 90° उत्तर तथा दक्षिण पृथ्वी के दो ध्रुवों की स्थितियां हैं। किसी स्थान का देशांतर उस स्थान की प्रधान मध्यान्न रेखा से पूर्व तथा पश्चिम को मापी गई कोणिक दूरी होती है प्रधान मध्यान्न रेखा लंदन के निकट ग्रीनविच से गुजरती है तथा इसे शून्य डिग्री देशांतर रेखा माना जाता है देशान्तर रेखाओं को याम्योत्तर रेखाएं भी कहा जाता है। देशांतरों का मान 0° से 360° तक होता है तथा सभी देशांतर रेखाएं ध्रुवों पर अभिसरित होती हैं । देशांतर रेखाएं एक ही देशांतर पर स्थित सभी स्थानों को मिलाने वाली रेखाएं होती हैं तथा इन्हें मध्यान्न रेखाएं भी कहा जा सकता है।

 

कुछ महत्वपूर्ण अक्षांश तथा देशांतर रेखाएं

 

  • कुछ अक्षांश व देशांतर रेखाएं भौगोलिक अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। की अक्षांश रेखा भूमध्य रेखा कहलाती है। इसके उत्तर में 23 1/2° अक्षांश की रेखा कर्क रेखा और दक्षिण में 23 1/2° अक्षांश की रेखा मकर रेखा के नाम से जानी जाती है। 66½° उत्तरी अक्षांश रेखा को आर्कटिक वृत्त तथा 662° दक्षिणी अक्षांश रेखा को अंटार्कटिक वृत्त कहा जाता है। भूमध्य रेखा पृथ्वी को न केवल दो गोलाद्धों (उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध) में बांटती है बल्कि यह अन्य अक्षांशीय रेखाओं के लिए संदर्भ रेखा भी है। कर्क तथा मकर रेखाएं उस क्षेत्र की सीमाएं है जहां पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी की ऋतु और उतरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु (मकर संक्रातिक अथवा शीत अयनांत) की स्थिति में मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत पड़ती हैं जबकि कर्क संक्रांतिक या ग्रीष्म अयनांत के समय सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकाल होता है। इन सीमाओं से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणें कभी भी लम्बवत नहीं होतीं । आर्कटिक और अंटार्कटिक वृत्त ध्रुवीय क्षेत्रों की सीमाएं है जहां पर हम लगातार 24 घंटे या उससे अधिक समय के लिए दिन और रात की परिस्थिति देख सकते हैं । इन वृत्तों से बाहर अथवा भूमध्य रेखा की ओर दिन और रात लगातार 24 घंटे या उससे अधिक समय के लिए नहीं होते.

 

  • देशांतर रेखाएं भी अक्षांशों की भांति विभिन्न स्थानों की स्थिति जानने के लिए आवश्यक हैं। ग्रीनविच की देशांतर रेखा अथवा याम्योत्तर को मुख्य याम्योत्तर (Prime meridian) के नाम से भी जाना जाता है। यह रेखा भी पृथ्वी को दो भागों में विभक्त करती है जिन्हें पूर्वी तथा पश्चिमी गोलार्द्ध कहा जाता है। 0° देशांतर से पूर्व व पश्चिम की ओर 180° के अंतर पर क्रमशः 180° पू. व 180° प. देशांतर हैं । ग्लोब पर मुख्य याम्योत्तर के सामने वाली रेखा अर्थात 180° देशांतर को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है। यह रेखा प्रशांत महासागर के मध्य से गुजरती है तथा एक सीधी रेखा नहीं है। इस रेखा को टेढ़ी मेढ़ी इसलिए माना गया है ताकि यह किसी देश को दो भागों में विभाजित न करे। 
  • अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा तिथि तथा उसमें परिवर्तन का मुख्य अधार है। इससे पूर्व की अपेक्षा पश्चिम में तिथि आगे होती है। इसलिए यदि कोई इस रेखा को पूर्व से पश्चिम की ओर पार करता है तो तिथि को एक दिन आगे पाता है परंतु यदि वह विपरीत दिशा में आगे बढ़ता है तो वह छोड़े हुए दिन को पुनः प्राप्त करता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति इस रेखा को पार करता है तो उसे एक दिन का लाभ अथवा हानि होती है।

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