परम्परावादी एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ |Features of Traditional and Modern Political Science
परम्परावादी एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ
परम्परावादी राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ
परम्परागत राजनीति विज्ञान कल्पना और दर्शन पर आधारित है। यह अपने प्रतिपादक राजनीतिक दार्शनिक एवं चिन्तकों के व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण से प्रभावित रहा है। अधिकांश दार्शनिक विचारक आचारशास्त्र या दर्शनशास्त्र से प्रभावित रहे हैं। उन्होंने मानवीय चिन्तन में सामाजिक लक्ष्यों तथा मूल्यों की ओर ध्यान दिया है। उदाहरणार्थ- हम यूनानी विचारकों द्वारा प्रतिपादित नैतिक जीवन की उपलब्धि का विचार, मध्ययुग के ईसाई सन्त दार्शनिकों का ईश्वरीय राज्य स्थापित करने का विचार तथा आदर्शवादियों के विवके से साक्षात्कार ले सकते हैं। इन विद्वानों के विचारों को परानुभववादी कहा गया है। उनके व्यक्तिपरक विचार और उनकी चिन्तन प्रणाली निगमनात्मक है। आधुनिक युग में परम्परागत राजनीति विज्ञान के प्रबल समर्थकों की काफी संख्या है। यहाँ हम रूसो, काण्ट, हीगल, टी०एच० ग्रीन, बोसांके, लास्की, ओकशॉट, लियो स्ट्रॉस इत्यादि की रचनाओं में प्लेटो के विचारों की झलक देख सकते हैं।
परम्परागत राजनीति विज्ञान की प्रमुख विशेषतायें निम्नवत् स्पष्ट की जा सकती हैं
1. 'राज्य' की प्रधानता एवं राज्य को एक नैतिक सामाजिक अनिवार्य संस्था माना है। फलतः उद्देश्य आदर्श राज्य की खोज ही नहीं रहा, अपितु इसके लिए अत्यधिक हटधर्मिता रही।
2. कल्पनात्मक, आदर्शों का अध्ययन एवं दर्शनशास्त्र से घनिष्ठता ।
3. अध्ययन प्रतिपादक राजनीतिक दार्शनिकों एवं चिन्तकों के व्यक्तित्व से प्रभावित, फलतः व्यक्तिनिष्ठ अध्ययन।
4. अपरिष्कृत परम्परागत अध्ययन पद्धतियों (ऐतिहासिक) दार्शनिक का प्रयोग, फलतः वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग नहीं किया गया।
5. अध्ययन में नैतिकता और राजनीतिक मूल्यों पर विशेष बल दिया गया है।
6.यह प्रधानतः संकुचित अध्ययन है क्योंकि इसमें सिर्फ पाश्चात्य राज्यों की शासन व्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका आदि की राजनीतिक व्यवस्थाओं के अध्ययन को महत्व नहीं दिया गया है।
आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ
आधुनिक राजनीति विज्ञान अभी विकासशील अवस्था में है। आधुनिक राजनीति विज्ञान की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित है-
1. आधुनिक राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन मुक्तता की प्रवृत्ति पायी जाती है। यह परम्परागत राजनीति विज्ञान की सीमाओं को तोड़कर अध्ययन करते हैं। राजनीतिक घटनाएँ तथा तथ्य जहाँ भी उपलब्ध हों, चाहे वे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र या धर्मशास्त्र के विषय हों, अब राजनीति विज्ञान के विषय बन गये हैं। उनका मानना है कि राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाली वास्तविक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाये तथा उन्हीं के आधार पर राजनीतिक घटनाक्रम की व्याख्या व विश्लेषण किया जाये।
2. आधुनिक राजनीति विज्ञान व्यवहारिकतावादी अनुभावनात्मक व यर्थाथवादी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देता है। अधिकांश अध्ययन- ग्रंथ विश्लेषणात्मक व अनुभवात्मक हैं, जो पर्यवेक्षण माप, तार्किकता, युक्तियुक्तता आदि तकनीकों पर आधारित हैं।
3. आधुनिक राजनीति विज्ञान विभिन्न सामाजिक विज्ञानों तथा प्राकृतिक विज्ञानों से काफी प्रभावित रहा है। अतः नवीन पद्यतियों में वैज्ञानिक पद्यति को प्रमुख स्थान दिया गया है। इसी के साथ वैज्ञानिक मूल्य-सापेक्षतावाद को भी प्रमुख स्थान प्रदान किया गया, जिसका तात्पर्य है कि एक शोधकर्ता शोध करते समय स्वयं के मूल्यों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों को शोध से पृथक रखता है। उसके आचरण में बौद्धिक निष्पक्षता तथा सत्यनिष्ठा पायी जाती है। यह तात्विकता का विवेचन करता है तथा अतितथ्यवादिता से बचता है। वैज्ञानिक पद्यति के प्रयोग द्वारा अब राजनीति वैज्ञानिक सामान्यीकरणों व्याख्याओं और सिद्धान्त- निर्माण में लगे हैं। अब सिद्धान्त-निर्माण कठोर शोध प्रक्रियाओं पर आधारित है। शोध व सिद्धान्त में निश्चित संबंध में पाये जाने लगे हैं। सिद्धान्त निर्माण की प्रक्रिया अब शोध-उन्मुखी हो गयी है।
4.आधुनिक राजनीति विज्ञान के विद्वान इस तथ्य से सुपरिचित हैं कि जिन संस्थाओं और विषयों का अध्ययन वे करते हैं, उनका अध्ययन अन्य अनुशासनों में भी किया जा रहा है। अतः राजनीति विज्ञान को पृथक अस्तित्व प्रदान किया जाना चाहिए। डेविड ईस्टन, रार्बट डहल, आमण्ड, पॉवेल, कोलमैन, ल्यूसियन पाई, सिडनी वर्बा, कार्ल डायच, मैक्रीडीस आदि विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को स्वतंत्र अनुशासन बनाये जाने के प्रयत्न किये। उदाहरणार्थ डेविड ईस्टन ने “राजनीति को मूल्यों का सम्पूर्ण समाज के लिए आधिकारिक वितरण / आंबटन बताकर इसे अन्य अनुशासनों (व्यवस्थाओं) से पृथक व श्रेष्ठ घोषित किया।
5.आधुनिक राजनीति विज्ञान के विद्वान राजनीतिक तथ्यों और निष्कर्षो में एक सम्बद्धता एवं क्रमबद्धता लाना चाहते हैं। अपने क्षेत्र में विशिष्ट सुविज्ञता विकसित करना चाहते हैं ताकि वह स्वायत्ता प्राप्त कर सके। इसके लिए उन्होंने व्यवस्था सिद्धान्त या सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त को राजनीतिक विज्ञान में ग्रहण किया। नियंत्रण और नियमन से संबंधित होने के कारण राजनीति विज्ञान की मौलिकता स्वतः प्रमाणित है।
6. आधुनिक राजनीति विज्ञान अध्ययन की इकाई के रूप में मानव व्यवहार को चुनता है। अतः उससे संबंधित सभी तत्वों व तथ्यों का विशलेषण किया जाना आवश्यक हो जाता है। इस विषय की अन्तः अनुशासनात्मकता इसका प्रमुख आधार है। किसी भी राजनीतिक घटना का अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस घटना से संबंधित मनुष्य वास्तव में किन-किन तत्वों से प्रभावित है लेकिन यह कार्य अत्यन्त जटिल होता है। अतः निष्कर्ष निकलता है कि जितने अनुशासन हैं उतनी ही दृष्टियाँ है। अतः यह कार्य सामान्य सिद्धान्त “एकीकरण" के माध्यम से किया जाता है। कुछ विद्धानों ने अन्तः अनुशासनीय दृष्टिकोण के स्थान पर 'परि अनुशासनात्मक' (पैन-डिसिप्लिनरी) या अधि अनुशासनीय दृष्टिकोण (ट्रांस- डिसिप्लिनरी) कहना अधिक पसंद किया है।
7. आधुनिक राजनीति विज्ञान तात्कालीक समस्याओं का समाधान करने पर ध्यान देता है। व्यवहारिकतावादी क्रांति के माध्यम से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि राजनीति विज्ञान विशुद्ध विज्ञान बनकर मात्र प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों तक सीमित हो जायेगा, किन्तु उत्तर व्यवहारिकतावादी युग ने अपने आपकों मूल्यों, नीतियों ओर समस्याओं से सम्बद्ध रखा तथा अपने अध्ययन से नागरिकों शासन को नीति-निर्माताओं व राजनीतिज्ञों को लाभान्वित करने का प्रयास किया है।
8. आधुनिक राजनीति विज्ञान की अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था है। उसके पास अभ सिद्धान्तों का अभाव है, किन्तु वह इस दिशा में प्रयत्नरत है। माइकेल हस इस ओर संकेत करते हुए तीन बिन्दुओं के आधार पर यह बताते है कि आधुनिक राजनीति विज्ञान में सिद्धान्त निर्माण की प्रवृत्ति दिखायी देती है। ये तीन बिन्दु हैं- 1. निर्णय निर्माण 2. राजनीतिक विकास 3. एकीकरण |
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