खाद्य परिरक्षण, प्रसंस्करण एवं भण्डारण |परिरक्षण का अर्थ परिभाषा सिद्धान्त उद्देश्य विधियाँ | Food Conservation in Hindi

खाद्य परिरक्षण, प्रसंस्करण एवं भण्डारण 

खाद्य परिरक्षण, प्रसंस्करण एवं भण्डारण |परिरक्षण का अर्थ परिभाषा सिद्धान्त उद्देश्य विधियाँ | Food Conservation in Hindi
 

प्रस्तावना

 

ताजे खाद्य पदार्थ (मुख्यतः फल व सब्जियों) का समय रहते उपभोग न होने के कारण उनमें नकरात्मक परिवर्तन आते हैं, जिससे उनकी ताज़गी, स्वाद और पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुणवत्ता प्रभावित होती है। अतः वे खाने योग्य नहीं रह जाते है। वर्ष भर खाद्य पदार्थों को खाने योग्य व सुरक्षित रखने हेतु परिरक्षण किया जाना आवश्यक होता है।


परिरक्षण का अर्थ परिभाषा

 

भोजन परिरक्षण का तात्पर्य है भोज्य पदार्थ को लम्बे समय तक सुरक्षित रूप से संग्रहित करके रखना। भोजन को सड़ने एवं खराब होने से बचाने हेतु की जाने वाली सभी क्रियाएं भोजन परिरक्षण नाम से जानी जाती हैं। दूसरे शब्दों में खाद्य पदार्थों में बिना कोई हानिकारक वस्तु को मिलाये हुए उन्हें खराब होने से रोकने या उनके खराब होने की गति को कम करने की क्रिया को परिरक्षण कहते हैं। जैसे फलों का परिरक्षण जैम, जैली या जूस आदि बनाकर किया जा सकता है।

 

1 खाद्य परिरक्षण के सिद्धान्त

 

निम्नलिखित सिद्धान्तों का प्रयोग करने से खाद्य पदार्थों को परिरक्षित किया जा सकता है -

 

  • सूक्ष्म जीवाणु का विकास व गतिविधि को रोककर, जैसे खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने के लिए कम तापक्रम व रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करके, उन्हें लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। 

  • सूक्ष्म जीवाणु को नष्ट करके खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक संग्रहित किया जा सकता है। जैसे अधिक तापक्रम का प्रयोग व विकिरण (Irradiation) के द्वारा परिरक्षण करना । 

  • भोजन में आत्म अपघटन (self-decomposition) में देरी या रोकथाम द्वारा खाद्य पदार्थों को परिरक्षित किया जा सकता है। 
  • विशुद्ध रूप से रासायनिक प्रक्रिया में देरी द्वारा खाद्य पदार्थों को परिरक्षित किया जा सकता है। जैसे एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) के द्वारा खाद्य पदार्थ में ऑक्सीकरण (oxidation) की दर को कम किया जा सकता है। 
  • खाद्य एंजाइमों की क्रिया को नष्ट करके जो ब्लांचिंग (blanching) या उबालने के माध्यम से किया जा सकता है।

 

परिरक्षण के उद्देश्य 

  • खाद्य पदार्थों को जीवाणु और रासायनिक तत्वों से होने वाले नुकसान को रोकना अथवा कम करना। 
  • खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व, रंग व स्वरूप बनाये रखना। 
  • फल सब्जियों को बेमौसम में भी उपलब्ध करना।

 

आहार परिरक्षण का महत्व

 

  • फल एवं सब्जियाँ जिस मौसम में अधिकता में उपलब्ध होती हैं, उस समय उन्हें परिरक्षित कर वर्षभर उपलब्ध कराया जा सकता है। 
  • खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करके स्थानान्तरित करने से वे खराब नहीं होते तथा आसानी से दूसरे स्थानों पर पहुँचाए जा सकते हैं। 
  • खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक सुरक्षित रख, परिरक्षण की विधि के माध्यम से उन्हें अधिक समय तक उपयोग में लाया जा सकता है। 
  • खाद्य पदार्थों को परिरक्षित कर वितरण को बढ़ाया जा सकता है, जिससे वह खाद्य पदार्थ अधिक लोगों को उपलब्ध कराये जाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। 
  • खाद्य पदार्थ को परिरक्षित कर आहार में उन्हें सम्मिलित कर, उसमें भिन्नता लाई जा सकती है। 
  • फल एवं सब्जियाँ अपने मौसम में अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है, इस कारण वह सस्ती होती हैं। उन्हें उस मौसम में परिरक्षित कर धन की बचत करना भी सम्भव हो सकता है।

 

खाद्य परिरक्षण, प्रसंस्करण एवं भण्डारण |परिरक्षण का अर्थ परिभाषा सिद्धान्त उद्देश्य


खाद्य परिरक्षण, प्रसंस्करण एवं भण्डारण |परिरक्षण का अर्थ परिभाषा सिद्धान्त उद्देश्य

1 भोजन खराब होने के कारण

 

भोजन खराब होने के उपरान्त खाने योग्य नहीं रह जाता है। यह परिर्वतन खाने में निम्नलिखित कारणों से होता है। मुख्यतः

 

एंजाइम की क्रिया द्वारा उत्पन्न परिवर्तन-

 एंजाइम खाद्य पदार्थ में उपस्थित होते हैं एवं भोज्य पदार्थ में उपस्थित जीवाणु में भी पाये जाते हैं। भोजन में व्याप्त एंजाइम के कारण खाद्य पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन आते हैं। एंजाइम के प्रभाव सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही रूप में देखे जा सकते हैं, उदाहरण - केले में उपस्थित एंजाइम उसको पकाने में सहायक होते हैं परन्तु एक अवधि के बाद यही एंजाइम फल को खराब कर गला सकते हैं, जिससे वह केले को खाने के लिए अयोग्य बना देते हैं। एंजाइम की क्रिया के कारण फलों की सुगंध में कमी आने लगती है। एंजाइम 0°C से 60°C के बीच क्रिया करते हैं। इनकी क्रिया की दर तापमान पर निर्भर करती है। 37°C तापमान में इनकी क्रिया के लिए उपयुक्त माना जाता है परन्तु 37°C में सभी एंजाइम की क्रिया निष्क्रिय हो जाती हैं।

 

भौतिक परिवर्तन- 

खाद्य पदार्थ में ऑक्सीकरण (oxidation) की क्रिया निरन्तर होती रहती है जिससे उनके स्वरूप एवं रंग में परिवर्तन आ जाता है। फलों एवं सब्जियों में वाष्पीकरण (vapourization) की क्रिया द्वारा उनकी नमी घट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके भार में कमी आ जाती है। कभी-कभी अतिरिक्त दबाव या क्षति होने के कारण फलों एवं सब्जियों का कुछ भाग खराब हो जाता है, जिससे उसमें दाग पड़ जाते हैं।

 

रासायनिक परिवर्तन - 

विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप ही खाद्य पदार्थों में नकारात्मक परिवर्तन आते हैं। जैसे- दूध में अम्ल डालने के उपरान्त उसका केसीन जम जाता है। सूक्ष्म जीवाणु द्वारा परिवर्तन- सूक्ष्म जीवाणु जैसे खमीर, फफूँदी एक तरफ तो खाद्य पदार्थों पर खमीरीकरण की क्रिया करके लाभदायक पदार्थ (जैसे ब्रेड इत्यादि) बनाने में अपना योगदान देते हैं व वहीं दूसरी ओर कई जीवाणु खाद्य पदार्थों की शक्कर को, एल्कोहल में परिवर्तित करके उन्हें खाने के लिए अयोग्य बनाते हैं।

 

कीड़े एवं चूहों के कारण उत्पन्न परिवर्तन- 

इनके मल मूत्र से खाद्य पदार्थ खराब हो जाते हैं। चूहे अनाज खाकर उनकी बाहरी परत को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे अनाज में जीवाणु पनपने लगते हैं और वे आसानी से खराब होने लगते हैं।

 

धातु के सम्पर्क के कारण उत्पन्न परिवर्तन- 

कई धातु जैसे सीसा (lead), ताँबा (Copper) आदि के सम्पर्क में आने से भोजन विषाक्त बन जाता है।

 

इन सभी कारकों से यदि हमें खाद्य पदार्थों में होने वाली हानि को रोकना है, तो हमें परिरक्षण की विधि अपनानी चाहिए।

 

परिरक्षण करने की विधियाँ 

परिरक्षण की विधियों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है:

 

  • बैक्टीरीयोस्टैटिक विधि (Bacteriostatic method) 
  • बैक्टीरीसाइडल विधि (Bactericidal method)

 

1 बैक्टीरीयोस्टैटिक विधि (Bacteriostatic method)

 

इस विधि के उपयोग के दौरान सूक्ष्म जीवाणु खाद्य पदार्थों में अपनी वृद्धि और विकास करने में असमर्थ होते है। जैसे खाद्य पदार्थों का परिरक्षण नमक, चीनी व अम्ल के द्वारा करना, हिमीभूत करना (Freezing), प्रशीतन (Refrigeration )

 

प्रशीतन (Refrigeration)

 

  • इस विधि के अन्तर्गत भोज्य पदार्थों को 3°C से 5°C के तापक्रम में रखा जाता है। भोज्य पदार्थों के खराब होने का मुख्य कारण आर्द्रता और उष्णता होती हैं। खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने के लिए नमी (आर्द्रता) को हटाना अति आवश्यक होता है । परन्तु कुछ भोज्य पदार्थों को खाने योग्य बनाये रखने के लिए आर्द्रता बनाये रखना भी आवश्यक होता है। इसलिए उनके संरक्षण करने के लिए उनकी आर्द्रता के स्थान पर ऊष्णता को दूर करा जाता है। इसके लिए भोजन को ठंडे स्थान, बर्फ या रेफ्रीजरेटर में रखा जाता है। खाद्य पदार्थों का घर पर परिरक्षण करने का यह सबसे उत्तम साधन है। इस साधन में तापमान हिमांक (Freezing point) से ऊपर रहता है। फल एवं सब्जियाँ, माँस, पोल्ट्री, मछली, अण्डा, दूध एवं दुग्ध पदार्थ इस विधि द्वारा दो दिन से एक सप्ताह तक खाने योग्य बने रहते हैं। घर में अतिरिक्त बचा हुआ भोजन भी इस विधि द्वारा संरक्षित किया जा सकता है। प्रशीतन की विधि का कोल्ड स्टोरेज कक्ष में भी प्रयोग किया जाता है।

 

हिमीभूत करना (Freezing)

 

इस विधि के माध्यम से खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है। परिणामस्वरूप भोज्य पदार्थ का सड़ना भी रुक जाता | परन्तु इस विधि में न्यून तापमान की वजह से खाद्य पदार्थो में कभी- कभी हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। जैसे- सेब का अन्दर से भूरा होना। इस विधि के अन्तर्ग तापक्रम -18°C से -40°C तक रहता है जिस वजह से सूक्ष्म जीवाणु की वृद्धि तथा एंजाइम की क्रिया बहुत कम हो जाती है। अधिकतर शीघ्र खराब होने वाले भोज्य पदार्थों को इस विधि द्वारा लम्बे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है जिसमें उनका तापक्रम शीघ्रता से कम (quick freeze) किया जाता है।

 

निम्नलिखित के प्रयोग द्वारा भोज्य पदार्थ को हिमीभूत करा जा सकता है:

 

  • तरल नाइट्रोजन में डुबोकर । 
  • भोज्य पदार्थ को उस कौइल (coil) के सम्पर्क में रखकर जिसमें रेफ्रिजरेन्ट का प्रवाह बहता हो ।
  • ब्लासट फ्रीजिंग जिसके अन्तर्गत खाद्य पदार्थों में ठण्डी हवा का प्रवाह किया जाता है।

 

हिमीभूत भोज्य पदार्थों को जब सामान्य तापमान में लाया जाता है तो वे अपनी ताजगी एवं स्वरूप में यथावत लौट जाते हैं। इस विधि में भोज्य पदार्थ के भीतर छोटे-छोटे बर्फ के कण बनते हैं, कई सूक्ष्म जीवाणु इतने कम तापमान में भी जीवित बच जाते हैं तथा उपयुक्त तापमान मिलने पर क्रियाशील हो जाते हैं एवं भोज्य पदार्थों को खराब कर सकते हैं। हिमीभूत खाद्य पदार्थों -5°C से कम तापमान पर रखा जाना चाहिए। साग भाजियों को इस विधि द्वारा परिरक्षित करने से पूर्व ब्लांच (Blanch) किया जाना चाहिए जिससे उसमें उपस्थित एंजाइम नष्ट हो जाएं।

 

फ्रीज़ ड्राइंग (Freeze Drying)

 

  • इस प्रक्रिया में भोज्य पदार्थ को ठण्डे वातावरण में जमा दिया जाता है तथा उसमें उपलब्ध पानी को वैक्यूम में बाहर निकाल दिया जाता है। इस तरह से पानी बिना तरल अवस्था में आये वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया से भोज्य पदार्थ अपना स्वाभाविक स्वाद न खोते हुए अपनी प्राकृतिक अवस्था में परिरक्षित हो जाते हैं। इस तरह के परिरक्षित भोजन को प्लास्टिक एवं एलुमिनियम फोइल में नाइट्रोजन की उपस्थिति में पैक किया जाता है जिसे सामान्य तापमान में भी संरक्षित किया जा सकता है। हरी मटर, आलू इस विधि द्वारा संरक्षित किए जा सकते हैं।

 

निर्जलीकरण (Dehydration)

 

  • इस विधि के अन्तर्गत खाद्य पदार्थों की नमी को सुखाकर अधिक समय तक सुरक्षित रखा जाता है। खाद्य पदार्थों में जलांश की अधिक मात्रा होने पर हानिकारक जीवाणु की वृद्धि हो जाती है, जिसकी वजह से उन्हें लम्बे समय तक परिरक्षित नहीं किया जा सकता। इसलिए खाद्य पदार्थ को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए खाद्य पदार्थों में उपस्थित जलांश को निष्कासित करना आवश्यक होता है। किसी भी खाद्य पदार्थ में सड़न को रोकने के लिए नमी 12 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। निर्जलीकरण विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है।

 

धूप में सुखाना (Sun drying)- 

  • यह खाद्य पदार्थ सुखाने की सबसे प्राचीन व सर्वोत्तम विधि है। इस विधि के अन्तर्गत खाद्य पदार्थों को सीधे सूर्य की किरणों के द्वारा सुखाया जाता है। जैसे आलू के पापड़, आम का अमचूर सब्जी व फलों को आधा सेन्टीमीटर मोटे टुकड़ों में काटकर धागे अथवा तार में पिरोकर सुखाना उत्तम होता है। फलों को सुखाते समय यह ध्यान देना चाहिए कि वह अत्यधिक पके न हों अन्यथा खराब होने की सम्भावना बढ़ जाती है। फलों को टुकड़े करके सुखाना चाहिए, छोटे रसयुक्त फलों को साबुत सुखाया जाता है। सेब व नाशपाती को काटकर सुखाना चाहिए परन्तु ये दोनों काटने के पश्चात भूरे हो जाते हैं, इसलिए इन्हें काटकर पानी में (12 ग्राम नमक, 2 कि0ग्रा0 जल अनुपात में डालकर) लगभग 10 मिनट तक भिगो कर रखना चाहिए। सब्जियों को अधिकतर कच्चा सुखाया जाता है, यदि उन्हें उबलते हुए पानी में 1 से 2 मिनट डालकर ब्लांच कर फिर ठंडे पानी से धोकर सुखाया जाए तो वे अच्छी तरह से सूखती हैं तथा उनका रंग भी बना रहता है। परिस्थितियों के अनुसार सब्जियों को सुखाने में 2-3 घंटे से लेकर 2-3 दिन तक का समय लग सकता है। इससे अधिक समय में सब्जियाँ झुलस जाती हैं। सब्जियों को ट्रे में रखकर समय-समय पर पलटते रहना चाहिए। सूख जाने पर उन्हें डिब्बे में बन्द करके रखना चाहिए।

 

स्मोकिंग (Smoking)-

  • इस विधि द्वारा मुख्यतः माँस व मछली को परिरक्षित किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत विशेष प्रकार की लकड़ियों का धुँआ एकत्रित किया जाता है जिसमें भोज्य पदार्थों को रखा जाता है। धुएँ से खाद्य पदार्थों से नमी निष्कासित हो जाती है तथा उन्हें खराब होने से बचाती है। इस विधि से खाद्य पदार्थों में एक विशेष प्रकार की गंध आ जाती है।

 

मैकेनिकल ड्राईंग- 

  • इस विधि में खाद्य पदार्थ को मशीनों द्वारा उपयुक्त तापमान पर सुखाया जाता है। इस विधि में समय कम लगता है एवं खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है। यह विभिन्न उपकरण जैसे डीहाईड्रेटर, रोलर ड्रायर, स्प्रे ड्रायर के माध्यम से किया जाता है।

 

डीहाईड्रेटर- 

  • इस उपकरण से खाद्य पदार्थ का तापमान व आर्द्रता को नियंत्रित किया जाता है। परन्तु खाद्य पदार्थों का रंग स्वरूप, बनावट व स्वाद पहले की तरह बने रहते हैं। इस विधि से पापड़, मटर, प्याज़, आलू की पतली सतह काटकर धातु की ट्रे डीहाईड्रेटर में रखकर सुखाया जाता है।

 

रोलर ड्राईंग- 

  • इस विधि में बारीक पिसे हुए तथा धुले हुए खाद्य पदार्थ की पतली परत ग परिक्रमी ड्रम ( hot revolving drum) पर लगाई जाती है तथा गर्म हवा प्रवाहित की जाती है जिससे खाद्य पदार्थ सूख कर पाउडर बन जाता है। जैसे- दूध का पाउडर, अंडे का पाउडर।

 

स्प्रे ड्राईंग- 

  • इस विधि में बारीक पिसा तथा धुला खाद्य पदार्थ ड्रायर के कक्ष में स्प्रे किया जाता है, जहाँ गर्म हवा होती है। इस क्रिया से खाद्य पदार्थ अपनी आर्द्रता को खोकर पाउडर बन जाते हैं। जैसे कॉफी, दूध का पाउडर।

 

खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने में अन्य रासायनिक पदार्थों का प्रयोग

 

खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने के लिए मुख्यतः पोटेशियम मैटाबाईसल्फाईट ( KMS), बेनजोईक एसिड नामक पदार्थों का प्रयोग होता है। परन्तु इनके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा इनकी ज्यादा मात्रा शरीर में हानिकारक प्रभाव भी डाल सकती है।

 

यह जीवाणु की कोशिकाओं में क्रिया करके उनकी वृद्धि को रोकते हैं, साथ ही साथ यह एक एंटीऑक्सीडेन्ट (Antioxidant) की भांति भी कार्य करते हैं।

 

नमक व चीनी का प्रयोग

 

  • इस विधि द्वारा अधिकतर फल व सब्जियों को परिरक्षित करते हैं। सब्जियों को परिरक्षित करने के लिए उन्हें नमक के घोल में डुबाया जाता है या उन पर नमक रगड़ा जाता है। फलों को संरक्षित करने के लिए उन्हें चीनी के सान्द्र घोल में डुबाया जाता है। यह विधि परासरण ( osmosis) के सिद्धान्त पर केन्द्रित है। जिसमें कम सांद्रता से अधिक सांद्रता की तरफ द्रव्य का स्थानान्तरण होता है परिणामस्वरूप परिक्षित होने वाले खाद्य पदार्थों की कोशिकाओं में व्यापत आर्द्रता कम हो जाती है जिससे वे सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं। इस कारण जीवाणुओं को पर्याप्त आर्द्रता न मिलने से अनकी वृद्धि रुक जाती है। अचार को परिरक्षित करने के लिए नमक की मात्रा 10 से 15 प्रतिशत होनी चाहिए। जैम, जैली और मार्मलेड बनाने के लिए चीनी की मात्रा फल के पल्प का लगभग 55 प्रतिशत होनी चाहिए। फलों के रस के लिए चीनी 68 प्रतिशत होनी चाहिए।

 

अम्ल का प्रयोग

 

  • अम्ल की उपस्थिति में जीवाणु जीवित नहीं रह पाते हैं। सिरका, सिटरिक अम्ल, अचार, चटनी व सॉस को परिरक्षित करने में मदद करते हैं। अम्ल फलों के जूस, जैम व जैली को खराब होने से बचाते हैं।

 

तेल, मसाला और मोम की परत

 

  • खाद्य पदार्थ जैसे अचार, जैम, जैली को संग्रहित करते समय बोतल व जार के ऊपर तेल या मोम की परत लगायी जाती है। यह सभी तत्व खाद्य पदार्थों के ऊपर परत बनाते हैं, जिसकी वजह से नमी, हवा व ऑक्सीजन खाद्य पदार्थों के सम्पर्क में नहीं आते हैं परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों पर जीवाणु पनप नहीं पाते इस प्रकार यह खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाते हैं। इस विधि का प्रयोग अचार (अचार के उपर तेल की एक परत लगाने) को परिरक्षित करने के लिए किया जाता है।

 

  • हल्दी, मिर्च व हींग का उपयोग स्वाद व महक प्रदान करने के लिए तो होता ही है साथ ही साथ यह भी जीवाणु की वृद्धि रोकने में मदद करते हैं। जैम व जैली को परिरक्षित करने के लिए मोम की परत लगायी जाती है जिससे उसे लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

 

 बैक्टीरीसाइडल विधि (Bactericidal Methods)

 

इन विधियों का मुख्य उद्देश्य भोज्य पदार्थों में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु का नाश करना होता है, जैसे डब्बाबन्दी से (canning), विकिरण से (irradiation ) । अत्यधिक ताप एंजाइम की क्रिया को रोकता है एवं जीवाणुओं की वृद्धि व विकास को रोक कर खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाता है।

 

उच्च ताप की विधियाँ

 

  • पाश्चरीकरण (Pastuerization) 100°C से नीचे ताप- यह क्रिया उन खाद्य पदार्थों के परिरक्षण के लिए प्रयोग होती है, जिस पर अधिक ताप से अनचाहे परिवर्तन उत्पन्न होते हैं। यह मुख्य रूप से दूध व दूध से बने पदार्थों के लिए प्रयोग की जाती है। इस विधि के अन्तर्गत दूध को पहले 72°C ताप पर 15 सेकेन्ड तक गरम किया जाता है, तत्पश्चात् 10°C या उससे कम में ठंडा कर उसी ताप पर संग्रहित किया जाता है। इस प्रक्रिया से सभी प्रकार के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस विधि से दूध व उसके पदार्थों को एवं बीयर को लम्बे समय तक परिरक्षित रखा जा सकता है।

 

उबालना (Boiling) 100°C ताप - 

  • यह विधि खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने की घरेलू विधि है। इस विधि में खाद्य पदार्थों को पानी में 100°C तक उबाला जाता है। जैसे चावल को पकाना, मीट पकाना। दूध को भी घर में इसी विधि द्वारा परिरक्षित रखा जाता है।

 

डब्बाबन्दी (Canning) 100°C से ऊपर तापमान- 

  • इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थों की डब्बाबंदी होती है। यह विधि इस सिद्धान्त पर केन्द्रित है कि उच्च तापमान होने के कारण जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाती है और वे नष्ट जाते हैं। इस विधि द्वारा हरी मटर, भिण्डी, कम अम्लीय खाद्य पदार्थ जैसे मछली, मीट व सब्जी को परिरक्षित किया जाता है। इन्हें नमी रहित डिब्बे में प्रेशर कुकर या ऑटोक्लेव (autoclave) की मदद से 100°C से अधिक ताप संरक्षित किया जाता है, जो ज्यादा से ज्यादा सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता को रोकने में सहायक होता है तथा बचे हुए जीवाणु की क्रिया डिब्बे के अन्दर रुक जाती है। डब्बाबंदी किए गए पदार्थों को ठंडे स्थान पर रखना चाहिए तथा उन्हें एक या दो साल के भीतर प्रयोग में चाहिए।

 

रेडिएशन विकिरण (Irradiation)- 

  • यह विधि मुख्यतः पश्चिमी देशों में प्रयोग में लाई जाती है। इसके अन्तर्गत ब्रैड, केक, माँस व पनीर परिरक्षित किये जाते हैं। खाद्य पदार्थों के पैकेट बन्द कर के पराबैगनी किरणों (ultra violet rays) का प्रयोग किया जाता हैं। इन किरणों के कारण उपस्थित जीवाणु की क्रिया या तो कम हो जाती है या जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक परिरक्षित रखा जा सकता है।

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