जलमण्डल महासागरीय नितल | महासागरीय नितल के प्रकार | HYDROSPHER in Hindi
जलमण्डल महासागरीय नितल , महासागरीय नितल के प्रकार
जलमण्डल (HYDROSPHERE)
ग्लोब पर स्थल व सागर का वितरण पृथ्वी के धरातल के 71% भाग अर्थात् 35,71,00,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में पानी भरा में है, जिसे जलमण्डल कहते हैं इसमें सागर तथा महासागर सम्मिलित हैं. यह पृथ्वी के तीन गुने भाग में है इसमें 22 करोड़ धन मीटर जल भरा है . यह जल गैसों के ठंडा होने से बना है स्थल भाग में भी जल इसी जल मण्डल से प्राप्त होता है. उत्तरी गोलार्द्ध में जलमण्डल तथा स्थलमण्डल लगभग बराबर है, परन्तु दक्षिणी गोलाई में जलमण्डल स्थलमण्डल से 15 गुना अधिक है.
विश्व के महासागर एवं सागर
विश्व में स्थल और जल के विस्तार को देखने से ज्ञात होता है कि विश्व में 29% स्थल और 71% जल का भाग है. इस 71% जल मण्डल के 88.9% भाग को - महासागर घेरे है और शेष 11.1% भाग
(1) प्रशान्त महासागर (Pacific Ocean) -
यह महासागर विश्व का सर्वाधिक विशाल महासागर है, जो पृथ्वी के लगभग आधे भाग में फैला हुआ है. इसका क्षेत्रफल 16.53,84,000 वर्ग किलोमीटर है.. इस महासागर का आकार एक बड़े त्रिभुज के समान है जिसका शीर्ष उत्तर में बेरिंग जल सन्धि है और आधार दक्षिण में अण्टार्कटिका महाद्वीप है. इसकी भुजाएँ सीधी न होकर टेढ़ी-मेढ़ी है विश्व के महासागरों में सबसे गहरा स्थान इसी महासागर में फिलीपीन्स के निकट मेरियाना गर्त 11.033 मीटर गहरा है.
(2) अटलाण्टिक महासागर-
अट लाण्टिक महासागर या आन्ध्र महासागर या अन्ध महासागर प्रशान्त महासागर से लगभग आधा है. इसका क्षेत्रफल 8,22,17,000 वर्ग किलोमीटर है. अटलाण्टिक महासागर की आकृति अंग्रेजी के 'S' अक्षर के समान है.अतः स्वाभाविक रूप से यह टेढ़ा-मेढ़ा है. इसका सर्वाधिक गहरा स्थान पुर्टोरिको खड्ड 9,200 मीटर गहरा है.
(3) हिन्द महासागर -
हिन्द महासागर का क्षेत्रफल और विस्तार प्रशान्त और अटलाण्टिक महासागर से छोटा है, इसका क्षेत्रफल 7,34,81,000 वर्ग किमी. है. महासागर उत्तर में स्थल से घिरा है. इसका तटीय भाग प्राचीन पठारों से सम्बन्धित रहा है इसकी गहराई उपर्युक्त दोनों महासागरों से कम है. इसका सर्वाधिक गहरा चर्चित भाग आस्ट्रेलिया के उत्तरी-पश्चिमी सुण्डागर्त 8,047 मीटर गहरा है.
(4) आर्कटिक महासागर -
उत्तरी ध्रुव महासागर अर्थात् आर्कटिक महासागर सामान्यतया वृत्ताकार है. यह प्रशान्त महा सागर के बारहवें भाग के बराबर है. इसका क्षेत्रफल 1.40,56,000 वर्ग किमी. है. इसका सबसे गहरा स्थान 5,450 मीटर है, कठोर शीत के कारण यहाँ बर्फ जमी रहती है.
महासागरीय नितल ( OCEAN FLOOR)
सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग तीन चौथाई भाग में जलमण्डल का विस्तार है. वेगनर के अनुसार धरातल के 71-7% भाग पर जल और 28.3% भाग पर स्थल और क्रेमेल के विचारानुसार यह प्रतिशत क्रमशः 70-8% एवं 29-2% है. विद्वानों के अनुसार यदि जल मण्डल को सम्पूर्ण जल को स्थल मण्डल पर समतल धरातल बनाकर रख दिया जाए तो उसके ऊपर लगभग तीन किलोमीटर गहरा सागर लहराने लगेगा.
सम्पूर्ण जलमण्डल के अन्तर्गत सागर, महासागर, खाड़ियाँ, झील आदि सम्मिलित की जाती हैं. जल मण्डल की गहराई तथा स्थल मण्डल की ऊँचाई को उच्चतादर्शी मीटर वक्र (Hypsographic Metric चार भागों में विभाजित किया जा सकता है.
(i) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
(ii) महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope)
(iii) गहरे सागरीय मैदान (Deep Sea Plain)
(iv) महासागरीय गर्त (Ocean
Deeps )
(1) महाद्वीपीय मग्नतट-
महाद्वीप महा सागरीय तलों से एकदम प्रारम्भ नहीं हो जाते हैं. तलों और महाद्वीपों के मध्य काफी विस्तृत कम गहरा जलमग्न पटल मिलता है. इस कम गहरे जलमग्न पटल को महा द्वीपीय मग्नतट कहते हैं. मग्नतट पर जल की औसत गहराई 1000 फेदम और उसका ढलांश 1° से. 3° तक होता है मग्नतटों की चौड़ाई पर तटीय स्थलीय उच्चावच का नियन्त्रण रहता है जहाँ पर तट से लगे उच्च पर्वतीय भाग होते हैं. यहाँ पर मग्नतट संकरे होते हैं उदाहरण के तौर पर एण्डीज पर्वतों के कारण ही दक्षिणी अमरीका का महाद्वीपीय गन्गातट अन्त में काफी संकरा होता चला गया है. प्राय: विस्तृत मग्नतट हिम नदीय तटों से सम्बन्धित पाए जाते हैं. जैसे उत्तरी साइबेरिया, पीला सागर, स्याम की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी के मग्नतट, लेकिन सभी बड़ी नदियों के मम्मट चौड़े नहीं होते हैं जैसे मिसीसिपी नदी डेल्टा के समीप कोई चौडा भग्नसट नहीं है.
महाद्वीप मग्नतट प्रायः
कम गहरे होते हैं. 100 फैदम से अधिक गहराई नहीं पाई जाती है. सूर्य की किरणें इतनी
गहराई तक सरलता से प्रवेश कर लेती हैं सूर्य के प्रकाश और गर्मी के फलस्वरूप यहाँ
सामुद्रिक वनस्पति और जीवों की अधिकता रहती है..
मग्नतटों की उत्पत्ति के
बारे में कई मान्यताएँ हैं. कुछ विद्वानों के अनुसार मग्नतट की रचना समुद्र तल के
ऊपर उठने अथवा भूमि के नीचे खिसक जाने से हुई है. कुछ विद्वानों के अनुसार लहरें
और धाराएँ भूमि को काटकर इस भाग की रचना करती हैं. कुछ विद्वानों की मान्यता है कि
बहुत से मग्नतटों की उत्पत्ति हिमयुग में बर्फ की चादरों और हिम नदियों के पीछे
हटते रहने और समुद्र तल में परिवर्तन के कारण हुई है.
(2) महाद्वीपीय मग्नढाल (Conti nental Slope ) -
महाद्वीपीय मग्नतट के अन्तिम किनारे से ही मग्नढाल प्रारम्भ हो जाता है अर्थात् महाद्वीपीय मग्नतट तथा महासागरीय मैदान के मध्य का तेज ढालयुक्त भाग मग्नढाल कहलाता है जिसका ढाल विभिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न पाया जाता है. महाद्वीपीय मग्नढाल औसत ढाल 5° तक होते हैं. लेकिन विविधता के आधार पर भारत में कालीकट के तट पर 5° से 15° कोण वाले मग्नढाल भी हैं. स्पेन के तट पर ढाल का कोण 36° है. मग्नढाल की गहराई 100 से 1700 फैदम तक मानी जाती है, परन्तु कहीं-कहीं गहराई 5000 दम तक भी पायी गयी है. कुल सागरों के क्षेत्र को देखते हुए महाद्वीपीय मग्नढाल का क्षेत्र 8.5% है. प्रशान्त महासागर में 71%, अटलाण्टिक महासागर में 12-4% और हिन्द महासागर में 6.5%, मग्नढाल पाए जाते हैं.
(3) गम्भीर सागरीय मैदान (Deep Sea Plain ) -
महाद्वीपीय मग्नढाल के बाद गम्भीर सागरीय मैदान प्रारम्भ हो जाते हैं. ये मैदान समुद्रों में वैसे ही व्यापक रूप में फैले हैं जैसे स्थल भाग पर चौरस मैदान सागरीय मैदान सम्पूर्ण सागरीय क्षेत्रफल के 75.9% भाग पर पाए जाते हैं. प्रशान्त महासागर में 80.3%, हिन्द महासागर में 80.1% तथा अटलाण्टिक महासागर में 54.9% इन मैदानों का क्षेत्र है. इनकी औसत गहराई 2000-3000 फैदग तक होती है. इनमें ढाल बहुत कम पाया जाता है. नदियों द्वारा लाया गया मलवा इन भागों तक नहीं पहुँच पाता है. एल्पेट्रास (Albatross) ने ध्वनिकरण यंत्र द्वारा यह पता लगाया कि गम्भीर सागरीय मैदान काफी उबड़-खाबड़ होते हैं, समुद्री पठार तथा लम्बी आड़ी तिरछी कटके (Ridges) यत्र तत्र मिलती हैं ऐसी कटकें कहीं-कहीं समुद्र तल से ऊपर निकली होती हैं जो द्वीपों का निर्माण करती हैं. जापान द्वीप इसी प्रकार की कटक के ऊँचे उठे हुए भाग हैं. गम्भीर सागरीय मैदानों का तल किसी प्रकार की कठोर शैलों द्वारा निर्मित नहीं है. इन मैदानी तलों पर अथाह रूप से समुद्री जीव जन्तुओं के अस्थिपिंजर, वनस्पतियों, कीचड़, कई प्रकार के पंक तथा ज्वाला मुखियों की राख जमा होती है..
(4) महासागरीय गर्त (Ocean Deeps ) -
महासागरीय गर्त महासागरों के अत्यधिक गहरे भाग हैं जो महासागरीय नितल के लगभग 7% भाग पर पाए जाते हैं. इनका विस्तार महासागरीय तलियों में यत्र-तत्र पाया जाता है जो किनारों पर एकदम ढालू हुआ करते हैं. स्थिति तथा बनावट के आधार पर ये गर्त महाद्वीपीय तटों के सहारे पर्वतों की मेखलाओं के समान पाए जाते हैं. थे गर्त अधिकांशतः सागरों के मध्य भाग में न मिलकर मग्नतट के सहारे पाए जाते हैं. उदाहरणार्थ प्रशान्त महासागर के दोनों किनारों पर ऐसे अनेक गर्त विद्यमान हैं. ये गर्त घोर अंधकार और अत्यन्त शीतल जल से पूर्ण रहते हैं. इन गर्तों की गहराई 3000 से 5000 फैदम तक पाई जाती है. विश्व का सबसे गहरा गर्त फिलीपाइन्स द्वीप के निकट है जो मैरियाना गर्त के नाम से प्रसिद्ध है. विश्व के कुल सागरों में लगभग 57 गत की खोज की जा चुकी है. प्रशान्त महासागर में इन गतों की संख्या 32 है, अन्ध महासागर में 19 तथा हिन्द महासागर में केवल 6 हैं.
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