अमोघवर्ष - I के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी ) |Amoghavarsha 1 Fact in Hindi

 अमोघवर्ष - I के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी )

अमोघवर्ष - I के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी ) |Amoghavarsha 1 Fact in Hindi



अमोघवर्ष - I के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी ) 

अमोघवर्ष एक राष्ट्रकूट राजा थाजो स. 814 ई. में गोविन्द तृतीय की मृत्यु हो जाने पर मान्यखेट के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ और इसने सम्भवतः 64 वर्ष तक राज किया. यह गोविंद तृतीय का पुत्र था.

 
अमोघवर्ष - I प्रमुख तथ्य

 

  • अमोघवर्ष के किशोर होने के कारण पिता ने मृत्यु के समय करकराज को शासन का कार्य सँभालने के लिए सहायक नियुक्त कियाकिन्तु मंत्री और सामंत धीरे-धीरे विद्रोही और असहिष्णु होते गए. साम्राज्य का गंगवाडी प्रांत स्वतंत्र हो गया और वेंगी के चालुक्यराज विजयादित्य द्वितीय ने आक्रमण कर अमोघवर्ष को गद्दी से उतार तक दिया.

 

  • अमोघवर्ष करकराज की सहायता से उसने राष्ट्रकूटों का सिंहासन फिर स्वायत्त कर लियाकिन्तु इससे राष्ट्रकूटों की शक्ति फिर भी लौटी नहीं और उन्हें बार-बार चोट खानी पड़ी.

 

  • अमोघवर्ष को पूर्वी चालुक्यों एवं गंगों से लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी. वह योग्य शासक होने के साथ-साथ जिनसेन 'आदिपुराणके रचनाकारमहावीरचार्य गणितसार-संग्रह के रचनाकार एवं सक्तायाना के रचनाकार जैसे विद्धानों का अमोघवर्षआश्रयदाता भी था.

 

  • अमोघवर्ष धार्मिक और विद्याव्यसनी था उसने स्वयं ही कन्नड़ के प्रसिद्ध ग्रंथ 'कविराज मार्गऔर 'प्रश्नोत्तरमालिकाकी रचना की.

 

  • अमोघवर्ष ने ही 'मान्यखेटको राष्ट्रकूट की राजधानी बनाया. तत्कालीन अरब यात्री सुलेमान ने  अमोघवर्ष की गणना विश्व के तत्कालीन चार महान शासकों में की थी. 

  • वह जैन मतावलम्बी होते हुए भी हिन्दू देवी देवताओं का सम्मान करता था. 
  • अमोघवर्ष महालक्ष्मी का अनन्त भक्त था. 
  • उसके संजन ताम्रपत्र से समकालीन भारतीय राजनीति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता हैयद्यपि उसमें स्वयं उसकी विजयों का वर्णन अतिरंजित है. वास्तव में अमोघवर्ष के युद्ध प्रायः उसके विपरीत ही गए थे तथा उसके इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि उसने एक अवसर पर देवी को अपने बाएं हाथ की उँगली चढ़ा दी थी. उसकी तुलना शिवदधीचि जैसे पौराणिक व्यक्तियों से की जाती है. 
  • राष्ट्रकूट साम्राज्य में उसके विरोधियों की भी कमी नहीं थी. इस स्थिति से लाभ उठाकर न केवल अनेक अधीनस्थ राजाओं ने स्वतंत्र होने का प्रयत्न कियाअपितु विविध राष्ट्रकूट सामन्तों और राजपुरुषों ने भी उसके विरुद्ध षडयंत्र आरम्भ कर दिए. अमोघवर्ष का मंत्री करकराज था. अपने सामन्तों के षड्यंत्रों के कारण कुछ समय के लिए अमोघवर्ष को राजसिंहासन से भी हाथ धोना पड़ा. पर करकराज की सहायता से उसने राजपद पुनः प्राप्त किया.
  • आंतरिक अव्यवस्था के कारण अमोघवर्ष राष्ट्रकूट साम्राज्य को अक्षुण्ण रख सकने में असमर्थ रहा और चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों की निर्बलता से लाभ उठाकर एक बार फिर अपने उत्कर्ष के लिए प्रयत्न किया. इसमें उन्हें सफलता भी मिली. 
  • अमोघवर्ष के शासनकाल में ही कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार राजा मिहिरभोज ने अपने विशाल साम्राज्य का निर्माण किया. और उत्तरी भारत से राष्ट्रकूटों के शासन का अन्त कर दिया. गुर्जर प्रतिहार लोग किस प्रकार कन्नौज के स्वामी बने और उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की. यह सर्वथा स्पष्ट है कि अमोघवर्ष के समय में राष्ट्रकूट साम्राज्य का अपकर्ष प्रारम्भ हो गया था. 
  • अमोघवर्ष ने 814 से 878 ई. तक शासन किया. अपने अंतिम दिनों में राजकार्य मंत्रियों और युवराज पर छोड़ वह विरक्त रहने लगा था तथा सम्भवतः उसकी मृत्यु 878 ई. में हुई.

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