राज्य के कार्य के सिद्धान्त उदारवादी, समाजवादी, मार्क्सवादी | उदारवाद के मूल सिद्धान्त उद्देश्य एवं कार्य | Liberal Theory of State Functions
राज्य के कार्य के सिद्धान्त उदारवादी, समाजवादी, मार्क्सवादी
राज्य के कार्यों के उदारवादी सिद्धान्त
1 उदारवाद के मूल सिद्धान्त
2 उदारवादी राज्य के उद्देश्य एवं कार्य
- 1 परम्परागत उदारवाद
- 2आधुनिक लोकतांत्रिक उदारवाद
3 उदारवाद की आलोचना
.4 उदारवाद का प्रभाव महत्व
राज्य के कार्यों के समाजवादी सिद्धान्त
1 समाजवादी धारणा के अनुसार राज्य का कार्यक्षेत्र
2 समाजवाद की आलोचना
3 समाजवाद की उपयोगिता
राज्य के कार्यों के मार्क्सवादी सिद्धान्त
1 मार्क्सवादी राज्य के कार्य
2 मार्क्सवादी राज्य
की आलोचना
राज्य के कार्यों के उदारवादी सिद्धान्त
उदारवादी विचारधारा एक
निश्चित एवं क्रमबद्ध विचारधारा नहीं है। वास्तव में यह कोई एक दर्शन नहीं वरन्
अधिक विचारों का सम्मिश्रण है। यह एक जीवन दृष्टि, जीवन क्रम तथा मस्तिष्क
की एक प्रवृत्ति है जिसके अन्तर्गत अनेक मान्यतायें आदर्श एवं समस्यायें हैं। ऐसी
स्थिति में उदारवाद की व्याख्या स्वाभाविक रूप से एक कठिन कार्य हो जाता है।
विभिन्न विद्वानों के विचार इस सन्दर्भ में भिन्न-भिन्न हैं। कुछ लोग उदारवाद को
व्यक्तिवाद का पर्यायवाची मानते हैं। परन्तु सोबाइन जैसे विद्वान दोनों में भेद
मानते हैं। इसी प्रकार उदारवाद को लोकतंत्र के साथ भी जोड़कर देखा जाता है। कुछ
विद्वान उदारवाद को लोकतंत्र एवं व्यक्तिवाद से जोड़कर देखते हैं। परन्तु उदारवाद
मात्र केवल यही नहीं है। व्यक्ति राज्य पारस्परिक सम्बन्ध के विषय पर अब तक दो
प्रकार की विचारधाराओं का प्रतिपादन किया गया है। पहली विचारधारा के अनुसार राज्य
समस्त मानवीय जीवन का केन्द्र तथा अपने आप में साध्य है परन्तु दूसरी विचारधारा
व्यक्ति को ही साध्य मानती है। उदारवाद दूसरी विचारधारा से सम्बन्धित है। इसके लिए
हमें उदारवाद के मूल सिद्धान्तों को समझना होगा। इसके उपरांत ही हम राज्य के उदारवादी
कार्य क्षेत्र का अध्ययन करेंगे।
1 उदारवाद के मूल सिद्धान्त -उदारवाद के मूल सिद्धान्त इस प्रकार हैं:
1.मानव विवेक में विश्वास -
उदारवादी विचारधारा मानव विवेक एवं बुद्धि में विश्वास रखती है। मानव विवेक में
विश्वास रखकर ही मानव को आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो सकता है। उदारवादी मानते
हैं कि भावना पर विवेक को प्रधानता दी जानी चाहिये जिससे मनुष्य अपने व्यापक हितों
के सन्दर्भ में उचित निर्णय ले सके।
2. इतिहास एवं परम्पराओं का विरोध -
चूँकि उदारवाद मानवीय विवेक में विश्वास करता है, वह किसी भी ऐसे
विचार, संस्था या सिद्धान्त को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है
जो बुद्धिसंगत न हो। उदारवादियों का मानना है कि यदि प्रगति के लिए इतिहास तथा
परम्पराओं का विरोध किया जाना आवश्यक है, तो उसे अवश्य किया जाना
चाहिये। यही कारण है कि इंग्लैण्ड के उपयोगितावादी उदारवादियों ने उपयोगिता के नाम
पर पहले से चली आ रही व्यवस्था तथा परम्पराओं का खण्डन किया।
3. मानवीय स्वतंत्रता की धारणा में विश्वास -
उदारवादी विचारधारा मानवीय स्वतंत्रता की धारणा में विश्वास
करती है। स्वतंत्रता का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के जीवन पर किसी स्वेच्छाचारी
सत्ता का नियंत्रण न हो तथा ऐसा वातावरण हो कि व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार आचरण
सके। वास्तव में स्वतंत्रता मानव का जन्म सिद्ध अधिकार है।
4 .व्यक्ति साध्य तथा समाज एवं राज्य साधन
उदारवादियों का मूल आधार व्यक्ति है औ व्यक्ति को साध्य मानकर
ही आगे बढ़ते हैं। समाज तथा राज्य तो साधन मात्र है तथा उनका महत्व उस सीमा तक है
जहाँ तक वे इस लक्ष्य की पूर्ति में सहायक होते हैं।
5.समाज एवं राज्य कृत्रीम संगठन -
उदारवादी समाज एवं राज्य को प्राकृतिक नहीं वरन् कृत्रीम मानते हैं तथा
उनका विचार है कि इनका निर्माण व्यक्तियों के द्वारा अपनी कुछ विशेष आवश्यकताओं का
पूरा करने के लिए ही किया गया। व्यक्ति अपने आप में पूर्ण है, समाज तथा राज्य
का संगठन उनके द्वारा अपनी निश्चित योजना के अनुसार किया गया है तथा व्यक्ति अपनी
सुविधानुसार समाज तथा राज्य के संगठन में संशोधन परिवर्तन कर सकता है।
6 . व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों में विश्वास -
उदारवादियों का विश्वास व्यक्तियों के प्राकृतिक अधिकारों
में होता है जो जन्मजात मथा अनुल्लघंनीय होते हैं। लॉक का कथन है कि इन अधिकारों
का सृजन किसी मानवीय संस्था समाज या राज्य द्वारा नहीं किया गया है, वरन् ये तो इन
संस्थाओं के अस्तित्व के पूर्व से विद्यमान रहे हैं। प्रमुख प्राकृतिक अधिकार जीवन, स्वतंत्रता तथा
अधिकार है।
7. धर्मनिरपेक्ष राज्य का आदर्श
उदारवाद धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श में विश्वास करता है। - जिसके अनुसार
राज्य का कोई धर्म नहीं होना चाहिये, राज्य के द्वारा अपने
नागरिकों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिये तथा धर्म के आधार पर
अपने नागरिकों से किसी प्रकार का पक्षपात नहीं किया जाना चाहिये। आधुनिक सम्प्रभु
राज्यों की प्रमुख विशेषता धर्म निरपेक्षता की मानी जाती है।
8 . शासन की स्वेच्छाचारिता का विरोध तथा कानून के शासन पर बल -
उदारवाद अपनी प्रकृति से ही शासन की स्वेच्छाचारिता का विरोध करता है तथा इस बात पर बल देता है कि शासन में व्यक्ति की नहीं वरन् कानून की प्रधानता होनी चाहिये शासक वर्ग भी इन कानूनों को मानने के लिए उतनी ही सीमा तक बाध्य होना जितनी सीमा तक शासित वर्ग। यदि शासक वर्ग मानमानी करता है और शासक जनता के हितों का ध्यान नहीं रखता तो ऐसी स्थिति में जनता को शासन के विरूद्ध विद्रोह करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। उदारवादी शासन में परिवर्तन शान्तिपूर्ण एवं वैधानिक उपायों द्वारा किया जाना चाहिये। इस सम्बन्ध में 1688 की इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रांति महत्वपूर्ण है।
9. लोकतंत्र का समर्थन
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का विचार उदारवादियों की एक = महत्वपूर्ण सोच है। वे इस बात पर बल देते हैं कि व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा का सर्वोच्च उपाय यही हो सकता है कि शासन की शक्ति स्वयं जनता के हितों में हो तथा शासन शक्ति का दुरूपयोग किसी व्यक्ति अथवा वर्ग द्वारा न किया जा सके।
10 . अन्तर्राष्ट्रीयता एवं विश्व शान्ति में विश्वास -
उदारवाद अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राज्य की
निरंकुशता को स्वीकार नहीं करता और विश्व शान्ति एवं बन्धुत्व की भावना को बढ़ावा
देने की बात करता है । उदारवाद के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र को शनैः शनैः शान्तिपूर्वक
प्रगति करना चाहिये तथा अन्य राज्यों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करना चाहिये ।
राज्यों को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता तथा सामान्य अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को
स्वीकार कर लिया जाना चाहिये।
2 उदारवादी राज्य के उद्देश्य एवं कार्य
राज्य के उद्देश्यों एवं
कार्यों के सम्बन्ध में उदारवादियों का सदैव एक ही दृष्टिकोण नहीं रहा है तथा इस
सम्बन्ध में उनकी विचारधारा परिस्थितियों के अनुसार विकसित होती रहती है। इस
सम्बन्ध में उदारवाद के दो प्रमुख रूप हैं- (1) परम्परागत (2) आधुनिक लोकतांत्रिक
उदारवाद
1 परम्परागत उदारवाद
मूल रूप से उदारवाद का
जन्म स्वेच्छाचारी शासन तथा व्यवस्था के विरूद्ध एक स्वतंत्रता आन्दोलन के रूप में
हुआ तथा परम्परागत उदारवाद का मूल तत्व स्वतंत्रता की रहा। जॉन लॉक तथा जॉन
स्टुअर्ट मिल को इस परम्परागत उदारवाद का प्रतिनिधि माना जाता है। प्रो0 हाबहाऊस
ने अपने ‘उदारवाद' शीर्षक ग्रंथ में परम्परागत उदारवाद के नौ मूल
सिद्धान्त बतलाये हैं जो इस प्रकार हैं-
1. नागरिक स्वतंत्रता -
नागरिक स्वतंत्रता शासकीय स्वेच्छाचारिता का विरोध करती है तथा इसका कथन है कि
व्यक्तियों पर व्यक्तियों को नहीं वरन् कानूनों का प्रभुत्व प्राप्त होना चाहिये।
नागरिक स्वतंत्रता के द्वारा हर प्रकार की स्वेच्छाचारिता का विरोध किया जाता है
तथा इस बात पर दिया जाता है कि व्यक्तियों को अपना इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने का
अधिकार प्राप्त होना चाहिये।
2.वित्तीय स्वतंत्रता -
मध्य युग में निरंकुश शासकों द्वारा अनेक बार जनता पर मानमाने कर लगा दिये जाते
थे। नागरिक चेतना के उदय के साथ इस बात पर बल दिया गया कि नागरिकों पर उनके
प्रतिनिधियों की इच्छा के बिना कोई कर न लगाया जाय अर्थात् उत्तरदायी शासन को
बढ़ावा दिया जाय। इंग्लैण्ड में यही बात जनता के मध्य उठी थी जिसका नारा था 'बिना
प्रतिनिधित्व के कर नहीं । अन्ततः यही नारा 1688 को रक्तहीन क्रांति का उत्तरदायी
आधार बना।
3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता -
उदारवादियों के द्वारा सदैव ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया गया है। व्यक्तियों के जीवन एवं रहन-सहन में राज्य या समाज के अन्य व्यक्तियों द्वारा उस समय तक हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि सामाजिक हित की दृष्टि से इस प्रकार का हस्तक्षेप आवश्यक न हो गया हो। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अन्तर्गत विचार एवं भाषण की स्वतंत्रता, रहन-सहन की स्वतंत्रता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
4. सामाजिक स्वतंत्रता
उदारवादी चिंतन में सामाजिक स्वतंत्रता का भी विशेष महत्व रहा है। सामाजिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि जन्म, सम्पत्ति, वर्ण, जाति, लिंग इत्यादि के आधार पर व्यक्तियों में कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये। समाज के सभी व्यक्तियों का विकास के लिए समान तथा पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाने चाहिये क्योंकि इसके अभाव में स्वतंत्रता सम्भव नहीं है।
5. आर्थिक स्वतंत्रता-
परम्परागत उदारवाद के सन्दर्भ में आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि व्यक्तियों
के आर्थिक जीवन तथा उनके द्वारा उद्योग तथा व्यापार में राज्य के द्वारा हस्तक्षेप
नहीं किया जाना चाहिये। उदारवादियों की मान्यता है कि आर्थिक क्षेत्र में राज्य के
द्वारा अहस्तक्षेप की नीति अपनायी जानी चाहिये जिससे कि हर व्यक्ति आर्थिक क्षेत्र
में स्वतंत्रता का अनुभव कर सके। व्यक्तियों को आर्थिक क्षेत्र में संविदा की
स्वतंत्रता तथा आर्थिक उन्नति के लिए संघ एवं समुदाय बनाने की स्वतंत्रता प्राप्त
होनी चाहिये ।
6. पारिवारिक स्वतंत्रता -
सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के पारिवारिक मामले में
7. जातीय एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता -
उदारवादी विचारक राष्ट्रों के आत्म निर्णय तथा भौगोलिक एवं प्रशासनीक
दोनों क्षेत्रों में स्वशासन के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते थे। वे जातीय समानता
का भी समर्थन करते थे। परन्तु कुछ उदारवादी विचारकों द्वारा किया गया जातीय तथा
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का समर्थन यूरोपीय राष्ट्रों एवं गोरी जातियों तक ही सीमित
रहा है।
8.अन्तर्राष्ट्रीय स्वतंत्रता -
उदारवाद एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के विरूद्ध बल प्रयो का विरोधी
है तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सहयोग का समर्थक है। आर्थिक तथा सांस्कृतिक
क्षेत्र में राज्यों के द्वारा परस्पर अधिकाधिक समीप आने का प्रयत्न किया जाना
चाहिये।
9. राजनीतिक स्वतंत्रता
-
हाबहाऊस के अनुसार उदारवाद की सबसे बड़ी विशेषता राजनीतिक स्वतंत्रता है जो
व्यक्तियों को राज्य के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करती
है। इसके अन्तर्गत नागरिकों को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, निर्वाचित होने
का अधिकार, सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार, राजनीतिक
क्रियाकलापों की जानकारी प्राप्त करने तथा स्वतंत्र वाद-विवाद का अधिकार सम्मिलित
है।
परम्परागत उदारवाद
व्यक्तिवाद के निकट का दर्शन माना जाता है।
2 आधुनिक लोकतांत्रिक उदारवाद
- 19वीं सदी के मध्य तक उदारवाद परम्परागत रूप में प्रचलित रहा परन्तु उसके उपरांत बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार उदारवाद के स्वरूप में परिवर्तन आ गया। 19 वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में यह अनुभव किया गया कि परम्परावादी उदारवादियों की आर्थिक क्षेत्र में अहस्तक्षेप की नीति अपनाने के परिणाम निर्धन एवं श्रमिक के लिए घातक सिद्ध हुए तथा यह भी सिद्ध हो गया कि निर्धन साधनहीन जनता अपने हितों की रक्षा करने में असमर्थ है। ऐसी परिस्थितियों में नव-उदारवादियों ने यह अनुभव किया कि राज्य द्वारा आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जाना चाहियें तथा जनता के हितों के सभी सम्भव कार्यों विद्यालयों की व्यवस्था पेंशन, बेकारी, बीमा योजना इत्यादि को सरकारी क्षेत्र के अधीन लाया जाये। यहीं से आधुनिक उदारवाद का जन्म हुआ।
- थामस हिल ग्रीन को आधुनिक उदारवाद का प्रतिनिधि विचारक कहा जा सकता है। वह एक आदर्शवादी विचारक होने के साथ-साथ उदारवादी इसलिए है क्योंकि राज्य को कभी एक साध्य नहीं माना है। ग्रीन के मतानुसार राज्य एक साध्य की प्राप्ति का साधन मात्र है तथा साध्य है राज्य रहने वाले व्यक्तियों का पूर्ण नैतिक विकास। ग्रीन बार-बार इस बात पर बल देता है कि संस्थाओं अस्तित्व व्यक्तियों के लिए होता है, व्यक्तियों का अस्तित्व संस्थाओं के लिए नहीं।
- इस प्रकार ग्रीन एक उदारवादी है परन्तु वह वैसा परम्परावादी उदारवादी नहीं है जो राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हुए सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में उसके हस्तक्षेप का विरोध करते हैं। ग्रीन राज्य को एक आवश्यक बुराई मानने के स्थान पर उसे एक नैतिक संगठन मानता है। राज्य यद्यपि व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से नैतिक नहीं बना सकता परन्तु उसके द्वारा नैतिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर उनके नैतिक विकास में सहायता पहुँचायी जा सकती है। इस दृष्टि से राज्य के द्वारा अज्ञानता, नशाखोरी, भुखमरी इत्यादि बाधाओं को दूर किया जा सकता है तथा ऐसे कानूनों का निर्माण किया जा सकता है जो श्रमिक वर्ग के हितों की अधिकाधिक रक्षा करे तथा समस्त जनता को स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में अधिकाधिक सुविधायें प्रदान करें। ग्रीन ने राज्य द्वारा सद्जीवन के मार्ग की सभी बाधाओं को दूर करते हुए बीसवीं सदी के लोककल्याणकारी राज्य की नींव डाली।
- वास्तव में ग्रीन ने उदारवाद को नया आधार दिया, उसे बदलती हुई परिस्थितियों में जनहित तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल बनाया तथा राज्य के कार्यों को नई सोच एवं दिशा प्रदान
उदारवाद की आलोचना
उदारवाद की विचारधारा को
निम्न आधार पर आलोचना का शिकार होना पड़ा है
1. उदारवाद की प्रथम कमी यह है कि इसके द्वारा इतिहास एवं परम्पराओं को उचित महत्व नहीं प्रदान किया गया है। आज का जीवन बहुत कुछ सीमा तक भूतकालीन परिस्थितियों का ही परिणाम भूतकाल से पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद कर लेना न तो सम्भव है तथा न ही वांछनीय।
2. उदारवाद में मानवीय बुद्धि को बहुत अधिक महत्व प्रदान किया गया है। वास्तव में मानवीय घट चक्र के निर्धारण में बुद्धि की अपेक्षा ईश्वरीय इच्छा और संयोग का अधिक योगदान है।
3.उदारवादी राज्य को एक
कृत्रिम संस्था तथा समझौते का परिणाम मानते हैं। परन्तु राज्य न तो किसी समझौते का
परिणाम है तथा न ही कोई व्यावसायिक भागेदारी है जिसको इच्छानुसार भंग किया जा सकता
है। वास्तव में यह उच्चतम मानवीय गुणों के विकास तथा महानतम आदर्शों की प्राप्ति
में क्रियाशील एक शाश्वत संस्था है। आदर्शवादी एवं फासीवादी विचारको के अनुसार
उदारवादी जिस प्रकार व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता देने की बात करते हैं, वह मानव जीवन को
पूर्ण अराजकता में बदल देगी। अतएव मानव जीवन की स्वतंत्रता को सीमित किया जाना
नितान्त आवश्यक है।
उदारवाद का प्रभाव-महत्व
उदारवादी दर्शन में कमियां अवश्य है परन्तु 19वीं सदी के यूरोप तथा अमेरिका में उदारवादी दर्शन सर्वाधिक प्रभावशाली था तथा इस दर्शन ने राष्ट्रों के इतिहास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। इसने औद्योगिक विकास को तथा आर्थिक प्रगति को बढ़ावा दिया। इसने मुक्त-व्यापार पर बल दिया जिसके परिणामस्वरूप इन देशों के निवासियों ने आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की। इसी के परिणामस्वरूप स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र की भावना को बढ़ावा मिला। यदि परम्परागत उदारवाद पूंजीवाद का सहायक दर्शन रहा है, तो आज का उदारवाद समाजवाद के निकट है। वास्तव में उदारवाद को लोकतंत्र राष्ट्रीय स्वाधीनता एवं आर्थिक प्रगति का दर्शन कहा जा सकता है.
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