खनिज लवण : मानव शरीर के लिए जरुरी | प्रमुख खनिज लवण और मानव शरीर में इनका उपयोग | Minerals and Human Body in Hindi
खनिज लवण : मानव शरीर के लिए जरुरी
खनिज लवण (Minerals) शरीर में वृद्धि व निर्माण में सहायक
खनिज लवण शरीर में वृद्धि व निर्माण में सहायक होता है। वनस्पति तथा जन्तु ऊतकों को जलाने पर जो भस्म अवशेष रहती है, वह वास्तव में खनिज ही है। हमारे शरीर के भार का 4 प्रतिशत भाग खनिज तत्व से ही बना है। हमारे शरीर में विभिन्न खनिज लवण होते हैं। ये सभी तत्व भोजन द्वारा शरीर में पहुँचते रहने चाहिए।
1. कैल्शियम (Calcium) की कमी एवं अधिकता से होने वाले रोग
शरीर में कैल्शियम की मात्रा अन्य लवणों से अधिक होती है। 99 प्रतिशत शारीरिक कैल्शियम अस्थिसंस्थान में एवं 1 प्रतिशत कोमल तंतुओं में तथा तरल पदार्थों में पाया जाता है।
कैल्शियम के कार्य
हड्डियों एवं दातों के निर्माण हेतु आवश्यक होता है-
- विभिन्न प्रकार के लवणों के साथ मिलकर यह अस्थि एवं दाँतों को सख्त एवं स्थिर बनाते हैं जिससे पूरे शरीर के आधार के रूप में काम कर सकें।
रक्त का जमना-
- कैल्शियम रक्त जमाने में सहायक होता है। कैल्शियम की अनुपस्थिति में रक्त जमने की प्रक्रिया नहीं हो पाती और शरीर से रक्त बह सकता है। कैल्शियम तथा विटामिन 'के' मिलकर एक बारीक जाल (fibrin) का निर्माण करती है जिसमें लाल रक्त कणिकाएं फंस कर थक्के के रूप में जम जाते हैं।
शारीरिक वृद्धि -
- यदि कैल्शियम कम होता है तो शरीर में प्रोटीन की मात्रा भी कम हो जाती है जिससे शरीर की सामान्य वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है।
मांसपेशियों के संकुचन पर नियंत्रण-
- कैल्शियम मांसपेशियों के फैलने, सिकुड़ने की क्रिया को नियंत्रित कर मांसपेशियों को क्रियाशील बनाये रखता है। हृदय के संकुचन को भी नियंत्रित करता है।
भोजन में कैल्शियम स्रोत
- ताजा दूध, मक्खन निकला, पाउडर या सूखा दूध तथा मठ्ठा आदि कैल्शियम प्राप्ति के प्रमुख हैं। कैल्शियम के अन्य साधन हरे पत्ते वाली सब्जियाँ- पत्ता गोभी, मेथी, पालक, हरी सरसों, दाल, सूखे मेवे आदि हैं। माँस तथा अनाजों में इसकी मात्रा बहुत कम होती है।
कैल्शियम कमी से होने वाले रोग
- कैल्शियम की कम मात्रा लेने के अस्थियों व दांतों में कैल्शियम जमने की क्रिया नहीं हो पाती है। कैल्शियम की कमी से निम्न समस्याएं देखी जाती हैं
रिकेट्स (Rickets) :
- इस रोग में बच्चे की शरीर की वृद्धि रुक जाती है, टांगों की हड्डियां टेड़ी हो जाती हैं (Bow legs), एड़ी एवं कलाई चौड़ी हो जाती हैं, तथा छाती की हड्डियों के सिरे मोटे हो जाते हैं (Pigeon chest ) व जल्दी टूटने वाली हो जाती हैं। माथे की हड्डी अधिक उभरी हुई दिखाई देती है जिसे 'फ्रन्टल बॉसिंग' (Frontal bossing) कहते हैं। चलने पर घुटने टकराते हैं जिसे 'नॉक नी' (Knock knee) कहा जाता है।
आस्टियोमलेशिया (Osteomalacia ):
- प्रौढ़ावस्था में कैल्शियम की कमी से अस्थियां दुर्बल हो जाती हैं। आहार में कैल्शियम की लगातार कमी रहने से मेखला (pelvic gurdle) संकुचित हो जाती है। ऐसी स्त्रियों के गर्भवती होने पर शिशु का जन्म कठिनता से होता है। कभी कभी गर्भपात हो जाता है .
- रक्त जमने में अधिक समय लगता है।
- मांसपेशियों की गति अनियंत्रित हो जाती है जिससे हाथ पैर कांपने लगते हैं, इस स्थिति को टिटैनी कहते है।
- ऑस्टियोपारोसिस (Osteoporosis): प्रौढ़ व्यक्तियों खासकर महिलाओं में हड्डियों की सघनता में कमी आ जाती है।
अधिकता
- कैल्शियम की अधिकता से भूख कम हो जाती है। वमन, कब्ज, मांसपेशियों का ढीला होना देखा जाता है। रक्त में कैल्शियम की मात्रा बढ़ने से गुर्दों में कैल्शियम अधिक एकत्र होने लगता है अर्थात् पथरी हो जाती है।
2. फासफोरस (Phosphorus) की कमी एवं अधिकता से होने वाले रोग
कैल्शियम के बाद खनिज तत्वों में फासफोरस की मात्रा अधिकतम होती है। शरीर के विभिन्न अंगों के निर्माण करने वाले तंतुओं (अस्थियां, मांसपेशियाँ तथा स्नायु संस्थान) में फासफोरस पाया जाता है .
कार्य
- फासफोरस अस्थियों एवं दांतों के निर्माण में सहायक होता है।
- कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है।
- रक्त में अम्ल क्षार सन्तुलन बनाये रखता है।
- मांसपेशियों में संकुचन के लिये फास्फोरस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दैनिक आवश्यकता
फासफोरस की आवश्यक मात्रा की पूर्ति दैनिक संतुलित आहार से हो जाती है।
भोजन में स्रोत
वह सभी आहार जिनमें अच्छी मात्रा में कैल्शियम व प्रोटीन की उपस्थिति होगी, उसमें फासफोरस भी उपस्थित होगा। दूध, पनीर, अंडे का पीला भाग, मांस, मछली तथा साबुत अनाजों में इसकी उपस्थिति होती है। फल तथा सब्जियों में फासफोरस की उपस्थिति कम होती है।
कमी
इसकी कमी से अस्थियों में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। अस्थियों व जोड़ (Joints) सख्त हो जाते हैं। बच्चों में शारीरिक वृद्धि रुक जाती है तथा थकान व भूख न लगने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
3. लौह लवण (Iron)
लौह लवण की उपस्थिति हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कार्य
- हीमोग्लोबिन रक्त का एक आवश्यक अवयव है जो लौह लवण व प्रोटीन के साथ मिलकर बनाता है।
- लौह लवण हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य ऑक्सीजन और कार्बनडाई ऑक्साइड का आदान-प्रदान करना है।
- यह मांसपेशियों में संकुचन में अत्यन्त उपयोगी है।
- यह प्रतिरक्षी कोशिकाओं का निर्माण करता है।
भोजन में स्रोत
अंडा, मांस, यकृत तथा सूखे मेवे इसकी प्राप्ति के प्रमुख साधन हैं। विभिन्न गहरे रंग की पत्ती वाली सब्जियों में लौह लवण की अच्छी मात्रा उपस्थित रहती है। अंडे के पीले भाग, दालें तथा नट्स में भी लौह लवण अच्छी मात्रा में पाया जाता है। गुड़, खजूर, मुनक्का आदि में भी लौह लवण अधिक मात्रा में उपस्थित है।
कमी
शरीर में लौह लवण की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण ठीक तरह से नहीं हो पाता है। अतः रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है फलस्वरुप एनीमिया रोग हो जाता है। अधिकतर लौह लवण का अभाव स्त्रियों में गर्भावस्था तथा दुग्धापान की अवस्था में तथा बच्चों में होता है। एनीमिया के रोगी को दुर्बलता तथा थकावट का अनुभव होता है। रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है तथा दिल की धड़कन बढ़ जाती है। हाथ, पांव और चेहरा पीला पड़ जाता है तथा पांव में सूजन आ जाती है।
4. सोडियम (Sodium) के कार्य कमी और अधिकता से होने वाले रोग
सोडियम शरीर की समस्त बाह्य कोशिकीय द्रवों और प्लाजमा में उपस्थित रहता है। इस खनिज लवण की पूर्ति आहार में यौगिक के रूप में सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) द्वारा की जाती है।
कार्य
- सोडियम शरीर में अम्ल व क्षारीय स्थिति में संतुलन बनाये रखने में सहायक होता है।
- हृदय की मांसपेशियों व नाड़ी ऊतकों की संवेदन शक्ति को नियमित रखता है।
- शरीर में पानी के संतुलन को ठीक रखना - मल, मूत्र, पसीने के रूप पानी का निष्कासन सोडियम पर भी निर्भर करता है।
भोजन में स्रोत
प्रकृति में पाये जाने वाले सभी भोज्य पदार्थों में सोडियम अल्प या अधिक मात्रा में पाया जाता है। दूध, नमक में पाया जाता है। वनस्पति पदार्थों में इसकी मात्रा कम ही होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में भी कुछ अंश में पाया जाता है।
कमी
सोडियम की न्यूनता तीव्र अतिसार, वमन व अधिक पसीना निकलने में होती है। फलस्वरूप जी मचलना, पेट व टांगों की मांसपेशियों में ऐंठन, थकावट आना, अम्ल व क्षार का असंतुलन आदि लक्षण दिखाई देते हैं। आवश्यकता से अधिक लिया गया सोडियम मूत्र द्वारा उत्सर्जित कर दिया जाता है।
5. पोटेशियम (Potassium) के मानव शरीर मे कार्य और उपयोगिता
- पोटेशियम खनिज लवण की उपस्थिति कोशिकीय द्रवों, लाल रक्त कणिकाओं में होती है।
कार्य
- पोटेशियम विशेष रूप से हृदय की धड़कन की गति को नियमित रखने का कार्य करता है। मांसपेशियों का संकुचन बनाये रखने में सहायक होता है।
- कुछ एन्जाइम का स्त्राव बढ़ाने में मदद करता है।
भोजन में स्रोत
दूध व दूध से बनने वाले पदार्थों में पोटेशियम तत्व पाया जाता है। रसदार फलों जैसे- नींबू, संतरा व केले आदि में पोटेशियम उपस्थित रहता है। मक्के के आटे, खीरा, ककड़ी, टमाटर, आडू, आलू में भी यह अल्प मात्रा में पाया जाता है।
6. क्लोराइड (Chloride) और मानव शरीर
- क्लोराइड की उपस्थिति कोशिकीय द्रवों व कोशिकाओं को घेरे रहने वाले द्रवों में पाया जाता है।
- शरीर में अम्ल व क्षार की स्थिति का संतुलन बनाये रखने में सहायक होता है।
- उचित शारीरिक वृद्धि के लिये भोजन में क्लोरीन की उपस्थिति अनिवार्य है।
भोजन में स्रोत
- प्रायः क्लोराइड की अधिकांश मात्रा भोजन में नमक के द्वारा ली जाती है। जन्तु भोज्य पदार्थ जैसे पनीर, अण्डा, व मांस में इसकी उपस्थिति अधिक मात्रा में होती है। वनस्पति फल व सब्जियों में यह कम मात्रा में पाया जाता है।
कमी
अक्सर सोडियम तथा क्लोराइड की कमी एक साथ देखा जाती है अतः लक्षण भी लगभग सोडियम की कमी वाले ही होते हैं जैसे वमन, जी मिचलाना, थकावट आदि ।
7. मैग्नीशियम (Magnesium)
यह लवण कैल्शियम के साथ मिलकर कार्य करता है। मैग्नीशियम शरीर की अस्थियों में फास्फेट के साथ उपस्थित रहता है।
कार्य
- मैग्नीशियम फासफोरस के चयापचय में सहायक होता है।
- यह एन्जाइम की क्रिया बढ़ाता है।
- माँसपेशियों, नाड़ी, ऊतकों को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
भोजन में स्रोत
यह फल, सब्जियों, अनाज, दालों, कुछ मात्रा में दूध व दूध के बने पदार्थों में पाया जाता है।
कमी
वे लोग जिन्हें अधिक दस्त की शिकायत रहती या जो अधिक नशे का प्रयोग करते हैं उनमें शियम की कमी हो जाती है, जिससे ऐंठन होने लगती है इसके अलावा कंपकंपी होना व बेहोशी आना जैसी समस्याएं देखी जाती हैं।
8. मैग्नीज़ (Manganese)
यह हड्डियों तथा यकृत में उपस्थित रहता है।
कार्य
- मैग्नीज़ प्रजनन क्षमता को बनाये रखने में सहायक है।
- यह अस्थि विकास में सहायक है।
- इसकी अत्यल्प मात्रा ही शरीर के लिये आवश्यक होती है जिसकी पूर्ति दैनिक संतुलित आहार हो जाती है।
भोजन में स्रोत
- यह साबुत अनाजों, दालों, मांस, मछली तथा हरी पत्तेदार सब्जियों में उपस्थित रहता है।
कमी
- मैग्नीज़ की कमी से प्रजनन क्षमता घट जाती है। इसके अभाव ग्रस्त बच्चे जन्म लेने पर अल्प समय तक ही जीवित रह पाते हैं। अस्थि विकास ठीक से न हो पाने के कारण शारीरिक विकृति आ जाती है। शरीर में बाँझपन आ जाता है।
9. सल्फर (Sulphur)
सल्फर प्रोटीन के साथ संयुक्त रूप में रहता है। सल्फर को गन्धक भी कहते हैं।
कार्य
- प्रोटीन के पाचन, अवशोषण में सहायक होता है।
- बाल, नाखून, त्वचा की चमक के लिये आवश्यक होता है।
भोजन में स्रोत
प्रोटीनयुक्त आहार में गन्धक की प्राप्ति पर्याप्त मात्रा में होती है। जैसे मूंगफली, पनीर, दालें आदि इसके अच्छे साधन हैं।
10. तांबा (Copper )
शरीर में समस्त ऊतकों में तांबे की अल्प मात्रा उपस्थित होता है।
कार्य
शरीर में लौह लवण के अवशोषण व चयापचय में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।
भोजन में स्रोत
तांबे की उपस्थिति मांस, यकृत, अनाज, कॉफी, दूध में रहती है। तांबे के बर्तन में भरा हुआ पानी पीने से इसकी मात्रा शरीर में पहुंच सकती है।
कमी
प्रायः इस तत्व की हीनता कम ही होती है क्योंकि अनेक भोज्य तत्वों में इसकी उपस्थिति होती है।
अधिकता
तांबे की अधिकता से विल्सन की बीमारी (Wilson's disease) हो जाती है। इसमें यकृत तथा नाड़ी तन्तुओं में घाव बन जाते हैं।
11. आयोडीन (Iodine ) की कमी एवं अधिकता से होने वाले रोग
यह एक अल्पमात्रीय खनिज लवण है जो शरीर में अत्यन्त आवश्यक होता है। यह हमारे शरीर की थायरॉइड ग्रन्थी के थायरॉक्सीन का अवयव है।
कार्य
- आयोडीन युक्त थायरॉक्सीन शरीर की वृद्धि व विकास के लिये अत्यन्त आवश्यक है। शरीर के साथ-साथ यह मानसिक वृद्धि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रौढ़ व्यक्ति कमजोर हो जाते हैं व हाथ-पैरों में सूजन आ जाती है।
- दैनिक आवश्यकता आयोडीन की आवश्यक मात्रा की पूर्ति दैनिक संतुलित आहार से हो जाती है। भोजन में स्रोत समुद्री मछली, प्याज, आयोडाइज्ड नमक में इसकी अच्छी मात्रा होती है। पहाड़ी इलाके की मिट्टी में आयोडीन की कमी होने के कारण इस इलाके में उपजी साग-सब्जियों में आयोडीन नहीं होता है। इसलिए ऐसे इलाकों में आयोडीन की दैनिक आपूर्ति हेतु आयोडाइज्ड नमक का सेवन करना आवश्यक है।
कमी
घेंघा (Goiter):
आयोडीन की न्यूनता से थायराइड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है जो गले में सूजन के रूप में दिखाई देता है। साधारण स्थिति में घेंघा में दर्द नहीं होता। यदि ग्रन्थि ज्यादा बढ़ जाये तो श्वास नली पर दबाव पड़ सकता है जिससे श्वसन अवरोध उत्पन्न होता है।
क्रेटिनिज्म (Cretinism):
गर्भवस्था में महिलाओं द्वारा अपने आहार में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा न लेने से प्रायः शिशुओं में यह रोग हो जाता है। इसमें बच्चे की शारीरिक व मानसिक रूप से वृद्धि रूक जाती है तथा वह असंतुलित व अपरिपक्व या अविकसित रहता है।
मिक्सीडिमा (Myxedema):
यह व्यस्कों में देखा जाता है रोगी के बाल कड़े व सूख जाते हैं। त्वचा मोटी व रुखी तथा आवाज में भारीपन आ जाता है।
12. फ्लोरीन (Fluorine)
यद्यपि यह खनिज लवण काफी कम मात्रा में आवश्यक होता है परन्तु दांतो के स्वास्थ्य में यह महत्वपूर्ण है।
कार्य
- दांतो व अस्थियों को स्वस्थ बनाता है।
- दैनिक आवश्यकता
- फ्लोरीन की आवश्यक मात्रा की पूर्ति दैनिक संतुलित आहार से हो जाती है।
भोजन में स्रोत
जल फ्लोरीन प्राप्ति का उत्तम स्रोत है। समुद्री मछली व चाय में इसकी मात्रा पायी जाती है। स्थान विशेष की मिट्टी व जल में फ्लोरीन होने पर वहाँ उगने वाली सब्जियों में भी यह तत्व पाया जाता है। कमी आहार में इसकी कमी होने पर दांतों पर चॉक जैसा पदार्थ जमना शुरू हो जाता है।
अधिकता
आहार में इसकी अधिकता होने पर दांत व अस्थियां स्वस्थ नहीं रह पातीं, यह अवस्था फ्लोरोसिस कहलाती है। इसमें दांतों पर सफेद चूने जैसी परत चढ़ जाती है। दांत खुरदरे तथा प्रौढ़ावस्था आने पर पीठ झुक जाती है।
13. जिंक (Zinc)
- इसे जस्ता कहते हैं। यह हमारे शरीर में दांतों व हड्डियों में पाया जाता है।
- इन्सुलिन हार्मोन का निर्माण करने में सहायक होता है।
- शरीर के कई एन्जाइम का निर्माण करता है।
- बालों के स्वास्थ के लिये आवश्यक होता है।
भोजन में स्रोत
- यह गेहूं के अंकुर, यकृत आदि में पाया जाता है।
कमी
इसकी कमी से शारीरिक वृद्धि में कमी, बालों का झड़ना, रक्ताल्पता, बौनापन, प्रजनन शक्ति में कमी देखी जाती है। अत्यधिक मद्यपान करने वालों में जिंक की अत्यधिक कमी देखी जाती है।
अधिकता
जिंक का सेवन यदि आवश्यकता से अधिक किया जाए तो यकृत में लोहे की कमी हो जाती है तथा शारीरिक वृद्धि में कमी हो जाती है।
इसके अलावा कुछ अन्य खनिज लवण भी हमारे शरीर में अत्यल्प मात्रा में पाये जाते हैं-
आर्सेनिक (Arsenic)
ब्रोमीन (Bromine )
निकिल (Nickel)
क्रोमियम (Chromium)
कैडमियम (Cadmium)
सिलिकन (Silicon)
मॉलिबिडिनम (Molybdenum)
कोबाल्ट (Cobalt)
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