सत्ता का अर्थ परिभाषा प्रकार | सत्ता के आधार अथवा स्रोत शक्ति और सत्ता | Political Post Details in Hindi
सत्ता का अर्थ परिभाषा प्रकार , सत्ता के आधार अथवा स्रोत शक्ति और सत्ता
सत्ता किसे कहते हैं इसका अर्थ
"सत्ता किसी व्यक्ति, संस्था, नियम का आदेश का ऐसा गुण या क्षमता है जिसके कारण उसे सही या प्रमाणित मानकर स्वेच्छा से उसके निर्देशों का पालन किया जाता है।” जब तक किसी समाज या राज्य में सत्ता का प्रयोग नही होता तब तक नीतियाँ, नियम और निर्णय लागू या स्वीकार नही जा सकते है। अतः सत्ता को राज्य रूपी शरीर की आत्मा" कहा जा सकता है। कोई भी राजनीतिक गतिविधि या कार्यक्रम सत्ता के आधार पर ही सम्भव होते है। सत्ता, शक्ति, प्रभाव तथा नेतृत्व का मुख्य साधन है। अपने सभी स्वरूपों में सत्ता शक्ति, प्रभाव, वैघता व नेतृत्व से जुड़ी हुई है।
सत्ता की परिभाषा -सत्ता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-
थियो हैमेन के शब्दों में,
“सत्ता वह वैधानिक शक्ति हैं जिसके जोर पर अधिनस्थों से कार्य करता है। उन्हें इस के लिए बाध्य किया जा सकता हैं। आदेश का पालन न करने पर शासक उनके विरूद्व कार्यवाही कर सकता है। यहाँ तक कि उन्हें कार्य से भी अलग कर सकता है। "
बायर्सटेड के शब्दों में,
"सत्ता शक्ति के प्रयोग का वैधानिक अधिकार है स्वयं शक्ति नहीं।"
ऐलन के शब्दों में,
“दिये गये कार्यो को सम्पन्न कराने के लिए दी गयी शक्तियाँ व अधिकार सत्ता है।”
सत्ता के आधार अथवा स्रोत
राजनीतिक अथवा प्रशासनिक सत्ता का शक्ति, प्रभाव आदि से निकट सम्बन्ध है परन्तु सत्ता का अपना स्वतन्त्र आस्तित्व है। सत्ता के अनेक स्रोत होते है। सत्ता का मूल आधार औचित्यपूर्णता होती है। इसके अतिरिक्त अन्य आधारों में विश्वास विचारों की एकरूपता, विभिन्न शक्तियाँ पर्यावरणात्मक दबाब, आन्तरिक संरचनाए, प्रशासनिक संगठन आदि होते हैं। सत्ता के निम्नलिखित स्रोत है।
1. धर्म:-
धर्मसत्ता का महत्वपूर्ण आधार रहा है। प्राचीन काल से मध्ययुग तक धर्म का समाज पर प्रभाव रहा है। राजा के धर्म के अधीन होता था तथा राज्य में सभी नियम, कानून व सिद्वान्त धर्म पर आधारित थे। इस प्रकार धार्मिक नियमों का पालन कानून की भाँति किया जाता था।
2. शक्ति:-
अध्ययन करते से ज्ञात होता है कि शक्ति प्राचीन काल से ही सत्ता का मूल आधार रही है। प्राचीनकाल में समाज अशन्तिव तनाव व्यापत रहता था । "जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाला नियम प्रचलित था। जो व्यक्ति अधिक शक्ति सम्पन्न होता था। वह समाज के दूसरे लोगों से अपनी आज्ञा का पालन करता था। राज्य के निर्माण, विस्तार और विकास में शक्ति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हॉब्स मैकियावे लो, मार्क्स आदि महान विचारकों ने शक्ति को राज्य सत्ता का एकमात्र आधार माना है। आधुनिक युग में भी सत्ता का आधार कानूनी शक्ति ही है।
3. पैतृक वंशः-
पैतृक वंश परम्परा भी सत्ता का आधार रही है। प्राचीनकाल में जिन राज्यों के अन्दर राजतन्त्र विघमान था। जहाँ राजाओं की सत्ता का आधार पैतृक वंश की परम्परा थी । राजतन्त्र राजसिंहासन उत्तराधिकार में प्राप्त होता है। राज्य के लोग राजा के आदेशों का पालन इसलिए कहते है क्योंकि उनके पहले के परिवार के लोग भी अपने समकालीन राजाओं की आज्ञाओं का पालन करते रहे है।
4. दैवी अधिकारः-
मध्ययुगीन राजाओं ने अपनी सत्ता का आधार दैवी अधिकार बताया था। वो कहते है कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है तथा उन्हें शासन करने की सत्ता ईश्वर से प्राप्त हुई है। और उनके आदेशों की अवहेलना करने का अर्थ है कि आप ईश्वर के आदेशों की अवहेलना कर रहे हो । फ्रांस में लुई14 वॉ अपने आपको ईश्वर का इत कहता था। लेकिन वर्तमान समय में दैवी अधिकारों को सत्तमा का आधार स्वीकार नहीं किया जाता है।
5. संविधानः-
आधुनिक समय राज्य में शासक की सत्ता का आधार उन राज्यों का संविधान होता है। संविधान में वे सिद्वान्त, नियम कानून निहित होते है जिनके आधार पर सत्ता की संरचना की जाती है। उदाहरण के तौर पर, भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री आदि की सत्ता का आधार वह संविधान है जो 26 जनवरी 1950 ई0 को लागू किया गया।
6. औचित्यपूर्णताः-
आधुनिक समय मे सत्ता का सबसे प्रमुख आधार औचित्यपूर्ण है। सत्ता के पीछे बाध्यकारी कानूनी शक्ति का होना ही जरूरी नहीं है। उसमें औचित्यपूर्णत ऐसी विचार है जो विश्वास पर आधरित होता है। जब लोग सत्ता की संरचना, कार्यो, नीतियों और निर्णयों के प्रति व्यापक विश्वास रखें और पूर्णसमर्थन दे तो उसे औचित्यपूर्णता कहते है।
सत्ता के प्रकार:
सत्ता को समझने के लिए विद्वान अपनी संकल्पनाओं को निरन्तर परिष्कृत करने का प्रयास करते रहते हैं। मैक्सवेबर ने सत्ता के तीन प्रकार बताये है। परम्परागत, बौद्विक कानूनी और चमत्कारपूर्ण
1. परम्परागतः -
समाज में, जब प्रजा या अधीनस्थ वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का पालन इस आधार पर मानते है कि हमेशा से ऐसा होता आया है तो सत्ता का यह प्रकार परम्परागत कहा जाता है। अर्थात कुछ लोग सत्ता को अपने ऊपर इसलिए स्वीकार कर लेते है, क्योंकि उनका यह विश्वास होता है कि इन नियमों का अनुसरण अति प्राचीन काल से किया जा रहा है। अतः जो परम्परागत या प्रथा दीर्घकाल से अपनायी जा रही है वह निराधार नही हो सकती है। कबीलों, गाँवों बड़े-बूढ़ों द्वारा सत्ता का प्रयोग ऐसे विश्वासों पर ही होता है।
2. बौद्विक कानूनी:-
जब अधीनस्थ किसी नियम को इस आधार पर स्वीकार करते है कि वह नियम उन उच्चस्तरीय अमूर्त नियमों के साथ सम्मत है जिसे वे औचित्यपूर्ण समझते है, तब इस स्थिति में सत्ताको बौद्विक कानूनी माना जाता है। अधिकारी तन्त्र बुद्विसम्पन्न कानूनी अधिकार को सर्वोत्तम उदाहरण है। उदाहरण के लिए, जब भारत में लोक सभा चुनाव के बाद लोकसभा सदस्य अपने नेता का चुनाव करके उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दे तो यह सत्ता का बौद्विक कानूनी आधार होता
3.चमत्कारपूर्णः-
इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञात होता है। लोग कुछ ऐसे नेताओं की सत्ता को स्वीकार करने या उन्हें सत्ता प्रदान करने के लिए तैयार होते हैं, जिनकी शक्ति ने तो परम्परा के आधार पर मिल तो है और न ही बौद्विक कानूनी प्रणालियों में, वे ऐसे नेता भी नहीं होते है जिनकी जनता के बीच कोई पारम्परिक प्रतिष्ठ है। इस प्रकार के नेता कभी कभी असामान्य काम कर जाते हैं जिससे वो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाते है। ऐसे नेता ही चमत्कारी नेता कहलाती है। गाँधी, लेनिन और हिटलर आदि ऐसे ही चमत्कारपूर्ण नेता थे।
शक्ति और सत्ता
राजनीति के अन्तर्गत किसी भी निर्णय को लागू करने के लिए शक्ति का प्रयोग आवश्यक है। जहाँ कहीं पर भी आधुनिक समय सत्ता का प्रयोग होता है वह सत्ता शक्ति का पर्याय बन जाती है और शक्ति की भूमिका सबसे प्रभावशाली वहाँ सिद्ध होती है जहाँ शक्ति केवल बल प्रयोग का साधन नही रह जाती बल्कि वैधता के साथ मिलकर सत्ता का रूप धारण कर लेती है। अतः सत्ता वह शक्ति है। जिसे न्यायचित माना जाता है। जिसे सभी वैध स्वीकार करते हैं या तो उसके निर्णयों पर सहमति देते है या फिर असहमति प्रदान करते है । शक्ति से संघर्ष होने पर व्यक्ति या तो समर्थन करता है या विरोध प्रकट करता हैं जबकि सत्ता से संघर्ष की स्थिति में प्रायः एक ही मार्ग दिखाई देता है उसका पालन । सत्ता औचित्य युक्त होती है इसलिए इसका विरोध शासन के लिए ठीक नहीं माना जाता है। इस प्रकार शक्ति में बल निहित होता है और सत्ता में शक्ति बल के पीछे जब सहमति होती है तब वह शक्ति का रूप ले लेता है। और शक्ति के साथ जब औचित्यपूर्णता जुड़ जाती है। तब वह सत्ता का रूप धारणा कर लेती है। जब तक राज्य में व्यवस्था कायम रहती है तब तक जनसामान्य और समाज उसका समर्थन करता रहता है किन्तु बिना बल शक्ति प्रभावी नहीं दिखाई देती है । इस प्रकार सत्ता में शक्ति और शक्ति में बल का समावेश रहता है।
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