क्या राजनीति विज्ञान विज्ञान है? वैज्ञानिकता के विरूद्ध तर्क | राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता |Political science is art or science in Hindi
क्या राजनीति विज्ञान विज्ञान है? वैज्ञानिकता के विरूद्ध तर्क
राजनीति विज्ञान कला है कि विज्ञान
- इस विषय में अनेक मतभेद है कि राजनीति विज्ञान को किस श्रेणी में रखा जाय 'कला' में या ‘विज्ञान’ में। राजनीति वस्तुत प्राकृतिक विज्ञान नहीं है? परन्तु इसे शुद्ध कला के रूप में भी स्थापित नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक अविष्कारों का प्रभाव जब सामाजिक विज्ञानों पर पड़ा तो उनमें तथ्यों पर जोर दिया जाने लगा। यह समझा गया कि यदि सामाजिक विज्ञानों में वैज्ञानिकता का समावेश नहीं किया गया, तो उनकी उपयोगिता समाप्त हो जायेगी। व्यवहारवादियों ने इस विषय को तथ्यपरक और वैज्ञानिक बनाने के यथासम्भव प्रयास किये। परन्तु पुनः इस पर विचार किया जा लगा कि आदर्श और मूल्य के बिना राजनीति विज्ञान अर्थहीन है। इसे तथ्यपरक और मूल्यपरक दोनों ही होना चाहिए। इसीलिए यह बहस अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि राजनीति विज्ञान, विज्ञान है कि कला?
राजनीति विज्ञान कला है कि विज्ञान
- विद्वानों की दो श्रेणी है। अरस्तु इसे सर्वोच्य विज्ञान की संज्ञा देता है और बर्नार्ड शा इसे मानवीय सभ्यता को सुरक्षित रखने वाला विज्ञान मानते हैं। एमरसन ने इसे महानतम विज्ञान की संज्ञा दी है। बोंदा, हॉब्स, मान्टेस्क्यू, ब्राइस, ब्लंटशली, जैलीनेक, डॉ0 फाइनर, लास्की आदि भी इसे विज्ञान के रूप में ही स्वीकार करते हैं। परन्तु विद्वानों की एक श्रेणी है जो इसे विज्ञान के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है। बक्ल, काम्टे, मेटलैण्ड, एमास, वियर्ड, केटलिन, मोस्का, ब्रोगन, बर्क आदि ऐसे ही विद्वान है।
क्या राजनीति विज्ञान विज्ञान है? राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के विरूद्ध तर्क
बर्कले, काम्टे आदि विद्वानों के अनुसार, विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत कार्य और कारण में सदैव निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है और जिसके निष्कर्ष निश्चित एवं शाश्वत होते हैं। विज्ञान की इस परिभाषा के आधार पर ये विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इन विद्वानों ने इस विषय की वैज्ञानिकता के विरूद्ध निम्न तर्क दिए हैं-
1. राजनीति विज्ञान में ऐसे तर्कों का अभाव है, जिन पर सभी विद्वान एकमत हैं। यदि एक ओर आदर्शवादी राज्य की सर्वोच्च सत्ता का प्रतिपादन करते हैं तो व्यक्तिवादी राज्य के कम से कम हस्तक्षेप का । बैंजामिन फ्रेंकलिन और लास्की जैसे अनेक विद्वान एकसदनात्मक व्यवस्थापिका के समर्थक हैं तो सिजविक तथा ब्लटंशली एकसदनात्मक व्यवस्थापिका के घोर विरोधी है।
2. राजनीति विज्ञान में कार्य और कारण के बीच सम्बन्ध बनाना आसान नहीं है। कोई राजनीतिक घटना किसी कारण का परिणाम हो सकती है, यह कहना बहुत कठिन है। 1917 की सोवियत क्रान्ति साम्यवादी विचारधारा के परिणामस्वरूप हुई या उस समय के विशेष अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के कारण इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
3.पदार्थ विज्ञानों में एक प्रयोगशाला में बैठकर यंत्रों की सहायता से मनचाहे प्रयोग किए जा सकते हैं, किन्तु राजनीति विज्ञान में इस प्रकार के पर्यवेक्षण एवं परीक्षण सम्भव नहीं है क्योंकि राजनीति विज्ञान के अध्ययन विषय मानव के क्रियाकलाप हमारे नियत्रंण में नही होते।
4. राजनीति विज्ञान का अध्ययन वस्तु मानव है। मानव स्वभाव पल-पल परिवर्तनशील है। मानव के आवेगों को नापना कठिन है। भीड़ के भावों की तीव्रता को मापना असम्भव है। अलग-अलग व्यक्तियों के स्वभाव में अन्तर होता है और एक समान परिस्थिति में रहने वाले व्यक्ति भी भिन्न-भिन्न रूप से आचरण करते हैं। ऐसी स्थिति में राजनीति विज्ञान जो कि मनुष्य और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है, प्राकृतिक विज्ञान की तरह नहीं हो सकता ।
5. पदार्थ विज्ञान के नियम निश्चित होने के कारण किसी भी विषय के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है। यह सही-सही बतलाया जा सकता है कि किस दिन और किस समय चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण लगेगा। लेकिन राजनीति विज्ञान में यह नहीं बतलाया जा सकता कि किस निश्चित विचार का जनता पर प्रभाव पड़ेगा या चुनाव में किस पक्ष को विजय प्राप्त होगी।
6. विज्ञान वस्तुपरक होता है जबकि राजनीति विज्ञान व्यक्तिनिष्ठ होता है। इसके अध्ययन में स्था का अभाव होता है। इसलिए इसमें दृष्टिकोणों की विभिन्नता पाई जाती हैं । प्राकृतिक विज्ञानों का विषय निर्जीव वस्तु होने से उसमें वस्तुपरकता और तटस्थता देखी जाती है। परन्तु राजनीति विषयों का अध्ययन पदार्थ विज्ञानों की भांति वैज्ञानिक रूप नहीं ले सकता।
उपर्युक्त तर्कों के आधार पर बक्ल कहते हैं, “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर रहा, यह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला है। "
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता
यद्यपि उपर्युक्त तथ्यों में कुछ सत्य अवश्य है परन्तु राजनीति विज्ञान के विज्ञानत्व को पूर्ण रूप से नकारना सही नहीं है। वस्तुतः उपर्युक्त विद्वानों ने प्राकृतिक विज्ञानों के आधार पर वैज्ञानिकता की कसौटी कसी है, यह सामाजिक विज्ञानों के लिए उचित नहीं है। सर्वमान्य तथ्यों और कारण तथा कार्य के बीच निश्चित सम्बन्ध पाये जाने वाले विषय को ही विज्ञान कहा जाय इस प्रकार का दृष्टिकोण उचित नहीं है। गार्नर के शब्दों में, “एक विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान राशि को कहते हैं, जो विधिवत् पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गयी हो और जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध तथा वर्गीकृत किए गये हों।" इस परिभाषा के सम्बन्ध में जब राजनीति विज्ञान पर विचार किया जाता है तो यह तथ्य नितान्त स्पष्ट हो जाता है कि राजनीति विज्ञान एक विज्ञान है। इस सम्बन्ध में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं-
1. विज्ञान का सर्वप्रथम लक्षण यह होता है कि उसका समस्त ज्ञान क्रमबद्ध रूप में होना चाहिए। यह लक्षण राजनीति विज्ञान में भी पूरे तौर पर विद्यमान है। राजनीति विज्ञान राज्य सरकार अन्य राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं व विचारों का क्रमबद्ध ज्ञान प्रस्तुत करता है।
2. यद्यपि राजनीति विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की भांति प्रयोगशाला में बैठकर प्रयोग नहीं किये जा सकते, परन्तु राजनीति विज्ञान में भी प्रयोग किये जाते हैं। उनकी प्रकृति भिन्न प्रकार की होती है। राजनीति विज्ञान के लिए सम्पूर्ण विश्व एक प्रयोगशाला है। राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की सफलता को देखकर ही भारतीय राजनेताओं ने इसे पूरे राष्ट्र में लागू कर दिया। इसी प्रकार फ्रांस में पहले संसदात्मक शासन था । उसकी अस्थिरता को देखते हुए वहाँ अध्यक्षात्मक शासन लागू किया गया और वह सफल रहा।
3. यह भी नहीं कहा जा सकता कि राजनीति विज्ञान में सर्वमान्य तथ्य नहीं है। कई तथ्य सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत हैं। मसलन स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र की अनिवार्य आवश्यकता है, इसी तरह यदि विचारों की स्वतंत्रता समाज को नहीं दी गई तो विद्रोह होने की सम्भावना बनी रहती है। इसी प्रकार उसी समाज में लोकतंत्र सही रूप में स्थापित होता है जहाँ सम्पूर्ण साक्षरता और आर्थिक आत्मनिर्भरता मौजूद हो।
4. यह मानना भी गलत है कि राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी नहीं हो सकती है। व्यवहारवादी के प्रभाव से इस विज्ञान में भी ऐसी तकनीक का विकास हो गया है, जिससे सही-सही भविष्यवाणी सम्भव हो पाई। आजकल चुनाव से पूर्व जो सर्वे किए जाते हैं वे अधिकाशतः सही-सही भविष्यवाणी करने में सक्षम होते हैं। यदि सही रूप में भविष्यवाणी की क्षमता ही विज्ञान की कसौ मानली जाय, तो फिर ऋतु विज्ञान जैसे अनेक विषय भी विज्ञान नहीं कहे जा सकते क्योंकि उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ अनेक बार गलत सिद्ध होती है।
5. राजनीति विज्ञान एक पर्यवेक्षणात्मक विज्ञान है। इसमें पर्यवेक्षण के आधार पर भी सिद्धान्तों का निर्माण होता है। विभिन्न संस्थाओं में उपस्थित होकर तथा पर्यवेक्षण कर तुलना की जाती है। अध्ययनकर्ता विभिन्न देशों में जाकर अलग-अलग देशों की संस्थाओं की कार्यवाही को देखता है। और फिर अपने निष्कर्षों को निकालकर सिद्धान्तों का निरूपण करता है। लार्ड ब्राइस ने अपनी पुस्तक माडर्न डेमोक्रेटीज और मान्टेस्क्यू ने अपनी पुस्तक 'स्प्रिट ऑफ लॉज' में इसी विध प्रयोग किया है। इस प्रकार की पुस्तकों की वैज्ञानिकता में सन्देह करना हास्यास्पद है।
- वस्तुतः ‘विज्ञान’ और ‘विज्ञानत्व' को सिर्फ प्राकृतिक विज्ञानों की दृष्टि से आकलन करना उचित नहीं है। कोई भी अनुसंधान, यदि वह तथ्यों पर आधारित है, कम से कम पक्षपात और निष्पक्ष भावना से किया गया है, अधिक से अधिक बौद्धिक जॉच पड़ताल और छानबीन के साथ किया गया कार्य है, तो उसकी वैज्ञानिकता में सन्देह नहीं किया जा सकता । राजनीति विज्ञान की प्रकृति विशिष्ट है, उसकी समस्याए भी विशेष और मौलिक है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे सामान्य नियमों की आवश्यकता है। भले ही वे ऐसे सामान्य न हों, जैसे प्राकृतिक विज्ञानों में होते है। राजनीति की सामान्य विशेषताओं को पहचानना अरस्तु के अनुसार एक विशेष आँख द्वारा ही सम्भव है जो कि वैज्ञानिक प्रतिभा का चिन्ह होती है। हॉब्स ने अंकगणित और रेखागणित के समान मानव जाति के व्यवहार को शक्ति प्राप्त करने की अदम्य इच्छा के रूप में खोजा। ऐसे ही व्यवहारिक नियमों की खोज करके मार्क्स ने समाज विज्ञानों के लिए डार्विन जैसी भूमिका प्रस्तुत की। पिछले तीन-चार दशकों में इसे विज्ञानत्व प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य ग्राह्म वालास, आर्थर वेन्टले, कैटलिन, लासवेल, डेविड ईस्टन, आमंड कोलमैन आदि राजवैज्ञानिकों ने किया है। राजनीति विज्ञान अभी तक पश्चिमी देशों के राजनीतिक अनुभवों और प्रयोगों पर आधारित था। अब एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के विकासशील देशों में राजनीतिक क्षेत्र में नए अनुभव तथा प्रयोग हो रहे है। आज राजनीति वैज्ञानिक अतीत के प्रकाश में वर्तमान को पढ़ने का प्रयास कर रहा है। वह अपने तथ्यों को व्यवस्थित करने की चेष्टा करता है, कार्य कारण सम्बन्धों का विश्लेषण करता है और सिद्धान्तों के निरूपण तथा सामान्य प्रकृतियों का शोध करता है। वह यह सिद्ध करने की कोशिश करता है कि यदि परिस्थितियों में पूर्ण सादृश्य नहीं है तो वे पूर्णतः भिन्न भी नहीं है। उनकी समानताओं को पहचाना जा सकता है।
- राजनीति विज्ञान न तो साहित्य की तरह पूर्णतः व्यक्तिनिष्ठ है न विज्ञान के समान पूर्णतः वस्तुनिष्ठ । वह कुछ अंशों तक व्यक्तिनिष्ठ और कुछ अंशों तक वस्तुनिष्ठ है। राजनीति विज्ञान में प्रयोग, परीक्षण, पर्यवेक्षण आदि में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक नैतिक प्रश्न अन्तगस्त होते हैं। वह एक सामाजिक विज्ञान है, जिसके कन्धों पर तथ्यों की व्याख्या के साथ-साथ मूल्यों का स्पष्टीकरण भी जुड़ा हुआ है। यह एक मानव सम्मान को बनाये रखने वाला विज्ञान है। यह प्राकृतिक और भौतिक विज्ञान के समान लक्ष्य व मूल्यविहीन नहीं है। एक श्रेष्ठ राज्य और सुसंस्कृत आदर्श समाज की स्थापना राजनीति विज्ञान के अध्ययन का ध्येय और लक्ष्य है और इस दृष्टि से राजनीति विज्ञान एक उच्चकोटि की कला है जो समाज का यथार्थ चित्र भी प्रस्तुत करती है और पथ प्रदर्शन भी.
- वस्तुतः राजनीति विज्ञान एक विज्ञान और कला दोनों है । केटलिन राजनीति का अर्थ विस्तार करते हुए उसे कला, दर्शन और विज्ञान तीनों मानता है। लासवेल ने भी इसे 'कला, विज्ञान और दर्शन का संगम' कहा है।
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