राजनीति तथा राजनीति विज्ञान | राजनीतिक दर्शन |राजनीति विज्ञान- सर्वाधिक उपयुक्त नाम | Political Science Philosophy
राजनीति तथा राजनीति विज्ञान , राजनीतिक दर्शन, राजनीति विज्ञान- सर्वाधिक उपयुक्त नाम
राजनीति तथा राजनीति विज्ञान, राजनीतिक दर्शन, राजनीति विज्ञान- सर्वाधिक उपयुक्त नाम
राजनीति तथा राजनीति विज्ञान
- 500 ई0पू0 यूनानी 'नगर- राज्यों' की स्थिति एवं राजनीतिक गतिविधियों से सम्बन्धित ज्ञान को 'राजनीति' कहा जाता था। उस समय नागरिक जीवन से सम्बन्धित गतिविधियों का भिन्न-भिन्न अनुशासनों के तौर पर बॅटवारा नहीं किया गया था, सारे विषय 'पालिटिक्स' के अन्दर समाहित थे। इसीलिए, अरस्तू ने ‘पालिटिक्स' को मास्टर साइंस कहा और 'राजनीति' शब्द का प्रयोग सबसे पहले अपनी ‘नगर-राज्य’ से सम्बन्धित पुस्तक के शीर्षक के रूप में किया था। अरस्तू के पश्चात जेलीनेक, सिजविक, हॉस्टजन-डॉफ आदि लेखकों द्वारा भी 'राजनीति' शब्द का प्रयोग किया गया। उनके अनुसार राज्य और सरकार से सम्बन्धित समस्त विषय सामग्रियाँ 'राजनीति' के अन्तर्गत आती है। लास्की ने अपने ग्रन्थ को ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स नाम दिया है। विल्सन ने राजनीति के सिद्धान्त नाम से पुस्तक लिखी है। वर्तमान राजनीतिशास्त्रियों लासवेल, डहल, ईस्टन, व हींजयुलाऊ ने भी इस विषय के लिए राजनीति शब्द का ही प्रयोग किया है।
- सर फ्रेडरिक पोलक ने भी राजनीति शब्द का प्रयोग इसके लिए किया है। पोलक ने इस शब्द को व्यापक अर्थ में उपयोग करते हुए उसे दो भागों में बाँटा है- सैद्धान्तिक राजनीति और व्यावहारिक या प्रयोगात्मक राजनीति । सैद्धान्तिक राजनीति के अन्तर्गत राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति, लक्षण एवं उद्देश्य आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है, जबकि व्यावहारिक राजनीति के अन्तर्गत हम राज्यों की वास्तविक कार्य प्रणालियों एवं राजनीतिक संस्थाओं के वास्तविक जीवन का अध्ययन करते हैं। इस विभाजन में हमारे अध्ययन की सम्पूर्ण सामग्री आ जाती है। इसीलिए यह विभाजन बहुत उपयोगी है। जिस अर्थ में प्राचीन विचारकों ने 'राजनीति' शब्द का प्रयोग किया था, उसी अर्थ में इस संज्ञा का प्रयोग यदि किया जाए तो इस शास्त्र के लिए 'राजनीति' नाम में कोई आपत्ति नहीं रहेगी। लेकिन आज राजनीति शब्द का प्रयोग इतने व्यापक अर्थों में नहीं किया जाता है।
- आज तो ‘राजनीति' शब्द का प्रयोग और भी संकुचित अर्थों में किया जाने लगा है। दैनिक जीवन में घरेलू राजनीति, समूह राजनीति, कॉलेज तथा गाँव की राजनीति की चर्चा होती है । 'राजनीति' का प्रयोग धोखेबाजी, बेईमानी, झूठ, फरेब आदि अर्थों में भी किया जाता है।
- अरस्तू के समय से राजनीति विज्ञान एक लम्बा रास्ता तय कर चुका है और इसके लिए 'राजनीति' शब्द का इस्तेमाल सही नहीं लगता है। यह शब्द अपने नये अर्थ में व्यावहारिक पक्ष तक सीमित है। आधुनिक अर्थ में वह व्यावहारिक गतिविधियों तक सीमित रह गया है, फलस्वरूप इसमें इस विषय के सैद्धान्तिक और नैतिक पक्ष छूट जाते हैं। इसलिए 'राजनीति' शब्द इस विषय का मानक नाम होने के लिए ठीक नहीं है।
'राजनीति' शब्द से आपत्तियाँ
इस विषय के नाम को 'राजनीति' रखने पर निम्नलिखित
आपत्तियाँ आती हैं, जिनके कारण इसका
नामकरण 'राजनीति' नहीं किया जा सकता है-
1. अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से
सर फ्रेडरिक पोलक के वर्गीकरण में राजनीति के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों
पक्ष समा जाते हैं। यदि इस विस्तृत दृष्टिकोण से सोचा जाए तो यह विषय राजन नाम से
जाना जा सकता है किन्तु वर्तमान में 'राजनीति' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में न किया जाकर संकुचित
अर्थों में किया जाता है। आधुनिक लेखकों (जैनेट सी० लेविस तथा अलेक्जेण्डरवेन) ने 'राजनीति' का तात्पर्य प्रयोगात्मक
अथवा व्यावहारिक राजनीति से लिया है।
2. राजनीति में शास्त्रीय एकरूपता की कमी-
आजकल 'राजनीति' शब्द किसी राजनीतिक सस्था, स्थान विशेष के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है; जैसे- भारत की राजनीति, दिल्ली की राजनीति, ग्रामीण राजनीति । प्रत्येक देश की राष्ट्रीय और स्थानीय राजनीति किसी अन्य देश कीराष्ट्रीय और स्थानीय राजनीति से भिन्न होती है। क्योंकि उनकी परिस्थितियों में विभिन्नता होती है। इसलिए राजनीति के अध्ययन में समानता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में शास्त्रीय एकरूपता के अभाव में इस 'विषय को 'राजनीति' नाम नहीं दिया जा सकता है।
3. गरिमारहित शब्द-
आज 'राजनीति' शब्द का प्रयोग इतने
भ्रष्ट अर्थों में होने लगा है कि समस्त गलत काम करने और उनमें सफलता पाने का
प्रयास करना भर इसका प्रतीक माना जाने लगा है। दैनिक जीवन में घरेलू राजनीति, जाति- राजनीति, क्षेत्र-राजनीति, देश-राजनीति, समूह राजनीति, अमुक व्यक्ति की राजनीति, दलगत राजनीति के लिए इसका
प्रयोग होता है । अंग्रेजी में कहावत है कि, (राजनीति दुष्ट पुरुष का अन्तिम आश्रय स्थल है।)
सर अर्नेस्ट बेन के शब्दों में-
“राजनीति किसी परेशानी को ढूँढ़ने, उसे खोज निकालने, चाहे उसका अस्तित्व हो या न हो, उसका गलत कारण बताने और उसका गलत हल ढूँढ़ निकालने की कला है.
अतः कहा जा सकता है कि इस
विषय को 'राजनीति' नाम देना नितान्त
अव्यवहारिक एवं असंगत होगा।
राजनीतिक दर्शन (Political philosophy)
अभी हाल तक 'राजनीतिक दर्शन' शब्द का इस्तेमाल राजनीति
विज्ञान के लिए होता रहा और आज भी कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान के स्थान पर 'राजनीतिक दर्शन' शब्द के प्रयोग पर बल दे
हैं। वे इस शब्द के पक्ष में निम्न तर्क देते हैं-
1. विद्वानों का तर्क है कि
राजनीति विज्ञान की प्रकृति सैद्धान्तिक, दार्शनिक एवं व्यावहारिक है। इसके अन्तर्गत हम राज्य की उत्पत्ति, विकास, प्रकृति, उद्देश्य, व्यक्तियों के अधिकार तथा
कर्त्तव्य एवं राजनीतिक धारणाओं का अध्ययन करते हैं। राज्य सम्बन्धी अध्ययन का
मुख्य भाग ये सिद्धान्त ही हैं, इसीलिए इसे 'राजनीतिक दर्शन' कहना उचित होगा।
2. राजनीतिक दर्शन राजनीति
विज्ञान का पूर्वगामी है। इसके अधिकांश सिद्धान्त राजनीतिक दर्शन से ही लिये गये
हैं। गिलक्राइस्ट के शब्दों में, “राजनीतिक दर्शन एक दृष्टि से राजनीति विज्ञान का पूर्वगामी
है क्योंकि प्रथम (राजनीतिक दर्शन) की मौलिक मान्यताओं पर ही द्वितीय (राजनीतिक
विज्ञान) आधारित है। साथ ही राजनीतिक दर्शन को भी स्वयं बहुत सी ऐसी सामग्री का
प्रयोग करना पड़ता है जो उसे राजनीति विज्ञान से प्राप्त होती है। "
3. 'दर्शन' एक प्रतिष्ठित शब्द है।
वह विषय, जो स्थानीय तथा
शाश्वत महत्व के विषयों से सम्बन्धित है, उसे 'राजनीतिक दर्शन' जैसा सम्मानजनक नाम ही दिया जाना चाहिए।
राजनीतिक दर्शन नामकरण पर आपत्तियाँ
विद्वानों द्वारा इस
नामकरण के संदर्भ में निम्नांकित आपत्तियाँ प्रस्तुत की गयी हैं-
1. अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से
'राजनीतिक दर्शन' के अन्तर्गत विषय का
सम्पूर्ण सैद्धान्तिक अध्ययन ही आता है, व्यावहारिक राजनीति का अध्ययन नहीं आता, जबकि सैद्धान्तिक राजनीति
के साथ व्यावहारिक राजनीति का अध्ययन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। जे0एल0 हैलोवेल के अनुसार, “राजनीतिक दर्शन का
सम्बन्ध राजनीतिक संस्थाओं में निहित विचारों और आकांक्षाओं से है। इस कारण
राजनीतिक दर्शन विषय का अपूर्ण अध्ययन ही है।"
2.प्रकृति की दृष्टि से-
‘राजनीतिक दर्शन' शब्द के प्रयोग
से ऐसा लगता है जैसे यह विषय एक कला ही है विज्ञान नहीं। अतः 'राजनीतिक दर्शन' शब्द विषय की प्रकृति के
अनुकूल नहीं हैं।
3.‘दर्शन' शब्द अनिश्चितताओं और अवास्तविकताओं का प्रतीक-
आधुनिक युग में 'दर्शन' शब्द अनिश्चितताओं और अवास्तविकताओं का प्रतीक बन गया है। 'राजनीतिक दर्शन' शब्द के प्रयोग से यह आशय
यह होगा कि इस विषय में राज्य की समस्याओं पर कल्पना के आधार पर विचार किया जाता है
जो वास्तविकता से दूर रहती हैं।
राजनीतिक दर्शन मुख्य रूप से आदर्श मूलक होता है, जो क्या अच्छा है यह सुझाता है और क्या होना चाहिए सम्बन्धी प्रश्नों पर ध्यान देता है। इसके विपरीत राजनीति विज्ञान राजनीतिक घटनाओं को समझने की कोशिश करता है, ताकि इसके आधार पर सामान्य नियम बन सकें। यह औपचारिक रिश्तों की खोज करने की कोशिश करता है। इस नजरिये में, दर्शन के विपरीत, राजनीति विज्ञान 'क्या होना चाहिए' की अपेक्षा, क्या है, से अधिक सम्बन्ध रखता है। कुल मिलाकर, राजनीतिक दर्शन आधारभूत सैद्धान्तिम और दार्शनिक सिद्धान्तों पर बल देता है और राजनीतिक विश्लेषण के व्यावहारिक और कार्यप्रणाली सम्बन्धी पक्षों को अछूता छोड़ देता है। यही कारण है कि 'राजनीतिक दर्शन' शब्द को भी इस विषय के मानक नाम के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
राजनीति विज्ञान- सर्वाधिक उपयुक्त नाम
अधिकांश विद्वानों का मत
है कि 'राजनीति' और 'राजनीतिक दर्शन' की अपेक्षा 'राजनीति विज्ञान' नाम सर्वाधिक उपयुक्त है।
राजनीति विज्ञान शब्द का
प्रयोग सर्वप्रथम गॉडविन और मेरी वुल्सटोनेक्राफ्ट द्वारा किया गया था। आज यही
सर्वसम्मत नाम बन गया हैं। इस मत के समर्थन में निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किये
जाते हैं-
1. अध्ययन क्षेत्र के अनुरूप
'राजनीति विज्ञान' शब्द के अन्तर्गत हमारे
अध्ययन विषय राजनीति के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों पक्ष आ जाते हैं, अतः यह शब्द हमारे अध्ययन
विषय के अनुकूल है।
2. विषय की प्रकृति के अनुकूल -
'राजनीति विज्ञान' शब्द का प्रयोग करने पर
यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत विषय विज्ञान और कला दोनों है । प्रकृति के
अनुकूल होने के कारण 'राजनीति विज्ञान’
शब्द का प्रयोग ही अधिक उपयुक्त है।
3. सम्मानप्रद संज्ञा-
आधुनिक युग में राजनीति विज्ञान प्रस्तुत विषय के लिए एक सम्मानप्रद संज्ञा है। सीले, विलोबी, गैटल, गार्नर आदि भी 'राजनीति विज्ञान' शब्द को ही अधिक उपयुक्त मानते हैं। सन् 1948 में यूनेस्को के तत्वाधान में हुए एक सम्मेलन में राजनीति विज्ञानियों ने 'राजनीति विज्ञान' शब्द को ही अधिक उपयुक्त ठहराया था। गिलक्राइस्ट के शब्दों में कहा जा सकता है कि, “विवेक तथा प्रचलन के दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान ही सर्वाधिक उचित नाम है। “
अरस्तू ने 'पालिटिक्स' को मास्टर साइंस कहा और 'राजनीति' शब्द का प्रयोग सबसे पहले
अपनी ‘नगर-राज्य’ से सम्बन्धित पुस्तक के शीर्षक के रूप में किया
सीले, विलोबी, गैटल, गार्नर आदि भी 'राजनीति विज्ञान' शब्द को ही अधिक उपयुक्त
मानते हैं
सर फ्रेडरिक पोलक ने भी
राजनीति शब्द का प्रयोग इसके लिए किया है। पोलक ने इस शब्द को व्यापक अर्थ में
उपयोग करते हुए उसे दो भागों में बाँटा है- सैद्धान्तिक राजनीति और व्यावहारिक या
प्रयोगात्मक ।
सीले, विलोबी, गैटल, गार्नर आदि भी 'राजनीति विज्ञान' शब्द को ही अधिक उपयुक्त
मानते हैं।
सन् 1948 में यूनेस्को के तत्वाधान
में हुए एक सम्मेलन में राजनीति विज्ञानियों ने 'राजनीति विज्ञान' शब्द को ही अधिक उपयुक्त ठहराया था।
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