राजनीति में शक्ति क्या है अर्थ परिभाषा स्वरूप स्रोत प्रकार या आयाम | Power Politics types in Hindi

राजनीति में शक्ति क्या है अर्थ परिभाषा स्वरूप स्रोत प्रकार या आयाम

राजनीति में शक्ति क्या है अर्थ परिभाषा स्वरूप स्रोत प्रकार या आयाम | Power Politics types in Hindi


शक्ति क्या है  अर्थ परिभाषा ?


साधारणतयाः लोग जो कुछ नहीं करना चाहते, उनसे वैसा कराने की क्षमता को 'शक्ति की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में जब एक व्यक्ति दूसरे की इच्छा के विरूद्ध ससे किसी निर्णय का पालन कराता है, तब पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति ऊपर शक्ति का प्रयोग करता है। कौटिल्य ने “ दण्ड शक्ति” जो शक्ति का ही पर्याय है, को सम्पूर्ण सांसारिक जीवन का मूल आधार माना जाता है।

 

मैक्स बेबर के अनुसार

 “ शक्ति का अर्थ है- किसी सामाजिक सम्बन्ध के अन्तर्गत एक कर्ता द्वारा दूसरों की इच्छा के विरूद्व अपनी इच्छा को कार्यान्वित करने की संभावना । "

 

आर0एम)मैकाइवर के अनुसार

 “यह किसी भी सम्बन्ध के अन्तर्गत ऐसी क्षमता है जिसमें दूसरों से कोई काम लिया जाता है या आज्ञा पालन कराया जाता है। "

 

बड रसेल के शब्दों में शक्ति से तात्पर्य “मन चाहा प्रभाव पैदा करना । "

 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जिसके पास शक्ति है, वह दूसरों का अपनी इच्छा के अनुसार चलाने की क्षमता रखता है। इस तरह शक्ति की चिर- प्रचलित अवधारणा मुख्यतः दूसरों के ऊपर प्रयुक्त शक्ति का संकेत देती है।

 

राजनीति - शक्ति का स्वरूप

 

  • राजनीति हमारे जीवन का ऐसा क्षेत्र है जहाँ सबके लिए नियम बताए जाते हैं. निर्णय भी वहीं पर होते है, समाज के सभी व्यक्तियों के लिए अधिकतर कर्तव्य, और दायित्व निर्धारित किये जाते है।

 

  • कोई भी नियमों को धरातल पर उतारने के लिए या साकार रूप देने के लिए शक्ति की जरूरत होती है, अन्यथा वो केवल कही हुई बातें रह जायेंगी। शासन में शक्ति का वहीं स्थान है जो गाड़ी में जन का है। शक्ति के बिना राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। समाज में शक्ति, सुरक्षा और न्याय को लाने का केवल यही एक साधन है। हेरल्ड लासवेल कहते है कि राजनीति का सरोकार शक्ति को सँवारने और मिल बॉटकर उसका प्रयोग करने से है। इससे भी आगे बढ़कर काइकेल कार्टिस शक्ति के स्वरूप के बारे अलग ढंग से परिभाषा देते है, उनके अनुसार “राजनीति का अर्थ शक्ति और उसके प्रयोग के बारे में व्यवस्थित विवाद हैं, इसके अन्तर्गत प्रतिस्पर्धा मूल्यों, विचारों , व्यक्तियों, हितों और माँगों में से किसी-न-किसी का चयन करना होता है।” 


राजनीति में शक्ति के स्रोत

 

शक्ति की उपज कहा से है, इसे जानने के लिए शक्ति के स्रोतों का अध्ययन करना होगा। शक्ति के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है:

 

1. आर्थिक व भौतिक साधनः- 

आर्थिक व भौतिक साधन शक्ति प्राप्त करने के बाहरी तत्व है। आर्थिक व भौतिक साधन शक्ति के वे तत्व है जो समाज व्यक्ति की पहचान का स्तर तय करत है। सम्पत्ति है। आज समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है यह आन्तरिक रूप से कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल सकती लेकिन आज के उदारीकरण के युग में शक्ति का यह स्रोत बहुत प्रभावशाली सिद्ध हो रहा है। इस प्रकार भौतिकवादी युम व्यक्ति के व्यक्तित्व का स्तर तय करती है। में सम्पत्ति शक्ति का सबसे बड़ा साधन है। यह समाज में

 

2.ज्ञान और विचार शक्तिः- 

ज्ञान, शक्ति प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है। जिसके व्यक्ति के पा ज्ञान का भण्डार होगा व मनुष्य अपने तथ्यों को आसानी से प्राप्त कर लेता है। जिससे समाज में उसका अलग स्थान बनता है। उससे व्यक्ति प्रभावित होता है और समाज में प्रभाव जमाकर वह शक्ति आर्जित कर लेता है । "चमत्कार को नमस्कार" वाली कहावत ज्ञान द्वारा शक्ति प्राप्त करने के साधनों पर सटीक बैठती है।

 

3.बल अथवा दमनः- 

बल अथवा दमन भी शक्ति प्राप्त करने का एक स्रोत है। प्राचीन काल समाज “मत्सय न्याय” था। जहाँ बलिष्ठ लोग कमजोर और कुचले लोगों का शोषण करते थे। यह भय पर आधारित है। इस भय के कारण दमनकारी व्यक्ति अपनी शक्ति को बढ़ाता जाता है। जिससे समाज में उसका भय का वातावरण बना रहें।

 

4. संगठन :- 

"संगठन में शक्ति है" यह उक्ति शक्ति के विषय में सही चरित्रर्ता होती है। यह सामान्य सी बात है कि यदि आपको अपनी बात मनवानी है तो एक समूह तैयार करना पड़ता है। यदि आप अकेले है तो जिससे आप अपनी बात मनवाना चाहते है जरूरी नही है कि वो व्यक्ति या सरकार आपकी बातें माने। इसलिए विभिन्न ईकाईयों या समूह अपने हितों की पूर्ती के संगठन का निर्माण करते है। जिससे उनकी शक्ति में वृद्वि हो जाती है। और इसी शक्ति के कारण वे अपने हितों की पूर्ति के लिए समाज पर शासन पर दबाब डालते है। आज के समय में, दबाब समूह जैसे कि संघ, मजदूर व्यापारी संघ, धाग संघ इसके महत्वपूर्ण उदाहरण है।

 

5. व्यक्तित्व:- 

व्यक्तित्व भी शक्ति प्राप्त करने का स्रोत है। जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली होगा, वह मनुष्य समाज अपना अलग अलग स्थान रखता है। व्यक्तित्व मनुष्य में आत्मविश्वास बढ़ाता है। प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला मनुष्य जब आत्मविश्वास से भरा होता है तो वह समाज में उसको प्रतिष्ठा प्रदान कराता है। प्रतिष्ठा ही मनुष्य को शक्ति प्रदान करती है । यदि व्यक्ति का व्यक्तित्व बुरे आचरण वाला हो, तो वह शक्ति को भय का रूप देता है तथा भय से जो शक्ति प्राप्त होती है वह अवनति का मार्ग प्राप्त करती है।

 

6. विश्वासः- 

यदि शक्ति में विश्वास हो तो यही शक्ति का महत्वपूर्ण स्रोत होती है। चाहे व्यक्ति के पास कितनी शक्ति क्यों न हो और उस शक्ति को प्राप्त करना का साधन चाहे जो रहा हो। किन्तु यदि शक्ति में विश्वास नही होता है तो फिर शक्ति शून्य है। इसलिए मनुष्य के लिए यह अति आवश्यक वह शक्ति में विश्वास रखे।

 

शक्ति के प्रकार या आयाम :- 

राजनीति में शक्ति का प्रयोग बहुत विस्तृत क्षेत्र में होता है। अनेक विद्वानों ने शक्ति के अलग-अलग प्रकारों का वर्णन किया है। मैक्स बेबर के अनुसार शक्ति का सही रूप औचित्यपूर्ण शक्ति इसके अलावा में शक्ति नहीं “दमन" होता है। औचित्यपूर्ण शक्ति के तीन प्रमुख प्रकार बताये है। 1. कानूनी या वैधानिक 2. परम्परागत 3. करिश्माई शक्ति। लेकिन शक्ति जिस रूप में राजनीति को प्रभावित करती है उनसे मौटे तौर पर तीन प्रकार की शक्ति होती है।

 

1. राजनीतिक शक्ति 

2. आर्थिक शक्ति और 

3. वैचारिक शक्ति

 

1. राजनीतिक शक्ति:- 

  • सामान्य रूप राजनीतिक शक्ति से अभिप्राय है, समाज मूल्यवान संसाधनों को अपनी इच्छा के अनुसार विभिन्न समूहों के हित में या विभिन्न कार्यक्रमों में लगाने की शक्ति। इनमें नीतियों का निर्माण और इन्हें लागू करना, कानूनों का निर्माण करना, कानून का उल्घन्न करने वाले को दंड देना आदि। इस प्रकार पुलिस न्यायालय, काराग्रह आदि शक्ति भी राजनीतिक शक्ति के उपकरण हैं। राजनीतिक शक्ति का प्रयोग सरकार के विभिन्न अंगों के द्वारा किया जाता है। जैसे कानून का निर्माण विधानमण्डल के द्वारा किया जाता है, कार्यपालिका कानून को लागू करता है तथा न्यायापालिका कानून की व्याख्या का काम करती है, रक्षा करती नौकरशाही तथा पुलिस के माध्यम से लोगों से कानून व नियमों का पालन करवाने में राजनीतिक शक्ति एक महत्वपूर्ण भू निभाती है।

 

  • मार्क्सवादी लोग भी शक्ति की अवधारणा में विश्वास करते है। मार्क्सवादी राजनीतिक शक्ति को पूंजीपति वर्ग के हाथों का एक ऐसा औजार मानते है जिसके द्वारा आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति ( पूंजीपति) गरीब लोगो का शोषण कर सके। मार्क्स राजनीतिक और आर्थिक शक्ति में अन्तर नही मानता है। बल्कि उसकी मान्यता है कि राजनीतिक शक्ति के उत्पादन के स्तर पर उन आर्थिक सम्बन्धों का परिणाम होती है, जिसके माध्यम से शासक वर्ग आर्थिक स्तर पर सम्पन्न वर्ग के हितों की पूर्ती के लिए बनायें रखना चाहता है। कुछ लोग राजनीतिक शक्ति और राजनीतिक क्षमता में अन्तर करते है जबकि ये दोनो एक दूसरे की पूरक है।

 

2. आर्थिक शक्तिः- 

  • आर्थिक शक्ति से आशय है कि जब कोई सम्पन्न व्यक्ति या राष्ट्र अपने धन, सम्पदा, उत्पादन के साधनों के बल पर निर्धन लोगों या निर्धन राष्ट्रों के जीवन की परिस्थितियों पर नियन्त्रण स्थापित करता है तो उसमें आर्थिक शक्ति निहित होती है। आर्थिक शक्ति राजनीतिक शक्ति पर हमेशा प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए, उदारीकरण के दौर में बड़े बड़े जमीदार, उघोगपति और व्यापारिक घराने सरकार की नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करते है और विकास की प्राथमिकताओं को निर्धारित के लिए अपने हितों को बढावा देते है।

 

  • आज के इस युग में,आर्थिक शक्ति के स्वामी भिन्न-भिन्न तरीको से राजनीति को प्रभावित करते है। उनके दबाब समूह ज्यादातर ताकतवर और प्रभावशाली होते है। उदाहरण के तौर पर भारत में व्यापारिक संगठन, किसान संगठन निर्बल और कमजोर होते है। वे सरकार को प्रभावित नही कर पाते है। कहा तो यह भी जाता है कि हमारी सरकार पूंजीपतियों के हाथ का खिलौना है। वे सरकार को अपने हितों के अनुसार नीतियाँ बनाने के लिए बाध्य करते है। क्योंकि जितने भी मुख्य समाचार पत्र पत्रिकाओं है उन पर व्यापारिक घरानों का कब्जा है। इसके अलावा बड़े-बड़े पूंजीपति और धन्ना सेठ अक्सर चोरी-छिपे राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को भारी वित्तीय सहायता देते है। चाहे राजनीतिक जनसाधारण के हितों की दुहाई देते हो, परन्तु भीतर से वे अपने वित्तदाताओं के हितो की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध होते है।

 

3. विचाराधारात्क शक्ति:- 

  • वैचारिक शक्ति वह शक्ति है जिसके माध्यम से शासक वर्ग जनता के धार्मिक,नैतिक व सामाजिक मूल्यों को, भावनाओं, परम्पराओं आदि को समक्षकर इस तरह प्रयोग करते हैं, जिससे साधारण जनता उनकी स्वामी भक्त बनी रहे और बिना किसी झंझट के आज्ञा पालन करती रहें।

 

  • वर्तमान समय में, भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्थाएं प्रचलित हैं, और उन्हें वैधता प्रदान करने के लिए पूंजीवाद, उदारवाद, साम्यवाद या समाजवाद इत्यादि को सर्वोत्तम शासन प्रणाली सिद्ध करने की कोशिश की जाती है। ये सारे वादे इन विचारधाराओं से सम्बन्धित है।

 

  • राजनीतिक विचारधारा की सबसे बड़ी विशेषता यह कि जब लोग मन से शासक वर्ग की नीतियों व निर्णयों का समर्थन करने लगते है और उन्हें चुनौती नहीं देना चाहते तब शक्ति शासक वर्ग की सत्ता को और सुदृढ़ बनाती है। मार्क्सवादी विचारकों के अनुसार वैचारिक शक्ति समाज में उपस्थित अन्य शक्तियों के बीच सम्बन्ध स्थापित करती है । यदि आर्थिक शक्ति, राजनीतिक शक्ति में बदलाव लाना चाहती है तो वह वैचारिक शक्ति का सहारा लेगी। मार्क्सवादी विचारक का चिन्तन का विषय ही यह है कि छोटा सा पूंजीपति वर्ग बहुसंख्यक सम्पन्न वर्ग पर, खुली प्रतियोगिता के बावजूद अपन प्रभुत्व कैसे जमाने में सफल रहता है। यह स्वाभाविक सी बात है समाज में जो वर्ग उत्पादन का स्वामी होता है वह मानसिक साधनों का भी स्वामी बन जाता है। इसी तरह पोलने का कथन है कि ”वैचारिक शक्ति समाज में सामंजस्य स्थापित करने तथा वर्ग विशेष के अधिपत्य को मजबूत करने का कार्य करती है। '

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