परम्परागत राजनीति विज्ञान का क्षेत्र | आधुनिक दृष्टिकोण: |Traditional Modern political science Vision
परम्परागत राजनीति विज्ञान का क्षेत्र , आधुनिक दृष्टिकोण:
परम्परागत राजनीति विज्ञान का क्षेत्र
किसी अनुशासन के अध्ययन क्षेत्र से तात्पर्य होता हैं कि उसमें किन-किन बातों / विषयों का अध्ययन किया जायेगा। राजनीति विज्ञान एक ऐसा अनुशासन है जिसके क्षेत्र का निश्चयात्मक अध्ययन करना जटिल कार्य है। समय के साथ-साथ इसके क्षेत्र में संकुचन व विस्तार होता चला आया है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हम इसका विवेचन परम्परागत परिप्रेक्ष्य व आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कर सकते-
अ-राजनीति विज्ञान का परम्परागत परिप्रेक्ष्य में क्षेत्र:-
प्राचीन काल में यूनान में राजनीति विज्ञान क्षेत्र विस्तृत था, क्योंकि तत्कालीन समय में राज्य न केवल एक राजनीतिक संस्था थी अपितु नैतिक संस्था भी थी। राज्य व समाज में किसी प्रकार का भेद नही था। मानव जीवन के प्रत्येक पहलु का अध्ययन इस अनुशासन के अन्तर्गत किया जाता था। यही कारण था कि अरस्तू ने राजनीति विज्ञान को “प्रधान विज्ञान" मास्टर साईंस की संज्ञा प्रदान की। कैटलिन ने अपनी पुस्तक ""पॉलिटिकल थियरीः व्हट इज इट?‘“ में इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है। अरस्तू ने राजनीति की परिधि में राष्ट्रीय राज्य व्यवस्थाएँ नागरिक, दास प्रथा, अन्तर्राष्ट्रीय राज्य-व्यवस्थाएँ, पैतृक व्यवस्थाएँ, धार्मिक संगठन, व्यापारिक संस्थान और कर्मचारियों के संगठन को भी शामिल कर लिया। रोमन साम्राज्य में राजनीति विज्ञान की परिधि में वैधानिकता का समावेश हो गया। मध्ययुग में राज विज्ञान का क्षेत्र 'चर्च व राज्य की सर्वोच्चता का संघर्ष' बन गया। बोंदा ने राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सम्प्रभुता के तत्व का समावेश कर दिया और राजनीति विज्ञान का अध्ययन सम्प्रभुता के संदर्भ में किया जाने लगा। ये राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के संकुचन का परिचायक था। 19वीं शताब्दी में अन्य विषयों के स्वतंत्र अनुशासन के रूप में अस्तित्व में आने के कारण राजनीति विज्ञान भी पृथक विषय बन गया है।
फ्रैडरिक पोलक ने परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को दो खण्डों में विभाजित किया हैं-
1. सैद्वान्तिक राजनीति विज्ञान
2. व्यवहारिक राजनीति विज्ञान
सैद्धान्तिक राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य की आधारभूत समस्याओं का अध्ययन किया है जबकि व्यवहारिक राजनीति विज्ञान में राज्य के क्रियात्मक स्वरूप तथा निरन्तर परिवर्तनशील सरकारों के वास्तविक रूप की विवेचना की जाती है। पोलक की भाँति गुडनॉव व सिजविक ने भी परम्परागत राजनीति विज्ञान का विभाजन किया है।
परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नांकित पाँच विषयों का अध्ययन किया जाता है-
(1) राज्य का अध्ययन -
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का वर्णन करते हुए गैटिल ने लिखा है, “राजनीति विज्ञान राज्य के भूतकालीन स्वरूप की ऐतिहासिक गवेषणा, उसके वर्तमान स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या तथा उसके आदर्श स्वरूप की राजनीतिक विवेचना है।" इस प्रकार राजनीति विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, उसका विकास, संगठन, आवश्यक तत्वों, प्रक्रियाओं, उददेश्यों, कार्यों के साथ-साथ नागरिकों के साथ उसके संबंधों तथा अन्य राज्यों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ उसके संबंधों का अध्ययन किया जाता है। गिलक्राइस्ट ने राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को परिभाषित करते हुए लिखा है, “राजनीति विज्ञान में यह बतलाया जाता है कि राज्य क्या है, क्या रहा है और इसे क्या होना चाहिए? गार्नर ने भी राजनीति विज्ञान का विषय राज्य घोषित किया है। उसने राजनीति विज्ञान को परिभाषित करते हुए लिखा हैं “राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ राज्य पर ही होता हैं।“ गैरीज, गुडनॉव, एक्टन, ब्लंटली तथा जकारिया ने भी राजनीति विज्ञान क्षेत्र राज्य घोषित किया है।
(2) सरकार का अध्ययन-
परम्परागत राजनीति विज्ञान में सरकार का अध्ययन किया जाता है: सरकार राज्य का अभिन्न अंग है राज्य एक अमूर्त संस्था है जबकि सरकार उसका मूर्त रूप है। क्रॉसे के अनुसार, “सरकार ही राज्य है और सरकार में ही राज्य पूर्णता प्राप्त कर सकता है, वस्तुतः सरकार के बिना राज्य का अध्ययन अपूर्ण है। सरकार राज्य की प्रभुसत्ता का प्रयोग करती है। सरकार ही राज्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यावहारिक रूप प्रदान रकती है। सरकार के विभिन्न रूपों का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में किया जाता है। सरकार के विभिन्न अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) का अध्ययन भी इसमें किया जाता है। लीकॉक ने तो स्पष्टतया, "राजनीतिशास्त्र को सरकार का अध्ययन कहा जाता है।"
(3) स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन-
प्राचीन भारतीय राजनीति विज्ञान में कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं, इन तीनों का समावेश किया। उसने ग्राम पंचायत, राष्ट्रीय संस्थाओं व परराष्ट्र संबंध का अध्ययन किया। इसी प्रकार यूनानी राजनीतिक चिन्तक अरस्तू ने भी इन तीनों श्रेणियों से संबंधित समस्याओं का अध्ययन 'पालिटिक्स में किया। स्थानीय संस्थाओं की कार्यप्रणाली का अध्ययन तथा इसमें नागरिकों का सहयोग आदि विषय राजनीति विज्ञान के महत्वपूर्ण अंग हैं। स्थानीय स्वायत्तता एवं शासन की समस्याओं का अध्ययन राष्ट्रीय समस्याओं की पृष्ठभूमि में किया जा सकता है।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय विधि, संबंधों व संगठनों का अध्ययन
राजनीति विज्ञान के अन्तर्ग - अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन किया जाता है, जैसे सन्धि, प्रत्यर्पण, मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर का अनुपालन आदि। इसके अतिरिक्त विभिन्न देशों के आपसी संबंधो व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का, राज्यों की विदेश नीति, युद्ध व शांतिकाल में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका आदि भी राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु है।
(5) राजनीतिक सिद्धान्तों व विचारधाराओं का अध्ययन-
राजनीति विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण विषय है “राजनीतिक सिद्धान्त"। इसके अन्तर्गत राज्य की उत्पत्ति, संगठन, विकास, प्रक्रिया से लेकर उसके उद्देश्यों व कार्यों संबंधी सभी सिद्धान्तों और जीवन के सामान्य तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। राजनीतिक सिद्धान्तों का जन्म 'संकटकाल में होता है जितने भी महान दार्शनिक या चिन्तक हुए हैं सब अपने युग के संकट काल की उपज हैं। उन पर इस संकट का इतना जबरदस्त प्रभाव रहा कि उन्होंने उसके समाधान के लिए ऐसें सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जो आज भी प्रासंगिक नजर आते है । उदाहरणार्थ- अरस्तू ने क्राँति के कारणों व समाधान का इतना गहन अध्ययन किया कि आज भी उसे कोई काट नही सकता। विचारधारा के रूप में राजनीतिक सिद्धान्त की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। मार्क्स की विचारधारा ने पूरे विश्व को दो धड़ों में विभाजित कर दिया। अतः राजनीति विज्ञान में विचारधाराओं का अध्ययन महत्वपूर्ण व अपृथक्करणीय अंग है।
(6)शासन प्रबन्ध का अध्ययन-
लोक प्रशासन राजनीति विज्ञान का एक भाग होते हुए भी आ पृथक विषय बन गया है परन्तु उसकी मूल बातों का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत आज भी किया जाता है। असैनिक कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, उन्नति, उनका जनता के प्रतिनिधियों से सम्बन्ध तथा प्रशासन को अति कुशल और लोकहितकारी तथा उत्तरदायी बनाने के बारे में अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाता है।
(7) अन्य सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन-
मनुष्य की जो राजनीतिक क्रियाएँ होती हैं वे उसकी परिस्थितियों की उपज होती हैं। आज मनुष्य आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक आदि अवधारणाओं से बँधा हुआ है। मनुष्य की राजनीतिक क्रियाओं के पूर्ण अध्ययन करते समय उक्त विषयों का अध्ययन भी होना चाहिए। कार्ल मार्क्स ने राजनीतिक क्रियाओं को समझने के लिए मनोविज्ञान के अध्ययन पर बल दिया। शिकागों संस्थान के विचारक मनुष्य के राजनीतिक क्रिया कलापों को समझने के लिए उसके समस्त सामाजिक वातावरण के अध्ययन पर बल देते हैं।
(8) राजनीतिक दलों तथा दबाव गुटों का अध्ययन-
राजनीतिक दल और दबाव गुट वे संस्थाएँ हैं जिनके द्वारा राजनीतिक जीवन को गति दी जाती है। आजकल तो राजनीतिक दलों और दबाव गुटों के अध्ययन का महत्व संविधान और शासन के औपचारिक संगठन के अध्ययन से अधिक है। इस प्रकार का अध्ययन राजनीतिक जीवन को वास्तविकता से सम्बन्धित करता है।
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण:
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) से पूर्व यह मान्यता थी कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन विषय केवल व्यक्तियों का राजनीतिक जीवन, राज्य और अन्य राजनीतिक संस्थाएँ ही हैं। यद्यपि ग्राहम वालास, ए0एफ0 बेंटले, केटलिन, लासवैल आदि विचारकों ने इस बात का प्रतिपादन किया था कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन केन्द्र राजनीतिक संस्थाओं को न मानकर इस संस्थाओं की चालक शक्ति- मानवीय व्यवहार को बनाया जाना चाहिए। युद्ध के पश्चात् यह प्रवृत्ति उग्र रूप से सामने आई और इसने एक क्रान्तिकारी रूप धारण कर लिया। इसके प्रवर्तक डेविड ईस्टन ने इसे व्यवहारवादी आन्दोलन का नाम दिया। व्यवहारवादी आन्दोलन में इस बात पर बल दिया जाता है कि मनुष्य अपना राजनीतिक जीवन एकान्त में व्यतीत नहीं करता वरन् समाज में रहकर व्यतीत करता है और समस्त सामाजिक जीवन के संदर्भ में ही मनुष्य के राजनीतिक जीवन को समझा जा सकता है।
1. आधुनिक राजनीति विज्ञान में राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययनः
आधुनिक राजनीति विज्ञान ‘राजनीतिक व्यवस्था’ के अध्ययन पर बल देता है। आधुनिक राजनीति वैज्ञानिकों डेविड ईस्टन एवं आमण्ड पावेल के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था पारस्परिक सम्बन्धों का ऐसा जाल है, जिसके द्वारा समाज सम्बन्धी आधिकारिक निर्णय लिये जाते हैं और उन्हें लागू किया जाता है। समाज में विद्यमान अन्य उपव्यवस्था जैसे आर्थिक व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था, सांस्कृति व्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अंतर है जो इसे अन्य उपव्यवस्थाओं में श्रेष्ठ स्थान प्रदान करती है। वह है इसके निर्णयों का आधिकारिक होना तथा सम्पूर्ण समाज पर लागू होना तथा समाज द्वारा इनका पालन न किये जाने की स्थिति में शक्ति के आधार पर इन्हें समाज पर बाध्यकारी रूप से आरोपित करना। राजनीतिक व्यवस्था की इसी विशेषता की ओर संकेत करते हुए डेविड ईस्टन ने लिखा है। कि, “यह राजनीतिक मूल्यों का सम्पूर्ण समाज के लिए आधिकारिक आबंटन है।" राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत आन्तरिक व वाह्य परिवेश, इनसे राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ने वाले तनावों व दबावों, परिवेश से आने वाली मॉगों व समर्थनों, शासन व्यवस्था के तीनों अंग, प्रतिसम्भरण प्रक्रिया आदि का अध्ययन किया जाता है।
2. अन्य सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन है:
राजनीति विज्ञान अन्य सामाजिक विज्ञानों से अलग हटकर अपनी समस्याओं का अध्ययन नहीं कर सकता। अन्य सामाजिक विज्ञान भी मानव से सम्बन्धित होने के कारण मानव के किसी विशेष पहलू का अध्ययन करते हैं। मानव जीवन के राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने में सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, मनोवैज्ञानिक आदि तत्व भी महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। राजनीति विज्ञान का अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन के बिना अधूरा माना जाता है। ग्राहम वालास आदि ने राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए मनोविज्ञान की ओर संकेत किया है। राजनीति विज्ञान जो एक समय अपने अध्ययन के लिए केवल राजनीतिक तत्वों का ही ध्यान रखता था, आज अपने अध्ययन में आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक आधारों की भी खोज करता है।
3. राजनीति विज्ञान शक्ति एवं प्रभाव का अध्ययनः
आधुनिक राजनीति विज्ञान से सम्बद्ध विद्वान, राजनीति विज्ञान को शक्ति एवं प्रभाव का अध्ययन मानते हैं। कैटलिन इसे 'शक्ति का विज्ञान' मानता है। लासवैल भी राजनीति विज्ञान को 'शक्ति के निर्धारण और सहभागिता' का अध्ययन मानता है।
4. राजनीतिक व्यवहार का अध्ययनः
यह माना जाता कि राजनीतिक संस्थाएँ जिसके द्वारा संचालित की जाती हैं, उसके अध्ययन को प्रमुखता दी जानी चाहिए। आज की लोकतान्त्रिक पद्धति में चुनाव, राजनीतिक घटनाओं को मानव व्यवहार प्रभावित करता है। इसलिए राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन आवश्यक है।
5. राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययनः
आधुनिक राजनीति विज्ञान के अध्ययन में राजनीतिक क्रियाओं को भी सम्मिलित किया जाता है क्योंकि इन सभी क्रियाओं के योग से ही राजनीतिक प्रक्रिया का जन्म होता है।
6. राजनीतिक विज्ञान सार्वजनिक सहमति और सामान्य मत का अध्ययनः
आधुनिक राजनीति विज्ञान के अध्ययन में सहमति और सामान्य मत का भी अध्ययन सम्मिलित किया जाता है। बेनफील्ड के शब्दों में, “किसी विषय अथवा समस्या को संघर्षमय बनाने अथवा सुलझाने वाली गतिविधियाँ (समझौता, वार्ता, तर्क-वितर्क, विचार-विनिमय, शक्ति प्रयोग आदि) राजनीति विज्ञान के अंग हैं। "
7. राजनीति विज्ञान समस्याओं व संघर्ष का अध्ययनः
डायक व ओडगार्ड के मत में आज राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत विभिन्न समस्याओं और संघर्षों का भी अध्ययन किया जाता है क्योंकि ये समस्याएँ एवं संघर्ष राजनीति विज्ञान को गम्भीर रूप से प्रभावित करती हैं।
8. विविध विषय क्षेत्रः
राजनीति विज्ञान के अनेक आधुनिक विद्वानों ने राजनीति विज्ञान में अनेक विविध विषयों को उसके विषय क्षेत्र में सम्मिलित किया है। वह राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था को राजनीति विज्ञान का विषय मानते हैं; कुछ अन्य विद्वान राजनीतिक संस्कृति, समाजीकरण, राजनीतिक-आर्थिक विकास आदि को आधुनिक राजनीति विज्ञान का अंग मानते हैं। राजनीतिक संचार को कुछ अन्य विद्वानों ने राजनीति विज्ञान का अंग कहा है, जबकि दूसरों ने राजनीतिक संस्थात्मक संचार व राजनीति को आधुनिक राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु में सम्मिलित किया है। आधुनिक राजनीति विज्ञान का कार्य, वास्तव में, कठिन कार्य है। वह परम्परागत राजनीति विज्ञान की उपलब्धियों व उनकी समस्याओं को अपने विषय क्षेत्र में समेट लेना चाहता है, साथ ही, वह भविष्य की राजनीतिक व्यवस्था तथा वर्तमान राजनीति की अनेक क्रियाओं, प्रक्रियाओं तथा उनकी वैज्ञानिक पद्धतियों को भी अपने विषय क्षेत्र में सम्मिलित करना चाहता है। इस संदर्भ में रोलां, पिनाक तथा स्मिथ ने राजनीति विज्ञान की विषय-सामग्री को ध्यान में रखते हुए उसकी परिभाषा बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की है। वे कहते हैं कि, “क्या है और क्या होना चाहिए तथा दोनों (यथार्थ एवं आदर्श) के बीच सामंजस्य कैसे बैठाया जाये, इस दृष्टि से सरकार और राजनीतिक प्रक्रिया के व्यवस्थित अध्ययन को राजनीतिक विज्ञान कहा जा सकता है। “
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