दसवें वित्त आयोग का गठन एवं सिफारिशें |10th Finance Commission in Hindi
दसवें वित्त आयोग की सिफारिशें तथा ग्यारहवें वित्त आयोग का दृष्टिकोण
दसवें वित्त आयोग की सिफारिशें
तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा 17 जून, 1987 को पूर्व केन्द्रीय मंत्री एन. के. पी. सालवे की अध्यक्षता में नवें वित्त आयोग का गठन किया गया। आयोग के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति अब्दुल सत्तार कुरेशी, योजना आयोग के सदस्य डॉ. राज, चेलैय्या, श्री ललथनवाला (भू.पू. मुख्यमन्त्री) और श्री महेश प्रसाद (सलाहकार योजना आयोग) हैं। श्री महेश प्रसाद ही इसके सचिव भी थे।
आयोग को सौंपे गये कार्य
(1) केन्द्रीय सरकार के करों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन के संबंध में सिफारिश: आयोग से कहा गया है कि वह केन्द्रीय सरकार के करों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन तथा राज्यों में आपस में विभाजन के सम्बन्ध में अपनी संस्तुति करे ।
(2) ॠण सम्बन्धी स्थिति का अध्ययन आयोग को यह भी कहा गया है कि वह 31 मार्च, 1989 की स्थिति के अनुसार राज्यों की ऋण स्थिति का मूल्यांकन करे और इस स्थिति को ठीक करने के लिए ऐसे रचनात्मक उपायों का सुझाव दे जिनको केन्द्र की वित्तीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये आवश्यक समझा जाये।
(3) विपत्तियों से पीड़ित राज्यों की सहायता : आयोग को यह भी कहा गया कि वह प्राकृतिक विपत्तियों से पीड़ित राज्यों द्वारा राहत कार्यों पर किये गये व्यय के सम्बन्ध में वित्त पोषण से सम्बन्धित नीति एवं प्रबन्ध की समीक्षा भी करे और अन्य जरूरी बातों के साथ अपव्यय से बचने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वर्तमान प्रबन्धकों में उन परिवर्तनों का सुझाव दें, जिन्हें वह उचित समझे ।
दसवें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न प्रकार हैं:
(1) आयकर (Income tax) आयोग ने कुल विभाजनीय कोष का 85 प्रतिशत राज्यों को देने की सिफारिश की है। आठवें आयोग का भी यही प्रतिशत था। इस प्रकार इसमें कोई परिवर्तन आयोग ने नहीं किया है।
(2) केन्द्रीय उत्पाद कर (Central Excise Duty) आयोग ने केन्द्रीय उत्पाद शुल्क से होनी वाली आय का 45 प्रतिशत राज्यों को देने की सिफारिश की है। यही सिफारिश आठवें आयोग का भी थी। इस प्रकार इसमें भी परिवर्तन नहीं किया गया है।
(3) बिक्री कर के स्थान पर उत्पादन कर (Additional Duties of Excise in Lieu of Sales Tax) इस मद पर वस्त्र, चीनी व तम्बाकू से होने वाली आय को राज्यों में आयोग द्वारा निर्धारित प्रतिशत के आधार पर बांटा जायेगा और जैसे उत्तर प्रदेश को 14.657% मध्य प्रदेश को 7.164% आदि ।
(4) रेलवे यात्री किराये पर लगाये गये कर के स्थान पर सहायता (Grants in Lieu of Tax on Railway Passage Faires ) : रेलवे से यात्रा करने वाले यात्रियों पर लगाये गये कर से प्राप्त आय को राज्यों में आयोग द्वारा निर्धारित प्रतिशत के आधार पर बांटा जायेगा। यह प्रतिशत विभिन्न राज्यों के लिये विभिन्न है। जैसे उत्तर प्रदेश को 15.438%, मध्य प्रदेश को 6.061%, महाराष्ट्र को 22.634% ।
(5) सहायता व्यय की वित्त व्यवस्था (Financing of Relief Expenditure ) : आयोग ने सिफारिश की है कि प्रत्येक राज्य में राहत कोष गठित किये जायें जिसमें 1990-95 में प्रतिवर्ष 603 करोड़ रुपये जमा किये जायेंगे। केन्द्र गैर योजना अनुदान के रूप में इसमें 75% हिस्सा जमा करेगा। शेष 25% प्रत्येक राज्य को अपने निजी कोष संसाधनों से जुटाना होगा। यह कोष किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा होगा। इस कोष का उपयोग राज्य सरकारें अपने आपातकाल में कर सकेंगी। इसके लिये हर राज्य का वित्त सचिव उस कोष का प्रधान होगा।
(6) राज्यों को अनुदान ( Grant-in-Aid to State ) राज्यों को गैर-योजना आगम खाते की कमी तथा कुछ योजना आगम खाते की कमी को पूरा करने के लिये आयोग द्वारा निर्धारित राशि को अनुदान के रूप में दिया जायेगा ।
(7) राज्यों को कर्ज सहायता (Debt Relief to States) : राज्यों को कतिपय केन्द्रीय कर्जे माफ कर दिये जायेंगे। राज्यों को पिछले 5 वर्षों के ऋण तथा 31 मार्च, 1990 की बाकी को अगले 15 वर्षों में देने के लिये पुनः भुगतान तालिका बनाई जायेगी। राज्यों को दिये जाने वाले ऋण अब 15 वर्ष के स्थान पर 20 वर्ष के होंगे।
( 8 ) अन्य सिफारिशें (Other Recommendations) (i) केन्द्र सरकार के वित्त आयोग प्रभाग के लिये एक सलाहकारी समिति बनाई जानी चाहिये। (ii) केन्द्रीय सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था के लिये पहले रिजर्व बैंक से सलाह कर राशि निर्धारित कर लेनी चाहिये, यदि घाटा इससे अधिक बढ़ता है तो उस पर संसद की स्वीकृति होनी चाहिये।
दसवें वित्त आयोग की आयोग की रिपोर्ट
आयोग की मुख्य और अन्तिम रिपोर्ट 18 दिसम्बर, 1988 को राष्ट्रपति को प्रस्तुत की गई। यह रिपोर्ट 1990 से 1995 तक पाँच वित्तीय वर्षों से संबंधित है। इस रिपोर्ट को 12 मार्च, 1990 को लोकसभा के सामने प्रस्तुत किया गया । आयोग की कुछ प्रमुख सिफारिशें निम्न थीं :
(I) केन्द्रीय करों एवं शुल्कों का बंटवारा :
(1) आयकर आयोग ने सिफारिश की कि आयकर के विभाजन योग्य भाग में राज्यों का भाग 85% बनाये रखना चाहिए। इसमें सबसे अधिक भाग 16.787% उत्तर प्रदेश का था
(2) अतिरिक्त उत्पादन शुल्क इसका 1.903% भाग केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिये रखकर शेष को अन्य राज्यों में बांट देना चाहिये। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश को 14.65% भाग मिलेगा।
(3) केन्द्रीय उत्पादन शुल्क : केन्द्रीय उत्पादन शुल्क की 45% राशि को प्रतिवर्ष विभिन्न राज्य सरकारों में एक निश्चित प्रतिशत में विभाजित किया जायेगा। यह प्रतिशत उत्तर प्रदेश के लिये 15.638%, बिहार के लिये 11.028% तथा मध्य प्रदेश के लिये 7.224% होगा।
(II) राहत व्ययों की वित्त व्यवस्था :
(1) आयोग ने सिफारिश की कि राहत व्ययों की वित्त व्यवस्था की वर्तमान पद्धति को एक नई पद्धति द्वारा बदला जायेगा जिसमें राज्य सरकारों की अधिक स्वायत्तता और हिसाब देयता होगी।
(2) प्रत्येक राज्य में प्रतिवर्ष एक आपदा राहत कोष बनाया जायेगा जिसमें 75% राशि केन्द्र सरकार देगी और 25% राज्य अपने साधनों से देगा।
(3) आपदा राहत कोष की राशि किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा होगी और यह राज्य सरकार के सामान्य आगम से अलग होगा।
(4) उपरोक्त कोष के प्रशासन के लिये प्रत्येक राज्य में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया जायेगा ।
(5) इस कोष में वार्षिक वृद्धि और उसके ब्याज का उपयोग आपदाओं को हल करने में किया जायेगा ।
(6) भोपाल में गैस पीड़ितों के पुनर्स्थापन तथा राहत कार्य पर व्यय की जाने वाली 163 करोड़ रुपये की राशि में 75% अंशदान केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाना चाहिये और 25% राशि मध्य प्रदेश सरकार को स्वयं जुटाना चाहिये।
(III) अनुदान :
(1) सन् 1990 से 1995 की पाँच वर्ष की अवधि में गैर योजना आगम खातों के घाटे तथा कुछ मात्रा में योजना आगम खाता के घाटों की पूर्ति के लिये केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को 15017.18 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया जायेगा।
(2) केन्द्र आपदा राहत कोष के प्रतिवर्ष 603 करोड़ रुपये का अनुदान देगा जिसमें राजस्थान को 93 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 67.5 करोड़ रुपये, आन्ध्र प्रदेश को 63.75 करोड़ रुपये, गुजरात को 23.75 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश को 22.75 करोड़ रुपये की राशि रखी गयी है। (3) भोपाल गैस पीड़ितों की सहायता के लिये केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली कुल 122.5 करोड़ रुपये की राशि 5 वार्षिक किस्तों में प्रदान की जायेगी।
(IV) ऋण राहत :
(1) सन् 1990-91 से केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को जो ऋण देगी उनकी परिपक्वता अवधि 20 वर्ष होनी चाहिये । ऋणों की आधी राशि ऐसी हो जिसमें 5 वर्ष का अनुग्रह अवधि की सुरक्षा हो
(2) लघु बचत संग्रह के विरुद्ध केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये ऋणों की शर्तों और दशा में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिये ।
(3) 1986 से 1989 की अवधि में अकाल के लिये राज्य सरकारों को जो ऋण दिये गये और 31 मार्च, 1989 तक अदत्त थे उन्हें अपलिखित कर देना चाहिये। (4) राज्यों को पाँच वर्ष की अवधि के दौरान (1984-89 ) जो राज्य योजना ऋण अग्रिम के रूप में दिये गये थे और जो 31 मार्च, 1990 को अदत्त थे, उन्हें 15 वर्ष की अवधि में वापसी के लिये पुनः निर्धारित किया जाना चाहिये
(5) भोपाल गैस दुर्घटना के संबंध में दिये गये 91.62 करोड़ रुपये के ऋण को अपलिखित कर देना चाहिये ।
(V) अतिरिक्त उत्पादन शुल्क को मूल उत्पादन शुल्क के साथ मिलाना : आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि अतिरिक्त शुल्क को मूल उत्पादन शुल्क में मिला देना चाहिये ।
(VI) विविध सिफारिशें :
(1) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि को कम करने के उपाय किये जाने चाहिये
(2) आगम व्यय में कमी करने के लिये तुरन्त विशेष कदम उठाया जाना चाहिये ।
(3) उन लोक उपक्रमों को दिये जाने वाले ऋणों, अनुदानों और उपदानों को कम करने का विचार करना चाहिये जो लगातार हानि पर चल रहे हैं।
(4) राजकोषीय अनुशासन की दृष्टि से केन्द्र और राज्य सरकारों के साथ एक समान व्यवहार किया जाना चाहिये। इसके लिये केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक से परामर्श करके प्रत्येक राज्य सरकार के लिये घाटे की वित्त व्यवस्था की सीमा निर्धारित करेगी।
दसवें वित्त आयोग की सिफारिशें
राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने जून, 1994 में श्री के. सी. पन्त की अध्यक्षता में दसवें वित्त आयोग का गठन किया। इस आयोग ने नवम्बर 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट की सिफारिशें 1 अप्रैल, 1995 से 31 मार्च, 2000 तक लागू रहेंगी। इस आयोग को आयकर, संघीय उत्पादन शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर सम्पदा शुल्क, पटसन निर्यात शुल्क के बदले अनुदान राशि, विपदा सहायता कोष ( Calamity Relief Fund) आदि के संदर्भ में सिफारिश प्रस्तुत करनी थी। दसवें वित्त आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों को मोटे तौर पर निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है:
(i) कर संसाधनों के वितरण संबंधी सिफारिशें ।
(ii) अनुदान संबंधी सिफारिशें ।
अब हम इन सिफारिशों की व्याख्या विस्तारपूर्वक करेंगे :
(1) कर संसाधनों के वितरण संबंधी सिफारिशें
(Recommendations Regarding Distribution of Tax Resources):
(i) आयकर (Income Tax) :
आयकर से प्राप्त होने वाली निबल प्राप्तियों में राज्यों का भाग प्रथम वित्त आयोग के समय 55% था जो सातवें, आठवें व नवें वित्त आयोग के समय बढ़कर 85% हो गया। दसवें वित्त आयोग ने राज्यों के अंश को घटाकर 77.5% कर दिया है। इस वित्त आयोग के अनुसार आयकर की प्राप्तियों का विभिन्न राज्यों में बंटवारा निम्न तरीके से किया जायेगा :
(क) 1971 की जनसंख्या के आधार पर 20 प्रतिशत;
(ख) 60% वितरण उच्चतम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य (पंजाब) से राज्य विशेष की प्रति व्यक्ति आय अन्तर के आधार पर होगा।
(घ) दसवें वित्त आयोग द्वारा तैयार संरचना के सूचकांक (index of infrastructure) के आधार पर 5% और
(ड) राज्य द्वारा कर के लिए किये गये प्रयास के आधार पर 10% वितरण किया जायेगा। इस कर प्रयास की माप राज्य की प्रति व्यक्ति आय और राज्य का प्रति व्यक्ति कर आगम के अनुपात के आधार पर की जायेगी।
(ii) संघीय उत्पाद शुल्क (Union Excise Duties) :
आठवें व नवें वित्त आयोगों ने संघीय उत्पाद शुल्क में राज्यों का अंश 45% रखा था जिसे दसवें वित्त आयोग ने बढ़ाकर 47.5% कर दिया। ऐसा आयकर में राज्यों के
अंश में कमी के कारण क्षतिपूर्ति करने के लिए किया गया। इस 47.5% अंश में से 7.5% भाग का बंटवारा घाटे वाले राज्यों (deficit states ) में किया जायेगा। संघीय उत्पाद शुल्क की निवल प्राप्तियों के 40% भाग का बंटवारा उसी आधार पर किया जायेगा जिस आधार पर आयकर की निबल प्राप्तियों का किया जाता है।
(iii) अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Additional Duties of Excise) :
दिसम्बर 1956 में राष्ट्रीय विकास परिषद में हुए समझौते के आधार पर ही केन्द्रीय सरकार इन शुल्कों को लगाती है। इस समझौते के अनुसार कपड़ा, तंबाकू और चीनी पर बिक्री कर के स्थान पर संघीय उत्पाद शुल्क पर अधिभार (सरचार्ज) लगाया जायेगा और इससे प्राप्त राशि का विभिन्न राज्यों में वितरण राज्य में इन वस्तुओं के उपभोग के आधार पर किया जायेगा। परन्तु बाद में विभिन्न वित्त आयोगों ने वितरण के इस आधार को बदल दिया। दसवें वित्त आयोग के अनुसार अतिरिक्त उत्पाद शुल्कों से प्राप्त होने वाली निबल प्राप्तियों का 50% भाग वर्ष 1991 में राज्य की जनसंख्या की जनगणना के आधार पर, अन्तिम तीन वर्षों (1987-88 से 1989-90 ) जिनके राज्य के घरेलू उत्पाद के आँकड़े उपलब्ध हैं, के औसत के आधार पर 40% भाग का वितरण तथा अन्तिम तीन वर्षों (1990-91 से 1992-93 ) में औसतन संग्रहित राज्य बिक्री कर के आधार पर 10% भाग का वितरण किया जायेगा। केन्द्र सरकार द्वारा 2.203% भाग संघीय क्षेत्रों के लिए अपने पास रखा जायेगा।
(iv) सम्पदा शुल्क (Estate Duty) :
जहाँ तक शुल्क से प्राप्त आगम का राज्यों के बीच वितरण का संबंध है, नवें तथा दसवें वित्त आयोग ने इस संदर्भ में कोई सिफारिश नहीं की है। राज्यों के बीच आगम का वितरण पूर्ववत् किया जाता रहेगा।
(2) अनुदान संबंधी सिफारिशें (Recommendations Regarding Grants-in-aid) :
संविधान की धारा 275 और 282 में अनुदान के बारे में कहा गया है। धारा 275 के अनुसार राज्यों को उनकी जरूरत के समय अनुदान दिया जायेगा और इसकी मात्रा का निर्धारण वित्त आयोगों द्वारा किया जायेगा। इसके विपरीत धारा 282 में किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान दिया जा सकता है तथा इसकी मात्रा का निर्धारण संघ सरकार अपनी स्वेच्छा से करेगी। जहाँ तक धारा 275 के अन्तर्गत अनुदान के वितरण का संबंध है, प्रथम वित्त आयोग ने राज्यों को अनुदान दिये जाने के कुछ सिद्धान्तों का उल्लेख किया जो बजटीय आवश्यकता, कर प्रयास, व्यय में मितव्ययिता, विशिष्ट सेवाओं में मानक स्तर, विशिष्ट जिम्मेदारी और राष्ट्रीय महत्व के आधारभूत उद्देश्य आदि हैं। लेकिन व्यवहार में वित्त आयोग राज्यों की बजटीय आवश्यकता के आधार पर ही संसाधनों का हस्तांतरण करता रहा है। बाद में लगभग सभी वित्त आयोगों ने इसे काफी महत्व दिया है। दसवें वित्त आयोग ने राज्यों को आय कर व संघीय उत्पाद शुल्क से प्राप्त होने वाली धनराशि तथा अतिरिक्त उत्पाद शुल्क व रेलवे यात्री कर के बदले में मिलने वाले अनुमान के पश्चात् राज्यों को गैर-योजना आगम के कारण होने वाले घाटे की मात्रा का अनुमान लगाया है। आयोग के अनुसार सभी राज्यों का 1995-2000 की पंचवर्षीय अवधि में कुल घाटा 7582.68 करोड़ रुपये होगा।
आयोग ने धारा 275 (1) के अन्तर्गत घाटे की मात्रा के समान ही अनुदान देने की सिफारिश की है। गुजरात महाराष्ट्र, तमिलनाडु व पंजाब को कोई अनुदान नहीं दिया जायेगा। जिन 16 राज्यों को यह अनुदान प्राप्त होता है. सबसे अधिक धनराशि जम्मू व कश्मीर (1184.83 करोड़ रु.), उत्तर प्रदेश (982 करोड़ रुपये), हिमाचल प्रदेश (772.18 करोड़ रु.) व असम (712.03 करोड रु) को प्राप्त होगी। दसवें वित्त आयोग ने यह सिफारिश भी की है कि उपरोक्त राशि के अलावा राज्यों को 2608.50 करोड़ रु. प्रशासन के स्तर में सुधार व विशिष्ट समस्याओं के लिए 4728.19 करोड़ रु. की धनराशि विपदा सहायता का व्यय वहन करने के लिए तथा संविधान के 73 व 74वें संशोधन के आधार पर स्थानीय निकायों का 5380.93 करोड़ रु. दिया जायेगा। दसवें वित्त आयोग के अनुसार केन्द्र से राज्यों को 1995 से 2000 की अवधि में 226643.30 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये जायेंगे जिनमें से 206343 करोड़ रुपये करों से प्राप्तियों के रूप में तथा 20300.30 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दिये जायेंगे ।
यद्यपि आयोग ने प्रयास किया है कि राज्यों, विशेषकर पिछड़े व घाटे वाले राज्यों को अधिक वित्तीय राशि का वितरण हो, परन्तु ऐसा नहीं हो सकता है। आयकर की प्राप्तियों का विभिन्न राज्यों में जो वितरण किया गया है, उसका ज्यादा लाभ औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों को हुआ है। दसवें वित्त आयोग के अनुसार महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु व पश्चिमी बंगाल को आयकर प्राप्तियों में से 24% भाग प्राप्त होगा। लगभग सभी वित्त आयोगों ने अनुदान की मात्रा निश्चित करते समय बजटीय घाटे को बहुत अधिक महत्व दिया है। यह देखने में आया है कि विकसित राज्य जानबूझकर बजट घाटा अधिक रखते हैं और फलस्वरूप अधिक अनुदान प्राप्त करते हैं। इस प्रकार गरीब राज्यों की तुलना में अमीर राज्यों को अधिक अनुदान राशि प्राप्त हो जाती है। केन्द्र सरकार द्वारा विवेकाधीन कोटे से जो अनुदान राशि राज्यों को दी जाती है वह उनकी गरीबी के आधार पर नहीं दी जाती। यह केवल राजनीतिक महत्व के आधार पर दी जाती है। विवेकाधीन कोटे से दी जाने वाली अनुदान राशि से गरीब राज्यों को अमीर राज्यों की तुलना में कोई लाभ नहीं हो पाया है।
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