राजवित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्ध अधिनियम, 2003 |Fiscal Responsibilities and Budget Management Act, 2003

 राजवित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्ध अधिनियम2003 
(Fiscal Responsibilities and Budget Management Act, 2003)
राजवित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्ध अधिनियम, 2003 |Fiscal Responsibilities and Budget Management Act, 2003
 

राजवित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्ध अधिनियम, 2003

राजवित्तीय प्रबन्ध में अंतः विकासशील साम्या और पर्याप्त राजस्व अधिशेष प्राप्त करके और मुद्रा नीति के प्रभावी संचालन में राजवित्तीय बाधाओं को दूर करके और केन्द्रीय सरकार के उधारों, ऋणों और घाटों पर सीमाओं द्वारा राजवित्तीय धारणीयता से संगत विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन, केन्द्रीय सरकार की राजवित्तीय संक्रियाओं में और पारदर्शिता तथा मध्यम कालिक रूपरेखा में राजवित्तीय नीति का संचालन करके दीर्घकालीन समष्टि आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय सरकार के उत्तरदायित्व का तथा उससे संसक्त या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के चौवनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :

 

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ -

 

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम राजवित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्ध अधिनियम, 2003 है। 

(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है। 

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार इस निमित्त, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

 

2. परिभाषाएं:

 

(क) राजवित्तीय घाटा से किसी वित्तीय वर्ष के दौरान भारत की संचित निधि से ऋण के प्रतिसंदाय को अपवर्जित करते हुए, निधि में कुल प्राप्तियों से (ऋण संबंधी प्राप्तियों को अपवर्जित करते हुए) कुल संवितरण का आधिक्य अभिप्रेत है;

 

(क) वास्तविक राजस्व घाटे से राजस्व घाटे और पूंजी आस्तियों के सृजन के लिए अनुदानों के बीच का अंतर अभिप्रेत है।

 

(ख) राजवित्तीय संकेतकों से केंद्रीय सरकार की राजवित्तीय स्थिति के मूल्यांकन के लिए संख्यात्मक सीमाएं और सकल देशी उत्पाद का अनुपात जैसे उपाय, जो विहित किए जाएं, अभिप्रेत हैं;

 

(ख) पूंजी आस्तियों के सृजन के लिए अनुदान से केंद्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकारों, सांविधानिक प्राधिकरणों या निकायों, स्वायत्त निकायों, स्थानीय निकायों और ऐसी पूंजी आस्तियों के सृजन के लिए अन्य स्कीम कार्यान्वयन अभिकरणों को, जो उक्त इकाइयों के स्वामित्वाधीन हैं, दिया गया सहायता अनुदान अभिप्रेत है;

 

(ग) विहित से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

 

(घ) रिजर्व बैंक से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 ( 1934 का 2) की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन गठित भारतीय रिजर्व बैंक अभिप्रेत है;

 

(ड) राजस्व घाटे से राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों के बीच का अंतर अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार की आस्तियों में तत्समान वृद्धि के बिना उस सरकार के दायित्वों में वृद्धि इंगित करता है;

 

(च) कुल दायित्व से भारत की संचित निधि और भारत के लोक लेखा के अधीन दायित्व अभिप्रेत हैं।


3. संसद के समक्ष रखे जाने वाले राजवित्तीय नीति संबंधी विवरण -

 

(1) केन्द्रीय सरकार प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वार्षिक वित्तीय विवरण और (मध्यकालिक व्यय रूपरेखा विवरण के लिए अनुदान मांगों ) के साथ निम्नलिखित विवरण संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखेगी, अर्थात्

 

(i) मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति संबंधी विवरण: 

(ii) राजवित्तीय नीति युक्ति विवरण: 

(iii) बृहत् आर्थिक रूपरेखा विवरण: 

(iv) मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण

 

1 [(1क) उपधारा (1) के खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट विवरणों के साथ 

अंतर्निहित धारणाओं के विस्तृत विश्लेषण वाला मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण होगा। 

(1ख) केंद्रीय सरकार, उपधारा (1) के खंड (घ) में निर्दिष्ट मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण को संसद् के उस सत्र के, जिसमें खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट नीति संबंधी विवरणों को उपधारा (1) के अधीन रखा जाता है, ठीक आगामी सत्र में संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखेगी। ]

 

(2) मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति संबंधी विवरण में अंतर्निहित धारणाओं के प्रति विनिर्देश सहित विहित राजवित्तीय संकेतकों के लिए एक तीन वर्षीय चल लक्ष्य उपवर्णित होगा।

 

(3) विशिष्टतया और उपधारा (2) में अंतर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति विवरण में निम्नलिखित से संबंधित वहनीयता का निर्धारण सम्मिलित होगा- (i) राजस्व प्राप्तियों और राजस्व व्यय के बीच संतुलनय

 

(ii) उत्पादक आस्तियों के जनन के लिए बाजार उघार सहित पूंजी प्राप्तियों का प्रयोग ।

 

(4) राजवित्तीय नीति युक्ति विवरण में, अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित होगा. - (क) कराधान, व्यय, बाजार - उधार और अन्य दायित्वों, उधार देने और विनिधान, प्रशासित माल और सेवाओं के मूल्य निर्धारण, प्रतिभूतियों तथा ऐसे अन्य क्रियाकलापों जैसे हामीदारी और प्रत्याभूतियां, जिनकी संभावी बजटीय विवक्षाएं हैं, के वर्णन से संबंधित आगामी वित्तीय वर्ष के लिए केन्द्रीय सरकार की नीतियां;

 

(ख) राजवित्तीय क्षेत्र में आगामी वित्तीय वर्ष के लिए केन्द्रीय सरकार की कार्य-नीति संबंधी प्राथमिकताएं,

 

(ग) कराधान, सहायकी, व्यय, प्रशासित मूल्य निर्धारण और उधारों से संबंधित राजवित्तीय उपायों में किसी मुख्य विचलन के लिए मुख्य राजवित्तीय उपाय और मूलाधार

 

(घ) एक मूल्यांकन कि केन्द्रीय सरकार की चालू नीतियां धारा 4 में उपवर्णित राजवित्तीय प्रबंध सिद्धांतों और मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति विवरण में उपवर्णित उद्देश्यों के किस प्रकार अनुरूप है।

 

(5) बृहत् आर्थिक रूपरेखा विवरण में अंतर्निहित धारणाओं के विनिर्देश के साथ अर्थव्यवस्था की वृद्धि की संभावनाओं का निर्धारण अंतर्विष्ट होगा।

 

(6) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बृहत् आर्थिक रूपरेखा विवरण में निम्नलिखित के संबंध में निर्धारण अंतर्विष्ट होगा-

 

(क) सकल देशी उत्पाद में वृद्धि; 

(ख) राजस्व अतिशेष और सकल राजवित्तीय अतिशेष में यथाउपदर्शित संघ सरकार का राजवित्तीय अतिशेषय 

(ग) संदायों के अतिशेष के चालू लेखा अतिशेष में यथाउपदर्शित अर्थव्यवस्था का बाह्य सेक्टर अतिशेष । ( 67 ) (क) मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण में अंतर्निहित धारणाओं और अंतर्वलित जोखिम के विनिर्देश वाले विहित व्यय संकेतकों के लिए एक तीन वर्षीय चल लक्ष्य उपवर्णित होगा । 

(ख) विशिष्टतया और खंड (क) में अंतर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित अंतर्विष्ट होगा-

 

(i) प्रमुख नीति परिवर्तनों की, जिनमें नई सेवा, सेवा के नए साधन नई स्कीमें और कार्यक्रम अंतर्वलित हैं, व्यय प्रतिबद्धता; 

(ii) स्पष्ट समाश्रित दायित्व, जो बहुवर्षीय समय-सीमा के लिए अनुबंधित वार्षिकी संदायों के रूप में हैं, 

(iii) पूंजी आस्तियों के सृजन के लिए अनुदानों का अलग-अलग विस्तृत ब्यौरा

 

(7) उपधारा (1) में निर्दिष्ट मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति संबंधी विवरण, [ राजवित्तीय नीति युक्ति विवरण, मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण] और बृहत् आर्थिक रूपरेखा विवरण ऐसे प्ररूप में होंगे जो विहित किए जाएं।

 

4. राजवित्तीय प्रबंध सिद्धांत -

 

[ (1) केन्द्रीय सरकार राजवित्तीय घाटे, राजस्व घाटे तथा वास्तविक राजस्व घाटे को कम करने के लिए ऐसे समुचित उपाय करेगी, जिससे (31 मार्च, 2018) तक वास्तविक राजस्व घाटे को समाप्त किया जा सके और तत्पश्चात् पर्याप्त वास्तविक राजस्व अधिशेष का निर्माण किया जा सके और उसके पश्चात् जैसा केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित किया जाए, राजस्व घाटे को 3 ( 31 मार्च, 2018 ) तक और उसके पश्चात् सकल देशी उत्पाद के दो प्रतिशत से अनधिक तक भी लाया जा सके।]

 

[ ( 2 ) केन्द्रीय सरकार, उसके द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा -

 

[ (क) इस अधिनियम के प्रारंभ से आरम्भ होने वाली और 3 [31 मार्च, 2018 ] को समाप्त होने वाली अवधि के दौरान 2 [ राजवित्तीय घाटे, राजस्व घाटे और वास्तविक राजस्व घाटे ] को कम करने के लिए वार्षिक लक्ष्य विनिर्दिष्ट करेगी;

 

(ख) सकल देशी उत्पाद के प्रतिशत के तौर पर प्रतिभूतियों और कुल दायित्वों के रूप में प्राक्कलित आकस्मिक दायित्वों की धारणा करते हुए वार्षिक लक्ष्य विनिर्दिष्ट करेगा परन्तु राजस्व घाटा 2. [ वास्तविक राजस्व घाटा ] और राजवित्तीय घाटा, राष्ट्रीय सुरक्षा या राष्ट्रीय आपदा के आधार या आधारों अथवा ऐसे अन्य आधारों के कारण जिन्हें केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे ऐसे लक्ष्यों से अधिक हो सकेगा परन्तु यह और कि पहले परंतुक में विनिर्दिष्ट आधार या आधारों को ऐसे घाटे की रकम पूर्वोक्त लक्ष्यों से अधिक होने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा।

 

5. रिजर्व बैंक से उधार - 

(1) केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से उधार नहीं लेगी। 

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी केन्द्रीय सरकार रिजर्व बैंक से, ऐसे करारों के अनुसार, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा रिजर्व बैंक के साथ किए जाएं किसी वित्तीय वर्ष के दौरान नकद प्राप्तियों से अधिक नकद संवितरण के अस्थायी आधिक्य को पूरा करने के लिए अग्रिम के रूप में उधार ले सकेगी; परन्तु किसी वित्तीय वर्ष में नकद प्राप्ति से अधिक नकद संवितरण के अस्थायी आधिक्य को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए अग्रिमों का प्रतिसंदाय भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 17 की उपधारा (5) में अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार किया जाएगा। 

(3) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी रिजर्व बैंक, 1 अप्रैल, 2003 से प्रारंभ होने वाले वित्तीय वर्ष और पश्चात्वर्ती दो वित्तीय वर्षों के दौरान केन्द्रीय सरकार की प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गमनों में अभिदाय कर सकेगा, परन्तु रिजर्व बैंक इस उपधारा में विनिर्दिष्ट अवधि पर या उसके पश्चात्, धारा 4 की उपधारा (2) के पहले परंतुक में विनिर्दिष्ट आधार या आधारों के कारण केन्द्रीय सरकार की प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गमों में अभिदाय कर सकेगी।

 

(4) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी रिजर्व बैंक, द्वितीयक बाजार में केन्द्रीय सरकार की प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय कर सकेगा।

 

6. राजवित्तीय पारदर्शिता के लिए उपाय -

 

(1) केन्द्रीय सरकार, लोकहित में अपनी राजवित्तीय संक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता को सुनिश्चित करने तथा वार्षिक वित्तीय विवरण और अनुदानों की मांग को तैयार करने में गोपनीयता को यथासाध्य कम करने के लिए युक्तियुक्त उपाय करेगी।

 

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार, वार्षिक वित्तीय विवरण और अनुदानों की मांग प्रस्तुत करते समय ऐसा प्रकटन ऐसे प्ररूप में करेगी, जो विहित किया जाए।

 

7. अनुपालन करवाने के लिए उपाय

 

(1) वित्त मंत्रालय का भारसाधक मंत्री प्रत्येक तिमाही पर बजट से संबंधित प्राप्तियों और व्यय के रुखों का पुनर्विलोकन करेगा और ऐसे पुनर्विलोकन के परिणाम को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखेगा।

 

(2) जब कभी किसी वित्तीय वर्ष में किसी अवधि के दौरान राजवित्तीय नीति युक्ति विवरण में और इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में वर्णित पूर्व विनिर्दिष्ट स्तरों से अधिक या तो राजस्व में गिरावट आती है या अधिक व्यय होता है तब केन्द्रीय सरकार राजस्व में वृद्धि करने के लिए या व्यय में कमी करने के लिए (जिसके अंतर्गत किसी अधिनियम के अधीन भारत की संचित निधि में से संदत्त और उपयोजित किए जाने के लिए प्राधिकृत राशियों में कटौती करना भी है जिससे कि ऐसी धनराशि के विनियोग के लिए उपबंध किया जा सके ) समुचित उपाय करेगी: परंतु इस उपधारा में की कोई बात संविधान के अनुच्छेद 112 के खंड (3) के अधीन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय या किसी ऐसे अन्य व्यय को, जो किसी करार या संविदा के अधीन उपगत किए जाने के लिए अपेक्षित है या ऐसे अन्य व्यय को, जिसे स्थगित या कम नहीं किया जा सकता, लागू नहीं होगी।

 

( 3 ) (क) इस अधिनियम में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार पर आने वाली बाध्यताओं को पूरा करने में कोई भी विचलन संसद् के अनुमोदन के बिना अनुज्ञेय नहीं होगा ।

 

(ख) जहां अकल्पित परिस्थितियों के कारण, इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार पर आने वाली बाध्यताओं को पूरा करने में कोई विचलन हुआ है वहां वित्त मंत्रालय का भारसाधक मंत्री संसद के दोनों सदनों में निम्नलिखित के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कथन करेगा-

 

(i) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार पर आने वाली बाध्यताओं को पूरा करने में कोई विचलन;

(ii) क्या ऐसा विचलन तात्त्विक है और वह वास्तविक या संभावित बजट परिणामों से संबंधित है, और 

(iii) ऐसे उपचारी उपाय जिन्हें करने का केन्द्रीय सरकार का प्रस्ताव है।

 

[7क. पुनर्विलोकन रिपोर्टों का रखा जाना - • केंद्रीय सरकार, भारत के नियंत्रक - महालेखापरीक्षक को इस अधिनियम के उपबंधों के अनुपालन का ऐसे आवधिक रूप से, जो अपेक्षित हो, पुनर्विलोकन करने के लिए न्यस्त कर सकेगी और ऐसे पुनर्विलोकनों को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा जाएगा।]

 

नियम बनाने की शक्ति -

 

(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, नियम बना सकेगी । 

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों की बाबत उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात् : 

(क) धारा 4 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट किए जाने वाले वार्षिक लक्ष्य, (ख) धारा 3 की उपधारा (2) के प्रयोजन के लिए विहित किए जाने वाले राजवित्तीय संकेतक 

[ ( ख क ) धारा 3 की उपधारा (6क) के खंड (क) के अधीन अंतर्निहित धारणाओं और अंतर्वलित जोखिमों के विनिर्देशों सहित व्यय संकेतक 

(ग) धारा 3 की उपधारा (7) में निर्दिष्ट मध्यम कालिक राजवित्तीय नीति विवरण, खाजवित्तीय नीति युक्ति विवरण, मध्यम कालिक व्यय रूपरेखा विवरण और बृहत् आर्थिक रूपरेखा विवरण के प्ररूप 

2 [ ( गक) धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन 31 मार्च, 2015 के पश्चात् विनिर्दिष्ट किए जाने वाला राजस्व घाटे का प्रतिशत

 

(घ) प्रकटन और वह प्ररूप जिसमें धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे प्रकटन किए जाएंगे (ड) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जाए।

 

9. संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखे जाने वाले नियम 

इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो, जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकती है, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्र के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं या दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसा नियम, यथास्थिति, तत्पश्चात् केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा, तथापि उस नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

 

10. सद्भावपूर्वक किए गए कार्य का संरक्षण - 

इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या किए जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी के विरुद्ध नहीं होगी।

 

11. सिविल न्यायालय की अधिकारिता का वर्जन 

किसी भी सिविल न्यायालय को इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई किसी कार्रवाई या उसके किसी विनिश्चय की वैधता को प्रश्नगत करने की अधिकारिता नहीं होगी।

 

12. वर्जित न की गई अन्य विधियों का लागू होना

 इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे, न कि उनके अल्पीकरण में ।

 

13. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति 

(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों परंतु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।

 

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.