वायुमंडल की संरचना |क्षोभमंडल, समताप मंडल तथा मध्यमंडल | विकिरण पेटियां |Atmosphere layers in Hindi
वायुमंडल की संरचना क्षोभमंडल, समताप मंडल तथा मध्यमंडल
वायुमंडल
पृथ्वी से सैकड़ों कि.मी. ऊपर तक, पृथ्वी को चारों ओर से एक आवरण की भांति घेरे हुए वायु के भंडार को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। वायुमंडल के पृथ्वी के साथ बने रहने का प्रमुख कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण है। इस आकर्षण के न होने पर संभवतः पृथ्वी पर कोई वायुमंडल नहीं होता ।
शुष्क वायु की सरंचना
घटक- प्रतिशत द्रव्यमान
नाइट्रोजन (N)- 78.8
ऑक्सीजन (O )- 20.95
ऑर्गन (Ar) -
कार्बन-डाई-ऑक्साइड (Co2) -
निऑन (Ne) -0.002
क्रिप्टॉन (Kr)- 0.001
हीलियम (He) -0.0005
जेनॉन (xe) -
हाइड्रोजन (H)-
ओजोन (O3) -
वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड तथा जलवाष्प की मात्रा परिवर्तनशील होती है तथा इनकी मात्राओं में स्थान तथा समयानुसार परिवर्तन देखने को मिलता है।
वायुमंडल की संरचना
वायु का संघटन एवं इसकी संरचना लगभग निश्चित हैं। वायुमंडल की संरचना से तात्पर्य है इसका विभिन्न परतों से बना होना। वायुमंडल में पांच प्रमुख परतें पाई जाती हैं। इन परतों के बीच-बीच में संकरी संक्रमण पेटियां पाई जाती हैं क्षोभमंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल, अयन मंडल तथा बहिर्मण्डल वायुमंडल की प्रमुख परतें हैं। वायुमंडल को मुख्य रूप से दो भागों, सममंडल व विषम मंडल, के रूप में भी विभक्त किया जा सकता है। सममंडल की रासायनिक संरचना लगभग एकसमान है। इसके विपरीत विषम मंडल की रासायनिक और विषम मंडल का भाग हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न परतों की भौतिक संरचना में अंतर पाए जाते हैं। सममंडल में तीन परतों, क्षोभमंडल, समताप मंडल तथा मध्यमंडल को सम्मिलित किया जाता है अयनमंडल व बहिर्मण्डल विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रस्तुत किया गया है।
क्षोभमंडल
इस परत का विस्तार पृथ्वी के तल से थोड़ा ऊपर तक है। पृथ्वी पर जीवन उपस्थित होने का प्रमुख कारण क्षोभमंडल में विद्यमान विभिन्न गैसें हैं। धरातल से इसकी ऊंचाई ध्रुवों पर 8 कि.मी. और विषुवत रेखा पर 16 कि.मी. तक मानी जाती है।
- क्षोभमंडल की ऊंचाई गर्मियों में अधिक और सर्दियों में कम होती है। क्षोभमंडल में धूल कण, जल वाष्प तथा अन्य गैसें विद्यमान हैं जिनके कारण मौसम संबंधी प्रक्रियाएं तथा घटनाएं जैसे कि संवहन, बादल बनना, वर्षण तूफान आदि इसी परत में घटित होती हैं। इस परत में ऊंचाई में वृद्धि के साथ तापमान में गिरावट आना इसकी प्रमुख विशेषता हैं।
- सर्वोच्च तापमान विषुवतीय प्रदेशों में तथा न्यूनतम तापमान ध्रुवीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। इस परत में ऊंचाई में वृद्धि के साथ तापमान में 1°C / 165मी या 6-5°C प्रति कि.मी. की दर से गिरावट देखने को मिलती है। इसे तापह्रास दर कहते हैं तापहास दर इस पूरी परत में एक समान नहीं होती। सामान्यतया क्षोभमंडल के निचले भाग में यह दर अधिक तथा ऊंचाई पर जाने पर कम होती जाती है। क्षोभमंडल की ऊपरी सीमा, क्षोभ सीमा पर तापहास दर 0°C हो जाती है। तापहास दर केवल ऊंचाई से ही नहीं बल्कि अक्षांशों से भी प्रभावित होती है। एक नियम के अनुसार यह दर उच्च तापमान वाले धरातल के ऊपर उच्च तथा निम्न तापमान वाले धरातल के ऊपर कम होती है। क्षोभसीमा की ऊंचाई विषुवत रेखा के ऊपर अधिक तथा ध्रुवों के ऊपर कम होती है। इसकी ऊपरी सीमा पर ध्रुवों पर तापमान (लगभग – 50°c ), विषुवत्त रेखा के ऊपर के तापमान (लगभग - 80°c ) से अधिक होता है। तापमान में यह अंतर क्षोभमंडल के विभिन्न भागों में तापमान के गिरने की दर में विभिन्नता का परिणाम होता है।
समताप मंडल -
- समताप मंडल वायुमंडल की दूसरी परत है जो कि क्षोभमंडल के ऊपर स्थित है। यहां पर तापमान का क्षैतिज वितरण एक समान होता है। वायुमंडल की यह परत किसी भी प्रकार के धरातलीय तापमान संबंधी प्रभावों से मुक्त होती हैं। इस परत में वायुमंडल की अधिकांश ओजोन पाई जाती है जो कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है जिसके परिणामस्वरूप इस परत में ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती पाई जाती है। यहां का वायुमंडल धूल कणों तथा मौसमी घटनाओं से मुक्त - होता है जिस कारण यह परत जेट वायुयानों को उड़ाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस परत का विस्तार 50 कि.मी. की ऊंचाई तक माना जाता है जहां स्त्रेटोपोज परत इसे मध्यमंडल से अलग करती है। समताप मंडल के ऊपरी भाग को जहां ओजोन की मात्रा अधिक होती है, ओजोन मंडल अथवा ओजोन परत भी कहा जाता है।
मध्यमंडल -
- मध्यमंडल का विस्तार स्ट्रेटोपाज के ऊपर 80 कि. मी. की ऊंचाई तक माना जाता है। इस परत में क्षोभमंडल के समान ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में गिरावट आती है। इस परत के ऊपरी भाग में तापमान इसके आधार पर से से 100 से तक गिर जाता है। यह मुख्यत: वायुमंडल की ठंडी परतों में से एक परत है। मध्यमंडल के ऊपरी भाग में गैसों के आणविक और आयनिक रूपों द्वारा कोसगिक विकिरण के अवशोषण के कारण तापमान में वृद्धि होती पाई जाती है। इसकी ऊपरी सीमा मेसोपाज इसे अयनमंडल से अलग करती हैं।
अयनमंडल -
- अयनमंडल, मध्यमंडल के ऊपर स्थित है और इसका विस्तार 600 कि.मी. की ऊंचाई तक है। यहां गैसों के विद्युत आवेशी आयन पाए जाते हैं जो कि रेडियो तरंगों को पुनः परावर्तित कर पृथ्वी पर वापस लौटा देते हैं। इसी परत के कारण पृथ्वी पर रेडियो, टी.वी. प्रसारण तथा दूर संचार संभव हैं। वायुमंडल को इस परत में उपस्थित गैसों के आयनिक कण सूर्य से प्राप्त विकिरण को अवशोषित करते हैं जिससे इस परत का तापमान ऊंचा रहता है। इन्हीं अपनों की प्रचुरता के कारण यह परत पृथ्वी को उल्काओं इत्यादि ( जो इस परत में नष्ट हो जाते हैं) पिंडों से सुरक्षित रखती हैं।
तापमंडल, चुम्बकीय मंडल और बहिमंडल
- ये वायुमंडल की सबसे ऊपरी परतें हैं। 85 से 400 कि.मी. की ऊंचाई के भाग को सामान्यतया तापमंडल कहा जाता है। इस परत में भी ऊंचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती है। तापमंडल को ऊपरी सीमा थर्मोपोज है जो कि 400 से 600 कि.मी. की ऊंचाई पर मानी जाती है। इस ऊंचाई पर दिन का तापमान 1400° से. तक बढ़ जाता है जबकि रात का तापमान लगभग 225° से. होता है। इस परत के ऊपरी भाग में हीलियम तथा ड्रोजन जैसी हल्की में आयनिक रूप में पाई जाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल का बाह्य भाग बाह्य मंडल अथवा बहिमंडल कहलाता है। इसका विस्तार २६००कि.मी. की ऊंचाई तक हैं। बाह्यमंडल की ऊपरी सीमा को बाह्य सीमा माना जाता है जो कि पृथ्वी के वायुमंडल तथा अंतरिक्ष के बीच संक्रमण पेटी है। बाह्यमंडल के इस बाह्य भाग को चुंबकीय मंडल भी कहते हैं।
विकिरण पेटियां -
- 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में की गई अंतरिक्ष यात्राओं और वैज्ञानिक अध्ययनों से जो ज्ञान प्राप्त हुआ है उसके आधार पर पृथ्वी के वायुमंडल की निचली परतों का विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है। इन अध्ययनों से बाह्य परतों के विषय में भी काफी जानकारी उपलब्ध हुई है। परंतु इन अध्ययनों के बावजूद भी वायुमंडल के ऊपरी भागों के विषय में जानकारी अपेक्षाकृत सीमित ही है। वायुमंडल की ऊपरी परत में गैसें कम मात्रा में विद्यमान हैं जो कि कम दाब के कारण पराबैंगनी फोटांस तथा उच्च वेगीय कणों के द्वारा वायुमंडल पर लगातार प्रहार करने के कारण आयनीकृत हो जाती हैं। वायुमंडल में आयनीकृत कणों की मात्रा ऊंचाई के साथ-साथ बढ़ती जाती हैं। ऊपरी वायुमंडल में दो विशेष परतें हैं जिनमें इन कणों कर सकेंद्रण पाया जाता है। इन्हें चैन ऐलन विकिरण पेटियों के नाम से जाना जाता है। इनमें से निचली पेटी, धरातल से लगभग 2600 कि.मी. की ऊंचाई पर पाई जाती हैं और ऊपरी पेटी 13,000 से 19,000 कि.मी. की ऊंचाई पर स्थित है।
Post a Comment