वायुमंडल, पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु का एक भंडार है जो विभिन्न गैसों से मिलकर बना है। ऊंचाई के साथ वायुमंडल की संरचना में अंतर पाया जाता है। भारी गैसों का जमाव निचली परतों में तथा हल्की गैसों का जमाव ऊपरी परतों में अधिक पाया जाता है। इस प्रकार गैसों का घनत्व धरातल पर सबसे अधिक है और ऊपर की ओर तेजी से घटता जाता है।
क्षोभमंडल में सबसे अधिक मात्रा में नाइट्रोजन व आक्सीजन पाई जाती हैं जो कि वायुमंडल के स्थायी तत्व हैं। इनके अतिरिक्त कार्बन डाईआक्साइड, ओजोन, जल वाष्प, धूल कण, आदि भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं। परंतु इनकी मात्रा में समय और स्थान के साथ अंतर पाया जाता है। नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन को वायुमंडल के स्थाई तत्व कहा जाता है तथा जलवाप्य तथा धूल कणों आदि को अस्थाई अथवा परिवर्तनशील तत्व कहा जाता है।
वायुमंडल में पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों का महत्व -
वायुमंडल का निर्माण करने वाले सभी स्थायी और परिवर्तनशील तत्व, पृथ्वी पर जीवन को सम्भव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में विद्यमान नाइट्रोजन तापमान को नियंत्रित करने के साथ साथ, जलने की क्रिया को भी नियंत्रित करती है। नाइट्रोजन, वनस्पतियों की वृद्धि के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है।
ऑक्सीजन सभी जीवित प्राणियों के लिए सांस लेने के लिए आवश्यक हैं। इसलिए इसे पाण वायु भी कहते हैं। यह जीवमंडल में पोषक तत्वों के चक्रण व अवशिष्ट पदार्थों के सड़ने की क्रिया में सहयोग देने वाली महत्वपूर्ण गैस है। जैविक पदार्थ के सड़ने गलने की व अन्य दहन क्रियाएं ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में संभव नहीं हो सकती हैं।
जलवाष्प न केवल वर्पण का आधार है बल्कि यह सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण को अवशोषित भी करता है। अतः यह पृथ्वी के तापमान को सहनीय बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
कार्बन डाई आक्साइड सूर्य से आने वाले तथा धरातल से विकिरित होने वाले ताप को अवशोषित करने में समर्थ है। सभी जीवों तथा पौधों के शरीर में कार्बन एक अति महत्वपूर्ण तत्व है । यह पार्थिव विकिरण को भी अवशोषित करती हैं। वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड की उपस्थिति ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न करती है।
धूलकण जलवाष्प के संघनन के लिए जलग्राही नाभिकों की भूमिका निभाते हैं; ये विकिरण के कुछ भाग को भी सीखते हैं। इसके अतिरिक्त यह उसका परावर्तन व प्रकीर्णन भी करते हैं।
ओजोन की अनुपस्थिति पृथ्वी पर तापमान में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होगी। इसकी अनुपस्थिति में सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणें धरातल तक पहुंच पाने में समर्थ हो सकेंगी जिस कारण से पृथ्वी पर जीवन दूभर हो जाएगा। इसके अतिरिक्त पराबैंगनी किरणों के धरातल तक पहुंचने से त्वचा कैंसर जैसे रोगों को भी बढ़ावा मिलेगा।
ओजोन परत और ओजोन छिद्र -
ओजोन, धरातल से 25 से 30 कि.मी. की ऊंचाई पर समताप मंडल में अधिक मात्रा में पाई जाती है। वायुमंडल का यह भाग ओजोनोस्फीयर अर्थात ओजोन परत कहलाता है । ओजोनमंडल में ओजोन द्वारा पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेने के कारण इस भाग में तापमान उच्च होता है। पिछले कुछ वर्षों में इस परत में ओजोन की मात्रा में ह्रास देखा गया है। मुख्यतः ध्रुवीय तथा उपध्रुवीय अक्षांशों में लगातार ओजोन का ह्रास हो रहा है जिसका प्रमुख कारण क्लोरोफ्लोरो कार्बन तथा अन्य रसायन हैं जिनका उपयोग आधुनिक समय में काफी बढ़ गया है। इनके अत्यधिक प्रयोग के कारण ओजोन के घनत्व में कमी आ रही है। जिन भागों में ओजोन परत पतली हो गई है उन्हें ओजोन छिद्र कहते हैं ।
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