वित्त मंत्रालय विभाग का संगठन- राजस्व विभाग |Department of Revenue GK in Hindi

 वित्त मंत्रालय विभाग का संगठन-  राजस्व विभाग

वित्त मंत्रालय विभाग का संगठन-  राजस्व विभाग |Department of Revenue GK in Hindi



वित्त मंत्रालय विभाग का संगठन-  राजस्व विभाग (Department of Revenue) : 


  • राजस्व विभागसंघीय प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों से सम्बन्धित राजस्व मामलों के सम्बन्ध में दो सांविधिक बोर्डों अर्थात् प्रत्यक्ष कर बोर्ड तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क तथा सीमा शुल्क बोर्ड के माध्यम से नियन्त्रण रखता है। इस विभाग को केन्द्रीय विक्रय-करस्टाम्प शुल्क,  स्वर्ण नियन्त्रणविदेशी मुद्रा और अन्य संगत वित्तीय अधिनियमों से सम्बन्धित कानून में दिए गये नियन्त्रणों तथा विनियामक उपायों के प्रशासन तथा प्रवर्तन का काम भी सौंपा गया है। 


राजस्व विभाग के मुख्यालय प्रशासन को तीन भागों में बांटा गया हैं:

 

(i) केन्द्रीय प्रभाग (Central Division ); 

(ii) प्रत्यक्ष कर प्रभाग (Direct Taxes Division); तथा 

(iii) अप्रत्यक्ष कर प्रभाग (Indirect Taxes Division) 


(i) केन्द्रीय प्रभाग (Central Division ) : 


राजस्व विभाग के इस प्रभाग का सम्बन्धआयोगोंअपीलीयअप्रत्यक्ष कराधान जाँच समिति और प्रवर्तन निदेशालय (Directorate of Enforcement ) से होता है।

 

(ii) प्रत्यक्ष कर प्रभाग (Direct Taxes Division ) : 

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले प्रत्यक्ष करों के प्रशासन के लिए उत्तरदायी है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्डजो केन्द्रीय राजस्व बोर्डअधिनियम, 1963 के अन्तर्गत 1 जनवरी, 1964 को गठित किया गया थाअपने सम्बद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों के कार्य पर नियन्त्रण रखता है और उनकी देखभाल करता है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड एक शीर्षस्थ संगठन है जो आय-कर विभाग पर नियन्त्रण रखता है। यह कर प्रशासन में सम्बन्धित सभी नीतियों को तैयार करने के लिए उत्तरदायी है तथा उपर्युक्त कानूनों के तहत विभिन्न संवैधानिक कार्यों को भी निष्पादित करता है। बोर्ड के अधिकारी राजस्व विभागवित्त मन्त्रालय में अपनी पदेन हैसियत से भी कार्य करते हैं। बोर्ड में एक चेयरमैन और 6 सदस्य होते हैं। प्रत्यक्ष कर कानूनों के प्रशासन से सम्बन्धित कार्यों का निष्पादन करने के लिए बोर्ड ने अपने नियन्त्रणाधीन सम्बद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों को सारे देश में फैला दिया है। 


बोर्ड के सम्बद्ध कार्यालय निम्नलिखित हैं :

 

(i) आयकर महानिदेशालय (प्रशासन) दिल्ली। 

(ii) आयकर महानिदेशालय (प्रबन्ध पद्धति)दिल्ली। 

(iii) आयकर महानिदेशालय (प्रशिक्षण)नागपुर। 

(iv) आयकर महानिदेशालय (कर- छूट)कलकत्ता ।

 

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अन्तर्गत आने वाले अधिकारियों के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

 

(क) निरीक्षण निदेशालय आय-कर और अंकेक्षणनई दिल्ली: इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :

 

(i) LA.C. अधिकारियों द्वारा जाँच के लिए नीतियाँ बनाना और कार्यक्रम तय करनाअंकेक्षण की आन्तरिक समूहों के कार्य का पर्यवेक्षण और आगम अंकेक्षण से सम्बन्धित आपत्तियों के मामलों के सम्बन्ध में निर्णय लेना; 

(ii) कार्यक्षेत्र संगठन का प्रशासनिक निरीक्षण करना; 

(iii) विभागीय कर्मचारियों के लिए विभागीय परीक्षाओं का आयोजन करना; 

(iv) सभी विभागों के प्रमुखों से नियुक्ति से सम्बन्धित प्राप्त सभी संदर्भों को निपटाना । 


(ख) निरीक्षण निदेशालयअन्वेषणनई दिल्ली: इस निदेशालय में निरीक्षण के तीन निदेशक होते हैं :

 

(i) अनिरीक्षण विंग के कार्य (Functions of Investigation Wing) 

(ii) जाँच प्रविधि में सुधार करने और कर चोरी का मुकाबला करने के लिए आय कर सम्बन्धी सूचना को एकत्रित करने में अधिकारियों की सहायता करना

 

(2) विभिन्न आय - कर केसों पर निगरानी रखना और जाँच में सहयोग करना ।

 

(ii) सतर्कता विंग के कार्य (Functions of Vigilence Wing) जाँच निदेशक (सतर्कता) एक अतिरिक्त मुख्य सतर्कता अधिकारी के रूप में कार्य करता है और सतर्कता से सम्बन्धित सभी राजपत्रित और गैर-राजपत्रित कर्मचारियों के केसों पर कार्यवाही करता है। 

(iii) विशिष्ट कक्ष के कार्य (Functions of Special Cell ) यह सैल (कक्ष) बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा की जाने वाली करों की चोरी के सम्बन्ध में कार्यवाही करता है।

 

(ग) निरीक्षण निदेशालयअनुसंधानसांख्यिकी और प्रकाशननई दिल्ली: यह निदेशालय दो विंग अथवा शाखाओं के मिश्रण से बनी है :

 

(i) प्रकाशन और लोक सम्बन्ध विंग (Publication and Public Relations Wing) 

(1) आय कर विभाग से संबंधित विभिन्न नियमोंअधिनियमोंबुलिटेन और अन्य प्रकाशनों को संग हित और प्रकाशित करना। 

(2) सामग्री का हिन्दी में अनुवाद करना और हिन्दी के उत्तरोत्तर प्रयोग पर नजर रखना । 

(3) लोक सम्बन्धों से सम्बन्धित सभी विषय आदि को शामिल किया जाता है।

 

(ii) अनुसंधान और सांख्यिकी विंग (Research and Statistics Wing)

 

(1) सभी प्रत्यक्ष करों से संबंधित अखिल भारतीय आगम सांख्यिकी को सम्पादित और उसकी आपूर्ति करना 

(2) कार्य की प्रगति की प्रतिमा की रिपोर्ट को सम्पादित करना व आँकड़े उपलब्ध कराना 

(3) केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा विभिन्न सामग्री पर अनुसंधान कार्य करना ।

 

(घ) संगठन और प्रबन्ध सेवा निदेशालयनई दिल्ली इस निदेशालय के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं : 

(i) मानवीय संसाधनों का आदर्शतम उपयोग करने के लक्ष्य के अनुसार कार्य करने के तरीकों को सरल बनाना । 

(ii) प्रविधि अनुसन्धानों की सहायता लेकर कर्मचारियों के नियमों का मूल्यांकन करना तथा नये नियम विकसित करना । 

(iii) कार्य की व्यवस्था और संगठनात्मक संरचना का पुनरावलोकन करना। 

(iv) विभागाध्यक्षों द्वारा कर्मचारियों से सम्बन्धित दिये गये सुझावों की जाँच करना ।

 
(iii) अप्रत्यक्ष कर प्रभाग (Indirect Taxes Division ) :

 केन्द्रीय उत्पाद विभागसह प्रभागकस्टम विभागनारकोटिक (Narcotic) विभाग और कई अन्य निदेशालयों से सम्बन्धित कार्यों को देखता है। इन सभी पर केन्द्रीय उत्पादन और सीमा शुल्क बोर्ड का नियन्त्रण रहता है। इस बोर्ड का मुख्य कार्य अप्रत्यक्ष कर (सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पादन शुल्कआदि) लगाना और उनकी उगाही करना तथा तस्करी निवारण प्रयत्नों की नीति तैयार करना है। इस समय इस बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा 6 सदस्य हैं जिन्हें भारत सरकार के पदेन विशेष सचिव का दर्जा प्राप्त है। अनेक सम्बद्ध तथा अधीनस्थ कार्यालय केन्द्रीय उत्पादन शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड को उसके प्रशासनिक एवं कार्यकार कार्यों के निष्पादन में सहयोग प्रदान करते हैं। ये कार्यालय निम्नलिखित हैं :

 

1. निरीक्षण तथा लेखा परीक्षा महानिदेशालय, 

2. राजस्व अधिसूचना महानिदेशालय, 

3. अपवंचनरोधी महानिदेशालय, 

4. राष्ट्रीय सीमा शुल्ककेन्द्रीय उत्पाद शुल्क एवं नार्कोटिक्स अकादमी, 

5. संगठन और प्रबन्ध सेवा निदेशालय, 

6. निवारक संकाय निदेशालय, 

7. सांख्यिकी और आसूचना निदेशालय, 

8. प्रकाशन निदेशालय, 

9. केन्द्रीय राजस्व नियन्त्रण प्रयोगशालाय और 

10. मुख्य सतर्कता अधिकारी।

 

  • बोर्ड को सौंपे गये कार्यकारी कार्य सम्पूर्ण भारत में फैले हुए सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्कसमाहर्तालयों के माध्यम से निष्पादित किए जाते हैं। इस समय समाहर्तालियों की संख्या 36 है जो मुख्यतया केन्द्रीय उत्पाद शुल्क से सम्बन्धित हैं और इन्हें क्षेत्रीय एककों के रूप में संगठित किया गया है। वित्त मन्त्रालयजो सरकार के वित्तीय मामलों की देखभाल करता हैबजट की रचना के लिए प्रधानतः उत्तरदायी है। वित्त मन्त्री राष्ट्र के कोष का संरक्षक होता है। उसका यह सर्वोपरि कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय वित्त का उपयोग समझदारी तथा कुशलता से करे। वित्त मन्त्रालय राज्य के लिए आवश्यक राजस्व एकत्र करने के लिए उत्तरदायी होता हैऔर धनराशि निश्चित करने तथा एक सीमा तक व्ययों का स्वरूप निश्चित करने में वह प्रमुख भूमिका निभाता है। संघीय सरकार के वित्तीय नियमों के अन्तर्गत वित्त मन्त्रालय को वित्तीय अधिकार प्रदान किये गये हैं। इस व्यवस्था के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 77 (3) में उल्लेख है। यह अनुच्छेद संघ के राष्ट्रपति को संघीय सरकार के संचालन सम्बन्धी नियम बनाने का प्राधिकार प्रदान करता है। वित्त मन्त्रालय वार्षिक वित्तीय विवरण ( अर्थात् बजट) तैयार करनेसंसद में उसका मार्गदर्शन करनेविभिन्न विभागों द्वारा इसके क्रियान्वयन के निरीक्षणराजस्व एकत्र करनेप्रशासकीय विभागों को वित्तीय मन्त्रणा देने तथा वित्तीय नियन्त्रण के लिए उत्तरदायी होता है। इन अधिकारों का उपयोग वित्त मन्त्रालय ने सदैव नहीं किया। अन्य मन्त्रालयों तथा विभागों पर इसका नियन्त्रण धीरे-धीरे ही बढ़ा है आरम्भ में गवर्नर जनरल की परिषद् के अन्य सदस्यों ने विभागीय स्वायत्तता तथा प्रतिष्ठा के नाम पर इसका विरोध किया था। सरकार पर क्रमशः लोक नियन्त्रण बढ़ने और शासन के संसदीय स्वरूप के विकास ने वित्त मन्त्रालय की स्थिति को शक्तिशाली बना दिया है। 1919 के मॉण्टफोर्ड सुधारों (Montford Reforms of 1919) ने वित्त विभाग द्वारा अन्य विभागों पर वित्तीय मामलों के नियन्त्रण की व्यवस्था की थी। विधानमण्डल की लोक सेवा समिति की रचना तथा विभागों के लेखाओं की लेखा-परीक्षा और परिनिरीक्षण करने के लिए लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति के फलस्वरूप वित्त विभाग या वित्त मन्त्रालय की प्रतिष्ठा तथा शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है। भारत में प्रत्येक आगामी वित्तीय वर्ष के लिए (वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल को आरम्भ और 31 मार्च को समाप्त होता है) बजट अनुमान की तैयारी में शासन के चार विभिन्न अंग वित्त मन्त्रालयप्रशासन मन्त्रालययोजना आयोग और लेखा नियन्त्रक तथा महालेखापरीक्षक- कार्य करते हैं। बजट की रचना का सारा उत्तरदायित्व वित्त मन्त्रालय पर होता हैकिन्तु प्रशासकीय आवश्यकताओं का व्यापक ज्ञान सम्बन्धित प्रशासकीय मन्त्रालयों को ही होता है। बजट योजना की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने के लिए वित्त मन्त्रालय को योजना आयोग से निरन्तर निकट सम्पर्क बनाये रखना पड़ता है। इसमें लेखा नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वहीं अनुमानों को तैयार करने में आवश्यक लेखा सम्बन्धी सूचनाएँ उपलब्ध कराता है।

 

बजट अनुमान की तैयारी सम्बन्धी कार्य आगामी वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने के 6 या 8 मास पूर्व ही आरम्भ हो जाता है। इसका श्रीगणेश वित्त मन्त्रालय से होता हैजो विभिन्न प्रशासकीय मन्त्रालयों तथा विभागों को व्यय के अनुमान तैयार करने के लिए एक पत्र भेजता है। नियम यह है कि प्रत्येक विभाग जो धन व्यय करता है उसे ही अपनी आवश्यकतानुसार आगामी वर्ष के अनुमान भी तैयार करने चाहिए। प्रपत्रों के ढाँचे वित्त मन्त्रालय द्वारा प्रदान किये जाते हैंजिनमें अनुमान तथा अन्य आवश्यक सूचनाएँ सम्बन्धित विभागों को भरनी व भेजनी पड़ती हैं। प्रशासकीय मन्त्रालय इन छपे हुए प्रपत्रों को धन व्यय करने वाले अधिकारियों अर्थात् कार्यालयों के प्रधानों (जिले में जिलाधीशों) को पहुँचा देते हैं। प्रत्येक प्रपत्र में अधोलिखित स्तम्भ होते हैं :

 

(1 ) पिछले वर्ष के यथार्थ अंक ( actuals); 

(2) चालू वर्ष के लिए संशोधित ( sanctioned) अनुमान 

(3) चालू वर्ष के लिए संशोधित अनुमान

(4) आगामी वर्ष के लिए बजट अनुमान 

(5) चालू वर्ष के यथार्थ अंक जो अनुमानों को तैयार करते समय प्राप्त हुए होंतथा पिछले वर्ष के समानान्तर काल के यथार्थ अंक

 

आगामी वर्ष के अनुमान निम्नलिखित आधारों पर निर्मित किये गये हैं:

 

(अ) चालू वर्ष के संशोधित अनुमान: 

(आ) विगत तथा पिछले वर्षों के 15 महीनों के यथार्थ अंक: 

(इ) गत वर्षों के अंकों की कोई मान्यतायुक्त नियमिततातथा 

(ई) परिवर्तन उत्पन्न करने वाली कोई विशिष्ट परिस्थितियाँ ।

 

धन व्यय करने वाले अधिकारी अपने तैयार किये हुए अनुमानों को विभाग के प्रधान के पास दो भागों में भेजते हैं। पहले भाग में राजस्व तथा स्थायी प्रभार (charges) का उल्लेख होता है। दूसरे भाग को दो प्रवर्गों में विभाजित किया जाता है। पहले प्रवर्ग में उन विषयों का उल्लेख होता है जो प्रतिवर्ष निरन्तर चलते रहते हैं और दूसरे प्रवर्ग में पूर्णतः नवीन विषय होते हैं। ये अनुमान विभाग के प्रधान के पास भेज दिये जाते हैं जो आवश्यकतानुसार उनकी समीक्षा तथा संशोधन करके पूरे विभाग के लिए जोड़ता है (consolidates ) विभिन्न विभागों से प्राप्त अनुमानों को सम्बन्धित प्रशासकीय मन्त्रालयों को भेज दिया जता हैयहाँ पुनः दूसरी बार उस ( मन्त्रालय) की सामान्य नीति के सन्दर्भ में निरीक्षण किया जाता है। इसके बाद प्रशासकीय मन्त्रालय इन अनुमानों को नवम्बर के मध्य में वित्त मन्त्रालय के बजट सम्भाग को भेजता है। वित्त मन्त्रालय का बजट सम्भाग प्रशासकीय मन्त्रालय द्वारा प्रस्तुत इन अनुमानों की सूक्ष्मतापूर्ण समीक्षा करता है। यह स्मरणीय है कि प्रशासकीय मन्त्रालय द्वारा किये गये निरीक्षण से बजट सम्भाग द्वारा निरीक्षण भिन्न प्रकार का होता है। यह व्ययों की नीतियों की समीक्षा नहीं करता - नीति को समीक्षा करना तो मुख्यतः प्रशासकीय विभागों एवं मन्त्रालयों की मांगों को सरकार की उपलब्ध निधियों की सीमा के अन्दर ही रखना पड़ता है। बजट सम्भाग द्वारा जाँच या निरीक्षणवित्तीय दृष्टिकोण से अर्थात् मितव्ययता तथा निधियों की उपलब्धि के दृष्टिकोण से होती है। इस कार्य को करते समय वित्त मन्त्रालय व्यय से सम्बन्धित अनेक प्रस्तावों को विशेषज्ञ की दृष्टि से नहीं देखता। वास्तव में वित्त मन्त्रालय को आलोचना तथा प्रति- परीक्षण (crossexamination) करने में एक विशिष्ट दक्षता प्राप्त है जो लम्बे अनुभव का परिणाम हैकिन्तु उसमें निरन्तर समयानुकूल अभिनव परिवर्तन होता रहता है। इसके अतिरिक्तइसका दृष्टिकोण कुछ बुद्धिमान मनुष्य जैसा होता है। इसके द्वारा इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं: क्या प्रस्तावित व्यय वास्तव में आवश्यक हैयदि आवश्यक है तो अब तक बिना इसके कैसे काम चलता थाअब क्यों इसकी आवश्यकता अनुभव हुई हैअन्यत्र क्या किया जाता है इसमें कितना व्यय होगा और वह धनराशि कहाँ से प्राप्त होगीइस व्यय के परिणामस्वरूप किसको धन की कमी अनुभव होगीक्या नवीन विकास इसको आवश्यक बनाते हैं?

 

यहाँ यह प्रकट करना उचित है कि यह परिनिरीक्षण (scrutiny) केवल नये व्ययों के लिए किये गये प्रस्तावों पर ही काम में लायी जाती है। नियमानुसार किसी भी विभाग के नये या बटे हुए व्यय सम्बन्धी कोई प्रस्ताव वित्त मन्त्रालय की सहमति के बिना बजट में सम्मिलित नहीं किये जा सकते। सरकार को जो भी सीमित साधन उपलब्ध हैंउनको देखते हुए प्रशासकीय मन्त्रालयों को उनकी वास्तविक आवश्यकताओं से अधिक धन प्राप्त नहीं होना चाहिए। स्थिति यह है कि वित्त मन्त्रालय प्रशासकीय मन्त्रालयों की माँगों को पारित करता हैव्ययों के औचित्य की समीक्षा करता है और प्रत्येक मन्त्रालय के लिए एक राशि निश्चित करता है। स्मरणीय है कि इन मामलों में वित्त मन्त्रालय और वित्त मन्त्री स्वेच्छा से कार्य नहीं कर सकते। पंचवर्षीय योजना सम्बन्धी आवश्यक माँगेंमन्त्रालयों के नीति सम्बन्धी निर्णयदेश में विद्यमान परिस्थितियाँइन सभी बातों की झलक बजट में होती है और इसी सीमा तक वे वित्त मन्त्री के अधिकार को सीमित करते हैं। वित्त मन्त्रालय द्वारा उन सभी प्रस्तावों का बड़े ध्यान से निरीक्षण किया जाता है जो सरकार पर कोई नया या बढ़ा हुआ व्यय भार डालते हैं।

 

नये व्यय दो प्रकार के होते हैं क्रय एवं निर्माण आदि सम्बन्धी तथा स्थापना (Establishment) के लिए अनुदान। बड़ी रकम की खरीदारी या निर्माण कार्य जैसे मुम्बई में परमाणु शक्ति प्रबन्धक (Atomic Energy reactor) मन्त्रिमण्डल की सहमति से प्रारम्भ किये जाते हैं। स्पष्टतः बजट में ऐसे व्यय सम्मिलित करने के सम्बन्ध में वित्त मन्त्रालय का नियन्त्रण सीमित है। किन्तु अतिरिक्त व्यय सम्बन्धी विभागों को वित्त मन्त्रालय बड़े ध्यान से देखता है। यदि व्यय करने वाले किसी विभाग का प्रभारी मन्त्री वित्त मन्त्रालय की अस्वीकृति से सहमत नहीं होता तो वह उस मामले पर मन्त्रिमण्डल में विचार करने की माँग कर सकता है । मन्त्रिमण्डल का निर्णय सभी सदस्यों को मान्य होता है। यदि मन्त्रिमण्डल का सदस्य अपनी नीति एवं माँग पर दृढ़ रहता है और मन्त्रिमण्डल के निर्णय से सहमत नहीं होता तो वह त्यागपत्र देकर सम्बन्ध विच्छेद कर सकता है। स्मरणीय है कि मन्त्रिमण्डल में वित्त मन्त्री की स्थिति विलक्षण रूप से शक्तिशाली होती हैमन्त्रिमण्डल को उसके विचारों को विशेष महत्व देना चाहिएविशेषकर विवादग्रस्त व्यय की धनराशि पर्याप्त बड़ी होने पर एक पूर्व वित्त मन्त्री ने एक भिन्न प्रसंग में कहा था कि "कोई भी वित्त मन्त्री केवल शक्तिशाली स्थिति में न कि कमजोर स्थिति में रहकर समुचित ढंग से कार्य कर सकता है। " उनका यह कथन वित्त मन्त्री के शक्तिशाली होने पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। विभिन्न मन्त्रालयों के व्यय के अनुमानों पर वित्त मन्त्रालय को यह नियन्त्रण क्यों दिया गया हैइसके दो कारण दिये जाते हैंप्रथमवित्त मन्त्रालय स्वयं कोई व्यय करने वाला मन्त्रालय नहीं हैअतः करदाता के हितों के लिए वह निष्पक्ष संरक्षक के रूप में कार्य कर सकता है। द्वितीय इस मन्त्रालय को प्रस्तावित व्यय पूरे करने के लिए आर्थिक उपाय तथा साधन खोजने होते हैं। अतः यह उचित ही है कि उसे यह अधिकार होना चाहिए कि अमुक व्यय किया जाना चाहिए या नहीं हैल्डेन समिति के अनुसार, "यदि उसे (वित्त मन्त्री को) हौज को भरने तथा उसमें निश्चित मात्रा में जल बनाये रखने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है तो उसे पानी की निकासी पर भी नियन्त्रण प्राप्त होना चाहिए।" व्यय करने वाले शासन के शेष सभी मन्त्रालयों की तुलना में वित्त मन्त्रालय की स्थिति प्रधान हैपरन्तु यह स्थिति हाल में कई कारणों से आलोचना का विषय बन गयी है। ऐपल्बी का निम्नलिखित मत ध्यान देने योग्य है :

 

"वर्तमान प्रणाली के अधीन पूरे वर्ष की विभिन्न योजनाएँ या परियोजनाएँ वित्त मन्त्रालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं। इनमें से कुछ तो शीघ्र ही तय करने तथा विधियों के बँटवारे सम्बन्धी होती हैं और कुछ बाद के बँटवारों के बन्धक रूप में होती हैं ये योजनाएँ प्रायः नीति सम्बन्धी विचारों से अधिक नहीं होती हैं। अतः उनके द्वारा ऐसे वास्तविक प्रशासकीय तथा व्यय सम्बन्धी पारवर्तन तो कभी नहीं किये जा सकते जिन पर गम्भीरता से विचार किया जा सके। इनका मुख्य दोष विलम्ब तथा भ्रम सम्बन्धी होता है। इसके लिए वित्त मन्त्रालय को ही प्रायः दोषी ठहराया जाता है। जैसे-जैसे बजट बनाने का समय निकट आता जाता हैइन सभी योजनाओं की जाँच की जाती है तथा इनमें से कुछ को चुन लिया जाता है। यही सामान्य स्थापना व्ययों के अतिरिक्त किसी मन्त्रालय विशेष का बजट होती है। वे सब योजनाएँ जो नस्ती (File) में नत्थी रहती हैं सिद्धान्ततः अनुमोदित हो चुकी होती हैं। जो योजनाएँ वास्तव में बजट में सम्मिलित नहीं की जाती वे नस्ती में नत्थी रहती हैं और किसी आगामी वर्ष में या एक वर्ष में किसी भी समय उन पर विचार आरम्भ किया जा सकता है। प्रस्तावित और सिद्धान्ततः अनुमोदित होने के वर्षों बाद उनमें से कोई एक योजना अचानक ही कार्यान्वित की जा सकती हैंभले ही उस समय तक व्यय के प्रारम्भिक अनुमान या योजना के महत्वपूर्ण तत्व पूर्णतः अनुपयोगी हो गये हों।"

 

"वर्तमान प्रणाली यह आवश्यक कर देती है कि विभिन्न अभिकरण अनेक प्रकार की योजनाएँ प्रस्तुत करते रहेंयह जानते हुए भी कि इन योजनाओं को कार्यान्वित करने में वे सशक्त नहीं हैं। यह सब कम व्यय वाले अनुमानों तथा हीन बजट रचना का एक नमूना उपस्थित करती हैजिसके कारण वित्त मन्त्रालय का विरत हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।"

 

"इसमें एक दूसरा तत्व भी होता है जिस पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। सभी मन्त्रालय यह जानते हैं कि वित्त मन्त्रालय उनके द्वारा माँग की जाने वाली धनराशि में कमी कर देता हैअतः वे व्यय के अनुमान प्रारम्भ से ही बढ़ा चढ़ाकर रखते हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहन भी दिया जाता है। जब कोई विशेष मन्त्रालय कोई छोटी अनुमानित परियोजना प्रस्तुत करता है तो वित्त मन्त्रालय को यह शिकायत रहती है कि आप हमें ऐसी कठिन स्थिति में रख देती हैं कि आपकी माँगी हुई धनराशि को घटाना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है।" वास्तव में एक छोटे तथा अच्छी प्रकार बनाये गये अनुमान को प्रत्येक सम्भव उपाय से प्रोत्साहन दिया जाना चाहिएऔर शीघ्र ही बिना किसी हेर फेर के उसे अनुमोदित कर देना चाहिए। इसके विपरीतढीले-ढाले और अनिश्चित अनुमानों के सम्बन्ध में कठोर दृष्टि अपनानी चाहिए। वित्त विभाग का प्रमुख उत्तरदायित्व यह होना चाहिए कि वह सरकारी अभिकरणों में अच्छे बजट के निर्माण की प्रवृत्ति को जाग्रत तथा प्रोत्साहित करे और उसकी सारी समीक्षा ऐसे विश्लेषण पर आधारित होनी चाहिए जिससे खराब व हीन बजट की जाँच हो सके। यदि निरीक्षण के पश्चात् यह प्रकट हो कि बजट रचना अच्छी रही तो माँगी गयी राशि को तुरन्त अनुमोदित कर देना चाहिए।"

 

वित्त मन्त्रालय का बजट के पश्चात् नियन्त्रण व्यय करने वाले विभिन्न मन्त्रालयों पर वित्त मन्त्रालय का नियन्त्रण संसद में बजट प्रस्तुत कर देने के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता वरन् निरन्तर चलता रहता है। वह भी अनुमानों के संसदीय अनुमोदन के पूर्व तथा पश्चात् प्रभावकारी रहता है। बजट के अनुमानों को निर्धारित करते समय वित्त मन्त्रालय का नियन्त्रण बहुत मोटे तौर का होता है। अतः धन के वस्तुतः व्यय किये जाने से पूर्व वित्त मन्त्रालय का नियन्त्रण आवश्यक है। संसद तो सामूहिक रूप से सरकार (प्राविधिक शब्दों में राष्ट्रपति) को अनुदान देती है. न कि व्यक्तिगत रूप से किसी मन्त्रालय विशेष को। अतः वित्त मन्त्रालयजो सरकार की वित्त व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होता हैप्रशासकीय मन्त्रालय को व्यय की अनुमति तभी देता है जब उसे यह विश्वास हो जाता है कि प्रस्तावित व्यय वांछनीय है और उस पर भली प्रकार विचार कर लिया गया है। दिन-प्रतिदिन के व्ययों पर वित्त मन्त्रालय की सहमति आवश्यक नहीं होतीकिन्तु नये व्ययों के लिए तो वित्त मन्त्रालय का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है। इसका यह अर्थ है कि नयी योजना पर होने वाले व्यय सम्बन्धी प्रस्ताव पर वित्त मन्त्रालय की सहमति बजट की प्रारम्भिक अवस्था में केवल अनुमानाश्रित होती है। अनुमान समिति ने अपने 1953-54 के नवें प्रतिवेदन में यह स्पष्ट किया था कि "वित्त मन्त्रालय के बजट सम्भाग ( Budget Division) को वित्तीय वर्ष के अन्तिम एक या दो माह के दौरान मन्त्रालयों से विभिन्न प्रस्ताव एक साथ प्राप्त होते हैं। परिणामस्वरूपबजट सम्भाग को विस्तार के साथ प्रस्तावों का परीक्षण करने तथा प्रत्येक विषय की सावधानी के साथ जाँच करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। फलस्वरूपबजट सम्भाग द्वारा स्थूल रूप से परीक्षण किया जाता है और विभिन्न योजनाओं के लिए कुछ धन निर्धारित कर दिया जाता है और अगले वित्तीय वर्ष में स्वयं या वित्त मन्त्रालय को उन राशियों के व्यय सम्बन्धी पचड़े में नहीं डालता है। वर्तमान प्रणाली के अनुसार अनुमानों में जो कुछ भी सम्मिलित किया जाता है वह उन पर केवल सदन की स्वीकृति प्राप्त करने की दृष्टि से किया जाता हैऔर प्रशासकीय मन्त्रालय को व्यय करने का अधिकार तब तक नहीं होता जब तक कि वित्त मन्त्रालय व्यय का विस्तृत अनुमोदन प्राप्त नहीं कर लेता।"

 

नये व्ययों को कार्यान्वित करने से पूर्व वित्त मन्त्रालय का अनुमोदन प्राप्त कर लेने से भारत में अंग्रेजी सरकार कोजिसके कार्य अति सीमित थेअत्यन्त लाभ हुआ था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कुछ समय पूर्व तक प्रशासकीय मन्त्रालयों तथा अधीनस्थ प्राधिकारियों के अधिकार इतने सीमित क्यों थे। कुछ भी होयह व्यवस्था प्रसारोन्मुख सरकार के लिए उपयुक्त नहीं है जिसका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना और शीघ्रातिशीघ्र सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना है। इस स्थिति के कारण पॉल ऐपल्वी ने स्पष्ट रूप से कहा कि अधिकारों के प्रदत्तीकरण (Delegation of Power) की आवश्यकता ही भारतीय प्रशासन की सबसे बड़ी कमी थी। प्रशासकीय मन्त्रालयों तथा अधीनस्थ प्राधिकारियों को विस्तृत प्रदत्तीकरण किये जाने की तीव्र आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए

 

भारत सरकार वित्तीय नियन्त्रण को उदार बनाती रही है और उससे व्यय करने वाले मन्त्रालयों को काफी वित्तीय अधिकार प्रदान कर दिये हैं। स्थायी तथा अस्थायी पदों की रचना तथा आकस्मिक और विविध व्यय करने के सम्बन्ध में प्रशासकीय मन्त्रालयों की शक्ति में पर्याप्त वृद्धि कर दी गयी है। पूर्वोल्लेखानुसार प्रदत्तीकरण की कुछ सामान्य सीमाएँ इस प्रकार हैं:

 

(क) लोक राजस्व उचित प्रयोजनों पर ही व्यय किया जाना चाहिए: 

(ख) अधीनस्थ प्राधिकारी व्यय का अनुमोदन उन्हीं दशाओं में कर सकता है जिनका उसे अधिकार प्राप्त है; 

(ग) यदि किसी व्यय में कोई ऐसा नवीन सिद्धान्त या कार्यविधि सन्निहित हो जिससे भविष्य में व्यापार बढ़ने की सम्भावना होतो उसे वित्त मन्त्रालय को भेजना चाहिएतथा 

(घ) अधीनस्थ प्राधिकारी के अनुमोदन करने की शक्ति प्रदत्तीकरण करने वाले प्राधिकारी द्वारा जारी किये गये विशेष या सामान्य अनुदेश के अधीन होनी चाहिए। अधिकारों के प्रदत्तीकरण की इस योजना के एक भाग के रूप में प्रत्येक प्रशासकीय मन्त्रालय के पास एक वित्तीय शाखा होती है जिसमें वित्तीय परामर्शदाताउपवित्तीय परामर्शदाता या सहायक वित्तीय परामर्शदाता होते हैं। इन कर्मचारियों का सम्बन्ध केवल वित्त तथा बजट के कार्य से होता हैऔर यह बजट में सम्मिलित किये जाने वाले प्रस्तावों के नियमन से सम्बद्ध होता है। उन सभी वित्तीय मामलों मेंजिनमें प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग अन्तर्निहित हैया उन विषयों मेंजिन्हें वित्त मन्त्रालय को भेजने की आवश्यकता होती हैइन कर्मचारियों से परामर्श करना आवश्यक होता है। यह विनियोजन के विपरीत व्यय को नियन्त्रित करने में मन्त्रालय की सहायता करते हैं। यह व्यवस्था है कि जिन विषयों में मन्त्रालय के वित्तीय परामर्शदाता का परामर्श स्वीकार नहीं किया जाताउन्हें मन्त्रालय के सचिव को आदेशों के लिए निदेशित किया जाना चाहिए और यदि सचिव का मत उस परामर्श से भिन्न हो तो उस विषय को मन्त्री के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। ये वित्तीय परामर्शदाता विभागीय सचिव के नियन्त्रण में काम करते हैं। अब विभागीय सचिव को अपने मन्त्रालय के ऐसे व्यक्तियों सेजिनका वित्तीय ज्ञान काफी गम्भीर होता है और जो प्रवर्तन सम्बन्धी मन्त्रालय की प्रशासकीय कठिनाइयों से भी परिचित होते हैंसूचना सम्बन्धी तथा रचनात्मक आलोचना प्राप्त होती रहती है। यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि प्रदत्तीकरण प्राधिकारी का उत्तरदायित्व प्रदत्तीकरण के अन्तर्गत कम नहीं होता बल्कि प्रायः बढ़ जाता हैक्योंकि उसे अवलोकन के उपयुक्त नियमों का निर्माण करना पड़ता है और समय-समय पर उनकी समीक्षा भी करनी पड़ती है। पुनरावलोकनार्थ वित्त मन्त्रालय को जनता के पैसे पर काफी नियन्त्रण रखना चाहिए और इस मामले में सस्ती लोकप्रियता का रास्ता नहीं चुनना चाहिए । व्यय करने वाले विभागों की एक तरह से यह अनुत्तरदायित्वपूर्ण परिपाटी ही हो गयी है जिसमें उनके व्यवहारों को देखा जा सकता है। जनता के पैसों के व्यय में हमेशा यह खतरा रहता है कि विशाल पैमाने पर उसका गलत हस्तान्तरण होता है और पैसों की बरबादी ही होती है। बजट में किसी मद में रुपये का प्रावधान यह अर्थ नहीं रखता कि वह रकम सम्पूर्णतया मान्य है। लोकसभा के द्वारा बजट के अनुमोदन के पश्चात् भी इतना आवश्यक है कि वित्त की दृष्टि से तथा अन्यान्य साधनों द्वारा उस खर्च की मद को जाँचना आवश्यक हो जाता है। यह कार्य वित्त मन्त्रालय और वित्तीय सलाहकारों द्वारा किया जाता है ।

 

एकीकृत वित्तीय परामर्शदाताओं सम्बन्धी योजना

 

केन्द्रीय शासन के सभी मन्त्रालयों में 1976 से एकीकृत वित्तीय परामर्शदाताओं ( Integrated Financial Advisers) की योजना का सूत्रपात हुआ है। इस योजना के अन्तर्गत वित्तीय परामर्शदाताओं की जिनका पद अतिरिक्त सचिव या संयुक्त सचिव के स्तर का हैइन पदों पर नियुक्ति की गयी। वित्तीय परामर्शदाता उस मन्त्रालय के प्रति जिसमें उसकी नियुक्ति की जाती है तथा वित्त मन्त्रालय के प्रति उत्तरदायी होता है। दूसरों शब्दों मेंयह पदाधिकारी दोनों मन्त्रालयों के प्रति उत्तरदायी रहता है। वित्तीय सुधारों के प्रतिफलस्वरूप सभी मन्त्रालयों को व्यापक वित्तीय शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। वित्तीय परामर्शदाता बजट निर्माण परियोजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा में योग देता है। वह बजट के पारित होने के बाद उसका निरीक्षण भी करता हैऔर यह देखता है कि व्यय में कहीं बहुत कमी न हो जाये और न अधिक व्यय ही हो जाये। एकीकृत वित्तीय परामर्शदाता व्यय सम्बन्धी सभी योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन से घनिष्ट रूप से सम्बद्ध होता है। इसके अतिरिक्त वह मन्त्रालय के निष्पादक बजट (Performance Budget) के निर्माण में और विभिन्न योजनाओं के विकास में मार्गदर्शन करता है। ऐसे मामलों मेंजो प्रचलित बजट एवं लेखांकन पद्धति से भिन्न होते हैंवित्तीय परामर्शदाता को अनिवार्यतः वित्त मन्त्रालय के 'आर्थिक मामलों सम्बन्धी विभाग से परामर्श करना आवश्यक है। इसी प्रकार सम्बन्धित मन्त्रालय को विकास योजना के निर्माण के समय वित्त विभाग के योजना वित्तीय सम्भाग से परामर्श करना आवश्यक है।

 

अन्य वित्तीय सुधार

 

  • केन्द्रीय शासन द्वारा 1976 में वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में अनेक सुधार किये गये। तभी से किसी मन्त्रालय का सचिव मुख्य लेखाकंन अधिकारी (Chief Accounting Authority) होता है। वही विनियोग लेखों (appropriation accounts) पर हस्ताक्षर करता है और अपने मन्त्रालय के वित्तीय लेखे तैयार करता है। एकीकृत वित्तीय परामर्शदाता अन्य कार्यों के अतिरिक्त ऋण और भविष्य निधि (provident fund) का विवरण रखने के लिए उत्तरदायी होता है। उस मन्त्रालय के वृत्त (circle) और वेतन अधिकारी इस कार्य में उसकी सहायता करते हैं। वह सभी बिलों की जाँच करता है और चैक द्वारा देनदारी के आदेश देता है। देनदारी का लेखांकनबैंक के हिसाब की जाँच और अन्तिम रूप से लेखा तैयार करना संबंधित मंत्रालय का कार्य होता है न कि लेखा-परीक्षण अधिकारी का। इन वित्तीय सुधारों के सफल क्रियान्वयन के लिए प्रत्येक मन्त्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति की जाती है जो लेखांकन का विशेषज्ञ तथा तत्संबंधी नियमों का ज्ञाता होता है।

 

  • नवीन लेखांकन व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न मन्त्रालयों को मिलाकर उनके कार्य की प्रकृति तथा सीमा के आधार पर उपयुक्त वृत्तों का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक वृत्त में एक या दो या अधिक वेतन अधिकारी होते हैं जो सभी माँगों की जाँच करते हैंऔर चैक या ड्राफ्ट द्वारा भुगतान करते हैं। उनके द्वारा मासिक लेखे तैयार किये जाते हैं जो विभिन्न मन्त्रालयों के एकीकृत वित्तीय परामर्शदाताओं को प्रेषित किये जाते हैं। हर मन्त्रालय की अपनी लेखा परीक्षण इकाई होती हैं। यद्यपि यह इकाई संगठन की दृष्टि से एकीकृत वित्तीय परामर्शदाता के कार्यालय का भाग होती है लेकिन यह मन्त्रालय के सीधे नियन्त्रण में होती है। इन आन्तरिक लेखा इकाइयों के अधीन लेखा वृत्त होते हैं। हर मन्त्रालय महालेखापरीक्षक के परामर्श से लेखांकन विधि का निश्चय करता है और लेखे का विवरण लेखा नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक को प्रस्तुत करता है। मन्त्रालयों के द्वारा उचित पद्धति का निर्माण किया जाता हैजिससे कार्य सम्बन्धी बजट और कार्य के मूल्यांकन का लेखे से सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। वित्त मन्त्रालय की विशेष स्थिति बजटोत्तर काल में एक अन्य ढंग से भी प्रकट हो जाती है। वित्त मन्त्रालय विभिन्न व्ययकर्ता विभागों के व्ययों पर मासिक व्यय विवरणोंसामयिक प्रतिवेदनों मन्त्रालय का कार्य है कि जिन व्यय राशियों को सम्बन्धित मन्त्रालयों द्वारा वित्तीय वर्ष के समाप्त होने से पूर्व व्यय नहीं किया गया है उन्हें शीघ्रातिशीघ्र वापस कर देना चाहिए। यह व्यय करने वाले मन्त्रालयों को वित्तीय मन्त्रणा देता है तथा उनका मार्गदर्शन करता है।

 

  • बजट के क्रियान्वयन काल में व्यय पर वित्त मन्त्रालय के नियन्त्रण की बड़ी आलोचना हुई है। सही रास्ता तो यह है कि प्रशासकीय मन्त्रालय को आरम्भ से ही पूर्ण विवरण सहित योजनाओं का निर्माण कर लेना चाहिए ताकि वित्त मन्त्रालय शीघ्र ही उनका अनुमोदन कर सके और बजटोत्तर परीक्षण तथा नियन्त्रण कम से कम हो जाये। सर एडवर्ड ब्रिजेज (Sir- Edward Bridges) ने 1950 में स्टाम्प मेमोरियल व्याख्यानों (Stamp Memorial Lectures) में कहा था कि आज वित्त मन्त्रालय का वास्तविक कार्य यह निश्चित करना है कि द्रव्य का व्यय कतिपय घोषित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम ढंग से अर्थात् स्त्रोतों का न्यायसंगत प्रयोग होना चाहिए योजना आयोग का अधोलिखित मत भी महत्त्वपूर्ण है : "आर्थिक विकास की किसी भी योजना से लोक व्यय में आधारतत्व रूप से अनिवार्यतः वृद्धि हो ही जाती है।

 

  • मितव्ययता तथा सुदृढ़ वित्तीय नियन्त्रण का महत्व जो पहले से ही सामान्य रूप में मान्य है- राष्ट्रीय योजना की आवश्यकताओं को देखते हुए और अधिक बढ़ जाता है। वित्तीय नियन्त्रण का उद्देश्य यह निश्चित करना होता है कि (1) स्त्रोतों की बरबादी न हो, (2) सार्वजनिक धन का गलत उपयोग न होतथा ( 3 ) जो भी धन व्यय किया जाना है उससे उचित लाभ प्राप्त हो। प्रशासन के अधीन यह निश्चित करने का उत्तरदायित्व हो कि इन शर्तों का पालन किया गया है अथवा नहीं। प्रशासकीय प्राधिकारियों तथा वित्त विभागों दोनों पर सामान्य रूप से हैंयद्यपि वित्तीय विभागों को अपेक्षाकृत अधिक कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। वित्तीय तथा प्रशासकीय अधिकारियों के मध्य प्रत्येक स्तर पर निकटतम सहयोग की सदा आवश्यकता रहती हैताकि यदि कोई कठिनाई सामने आ जाये तो उसे व्यक्तिगत परामर्श द्वारा किसी प्रस्ताव के नियमन की प्रारम्भिक अवस्था में तथा निर्णय के पूर्व ही निपटाया जा सकता है। वित्तीय प्रक्रियाएँजो एक ओर समुचित नियन्त्रण निर्धारित करती हैं और दूसरी ओर अपने कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में अधिकाधिक हस्तक्षेप से रक्षा करती हैपंचवर्षीय योजना के कुशल निष्पादन के लिए आवश्यक है।" लेकिन वित्त मन्त्रालय के इस नियन्त्रण को पूर्ण रूप से समाप्त करना न तो सम्भव है और न संसद के प्रति शासन के वित्तीय उत्तरदायित्व से ही मेल खाता है। प्रशासकीय मन्त्रालय को भी अपने वित्तीय उत्तरदायित्व को ठीक प्रकार समझना चाहिए।

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