राजकोषीय क्रियाओं के प्रभाव | Effect of Fiscal Operations in Hindi

राजकोषीय क्रियाओं के प्रभाव 

राजकोषीय क्रियाओं के प्रभाव | Effect of Fiscal Operations in Hindi



राजकोषीय क्रियाओं के प्रभाव (Effect of Fiscal Operations) - 

  • आर्थिक विश्लेषण ( economic analysis) से पता चलता है कि लोक वित्त की कार्यवाहियाँ निवेश (investment) तथा उपभोग पर ठोस प्रभाव डालती हैं। अतः इनका उपयोग कुल मांग को नियन्त्रित करने तथा अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में सरलता से किया जा सकता है। सरकारी व्यय अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने वाली राजकोषीय नीति (Fiscal policy) का मुख्य आधार होता है और उसमें परिवर्तन लाकर देश के कुल व्यय को नियन्त्रित किया जा सकता है। किन्तु इस दिशा में सरकारी व्यय केवल तभी सक्रिय होता है तब सरकार किसी निश्चित अवधि में अपनी राय से अधिक या कम खर्च करती है। 
  • अतः उन्नत देश अपनी अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए सदा अच्छी राजकोषीय नीति का ही आश्रय लेते हैं और आर्थिक नियोजन के अन्य सभी उपयों में इसे ही उक्त उद्देश्य की पूर्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय मानते हैं। यद्यपि ऊपर के वक्तव्य की भी कुछ सीमाएँ हैंफिर भी राष्ट्रीय आय व उत्पादन में स्थायित्व लाने तथा कुछ सीमाओं के अंतर्गत उसमें वृद्धि करने का यह सर्वाधिक शक्तिशाली तथा एकमात्र अस्त्र रहा है। एक उन्नत अर्थव्यवस्था (advanced economy) मेंजहाँ कि प्रति व्यक्ति आय (per capita income) का काफी अच्छा स्तर होता हैराष्ट्रीय आय की वृद्धि के मार्ग की एक मुख्य बाधा यह होती है कि साधनों में होने वाली वृद्धि की तुलना में मांग नहीं बढ़तीअतः निवेश के अवसर कम हो जाते है। मांग होने का कारण यह होता है कि आय बढ़ने के साथ-साथ सीमान्त उपभोग-प्रवृत्ति (Marginal propensity to consume ) घटती जाती है। अतः राष्ट्रीय आय के वितरण में यदि अधिक समानता लाई जाए तो उससे उपभोग कार्य को बल मिलता है और निवेश तथा कुल उत्पादन में वृद्धि होने लगती हैं। इस प्रकार उच्च आय वाले औद्योगिक देश ऊँची मजदूरी व कम लाभ वाली अर्थव्यवस्था को अपनाकर तथा ऐसी ही अन्य राजकोषीय कार्यवाहियों के द्वारा आय से वितरण में अधिकाधिक समानता लाकर अपनी आय तथा लोगों के जीवन स्तर को काफी ऊँठा सकते हैं। अतः उन्नत देशों में आर्थिक स्थिरता लाने तथा राष्ट्रीय आय व उत्पादन के समान एवं न्यायपूर्ण वितरण के लिए लोक वित्त की कार्यवाहियों को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

  • अल्पविकसित देशों में भी सरकार का मुख्य लक्ष्य यह होता है कि देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास हो तथा राष्ट्रीय उत्पादन का न्यायपूर्ण वितरण ( equitable distribution) होऔर राजकोषीय नीति (Fiscal policy) इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण अस्त्र बन सकती है। राजकोषीय नीति देष की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल सकती हैएक ओर तो यह सरकारी आय (Public income) की मात्रा में वृद्धि करके ऐसा कर सकती है और दूसरी ओर सरकारी खर्च (public expenditure) की मात्रा तथा उसकी दिशा परिवर्तन करके तीन महत्वपूर्ण राजकोषीय उपायजिनके द्वारा कि सरकारी खजाने अथवा राजकोष के साधनों में वृद्धि की जा सकती हैये हैं- कराधान या करारोपण (taxation) जनता के उधार तथा ऋण प्राप्ति अथवा साख निर्माण। यह आवश्यक है कि राजकोषीय उपायों का उपभोग इनमें परस्पर पूर्ण तालमेल रखते हुए किया जाए ताकि लोगों के आर्थिक जीवन पर सामाजिक कल्याण एवं आर्थिक प्रगति के रूप में इनके सर्वोत्तम तथा व्यापक प्रभाव पड़ें।

 

  • यह भी स्पष्ट रूप से समझ लिया जाना चाहिए कि इन तीनों उपायों में कराधान ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । यदि करों का निर्धारण बुद्धिमता के साथ किया जाए और उनको सावधानी के साथ लागू किया जाए तो कराधान राजकोषीय नीति का अत्यंत प्रभावशाली अस्त्र बन सकता है। 


विकास के सामान्य कार्यक्रम के एक अंग के रूप मेंकराधान का उपभोग निम्न लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है

 

(क) उपभोग पर रोक लगाकर या उसमें कटौती करके उत्पत्ति के साधनों को उपभोग के निवेश की ओर स्थानान्तरित करना । 

(ख) बचत तथा निवेश करने के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन देना। 

(ग) साधनों को जनता के हाथों में से राज्यों के हाथों में देनाजिससे सार्वजनिक निवेश करना सम्भव हो सके। 

(घ) आर्थिक असमानताओं में कमी करना

 

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ये सभी लक्ष्य राष्ट्रीय आय में तीव्र वृद्धि तथा उसके वितरण में सुधार के अंतिम लक्ष्यों से मेल खाते हैं। अतः अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास तथा कल्याण की दृष्टि से भी लोक वित्त की कार्यवाहियों का भारी महत्व है।

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