सरकार द्वारा बजट क्रियान्वयन |Execution of Budget by Government in Hindi

सरकार द्वारा बजट क्रियान्वयन 

सरकार द्वारा बजट क्रियान्वयन |Execution of Budget by Government in Hindi

सरकार द्वारा बजट क्रियान्वयन (Execution of Budget by Government) 


जब संसद द्वारा केन्द्रीय बजट पारित कर दिया जाता है तब इसे लागू करने की कार्यवाही शुरू की जाती है। इस प्रक्रिया में मुख्यतया दो सिद्धांतों का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है :

 

1. बजट पर क्रियान्वयन विनियोजन के अनुरूप होना आवश्यक है। 

2. बजट क्रियान्वयन से संबंधित सरकारी मशीनरी पूर्ण निष्ठा तथा कुशलता से कार्य करने के लिए प्रेरित होनी चाहिए।

 

इन दो सिद्धांतों की पृष्ठभूमि में बजट पर क्रियान्वयन में पाँच प्रक्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं जो निम्नलिखित हैं:

 

(1) वित्तीय स्रोतों का एकत्रीकरण (Collection of Financial Sources) 

(2) एकत्रित साधनों का रक्षण (Custody of Collected Resources) 

( 3 ) वित्तीय साधनों का वितरण (Disbursement) 

(4) सरकारी आय-व्यय का लेखा ( Accounting) 

(5) अंकेक्षण तथा प्रतिवेदन (Audit & Reporting)

 

बजट क्रियान्वयन की इन अवस्थाओं की विस्तृत रूपरेखा के संदर्भ में हमारे प्रशासनिक तंत्र की कुशलता तथा निष्ठा का मूल्यांकन किया जा सकता है। अतः इन्हें ब्यौरेवार समझाना जरूरी है।

 

(1) वित्तीय स्रोतों का एकत्रीकरण (Collection of Financial Sources) 

वित्त विधयेक में प्रस्तावित कर प्रस्तावों के अन्तर्गत सर्वप्रथम संभावित आय प्राप्ति का अनुमान करना होता है तथा उसके बाद वसूली का कार्य किया जाता है। आय प्राप्ति के अनुमान लगाते समय उच्च स्तर के निर्णय की आवश्यकता होती हैं। जबकि वसुली करने वाले व्यक्तियों से उच्च किस्म की निष्ठाईमानदारी तथा सुनिश्चितता की अपेक्षा की जाती है।

 

आय स्रोतों के मूल्यांकन तथा वसूली की जिम्मेदारी अलग-अलग व्यक्तियों को सौंपी जाये अथवा किसी एक ही संस्था को यह एक विवाद का विषय माना जाता है। किन्तु आम राय किसी एक एजेन्सी को दोनों कार्य सौंपने के पक्ष में रही है। यद्यपि सुविधा की दृष्टि से इसके उप-विभाग बनाये जा सकते हैं। भारत में यह कार्य राजस्व विभाग को सौंपा जाता है जो सीधे वित्त मंत्रालय के नियंत्रण में होता है। यह विभाग केन्द्रीय राजस्व बोर्ड के नाम से जाना जाता है। केन्द्रीय राजस्व बोर्ड में सचिव स्तर का एक अध्यक्ष होता है तथा संयुक्त सचिव स्तर के चार सदस्य होते हैं तथा इनकी सहायता के लिए नीचे के स्तर के लिए कई और अधिकारी होते हैं। बोर्ड में तीन निरीक्षण निर्देशक होते हैं जिसमें दो आय-कर के लिए तथा एक सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पादन शुल्क के लिए होता है। इस बोर्ड से जुड़े अन्य निम्न विभाग हैं :

 

(i) आय करअतिरिक्त लाभ तथा व्यावसायिक कर

(ii) स्टैम्प्स विभाग, 

(iii) सीमा शुल्क (भूमि तथा वायु सीमा शुल्क सहित 

(iv) केन्द्रीय उत्पाद शुल्क तथा 

(v) अफीम विभाग वे विभाग केन्द्रीय सचिवालय स्तर पर होते हैं तथा इनकी शाखाएँ विभिन्न राज्यों के जिला स्तरों तक होती हैं। उदाहरणार्थजिला स्तर पर आयकर अधिकारी होता है जो केन्द्र की ओर से आय कर एकत्रित करने के कर्तव्य का निर्वाह करता है।

 

राज्यों में राजस्व 

भारतीय संविधान में राज्यों के वित्तीय स्रोतों को अलग से परिभाषित किया गया है। राज्यों के वित्तीय स्रोतों में मुख्यतया भू-राजस्वबिक्री कर उत्पाद शुल्क कृषि करमनोरंजन कर तथा जंगलात का नाम लिया जा सकता है। इनकी वसूली के लिए केन्द्रीय ढंग पर ही राज्य स्तर पर राजस्व बोर्ड का गठन किया जाता है। जो राज्य वित्त मंत्रालय के नियंत्रण में होता है। जिला स्तर पर वित्तीय स्रोतों से वसूली की व्यवस्था होती है। चूंकि भू-राजस्व राज्य सरकार की आय का प्रमुख स्रोत होता है अतः इसके लिए ही राजस्व बोर्ड का गठन किया जाता है तथा इस राजस्व की वसूली में जिला प्रशासन जिसमें कलक्टरतहसीलदार तथा पटवारी शामिल हैंकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

 

एकत्रित कोषों का संरक्षण तथा वितरण (Custody of Funds & their Disbursement)

एकत्रित राजस्व की संरक्षण व्यवस्था के संदर्भ में दो बातों को विशेष ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है :

 

(i) वित्तीय साधनों के गबन अथवा दुरुपयोग से सुरक्षा, 

(ii) वित्तीय लेन-देनों का सुविधाजनक तथा त्वरित संचालन ।

 

  • धन के संरक्षण तथा संवितरण की व्यवस्थाएं प्रत्येक देश में अपनी ऐतिहासिक परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में विकसित की जाती हैं। इस समय हमारे देश में 300 राजकोष ( Treasuries) तथा 1200 उपराजकोष (Sub Treasuries) कार्य कर रहे हैं। ये राजकोष जिला तथा तहसील स्तर पर सरकार की ओर से भुगतान स्वीकार करते हैं तथा सरकार के नाम पर भुगतान करते हैं। इसके अलावा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा भारत सरकार तथा सरकारों के कोषों के संरक्षण तथा संवितरण का कार्य किया जाता है। सरकार को यदि कोई भुगतान किया जाना है तो दो प्रतियों में चालान भरकर या तो कोषागार में या केन्द्रीय बैंक की किसी शाखा या स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अथवा उसकी सहायक बैंकों को किसी शाखा में पैसा जमा कराना होता है। इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति अथवा इकाई को धनराशि प्राप्त करनी हो तो उस व्यक्ति के द्वारा सरकारी राजकोष के किसी उपयुक्त अधिकारी के हस्ताक्षरयुक्त चैक अथवा प्राप्ति बिल अधिकृत बैंक की शाखा में प्रस्तुत करना होता है। इस प्रकार की सम्पूर्ण व्यवस्था वित्त मंत्रालय के दिशा-निर्देशन में चलती है। बजट पास होने के तुरन्त बाद वित्त मंत्रालय विभिन्न मंत्रालयों को स्वीकृति अनुदानों की सूचना दे देता है। विभिन्न मंत्रालय बजट प्रावधानों तथा प्रशासनिक स्वीकृतियों की सूचना विभागाध्यक्षों को भिजवा देते हैं। यह प्रक्रिया जिला स्तर तक चलती है जहां से वितरण अधिकारी सरकारी कोषों के संरक्षण तथा संवितरण का कार्य राजकोष उप राजकोष तथा अधिकृत बैंक की किसी शिक्षा के माध्यम से नियमानुसार करता रहता है।

 

राजकोष की भूमिका 

राजकोष के द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों की ओर से धन की प्राप्ति तथा भुगतान का कार्य प्रतिदिन किया जाता है तथा दोनों लेखे भी अलग-अलग रखे जाते हैं। उप- राजकोषों द्वारा नियमित रूप से अपने लेखे जिला राजकोष के पास भिजवाये जाते हैंजहां इनका वर्गीकरण तथा सूचीबद्धता की जाती है। इसके पश्चात् उप- राजकोषों से प्राप्त लेखों तथा जिला राजकोषों के लेखों को प्रति 15 दिन के पश्चात राज्यों के महालेखापाल के पास भेजा जाता है। प्रत्येक लेखे के साथ खर्च के प्रमाणक तथा आय प्राप्ति की चालान रसीदें भी भिजवायी जाती है। इस प्रकार राजकोष व्यवस्था भारतीय वित्तीय प्रशासन की एक आधारभूत कड़ी है जो इतने विशाल क्षेत्र में फैले देश के कोने-कोने में केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों तथा भुगतानों की समुचित व्यवस्था करती है तथा बजट लेखों के सुव्यवस्थित संचालन को सम्भव बनाती है। यह उल्लेखनीय है राजकोष द्वारा भुगतान के तकनीकी पहलुओं पर बिल पास करने के पूर्व अथवा चैक का निस्तारण करने के पूर्व पूरी तरह से छानबीन की जाती है तथा सभी औपचारिकताएं पूरी करवायी जाती हैं। संवितरण अधिकारी की जिम्मेदारी इससे भी अधिक रहती है। उसे किसी भी धनराशि के भुगतान के पूर्व यह देखना होता है कि :

 

(i) क्या यह बजट प्रावधानों के अनुरूप है ? 

(ii) भुगतान के लेखे की समुचित व्यवस्था है या नहीं ? 

(iii) क्या प्रशासनिक तथा तकनीकी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली गयी हैं तथा 

(iv) क्या भुगतान की मांग उचित है ?

 

  • बैंकिग के विस्तार के कारण अब सरकारी कोषों का भण्डारण रिजर्व बैंकस्टेट बैंक अथवा उसकी शाखाओं में किया जाता है। इसके अलावा राजकोष अथवा उप-राजकोष भी इस दायित्व का निर्वाह करते हैं। भारत में प्रचलित वित्तीय कोषों के संरक्षण तथा संवितरण की राजकोष व्यवस्था के आलोचकों का कहना है कि इसके कारण भारत के नियन्त्रक तथा महालेखा (Comptroller & Accountant General) को भारत की संचित निधि से भुगतान किए जाने वाले धनराशि पर प्रभावी नियंत्रण रखने में कठिनाई होती है। इस आलोचना के बावजूद भी यह बात महत्वपूर्ण है कि भारत की कोषागार पद्धति बहुत हद तक सरकारी व्यय को नियमानुसार निर्देशित करने में उपयोगी रही है। धन का पुनर्विनियोजन विधान मंडलों द्वारा स्वीकृत धनराशियों को संबंधित विभाग द्वारा बजट प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पूर्व 31 मार्च तक खर्च करना होता है अन्यथा अनुदान की स्वीकृति समाप्त हो जाती है। पर यदि किसी विशिष्ट अनुदान की किसी एक मद में धन बच जाए और यदि दूसरे मद से अधिक खर्च हो जाए तो विभागाध्यक्ष को एक सीमा तक स्वविवेक का उपयोग करते हुए धन का स्थानान्तरण करने का अधिकार होता है। इस प्रकार कुल व्यय राशि को बिना परिवर्तित किए किसी एक शीर्ष की एक मद अथवा इकाई में से दूसरी इकाई में धन के हस्तान्तरण की व्यवस्था को पुनर्विनियोजन क्रिया कहा जाता है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि पुनर्विनियोजन एक अनुदान शीर्ष से दूसरे शीर्ष में नहीं किया जा सकता। यह तो केवल व्यवस्थापिका द्वारा ही किया जा सकता है।

 

  • इसके अलावाबजट तथा लेखों की शुद्धता की दृष्टि से भी इस प्रकार पुनर्विनियोजन उचित नहीं माने जाते । तृतीय व्यवस्थापिका ने किसी अनुदान शीर्ष में कटौती कर दी हो तो पूरा करने के लिए भी पुनविर्नियोजन की वैधानिक अनुमति नहीं होती। चतुर्थप्रभारित मदों में यदि कुछ बातें रही हों तो उसे मतदान वाले व्यय मदों में पुनर्विनियोजन नहीं किया जा सकता। अन्त में राजस्व तथा पूँजीगत व्यय शीर्षो में भी पुनर्विनियोजन करने की कानूनी तौर पर कोई व्यवस्था नहीं है। इस प्रकार पुनर्विनियोजन का अधिकार विभागाध्यक्षों को बहुत सीमित दायरे में ही अपने स्वविवेक का उपयोग करने की अनुमति देता है तथा 31 मार्च के पश्चात् अनप्रयुक्त राशि में स्वीकृति स्वतः समाप्त हो जाती है।

 

(4) वित्तीय कोषों का लेखांकन ( Account of Funds ) - 

बजट क्रियान्वयन में लेखांकन का अत्याधिक महत्त्व है। भारत में लेखांकन को कार्यपालिका से अलग करके उसके लिए लेखा तथा अंकेक्षण विभाग की अलग स्थापना की गयी है। नियन्त्रक तथा भारत का महालेखा परीक्षक इसका मुखिया होता है महालेखापाल उसे लेखांकन कार्य में सहायता करते हैं। रेलवे को छोड़कर प्रत्येक केन्द्रीय नागरिक विभाग के लिए एक महालेखापाल होता हैतथा प्रत्येक राज्य में भी इनका एक पद होता है लेखांकन के सामान्य नियम भारत के लेखा परीक्षक द्वारा प्रदान किए जाते हैं। इन नियमों के अनुसार लेखाओं की तैयारी चार स्तरों पर सम्पादित होती है :

 

(i) प्रारम्भिक लेखा इन्द्राज उस कोषागार स्तर पर होती है जहाँ किसी प्रकार का लेन-देन होता है, 

(ii) व्यय शीर्षो के अनुसार सभी लेन-देनों का ब्यौरे-वार वर्गीकरण करना

(iii) लेखाधिकारियों द्वारा लेखों का मासिक संकलन करनातथा 

(iv) भारत के महालेखा परीक्षक द्वारा लेखों का वार्षिक संकलन ।

 

राज्य सरकार के खर्च से जिला स्तर पर कार्यरत कोषागार केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों के लेखे रखता है। रेलवेपोस्ट तथा टेलीग्राफसार्वजनिक निर्माण विभाग तथा जंगलात से संबंधित भुगतान तो कोषागार द्वारा किए जाते हैं किन्तु इनके लेखे विभागीय अधिकारियों द्वारा रखे जाते हैं। प्रत्येक महीने की 11 तथा 12 तारीख को कोषाधिकारी द्वारा संबंधित अवधि में किए गए भुगतानों की सूचना (मय वाउचर्स) महालेखाकार को भेजी जाती है।

 

(5) लेखा परीक्षा (Audit) - 

प्रत्येक माह की पहली तारीख तक गत माह के हिसाब-किताब महालेखाकार कार्यालय में पहुँच जाते हैं जहाँ प्राप्तियाँ तथा खर्चों का लेखा शीर्ष के अनुसार वर्गीकरण होता है। इस प्रकार के वर्गीकरण से पूरे देश भर की लेखा पद्धति में समानता स्थापित करने तथा बजट संबंधी पूर्वानुमान लगाने में काफी सुविधा रहती है। महालेखाकार के कार्यालय स्तर पर भारत सरकार की ओर से निम्न चार शीर्षों में प्रमुखतया लेखा सूचनाएँ संकलित की जाती हैं :

 

(i) राजस्व खाता 

(ii) पूँजीगत खाता 

(iii) ऋण खाता 

(iv) दूरस्थ प्राप्तियाँ

 

प्रथम करों तथा अन्य संबंधित मदों से प्राप्त राजस्व तथा उससे जुड़े हुए खर्च के हिसाब को रखा जाता है। जबकि पूँजीगत खाते में उधार लिए गए तथा एकत्रित हुए कोषों तथा इनसे संबंधित व्यय के लेखे रखे जाते हैं। तीसरे खाते में ऐसी प्राप्तियों के भुगतानों का लेखा-जोखा रखा जाता है जिसके कारण या तो सरकार देनदार बनती है या फिर लेनदार चौथे लेखे में उन लेखा देनों का हिसाब रखा जाता है। जो मुख्यतया पोस्टल सेवाओंसार्वजनिक निर्माण सेवाओंसुरक्षा सेवाओं तथा जंगलात से संबंधित लेन-देन हों तथा अन्य कोई राशि जो पूर्व किसी लेखे में सम्मिलित न की गयी हो। महालेखाकर के कार्यालय में छोटे शीर्षों तथा उप शीर्षों में प्राप्त होने वाले लेखों को बड़े शीर्षों में वर्गीकृत किया जाता है ताकि उन्हें उस रूप में तैयार किया जा सके जिस रूप में व्यवस्थापिका द्वारा बजट अनुदान मांगे पास की गयी थीं।

 

बड़े शीर्षों में वर्गीकरण के पश्चात् इन लेखों का अंकेक्षण होकर इन्हें अधिकारियों के पास भेजा जाता हैजो प्रत्येक माह इनको संलग्न करके हर अगले माह सरकार के समक्ष प्रस्तुत करते रहते हैं। भारत में महालेखा परीक्षक द्वारा लेखों का वार्षिक आधार पर संकलन किया जाता है तथा उनके द्वारा वित्तीय लेखे विनियोजन लेखे तथा अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल अथवा देश के राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती हैजो प्रतिवर्ष संसद (या विधानमंडल) के बजट 48 सत्र या तंत्र के समय संसद के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

 

वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में कार्यपालिका द्वारा बजट का प्रस्तुतीकरण व्यवस्थापिका द्वारा उसे पास करने की प्रक्रिया तथा सरकार आय-व्यय लेखों की सुव्यवस्थित व्यवस्था से जुड़ी क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। स्वस्थ लोकतंत्रीय व्यवस्था में ये क्रियाएं नागरिक हितों का संवर्द्धन होती है तथा प्रशासकों को इस बात का अहसास कराती रहती है कि लोकसत्ता ही सर्वापरि है एवं उन्हें अपने क्रियाकलापों के लिए लोक प्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह होना पड़ता है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.