वित्त प्रशासन : अर्थ प्रकृति एवं कार्यक्षेत्र |Financial Administration : Meaning, Nature and Scope in Hindi
वित्त प्रशासन : अर्थ प्रकृति एवं कार्यक्षेत्र (Financial Administration : Meaning, Nature and Scope)
वित्त प्रशासन : अर्थ प्रकृति एवं कार्यक्षेत्र
- कोई भी सरकार धन के बिना किसी भी कार्य को सम्पन्न नहीं कर सकती। वित्त सरकार के जीवन-रक्त (Life blood) के सदश होता है। वास्तव में बात यह है कि वित्त प्रशासन को पथक नहीं किया जा सकता। बिना वित्त के कोई भी सरकार कार्य नहीं कर सकती ठीक उसी प्रकार जैसे कि बिना पैट्रोल के मोटरकार नहीं चल सकती। वित्त प्रशासकीय मशीनरी का ईंधन है। प्रशासकीय क्रिया की सीमा का निर्धारण उपलब्ध वित्तीय साधनों के द्वारा ही किया जाता है। जितना अधिक वित्त उपलब्ध होता है उतनी ही अधिक प्रशासकीय क्रियायें सम्पन्न की जाती हैं। वित्त प्रशासन इतना सार्वलौकिक रूप में व्याप्त हो गया है जिस प्रकार कि वातावरण (Atmosphere) में ऑक्सीजन वायु । जब सरकार अपनी योजना के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों का निर्धारण करती है उस समय उसके लिए योजना की लागत तथा आय के स्त्रोतों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है।
- एक संगठित राज्य की तुलना उस बड़े कारखाने से की जा सकती है जिसमें विभिन्न प्रकार की मशीनें अनेक प्रक्रियाओं (Processes) में कार्यरत रहती हैं। प्रत्येक कारखाने का अपना एक इन्जन-घर होता है जिसमें कि प्रधान चालक, वाष्प अथवा बिजली का इन्जन रखा होता है जो अन्य सब मशीनों को शक्ति प्रदान करता है। इसी प्रकार राज्य में भी एक इन्जन - घर (Engine house) होता है। यह इन्जन घर वित्त विभाग (Finance Department) या राजकोष ( Treasury ) होता है और उसमें मुख्य चालक वित्तीय इन्जन रखा होता है जो सरकार के सब प्रशासकीय यन्त्रों को चालू रखता है और जिस प्रकार वाष्प इन्जन कोयले को शक्ति (चवूमतद्ध में बदल देता है। उसी प्रकार यह वित्तीय इन्जन राजस्व को लोक सेवाओं में परिवर्तित कर देता है। सरकार की क्रियाओं में चूंकि दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है और सरकार उन पर भारी धनराशियाँ व्यय करती है अतः वर्तमान समय में सरकार की अकुशल तथा अपव्ययी वित्तीय कार्यवाहियों को सहन नहीं किया जा सकता। अतः वित्तीय प्रशासन कुशल तथा प्रवीण होना चाहिये और उसे इस प्रकार कार्य करना चाहिए कि जिससे धन का जरा भी अपव्यय न हो.
'वित्तीय प्रशासन' शब्द का अर्थ
- 'वित्तीय प्रशासन' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। इसमें वे सब प्रक्रियायें सम्मिलित की जाती हैं जो कि निम्न कार्यों को सम्पन्न करने में उत्पन्न होती है: सरकारी धन के संग्रह, बजट निर्माण, विनियोजन तथा व्यय करने में, आय तथा व्यय और प्राप्तियों एवं संवितरणों का लेखा-परीक्षण (Audit) करने में परिसम्पत्तियों (Assets) तथा देवताओं (Liabilities) और सरकार के वित्तीय सौदों का हिसाब-किताब रखने में और आमदनियों व खर्चों, प्राप्तियों व संवितरणों तथा निधियों ( Funds) व विनियोजनों (Appropriations) की दशा के संबंध में प्रतिवेदन - लेखक (Reporting) में।"
- वित्त के बिना सरकार अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल नहीं हो सकती। प्रशासन के लिये वित्त की इतनी अधिक महत्ता होने के कारण वित्त के प्रशासन का अध्ययन भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है। जो सरकार वित्तीय प्रशासन की एक सन्तोषजनक व्यवस्था का निर्माण कर लेती है वह अपने कार्यों का प्रबन्ध कुशलता के साथ करने की दिशा में काफी आगे बढ़ जाती है। इस प्रकार वित्तीय प्रशासन, जोकि एक सी व्यवस्था तथा रीतियों का निर्माण करता है जिनके द्वारा लोक सेवाओं के संचालन के लिये धन प्राप्त किया जाता है, व्यय किया जाता है और उसका लेखा रखा जाता है, आधुनिक सरकार का हृदय माना जाता है।"
वित्तीय प्रशासन एक ऐसी गतिशील प्रक्रिया ( चतवबमे) है जो कि निम्नलिखित संक्रियाओं की एक सतत श्रृंखला का निर्माण करती है-
(1) आय तथा व्यय की आवश्यकताओं के अनुमान लगाना अर्थात् 'बजट का बनाना (Preparation of the Budget) |
(2) इन अनुदानों के लिए व्यवस्थापिका (Legislature) की अनुमति प्राप्त करना अर्थात् बजट की विधायी अनुमति (Legislative Approval of the Budget) |
(3) आय तथा व्यय की क्रियाओं को कार्यान्वित करना अथवा बजट को कार्यान्वित करना (Execution of the Budget) |
(4) वित्तीय व्यवस्थाओं का राजकोषीय प्रबन्धन (Treasury Management of the Finance) |
(5) इन संक्रियाओं की विधायी उत्तरदायिता (Legislative Accountability) अर्थात् समुचित रूप से हिसाब-किताब रखना और उस हिसाब किताब का परीक्षण करना। वित्तीय प्रशासन के ऊपर बताई गई प्रक्रियायें सम्मिलित हैं।
ये वित्तीय क्रियायें निम्नलिखित अभिकरणों (Agencies) द्वारा सम्पन्न की जाती है
(1) व्यवस्थापिका अथवा विधान मण्डल (The Legislature),
(2) सरकार की कार्यपालिका शाखा (The Executive),
(3) राजकोष अथवा वित्त विभाग (Treasury and Finance Department),
( 4 ) लेखा परीक्षण विभाग (Audit Department),
वित्तीय प्रशासन का संचालन तथा नियंत्रण इन्हीं अभिकरणों द्वारा किया जाता है।
वित्तीय प्रशासन की प्रकृति
वित्त प्रशासन की प्रकृति को लेकर दो भिन्न दृष्टिकोण हैं:
1. परंपरागत दृष्टिकोण (Traditional View),
2. आधुनिक दृष्टिकोण (Modeern View)
1. वित्त प्रशासन परंपरागत दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण को मानने वालों का विचार है कि वित्तीय प्रशासन उत्पत्ति, विनियोजन तथा वित्तीय संसाधनों की खोज से सम्पादित क्रियाओं का योग है जो लोक संगठनों को जीवित रखने तथा उनके विकास के लिए आवश्यक होता है। वे इस बात पर बल देते हैं कि किसी भी लोक प्रशासन में एक प्रशासनिक ढांचा होता है, जो धन की आवाजाही को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इसे नियंत्रित और व्यवस्थित भी करता है। इस व्यवस्था के कारण इन कोषों का सही और उत्पादक उपयोग हो पाता है। व्यवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में इस दृष्टिकोण पर नजर डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सहभागिता व्यवस्था का ही एक रूप है। लोक वित्तीय संगठनों को कुशल ढंग से चलाने के लिए वित्तीय सहायता देना वित्तीय प्रशासन का उत्तरदायित्व है। इसका कार्य है लोक संगठनों में समस्त वित्तीय क्रियाओं को नियोजित करना, कार्यक्रम बनाना, संगठन एवं निर्देश देना ताकि लोकनीति का उचित अनुपालन हो सके। इस व्यवस्था के भागीदारों को वित्तीय प्रबंधक समझा जाता है तथा वे वित्तीय प्रकृति के प्रबंधात्मक कार्यों को सम्पादित करते हैं। यह दृष्टिकोण लोक वित्त के विशेषज्ञ सेलिगमैन के दृष्टिकोण को दर्शाता है। सार्वजनिक वित्त के शुद्ध सिद्धांत की केन्द्रीय धारण यह है कि सार्वजनकि वित्त को सार्वजनिक आय, सार्वजनकि व्यय एवं सार्वजनिक ऋण की समस्याओं को वस्तुनिष्ठ ढंग से सम्पादित करना एवं सत्तारूढ़ राजनैतिक दलों के दृष्टिकोण के संबंध में बताना चाहिए। वित्तीय प्रशासन के विशेषज्ञ जो इस दृष्टिकोण को मानते हैं वे मूल्य की तटस्थता में विश्वास रखते हैं। उदाहरण के लिए जेज गैस्टन कहते हैं कि वित्तीय प्रशासन सरकारी संगठनों का वह भाग है जो लोक निधि का संग्रह, सुरक्षा तथा आबंटन को दर्शाता है तो उसके विचार में यही दृष्टिकोण दृष्टिगोचर प्रतीत होता है ।
2. वित्त प्रशासन आधुनिक दृष्टिकोण (Modern View )
- आधुनिक दृष्टिकोण वित्तीय प्रशासन को सार्वजनिक निधि बढ़ाने तथा व्यय करने के साधन के बजाय लोक संगठनों की सम्पूर्ण प्रबन्धकीय प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग मानता है। इसके अंतर्गत लोक प्रशासन में सम्मिलित समस्त व्यक्तियों की समस्त क्रियाएं आती हैं। इसका कारण है कि लगभग प्रत्येक लोक अधिकारी निर्णय लेता है जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम वित्तीय पहलू से भी सम्बद्ध होता है। यह परम्परागत सिद्धांत के मूल्य तटस्थता के दृष्टिकोण को नकारता है। यह इसमें सार्वजनिक वित्त के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों को शामिल करता है जैसे - सामाजिक आर्थिक सिद्धांत, जिसके अग्रदूत वैगनर, एजर्थ तथा पिगोड हैं।
केनेसियन परिप्रेक्ष्य के प्राकार्यात्मक सिद्धांत तथा आधुनिक वित्त विशेषज्ञों के कार्यात्मक दृष्टिकोण। इनके दृष्टिकोण के अनुसार वित्त प्रशासन की निम्नलिखित भूमिकाएँ हैं-
(क) समानता लाने वाली भूमिका
इस भूमिका के अंतर्गत वित्त प्रशासन धन संबंधी असमानताओं को दूर करने - का प्रयास करता है। राजकोषीय नीतियों के द्वारा आय को सम्पन्न से निर्धन को हस्तांतरित करने का प्रयास करता है।
(ख) प्रकार्यात्मक भूमिकाः
सामान्य परिस्थितियों में अर्थव्यवस्था स्वयं कार्य नहीं कर सकती है। इस भूमिका के अंतर्गत वित्त प्रशासन कराधान सार्वजनिक व्यय तथा सार्वजनिक ऋण के द्वारा अर्थव्यवस्था के उचित कार्यान्वयन का प्रयास करता है।
(ग) कार्यात्मक भूमिका
इस भूमिका के अंतर्गत वित्त प्रशासन उन नीतियों का अध्ययन करता है जो निवेश के तीव्र प्रवाह को आसान तथा तीव्रता से बढ़ने तथा राष्ट्रीय आय के विस्तार को बढ़ाने के लिए सही आबंटन करता है।
(घ) स्थायित्व संबंधी भूमिका
इस भूमिका के अंतर्गत वित्त प्रशासन का उद्देश्य है राकोषीय तथा वित्त नितियों द्वारा मूल्य स्तर एवं मुद्रास्फीति की प्रवृति में स्थायित्व को बनाए रखना जाए।
(ड) सहभागी भूमिका :
- इस दृष्टिकोण के अनुसार वित्त प्रशासन समुदाय के सामाजिक कल्याण को बढ़ाने के उद्देश्य से राज्य को लोक तथा निजी उत्पादनकर्ता के रूप में लाने के लिए नीतियों का निर्धारण तथा क्रियान्वयन करता है। यह राज्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी द्वारा आर्थिक विकास को बढ़ाने का प्रयास भी करता है।
इस प्रकार वित्त प्रशासन साध्य तथा साधन के मामले में विकल्प का ढांचा प्रदान करता है जो राज्य की प्रकृति, चरित्र तथा इसके वैचारिक मूल्यों के आधार को दर्शाता है। उदाहरण के लिए समाजवादी देशों में वित्त प्रशासन लोकतांत्रिक देशों से भिन्न होते हैं। इस प्रकार वित्त प्रशासन की आत्मा भिन्न सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों में भिन्न होगी क्योंकि यह सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक शक्तियों के संचालन के विशेष साधनों पर निर्भर करता है।
वित्तीय प्रशासन का कार्यक्षेत्र
(Scope of Financial Administration)
वित्त प्रशासन उन क्रियाओं से निर्मित है जिनका उद्देश्य सरकारी गतिविधियों को धन उपलब्ध करना तथा इस धन का वैध तथा कुशल उपयोग सुनिश्चित बनाना है। व्हाइट के अनुसार, "राजस्व व्यवस्था में इसके मुख्य उप-खण्डों के रूप में, बजट का बनाना तथा इसके पश्चात् विनियोग की औपचारिक क्रिया, व्यय का कार्यकारिणी द्वारा पर्यवेक्षण (बजट कार्यान्वयन), लेखा विधि तथा प्रतिवेदन प्रणाली पर नियंत्रण, कोष की व्यवस्था, राजस्व एकत्रित करना तथा अंकेक्षण सम्मिलित है।" प्रशासन के प्रमुख वित्तीय क्षेत्रों की अभिव्यक्ति निम्न रूपों में की जा सकती है:
1. बजट बनाना (Budgeting)-
- यह वित्त प्रशासन का एक मुख्य यन्त्र है। बजट प्रणाली एक साधन है जिसके माध्यम से वित्त प्रशासन को मोटे तौर पर अभिव्यक्ति प्रदान की जाती है। इसलिए एक अच्छे वित्त प्रशासन की प्रणाली की विशेषताओं के संबंध में जो कुछ कहा गया है वह समूचे रूप से बजट प्रणाली पर भी लागू होता है। वास्तव में किसी देश की अर्थ-व्यवस्था उसकी सरकार की बजटीय क्रियाओं से बहुत अधिक प्रभावित होती है। सरकारी बजट बनाना इन मुख्य प्रक्रियाओं में से एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोक साधनों का नियोजन किया जाता है तथा उन पर नियंत्रण किया जाता है। यह बजट के माध्यम से ही है कि सरकारी कार्यक्रमों को नागरिकों की सेवाओं में बढ़ते क्रम से प्रस्तुत किया जाता है जिससे उनका भौतिक स्तर उच्च होता है। सरकार अपना कार्य बजट की सहायता से तथा बजट द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर रह कर ही करती है। बजट, सरकार के विशेष उपकरणों में शीर्ष स्थान रखता है लोकि राष्ट्र के मामलों के निर्देशन तथा नियंत्रण के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
- बजट राजस्व उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया तथा वित्तीय एवं राजस्व पर नियंत्रण करने की क्रिया की शैली दोनों है। यह देश के वित्त प्रशासन का उत्तरदायित्व है कि बजट का संतुलन इस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से करे कि आय तथा व्यय दोनों ही समान हों। बजट प्रणाली का वास्तविक महत्व इस बात में है कि किसी सरकार के वित्तीय मामलों को सुव्यवस्थित विधि से प्रशासित किया जाए। इस प्रकार के मामलों का संचालन अनवरत क्रियाओं की श्रृंखला में आबद्ध है जिसकी अनेक कड़ियाँ हैं। राजस्व तथा व्यय की आवश्यकताओं का अनुमान, राजस्व तथा विनियोग ऐक्ट, लेखा, अंकेक्षण तथा प्रतिवेदन कुछ निश्चित अवधि के लिए, जोकि प्रायः एक वर्ष होती है, सरकार को ठीक प्रकार से चलाने के लिए जो व्यय की आवश्यकता है। पहले उसका अनुमान लगाया जाता है तथा इसके साथ ही इस व्यय को करने के लिए धन प्राप्त करने की व्यवस्था की जाती है।
2. बजट अधिनियम तथा कार्यान्वयन ( Budget Enactment and Execution )-
- बजट की तैयारी के बाद अर्थात् वार्षिक राजस्व तथा व्यय के विषय में अनुमान लगाने के उपरांत इसे कानूनी स्वीकृति प्राप्त करनी होती है। सर्वप्रथम बजट कार्यकारिणी द्वारा स्वीकार किया जाता है जो इसे विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत करती है ताकि इसे कानूनी दस्तावेज बनाया जा सके। कार्यकारी सरकार का प्रतिनिधित्व करता कोई व्यक्ति प्रायः वित्त मंत्री विधानमण्डल के सम्मुख बजट प्रस्तुत करता है। बजट के तैयार करने तथा इसके प्रस्तुत करने में कार्यकारिणी का केन्द्रीभूत दायित्व विधानमण्डल द्वारा बजट को अधिकृत करने में सुगमता प्रदान करता है तथा इस कार्य के पुनर्वलोकन तथा नीति संबंधी मनन पर ध्यान केन्द्रित करने के योग्य बनाता है। कार्यकारी सरकार द्वारा तैयार एवं प्रस्तुत किए गए बजट का विधानसभा द्वारा पुनर्निरीक्षण एक मुख्य अवसर प्रदान करता है बल्कि यह एक अति महत्वपूर्ण अवसर होता है जबकि प्रशासनिक कृत्यों की विशेषता तथा गुणवत्ता का परीक्षण किया जा सकता है। इस प्रकार का परीक्षण एक संसदात्मक लोकतंत्र में निहित होता हैं तथा प्रत्येक विधानसभा का एक रखवाले का दायित्व होता है।
- बजट का कार्यान्वयन कार्यकारी सरकार का दायित्व है तथा इस प्रकार कार्यकारी सरकार में शक्तियों का विभाजन बजट के कार्यान्वयन की कार्य प्रणाली को निर्धारित करता है। बजट का कुशलतापूर्ण कार्यान्वयन इसलिए शक्तिशाली केन्द्रिीय निर्देश तथा नियंत्रण की पूर्ण कल्पना करता है। "यदि ऐसा नहीं किया जाता तो बजट बहुत सीमा तक अपने उद्देश्य की प्राप्ति में असफल होगा जोकि सरकारी वित्त में दोनों छोरों को मिलाने से संतुलन प्राप्त करना है।"
बजट के कार्यान्वयन में सम्मिलित पद निम्नलिखित है
i) निधि को उचित रीति से एकत्रित करना ii) एकत्रित निधि का उचित रक्षण तथा iii) निधि का उचित बंटवारा। यह कार्यकारिणी का उत्तरदायित्व है कि वह राजस्व / कर तथा बिना कर आय एकत्रित करने के लिए समुचित तथा कार्य प्रणाली के नियमों का निर्माण करे। संचित किए गए धन की संभाल खजानों (राजकोषों) का उत्तरदायित्व है। अनेक देशों में एक अथवा दूसरे रूप में राजकोषों का जाल-सा बिछा हुआ है। संघीय, प्रादेशिक अथवा स्थानीय सरकार से संबंधित लेन-देन, धन की प्राप्ति तथा वितरण राजकोषों अथवा उनकी शाखाओं में प्रतिदिन होता रहता है। राजकोषों तथा बैंकों के मध्य बड़ी निकटता का समन्वय होता रहता है। कोष के वितरण के लिए प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर अनेक अधिकारियों को प्राधिकार सौंपे जाने चाहिएँ जो राजकोषों से धन निकलवा सकें और जिन्हें निन्दनीय अवहेलना के लए जब कोई हानि हो जाए तो दोषी ठहराया जा सके। यह राजकोषीय प्रबंध का दायित्व है कि वह इस बात को निश्चित बनाए कि अदायगी अधिकृत व्यक्ति को की जा रही है तथा कोष का पूर्ण लेखा रखे ।
3. कर - प्रशासन (Tax Administration ) -
- एक समय ऐसा था जब कराधान को एक बुराई समझा जाता था, अब यह एक सामाजिक आवश्यकता है। राज्य की प्रकृति तथा गतिविधियों में परिवर्तन के कारण तथा कल्याणाकरी राज्य की अवधारणा से उत्पन्न हो जाने के कारण लोगों को सेवाएँ उपलब्ध करवाने के लिए उनकी सदा बढ़ रही मांगों की पूर्ति के लिए तथा आधुनिक राष्ट्र राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कराधान अपरिहार्य हो गया है। तथापि केवल कर लगाना ही यथेष्ट नहीं है, वास्तविक बोझ तो इसके एकत्र करने पर पड़ता है। प्रत्येक समाज में कर चोरी तथा कर न देने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त अन्य समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं, जैसा कि कर नियमों में जटिलता, लोगों के सहयोग में कमी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएं कर अधिकारियों का दृष्टिकोण: कराधान प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता इत्यादि। इसके लिए प्रशिक्षित, दक्ष तथा ईमानदार पदाधिकारियों के एक विशाल कर प्रशासन तन्त्र की आवश्यकता है। इसके साथ ही बहुत से देशों में परीक्षण अथवा सतर्कता के लिए पथक संगठन हैं। कर - प्रशासन उस तंत्र के एक भाग के रूप में कार्य करता है जोकि राजस्व नीति तथा वार्षिक बजटों के कार्यान्वयन की दिशा में कार्य करता है।
4. लोक लेखों का प्रतिपादन (Maintaining Public Account ) -
- वित्तीय प्रशासन का एक महत्वपूर्ण पक्ष सरकारी लेखों को जारी रखना है। विभिन्न प्रकार के संगठन ऐसे हैं जो सरकारी वित्तीय क्रियाओं को जारी रखने में रुचि रखते हैं यानि कि करदाता, विधानसभा तथा निदेशक अधिकारी करदाता सरकार को उत्तरदायी ठहराने में रुचि रखता है। विधानमण्डल की आंशिक रुचि उत्तरदायित्व लागू करने में होती है तथा आंशिक रूचि भविष्य की नीति निर्माण के लिए सूचना एकत्रित करने में होती है। निर्देशक अधिकारी अधीक्षण तथा नियंत्रण की आवश्यकता से प्रभावित होते हैं। इन सब तथ्यों को दृष्टि में रखते हुए सरकार को लेखों की तैयारी करनी होती है तथा उनका प्रतिपादन करना होता है। सरकारी लेखों के मुख्य प्रकार हैं- नियत्रण लेखे (Control Accunts), मर्यादा लेखे (Propriety Accounts) संपूरक विस्तृत लेखे (Supplementary Detailed Accounts) | नियंत्रण लेखे मुख्य रूप से इसलिए रखे जाते हैं कि आंतरिक प्रशासन को सुविधा रहे। जिस अधिकारी को कर एकत्रित करने, अभिरक्षा तथा वितरण का भार सौंपा गया उसकी ओर से पूर्ण निष्ठा होनी आवश्यक है.
- तथा कर लगाते समय एकत्र करते समय अथवा कोष को व्यय करते समय संपूर्ण नियमों तथा उपबंधों का कठोरता से पालन करना चाहिए। इसके लिए नियंत्रण लेखों की आवश्यकता है। नियंत्रण लेखे विधानमण्डल अथवा जनता के लिए लाभदायक नहीं होते जोकि सरकारी लेखा विधि में रूचि लेने वाले पक्ष होते हैं। इस आशय के लिए मर्यादा लेखे Propriety Accojnts) तैयार किए जाते हैं। इस प्रकार के लेखे में केवल जमा लेखा (Credit Account) तथा नामे लेखा (Debit Account) तथा वाउचर (Voucher ) का ही प्रतिपादन नहीं होता किंतु यह दर्शाने के लिए कि जो व्यय किया गया है वह विधानमण्डल की इच्छानुसार हुआ है तथा इससे संबद्ध अधिकारी का कोई प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष अपना निहित स्वार्थ न था। इसके अतिरिक्त विस्तृत लेखा, सरकार के देयादेय, आय तथा व्यय अनेक दृष्टिकोण के लिहाज से तैयार किया जाना चाहिए। लेखा विधि (Accounting) सरकारी एजेन्सियों की एक रोजमर्रा क्रिया है किंतु है यह अति महत्वपूर्ण, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदन के अनुसार सरकारी लेखे बजट बनाने तथा अपनाने की प्रक्रिया को सरल बनाने में सहायक होने चाहिए। उन्हें प्रोग्राम के नियोजन, प्रशासन तथा नियंत्रण के लाभप्रद उपकरण होना चाहिए तथा साथ ही सरकार के आर्थिक कार्यक्रम के निर्माण करने तथा मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक सूचना को व्यक्त करना चाहिए।
5. अंकेक्षण (Audit)
किसी भी वित्तीय प्रशासन का यह एक अभिन्न अंग है। लोक वित्त के संसदीय नियंत्रण का यह एक अपरिहार्य भाग है। यह लेखों के स्वतंत्र परीक्षण से संबंधित है अथवा वित्तीय स्थिति के विवरण की सत्यता तथा किसी संगठन में संपूर्ण वित्तीय लेन-देन की जांच से संबंधित है। चार्ल्स वर्थ के अनुसार, "अंकेक्षण का अर्थ वह प्रक्रिया है, जिससे यह जानकारी प्राप्त की जाती है कि प्रशासन ने धन का उपयोग वैधानिक निर्देशों के अनुसार किया है जिसके द्वारा धन विनियोजित किया गया था।" अंकेक्षण के महत्त्व को निम्नलिखित शब्दों में भी विस्तार से कहा गया है। अंकेक्षण, न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा विधानपालिका के समान लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है। इसका मूलभूत प्रयोजन इस बात को सुनिश्चित बनाना है कि सरकारी कोष का व्यय करते समय, प्रत्येक प्रकार की वित्तीय परंपरा का पालन किया गया है कि नियम तथा उपबंध, जोकि व्यय से संबंधत है उनका ध्यान रखा गया है, कि व्यय उसी मद पर किया गया है जिसके लिए संसद ने इसका विनियोजन किया था। अंकेक्षण कार्यकारिणी तथा संसद के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी उपलब्ध करता है तथा उस सीमा तक क्रियाओं की व्याख्या करता है जहाँ तक कि पूर्वोक्त की निम्न पर वित्तीय वहन शक्ति होती है।
अंकेक्षण की चार स्थितियाँ हैं-
(1) विनियोजित अंकेक्षण (Appropriation Audit) -
सरकार लेखों से संबंधित यह प्राथमिक तथा परंपरागत अंकेक्षण का कार्य है। इसका उद्देश्य इस बात की जानकारी प्राप्त करना है कि जो धन सरकार द्वारा व्यय किया गया है क्या वह उन्हीं सीमाओं के भीतर किया गया है जो संसद ने अनुदान तथा विनियोग करते समय निर्धारित की थी।
(2) नियामक अंकेक्षण (Regulatory Audit)
यह इस बात से संबंधित है कि संपूर्ण नियमों तथा अधिनियमों का पालन किया गया है अथवा नहीं।
(3) मर्यादा अंकेक्षण (Propriety Audit) –
इसे उच्चत्तर अंकेक्षण भी कहा जाता है। यह हाल ही की उपज है। यह व्यय की औपचारिकता से आगे इसकी बुद्धिमता (Wisdom ), निष्ठा (Faithfulness) तथा आर्थिकता (Economy ) का ध्यान रखता है जोकि अंकेक्षण के वास्तविक उद्देश्यों से अधिक नहीं तो उसके समकक्ष तो अवश्य है।
(4) कुशल अंकेक्षण (Efficiency Audit) -
यह अन्य प्रकार के संवीक्षण से परे अंकेक्षण का विस्तार है जोकि अंकेक्षण में लगी एजेंसी अथवा प्राधिकरण की कुशलता की परीक्षा करता है। इस प्रकार का अंकेक्षण हाल ही की उपज है तथा इसके महत्व तथा निहितार्थी पर अभी वाद-विवाद, विश्लेषण तथा इसको परिभाषित किया जा रहा है। अंकेक्षण भी एक प्रतिदिन की क्रिया है; जहाँ तक नियामक तथा मर्यादित अंकेक्षण का संबंध है, यह प्रतिदिन की वित्तीय कार्रवाई तथा लेखों की तैयारी के साथ घटित होता है। इसलिए प्रत्येक राज्य में अंकेक्षण का एक समानान्तर तंत्र स्थापित किया जाता है। यह केवल स्वतंत्र अंकेक्षण की संस्था द्वारा ही संभव बनाया जा सकता है कि लोक व्यय पर संसद का प्रभावी नियंत्रण सके तथा इस बात को सुनिश्चित बनाया जा सके कि शेष का उचित व्यय किया गया है जिसमें मिव्ययिता तथा कुशलता का उचित ध्यान भी रखा गया है।
उपर्युक्त विचार-विमर्श किए गए वित्तीय प्रशासन के क्षेत्रों के अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण तथा विषय क्षेत्र है संघराज्यीय वित्तीय संबंध एक संघ में संघीय सरकार को ऐसे कार्य साँपे जाते हैं जोकि संपूर्ण देश से संबंधित होते हैं। प्रायः समस्त संघों में सुरक्षा, विदेशी मामले, संचार, रेल विभाग आदि केन्द्रीय विषय होते हैं। वे समस्त कार्य, जो राज्य को प्रभावित करते हैं तथा वे कार्य जिनमें बड़े स्तर पर अन्तः राज्यीय समन्वय की आवश्यकता है, वे संघीय सरकार के पास होते हैं। प्रादेशिक अथवा राज्य सरकार को वही मामले सौंपे जाते हैं जोकि स्थानीय अथवा मूलभूत विशेषता के होते हैं इसके साथ ही संघ सरकार तथा राज्यों में मध्य साधनों के विभाजन की व्यवस्था भी होनी चाहिए तथापि यह एक सरल कार्य नहीं है। राज्यों के कार्य कम होते हैं तथा कमोवेश स्थानीय प्रकृति के होते हैं किंतु राज्यों की संघ सरकार पर अधिक से अधिक साधनों के निर्धारण की मांग बढ़ती ही रहती है। इस प्रकार किसी देश के वित्तीय प्रशासन में वित्तीय साधनों का विभान तथा केन्द्र एवं राज्यों में समन्वय एक जटिल क्षेत्र होता है।
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