बजट की रचना तैयारी अधिनियम | Formation of the Budget in Hindi

 बजट की रचना तैयारी अधिनियम 

बजट की रचना तैयारी अधिनियम | Formation of the Budget in Hindi


बजट की रचना (Formulation of the Budget)

 

बजट रचना के मुख्यतः दो भाग हैं- प्रथम बजट की तैयारी और द्वितीय बजट का अधिनियम जिसमें बजट अनुमानों को व्यवस्थापिका में प्रस्तुत करनाव्यवस्थापिका द्वारा उसे स्वीकृति प्रदान करनाव्यवस्थापन आदि सम्मिलित हैं।

 

बजट की तैयारी (Preparation of Budget) - 

भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल को आरम्भ और 31 मार्च को समाप्त होता है। बजट अनुमान तैयार करने का कार्य आगामी वित्त के आरम्भ होने से 7-8 माह पूर्व प्रारम्भ होता हैं। बजट की रूपरेखा तैयार करने का सारा उत्तरदायित्व वित्त मंत्रालय का होता हैकिन्तु इस कार्य में प्रशासकीय मंत्रालय और उसके अधीनस्थ कार्यालयों में वित्त मंत्रालय को प्रशासकीय आवश्यकताओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। योजना आयोग योजनाओं की प्राथमिकता के संबंध में मंत्रणा देता है और नियंत्रक महालेखा परीक्षक प्राक्कथन तैयार करने हेतु लेखा कौशल उपलब्ध कराता है। बजट अनुमान तैयार करने की शुरूआत वित्त मंत्रालय द्वारा जुलाई अथवा अगस्त माह से ही शुरू कर दी जाती है अब वह विभिन्न प्रशासकीय मंत्रालयों तथा विभागाध्यक्षों को व्ययों के प्राक्कथन तैयार करने के लिए एक प्रपत्र (Form) भेजता है। विभागाध्यक्ष इन छपे हुए निर्धारित प्रपत्रों को स्थानीय कार्यालयों को भेज देता है। प्रपत्र में कुछ खाने होते हैं जिन्हें निम्न प्रकार दर्शाया जाता है.

 

1. विनियोगों के शीर्ष तथा उपशीर्ष, 

2. गत वर्ष की वास्तविक आय तथा व्यय, 

3. वर्तमान वर्ष के स्वीकृत अनुमान, 

4. वर्तमान वर्ष के संशोधित अनुमान, 

5. आगामी वर्ष के बजट प्राक्कलनतथा 

6. घटा-बढी का विस्तार

 


स्थानीय कार्यालयों द्वारा ये प्रपत्र तैयार करके प्रशासकीयमंत्रालयों के संबंधित विभागों को भेज दिये जाते हैं। विभागों के अध्यक्ष अनुमानों का सूक्ष्म निरीक्षण करते हैं और आवश्यकतानुसार संशोधन करके अपने-अपने विभागों के लिए उन्हें एकीकृत करते हैं। इसके बाद प्रशासकीय मंत्रालय इन प्राक्कलनों को नवम्बर के मध्य में वित्त मंत्रालय को प्रेषित कर देते हैं। प्रत्येक विभाग अपने प्राक्कलनों की एक प्रतिलिपि भारत के महालेखापाल के पास पहुँचा देता है। इस कार्यालय में विभिन्न मदों की जाँच की जाती है। उसके पश्चात महालेखापाल अपनी टिप्पणियाँ वित्त मंत्रालय के पास भेज देता है। वित्त मंत्रालय द्वारा बजट अनुमानों का सूक्ष्म परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण मुख्यतः मितव्ययिता से संबंध रखता हैनीति से नहीं । व्ययों संबंधी नीति को देखना तो मुख्य रूप से प्रशासकीय मंत्रालयों का ही काम है। 


प्रशासकीय मंत्रालयों द्वारा प्रेषित बजट अनुमानों को मोटे रूप से तीन भागों में बांटा जाता है :

 

(i) स्थायी प्रभार अथवा स्थायी व्यय (Standing Charges )- 

इसमें स्थायी संस्थानों (Permanent establishments) के वेतनभत्ते तथा अन्य व्यय सम्मिलित हैं। इनसे संबंधित अनुमान सूक्ष्म पुनरावलोकन हेतु वित्त मंत्रालय के बजट संभाग ( Budget Division) को भेजे जाते हैं।

 

(ii) नयी योजनाओं या कार्यक्रम (New Schemes ) 

वित्त मंत्रालय द्वारा प्राक्कलनों की वास्तविक जाँच इसी क्षेत्र में की जाती है। नवीन योजनाओं के संबंध में संसाधनों के आधार पर विभिन्न मदों की प्राथमिकता के संबंध में विचार किया जाता है। इस बारे में आयोग तथा वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs) से भी सलाह ली जाती है।

 

(iii) प्रचलित योजनाएं अथवा कार्यक्रम (Continuing Schemes ) - 

दूसरे विभाग में वे विषय रहते हैं जो वर्ष प्रतिवर्ष निरन्तर चलते रहते हैं। इन प्रचलित योजनाओं के प्राक्कलनों की जाँच व्यय - विभाग (Department of Expenditure ) द्वारा की जाती है। इस सूक्ष्म परीक्षण द्वारा यह देखा जाता है कि जारी योजनाओं में कहाँ तक प्रगति हुईउनके संबंध में की गयी वचनबद्धताएँ कहाँ तक पूरी की गयी हैंआदि। यह परीक्षण निरन्तर चलता रहता है।

 

बजट तैयार करने के लिए निम्नलिखित पाँच विधियों का इस्तेमाल किया जाता है

 

(1) संवितरण अधिकारियों द्वारा प्रारम्भिक अनुमानों की तैयारी करना 

(2) नियंत्रण अधिकारियों द्वारा इन अनुमानों की संवीक्षा और समीक्षा । 

(3) महालेखाकार तथा प्रशासनिक विभाग द्वारा संशोधित अनुमानों की संवीक्षा और समीक्षा । 

(4) वित्त मंत्रालय द्वारा संशोधित अनुमानों की संवीक्षा और समीक्षा 

(5) मंत्रिमंडल द्वारा समेकित अनुमान पर अन्तिम विचार ।

 

उपर्युक्त विधियों का क्रमानुसार निम्नवत् विश्लेषण किया जा सकता है -

 

(1) संवितरण अधिकारियों द्वारा तैयारी (Preparation by the Disbursing Officers) - 

बजट तैयार करने का कार्य अगला वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने के 6 से 8 माह पहले से ही शुरू हो जाता है। चूंकि भारतीय वित्तीय वर्ष प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को शुरू हो जाता हैइसलिए बजट तैयार करने का कार्य अगस्त-सितम्बर के माह से शुरू हो जाता है। महालेखाकार जुलाई या अगस्त के महीने में विभिन्न विभागों के प्रमुखों को पृथक-पथक राजस्व और व्यय के अनुमानों के लिए निर्धारित प्रपत्र भेजता है। विभाग प्रमुख संवितरण अधिकारियों तथा स्थानीय कार्यालयों के प्रमुखों को ये प्रपत्र भेजते हैं जो प्रारम्भिक अनुमान तैयार करते हैं। अनुमान तैयार करने का कार्य अत्याधिक महत्वपूर्ण कार्य है। श्री पी. के. बट्टल के शब्दों में, "यह विगत वर्षों के औसत निकालकर उन्हें किसी सुरक्षित आंकड़े में रखने का एक सामान्य गणितीय कार्य नहीं है जोकि बिल्कुल पिछले वर्ष के निष्पादन की पुनरावृत्ति की तरह नहीं दिखाई देगा। इन आंकड़ों के पीछे प्रशासन की वास्तविकताएं छुपी होती है। किसी भी एक वर्ष की परिस्थितियाँ पिछले वर्ष की परिस्थितियों के बिल्कुल समान नहीं होती हैं और फिर भी वे नितान्त भिन्न भी नहीं होती हैं। इसलिए असमानताओं और समानताओं का अनुमान लगाने तथा प्रत्येक को उचित महत्व देने में स्व-विवेक का इस्तेमाल करना पड़ता है।" इसलिए अनुमान तैयार करने में सावधानी बरती जानी चाहिए। 

अनुमान तैयार करते समय स्थानीय अधिकारियों को निर्धारित प्रपत्र के चार स्तंभों को भरना होता है -

 

(i) पिछले वर्ष के वास्तविक आंकड़े। 

(ii) चालू वर्ष के स्वीकृत अनुमान 

(iii) चालू वर्ष के संशोधन अनुमानऔर 

(iv) अगले वर्ष के बजट का अनुमान

 

कभी-कभी बजट अनुमानों तथा खर्च किए गए या खर्च किए जाने वाले वास्तविक धनराशि के बीच काफी अन्तर रह जाता है। यह मुख्यः दो महत्त्वपूर्ण कारकों के कारण होता है। प्रथमअनुमान लगभग 18 महीने पहले तैयार किए जाते हैं और दूसरे भारतीय अर्थव्यवस्था मानसून का जुआ है तथा अनुमान मानसून आने से बहुत पहले ही तैयार कर लिए जाते है। इसके अलावा जैसा कि श्री अशोक चन्दा ने कहा है, "बजट में शामिल किए जाते समय नए परियोजनाओं के अनुमानों की तैयारी अधिकांश मामलों में कठिन होती है। इस प्रकार के अनुमान बहुधा केवल प्रत्याशाओं पर न कि ठोस और सकारात्मक पहलुओं पर आधारित होते हैं। फिर भी जब तक कि बजट अनुमानों में शामिल किए जाने हेतु कोई आंकड़ा वित्त मंत्रालय को नहीं भेजा जाता है तब तक इस स्कीम को शुरू नहीं किया जा सकता है।"

 

(2) नियंत्रण अधिकारियों द्वारा अनुमानों की संवीक्षा और समीक्षा (Scrutiny and Review of Estimates by Controlling Officers) 

स्थानीय अधिकारी अपने-अपने नियंत्रण अधिकारियों या विभाग प्रमुखों को संवीक्षा और - समीक्षात्मक अनुमान भेजते हैं। संवीक्षा नितान्त प्रशासनिक किस्म की होती है। नियंत्रण अधिकारी को पूर्णरूपेण विभाग के संभावित अनुदान को ध्यान में रखते हुए नए व्यय के लिए अपने विभाग के विभिन्न शाखाओं और अनुभागों के अपेक्षित महत्त्व का औचित्य सिद्ध करना पड़ता है। इसलिए उसे उनमें से कुछ को स्वीकार करना पड़ता है और दूसरों को अस्वीकार करना पड़ता है। फिर वह समूचे विभाग के अनुमानों को समेकित करता है और अक्तूबर के प्रारम्भ तक के प्रपत्र बजट अधिकारियों के हाथों में चले जाते हैं। महालेखाकार तथा प्रशासनिक विभाग द्वारा संवीक्षा और समीक्षा (Scrutiny and Review by the Accountant General and the Administrative Department) - नियंत्रण अधिकारियों के पास से अनुमान प्रपत्र चले जाने के उपरान्त राजस्व तथा स्थायी प्रभारों यथा स्थायी स्थापनायात्रा भत्ता आदि से संबंधित अनुमानों का भाग। महालेखाकार तथा सामान्य प्रशासन विभाग के पास संवीक्षा तथा समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जाता है। सामान्य प्रशासन विभाग राज्य सरकारों में होते हैं। सामान्य समीक्षा के अतिरिक्तमहा-लेखाकार के कार्यालय को ऋण जमा तथा प्रेषण शीर्षो के अन्तर्गत अनुमान भी तैयार करने होते हैं नवम्बर के मध्य तक ये अनुमान वित्त मंत्रालय के बजट विभाग के पास चले जाते हैं।

 

( 4 ) वित्त मंत्रालय द्वारा संवीक्षा (Scutiny by the Ministry of Finance) - 

विभिन्न विभागों से इस प्रकार प्राप्त हुए अनुमानों की वित्त मंत्रालय द्वारा संवीक्षा की जाती है तथा संशोधन और विभागों से इस प्रकार प्राप्त हुए अनुमानों की वित्त मंत्रालय द्वारा संवीक्षा की जाती है तथा संशोधन और पुनरीक्षण के उपरान्त उन्हें सरकार के बजट में पूर्णरूपेण समेकित कर लिया जाता है। श्री पी. के. वट्टल के शब्दों में, "वित्त विभाग द्वारा की गई संवीक्षा प्रशासनिक विभाग द्वारा की गई संवीक्षा से स्वभावतः भिन्न होती है। प्रशासनिक विभाग व्यय की नीति अथवा उसकी आवश्यकता से संबंधित है और इसीलिए उसका कार्य विभागों न की मांग को उपलब्ध नीधियों के भीतर बनाए रखना है। प्रशासनिक विभागों तथा वित्त विभाग के बीच अनसुलझे मतभेदों को निर्णय के लिए सरकार को प्रस्तुत किया जाता है।" वित्त मंत्रालय द्वारा अनुमानों की संवीक्षा वित्तीय दृष्टिकोण अर्थात् अर्थव्यवस्था एवं निधियों की उपलब्धता के अनुसार की जाती है। फिर वित्त मंत्रालय भारत सरकार के आय और व्यय का अनुमान तैयार करता है। अनुमानित व्यय के आधार पर बजट में नए करों के बारे में प्रस्ताव किए जाते हैं। दूसरे शब्दों मेंबजट दो भागों में विभाजित होता है - आय पक्ष और व्यय पक्ष इस रूप में समेकित बजट दिसम्बर माह तक तैयार हो जाता है।

 

(5) मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदन (Approved by the Cabinet ) - 

वित्त मंत्री जनवरी में किसी समय बजट अनुमानों की जाँच करता है और प्रधानमंत्री के परामर्श से कराधान आदि के बारे में अपनी वित्तीय नीति तैयार करता है। इसके पश्चात् संयुक्त विचार-विमर्श के लिए बजट मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि मंत्रिमंडल की नीति ही सामान्य दिशा निर्धारित करने के लिए उत्तरदायी है। मंत्रिमंडल द्वारा बजट का अनुमोदन कर दिए जाने पर उसे संसद में पेश किए जाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

 

भारतीय बजटजिसे "वार्षिक वित्तीय विवरण कहा जाता हैके दो भाग होते हैं

 

(क) वित्त मंत्री का बजट भाषणऔर (ख) बजट अनुमान वित्त मंत्री के भाषण में देश की सामान्य आर्थिक दशाओं की जानकारीसरकार द्वारा अपनाई जाने वाली वित्तीय नीतिचालू वर्ष के बजट अनुमानों तथा संशोधित अनुमानों के बच पाए जाने वाले अन्तर का स्पष्टीकरण तथा व्याख्यात्मक ज्ञापन होता है जो चालू वर्ष के मूल अनुमानों में होने वाले उतार-चढ़ाव के कारणों की व्याख्या करता है मंत्री का बजट भाषण राष्ट्र के वार्षिक क्रियाकलापों में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। केवल व्यावसायिक समुदाय ही नहीं बल्कि समुदाय के प्रत्येक वर्ग द्वारा इसकी बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा की जाती है। भारत की समेकित निधि पर प्रभारित आय तथा भारत के लोक लेखा पर प्रभारित व्यय के लिए पृथक-पृथक अनुमानों को दर्शाने वाला वार्षिक वित्तीय विवरण संसद में प्रस्तुत किया जाता है। 


संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार निम्नलिखित व्ययों को भारत की समेकित निधि पर प्रभारित माना जाता है। - 

(क) राष्ट्रपति की परिलब्धियाँ एवं भत्ते तथा उसके कार्यालय से संबंधित अन्य व्यय । 

(ख) राज्य सभा के अध्यक्ष सभा के और उपाध्यक्ष तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते इस रूप में बजट निर्माण की विधि पूरी होती है।

 

बजट अधिनियम (Enactment of Budget)

 

(क) प्रस्तुतीकरण - 

सभी लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका द्वारा तैयार किए जाने के बाद बजट संसद में विचार एवं स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। संसद में बजट प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व कार्यपालिका और मंत्रिमंडल का होता है। भारत में सामान्य बजट वित्त मंत्री द्वारा और रेल बजट रेल मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा कि सामान्य विधेयक (Ordinary Bill) तथा वित्त विधेयक (Money Bill) में आधारभूत अन्तर होता हैं। आम विधेयक में सरकार के लिए कुछ कार्यक्रम प्रस्तावित होते हैं जबकि वित्त विधेयक में ऐसे कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए सरकार को धनराशि खर्च करने का अधिकार दिया जाता है। इस कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 से 117 तक वित्त विधेयक से संबंधित निम्न प्रावधान किए गए हैं :-

 

1. बजट अनुमानों से संबंधित हर एक मांग मुख्य कार्यपालिका अध्यक्ष ( राष्ट्रपति) की अनुशंसा से ही की जाएं। 

2. कोई भी व्यय प्रस्ताव राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद के समक्ष नहीं रखा जा सकता। 

3. विधेयक को किसी कर में कमी करने अथवा समाप्त करने का अधिकार तो हैं किन्तु वह नया कर लगाने या कर दर में वृद्धि करने का अधिकार नहीं रखती। 

4. भारत की संचित निधि में संबंधित व्यय (Charges ) पर संसद में बहस हो सकती है। किन्तु मतदान नहीं किया जा सकता है। 

5. विनियोजन विधेयक ( Appropriation Bill) में संसद की ओर से कोई ऐसा संशोधन नहीं किया जा सकता जिसमें किसी अनुदान का उद्देश्य या किसी प्रभारी व्यय राशि में परिवर्तन हो जाये। 

6. वित्त विधेयक के मामले में लोक सभा के अधिकार राज्य सभा की अपेक्षा बहुत अधिक है। अनुदान मांगों के लिए मत देने का अधिकार केवल लोक सभा को ही प्राप्त है। वित्त विधेयक पर लोक सभा की स्वीकृति मिलने के पश्चात् उसे राज्य सभा के पास भेजा जाता है जिसे 14 दिनों के भीतर पास कर अथवा अपनी सिफारिशों के साथ लोक सभा को लौटा देना होता है। लोक सभा यदि उचित समझे तो राज्य सभा के किसी सुझाव पर पुनर्विचार कर सकती है अन्यथा वित्त विधेयक को अपने मूल रूप से पारित कर देती है तथा इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाएगा। सर्वप्रथम 1977 में जनता शासन के आगमन के समय राज्य सभा में कांग्रेस का बहुमत होने की वजह से राज्य सभा में वित्त विधेयक को अपनी सिफारिशों के साथ निचले सदन के पास भिजवा दिया था । किन्तु लोक सभा की सर्वोपरिता की पुष्टि का यह अब तक का पहला या अन्तिम उदाहरण माना जा सकता है। यदि राज्य सभा 14 दिनों के अन्दर-अन्दर वित्त विधेयक को नहीं लौटाती है तब भी संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार उसे दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है।

 

यहाँ पर यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहींइस बात का निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत लोक सभा के अध्यक्ष (Speaker ) को करने का अधिकार है।

 

(ख) बजट पर सामान्य वाद-विवाद (General Discussion on Budget) 

लोक सभा के कार्य संचालन नियम संख्या 207 (1) (2) में बजट प्रस्तुतीकरण के कुछ दिन पश्चात् सामान्य चर्चा का दिशा-निर्देशन करते हुए कहा गया है किसदन को इस बात की अनुमति होगी कि वह संपूर्ण बजट अथवा उसमें प्रस्थापित सिद्धांत के किसी प्रश्न के बारे में विचार-विमर्श कर सके परन्तु इस समय कोई प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा एवं न ही सदन में बजट का मतदान लिया जा सकेगा। इस आम चर्चा दौरान व्यय के किसी भी मद को परिचर्चा से बाहर नहीं रखा जाता तथा हर एक मुद्दे पर प्रशासनिक नीतियों की संक्षिप्त आलोचना तथा टीका-टिप्पणी की जा सकती है। करीब एकाध सप्ताह के अन्दर बजट पर सामान्य चर्चा समाप्त हो जाती है तथा अन्तिम दिन वित्त मंत्री एक संक्षिप्त जवाब भी देता है।

 

(ग) अनुदान मांगों पर ब्यौरे-वार चर्चा तथा मतदान (Voting on Demands of Supplies) - 

  • बजट के तीसरे चरण में मंत्रालयों के अलग-अलग सभी क्रमवार अनुमान मांगें एक प्रस्ताव के रूप में लोक सभा के समक्ष प्रस्तुत की जाती है जो कि निम्नवत् होते हैं 31 मार्च 199... को समाप्त होने वाले वर्ष की अवधि में (गृह मंत्रालय से संबंधित ) व्ययों की अदायगी के लिए एक धनराशिजो कि रुपये से ज्यादा न होको राष्ट्रपति को खर्च करने के लिए स्वीकृत की जानी चाहिए।" इस प्रकार की अनुदान मांगे प्रत्येक मंत्रालय के लिए अलग से प्रस्तावित की जानी चाहिए जब तक यह कठिनाई न हो कि किसी अनुदान राशि को अलग-अलग मंत्रालयों को बांटना असंभव हो। लोक सभा कार्यवाही नियम 131 के तहत प्रत्येक अनुदान मांग को समग्र रूप में तथा उसके अन्तर्गत मद-वार ब्यौरे के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। भारत सरकार का आम बजट 109 अनुदान मांगों में विभाजित रहता हैजिनमें से 103 मांगे लोक व्यय से संबंधित हर मंत्री मांगों को प्रस्तुत करते समय एक संक्षिप्त भाषण भी देता है जो आर्थिक नीतियों का प्रतिबिम्ब होने के बजाय प्रायः राजनीतिक रंग लिए होता है।

 

संसदीय कार्यवाही नियम 132 तथा 133 के तहत लोक सभा का अध्यक्ष सदन के नेता से विचार-विमर्श के पश्चात् एक निश्चित अवधि निर्धारित करता है जिसमें अनुदान मांगों पर विचार-विमर्श पूरा हो जाना चाहिए। भारत में आमतौर पर 26 दिनों की अवधि इस हेतु निर्धारित की गई है। एक-एक करके अनुदान मांगों पर विचार होते समय विपक्षी सदस्यों द्वारा बजट की तीखी आलोचना की जाती है तथा अनेक प्रकार के कटौती प्रस्ताव सदन के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं ये कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार के होता हैं:

 

 कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार के होता हैं:

(i) नीति संबंधी कटौती प्रस्ताव (Policy Cut Motion) - 

किसी अनुदान मांग के पीछे निहित सरकारी नीति को अस्वीकृत करने की सिफारिश के उद्देश्य से सदस्य द्वारा मांग की जाती है कि "मांग की धनराशि घटा कर एक रुपया कर दी जानी चाहिए।" इस प्रस्ताव को लाने वाला सदस्य नीति संबंधी मुख्य मदों की समीक्षात्मक आलोचना करते हुए सदन के विचार-विमर्श की वैकल्पिक नीति की प्रतिस्थापना की ओर अग्रसर करने का प्रयत्न करता है। इस अवधि में प्रशासन की कमियों को उजागर करते हुए सरकार की तीखी आलोचना की जाती है।

 

(ii) मितव्ययिता संबंधी कटौती प्रस्ताव (Economy Cut Motion ) - 

सरकारी व्यय में संभावित दुरुपयोग या अपव्यय की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से सदन का कोई सदस्य इस प्रस्ताव को पेश करते हुए मांग कर सकता हैं कि "अनुदान मांग की राशि में से विशिष्ट धनराशि कम कर दी जानी चाहिए। ये कटौती प्रस्ताव किसी मांग की किसी विशेष मद में कमीउसकी पूर्ण समाप्ति अथवा सम्पूर्ण अनुदान में से एक मुश्त धनराशि कम करने के लिए पेश किए जाते हैं। वाद-विवाद के समय सदस्यों को केवल विचारणीय मुद्दे पर ही अपने विचार रखने की अनुमति दी जाती है।

 

(iii) प्रतीकात्मक कटौती प्रस्ताव (Token Cut Motion ) - 

संसदीय नियम 209 के अन्तर्गत कोई भी सदस्य सरकार के किसी विशेष कार्य के बारे में शिकायत करते हुए यह प्रस्ताव ला सकता है कि संबंधित अनुदान "मांग की धनराशि में 10000 रुपये की कटौती की जानी चाहिए।" यह प्रस्ताव प्रतीकात्मक ही होता है ताकि सरकार का ध्यान किसी विशेष समस्या की ओर आकर्षित किया जा सके।

 

हमारी संसदीय प्रणाली में प्रायः प्रतीक कटौती प्रस्ताव ही लाए जाते हैं तथा अध्यक्ष द्वारा इन पर बहस की अनुमति देने के पश्चात् वाद-विवाद होता है। बहस की समाप्ति पर संबंधित मंत्री सदस्यों की आलोचनाओं का जवाब देता है तथा सदस्यों द्वारा बतलायी शिकायतों को दूर करवाने का आश्वासन भी देता है। तथापि ऐसा कहा जाता है कि भारतीय संसद में बहस का स्तर बहुत अच्छे स्तर का नहीं होता। श्री एस.एल. शकधर ने लिखा है कि, "बजट संबंधी वाद-विवादों में एक प्रमुख दोष पाया जाता है और वह यह है कि बजट संबंधी बहस केवल सिद्धांतों पर आधारित होता है और अनुमानों के ब्यौरे के संबंध में जरा भी बहस नहीं की जाती। सदन अपने आपको इस विषय में संतुष्ट नहीं करता कि अनुमानों के विस्तृत आंकड़े ठीक प्रकार तैयार किए गए हैं। विभिन्न सेवाओंपूर्तियोंसंस्थानोंप्रयोजनाओं तथा कार्यक्रमों के लिए जो विविध धनराशियाँ दिखाई गयी हैं क्या वे न्यायोचित हैंक्या अनुमानों में दिए गए व्यय उपलब्धियों से मेल खाते हैंऔर क्या सरकारी विभागों द्वारा वास्तव में व्यय की गई धनराशियाँ विनियोजन अधिनियम के अथवा उसमें निहित उद्देश्य के अनुसार थीं अथवा क्या कोई दुर्विनियोजन या अन्य कोई वित्तीय अनियमितता थी।"

 

(घ) मतदान प्रक्रिया (Voting Process) - 

भारतीय संसद में कुल 26 दिनों के भीतर श्अनुदान मांगों को पास करने की परम्परा है। अध्यक्ष द्वारा किसी अनुदान मांग पर बहस के लिए निर्धारित समय के अन्तिम दिन सायं 5 बजे मतदान का कार्य आरम्भ हो जाता है। इस प्रक्रिया से सभी विभागों की अनुदान मांगे गुजरती है। किन्तु पूरी बहस के लिए निर्धारित दिनों के अन्तिम दिन शेष बची सभी मांगों पर भी मतदान हो जाता है चाहे फिर उन पर ब्यौरेवार बहस हुई हो या न हुई हो। इस प्रकार अन्तिम दिन करोड़ों रुपयों की अनुदान मांगें बिना बहस के ही पास कर दी जाती हैं। हिल्टन यंग ने इस प्रक्रिया के दोषपूर्ण प्रचलन की ओर संकेत करते हुए कहा था कि, "वर्ष के कुल व्यय के एक तिहाई से आधे भाग पर किसी आलोचना अथवा वाद-विवाद के बिना घंटे भर में मतदान हो जाता है। इसरो अधिक असंतोषजनक स्थिति की कल्पना कदाचित ही की जा सकती है। इससे सदन द्वारा व्यय पर नियंत्रण करने संबंधी संपूर्ण श्रम साध्य प्रक्रिया एक ढोंग प्रतीत होती है।"

 

(ड) लेखानुदान (Vote on Account) 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 (1) के अन्तर्गत संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि बजट प्रक्रिया के पूर्ण होने से पूर्व ही वित्तीय वर्ष के प्रथम दो माह के लिए कार्यपालिका को अग्रिम अनुदान स्वीकृत कर खर्च करने की अनुमति प्रदान करें। संविधान में ऐसा उपलब्धि किया गया है जिसके अन्तर्गत लेखानुदान द्वारा अग्रिम अनुदान देने की शक्ति लोक सभा को दी गई है जिससे सरकार अनुदानों की मांगों पर मतदान होने तथा विनियोग विधेयक और वित्त विधेयक के पारित होने तक अपना कार्य चला सके। सामान्यतः इसकी राशि अनुदानों की विभिन्न मांगों के अधीन समस्त वर्ष के लिए प्राक्कलित व्यय के छठे भाग के बराबर होती है। इस परिपाटी के प्रारम्भ होने के कारण अब अनुदान मांगों पर 1 अप्रैल के पश्चात् भी बहस जारी रखी जाती है। इस प्रकार की पद्धति अपनाए जाने से संसद को बजट संबंधी प्रस्तावों पर अधिक व्यापक बहस करने का अवसर मिलता है। ताकि प्रशासकीय कमियों को उजागर करके कार्यपालिका को अधिक सचेष्ट किया जा सके।

 

(च) विनियोजन विधेयक ( Appropriation Bill) - 

अनुदान मांगों पर संसद में मतदान होने जाने का मतलब यह नहीं है कि सरकार को सार्वजनिक कोष (Public Fund) से पैसा निकालने का हक प्राप्त हो गया है। संविधान की धारा 110 (1) (क) में कहा गया है कि, "भारत की संचित निधि में से कोई भी धनराशि विधि द्वारा विनियोजन के बिना नहीं निकाली जा सकती।" जब सभी अनुदान मांगों पर मतदान हो जाता है तो इनको संचित निधि सहित विनियोजन अधिनियम में एकीकृत कर लिया जाता है और इस प्रकार धन खर्च करने के अधिकार को प्राप्त करने के लिए विनियोजन बिल को पास करवाने की क्रिया सम्पादित करनी होती है। इस विधेयक का आशय निधि में से व्यय के विनियोग के लिए सरकार को कानूनी अधिकार देता है। विनियोग विधेयक पर चर्चा उसमें शामिल अनुदानों में निहित लोक महत्व के विषयों पर प्रशासनिक नीति तथा ऐसे मामलों तक जो अनुदानों की मांगों पर चर्चा करते समय पहले उठाये गए होंसीमित रहती है। इस पर कोई संशोधन पेश नहीं किए जा सकते। अन्य मामलों में विनियोग विधेयक संबंधी प्रक्रिया भारत में वित्तीय प्रशासन वही होती है जो कि अन्य विधेयकों के संबंध में होती है। विधेयक को लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात अध्यक्ष उसे 'धन विधेयकहोने के रूप में प्रमाणीकृत करता है और उसको राज्यसभा के पास भेज देता है। राज्य सभा को धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही होती है। तत्पश्चात् विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

 

(छ) वित्त विधेयक ( The Finance Bill) - 

बजट में दो हिस्से होते हैं - व्यय प्रावधान तथा आय प्राप्ति प्रस्ताव विनियोजन विधेयक (Appropriation Act) पारित होने के साथ सरकार के राजकोष से धनराशि खर्च करने का अधिकार मिल जाता है। किन्तु इस व्यय की पूर्ति के लिए वित्तीय साधनों की प्राप्ति कर प्रस्तावों द्वारा संभव होती है। इस प्रकार संसद के समक्ष सरकार द्वारा वित्त विधेयक प्रस्तुत किया जाता है जिसमें नये कर या वर्तमान करों की दरों में संशोधन संबंधी प्रस्ताव होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 265 में यह कहा गया है किकानूनी सत्ता के बिना न तो कोई कर लगाया जा सकता है एवं न ही वसूल किया जा सकता है।" वित्त विधेयक में पूर्व में प्रचलित तथा नये दोनों प्रकार के कर प्रस्तावों को शामिल किया जाता है। आय करउत्पादन शुल्कनिगम कर आदि कुछ स्थायी कर होते हैंजिनकी प्रचलित दरों में सरकार आवश्यकता अनुसार प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए परिवर्तन प्रस्तावित करती है। यहाँ यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारत की संघीय वित्त व्यवस्था (Federal Financial System) के अन्तर्गत केन्द्र सरकार को जिन करों को लगाने या उनकी दरों में परिवर्तन करने का अधिकार है उन्हीं को वित्त विधेयक में शामिल किया जाता है। कर प्रस्तावों को प्रस्तुत करते समय कार्यपालिका को यह देखना होता है कि अनेक अनुत्पादक करों (Unproductive Taxes) के बजाय कुछ प्रमुख उत्पादक करों (Productive Taxes) को ही वित्त विधेयक में शामिल करें। विनियोजन विधेयक तथा वित्त विधेयक में कछ मौलिक अन्तर होता है। विनियोजन विधेयक में प्रायः कोई परिवर्तन नहीं किया जाता जबकि वित्त विधेयक में बहस के दौरान सदस्यों द्वारा करों की दरों में परिवर्तन के लिए संशोधन प्रस्तुत किए जाते हैं (किन्तु कर बढ़ाने को नहीं) तथा कभी-कभी सरकार सदन की भावना को ध्यान में रखते हुए कर कटौती प्रस्तावों को स्वीकार भी कर लेती है। सदस्यों की सहमति पर सरकार कई बार आय-करपोस्टल टेरिफ या कतिपय उपभोक्ता वस्तुओं पर लगाए गए उत्पादन शुल्क में कमी करने को तैयार हो जाती है। लोकमत के दबाव के कारण रेलवे बजट में भी यात्री भाड़े तथा मालभाड़े की दरों को घटाने संबंधी संशोधन भी सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने के अनेक उदाहरणों को भारतीय संसद के इतिहास में देखा जा सकता है।

 

(ज) वित्त विधेयक पर चर्चा करना और उसे पारित करना ( Discussion on Finance Bill and Enactment ) - 

सदन में वित्त मंत्री यह प्रस्ताव रखता है कि वित्त विधेयक को विचारार्थ लिया जाना चाहिए वित्त मंत्री के इस प्रस्ताव के साथ विचार-विमर्श प्रारम्भ होता है। इसके पश्चात् विधेयक को सदन की प्रवर समिति (Select Committee) को सौंप दिया जाता है। प्रत्येक पर समीक्षात्मक टिप्पणियां तथा सुझाव देकर समिति उसे वापस लौटा देती है। इसके पश्चात् सदन में धारा-वार बहस होती है और इसी दौरान सदस्यों द्वारा कर कटौती प्रस्ताव भी प्रस्तुत किए जाते हैं। बहस की समाप्ति वित्त मंत्री के उत्तर द्वारा होती है। जिसमें सदन के रुख को ध्यान में रखते हुए यथासंभव कर प्रस्तावों की कटौती की घोषणा भी कर सकता है। इसके पश्चात् वित्त विधेयक को पारित करने के मामले में एक प्रस्ताव सदन में पेश किया जाता है। चूंकि सरकार बहुमत वाले दल की होती है इसलिए वित्त विधेयक को पारित करवाने में सरकार को कोई असुविधा नहीं होती है। लोकसभा में वित्त विधेयक पास हो जाने पर राज्य सभा के पास भेज दिया जाता है जो 14 दिनों के भीतर उसे लौटाने को बाध्य है। विनियोजन विधेयक की भांति वित्त विधेयक पर भी राज्य सभा की शक्तियाँ सीमित हैं। जब दोनों सदन वित्त विधेयक को पारित कर देते हैं तो उसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के पश्चात् विधेयक कानून बन जाता हैतथा सरकार को कर राजस्व वसूल करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

 

(झ) राष्ट्रपति का विशेषाधिकार (Veto of the Executive Head)

 जब विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर कर बिल को वापिस कर देता है या फिर उसे अपनी सिफारिशों के साथ 5 या 10 दिन के भीतर लोक सभा को लौटाना होता है। यदि सिफारिशों के साथ बिल वापिस होता है तो लोक सभा मूल रूप से ही बिल को पास करके राष्ट्रपति को पुनः हस्ताक्षर के लिए भेज देती है। निर्धारित अवधि में राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर कर दे तो ठीक अन्यथा अवधि की समाप्ति के पश्चात वित्त बिल स्वतः कानून बन जाता है।

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