ग्रीन हाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग किसे कहते हैं
ग्रीन हाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग किसे कहते हैं
ग्रीन हाउस अथवा हरित गृह एक प्रकार का कांच जैसे पारदर्शी पदार्थों से बना ढांचा होता है जो कि उष्णकटिबंधीय पौधों को ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इनकी संरचना की मुख्य विशेषता यह होती है कि लघु तरंग सौर विकिरण इसमें प्रवेश कर सकता है तथा यह पृथ्वी द्वारा विकिरित दीर्घ तंरगों को वापिस नहीं जाने देता है जिस कारण इस ढांचे के अंदर का तापमान बाहरी तापमान की अपेक्षा ऊंचा बना रहता है। वायुमंडल भी काफी हद तक इसी प्रकार का व्यवहार दर्शाता है। पृथ्वी का वायुमंडल लघु तरंग सौर विकिरण को पृथ्वी तक आने देता है परंतु पृथ्वी से होने वाले दीर्घ तरंग पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर लेता है। वायुमंडल के इस व्यवहार के कारण इसके तापमान में सतत वृद्धि होती रहनी चाहिए। परंतु वास्तव में वायुमंडल का तापमान लगभग स्थिर रहता है और यह तापीय समता ऊष्मा बजट के माध्यम से संभव होती है । धरातल की ही भांति वायुमंडल भी एक ताप अवशोषक तथा विकिरणकर्ता की भूमिकाएं निभाता है और सूर्य से प्राप्त लघु तरंग विकिरण तथा पृथ्वी से प्राप्त दीर्घ तरंग विकिरण के रूप में प्राप्त समस्त ऊर्जा का विकिरण अंतरिक्ष को कर देता है ।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, वायुमंडल अपनी अधिकांश ऊष्मा दीर्घ तरंग पार्थिव विकिरण के रूप में प्राप्त करता है। अधिकांश पार्थिव विकिरण का अवशोषण वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई आक्साइड तथा जलवाष्प द्वारा किया जाता है। यदि वायुमंडल में इन तत्वों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो, ऊष्मा का अधिक अवशोषण करने के कारण वायुमंडल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। इस प्रकार ऊष्मा अवशोषित करने वाले तत्वों की मात्रा में तथा इसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है। इसी प्रभाव के कारण मेघ, आच्छादित रातें गर्म होती हैं। वायुमंडल में बादलों की उपस्थिति धरातल तथा वायुमंडल से ऊर्जा ह्रास में बाधक होती है। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड पार्थिव विकिरण द्वारा प्राप्त ऊष्मा का अवशोषण करती है। जीवाश्म ईधनों को अधिक मात्रा में जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड गैस मुक्त होती है जिससे वायुमंडल में इसकी मात्रा में वृद्धि होने से संपूर्ण पृथ्वी के तापमान में भी वृद्धि हो सकती है। इसे 'ग्लोबल वार्मिंग' कहते हैं।
आजकल यह माना जा रहा है कि पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है । इससे अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय क्षेत्रों की हिम चादरों के पिघलने से समुद्र तल में वृद्धि हो सकती हैं जिससे अनेक तटवर्ती क्षेत्र समुद्र की चपेट में आ सकते हैं। पृथ्वी पर तापीय परिस्थितियों में परिवर्तन से विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलें भी प्रभावित हो सकती हैं। इसके साथ ही यह तर्क भी दिया जा सकता है कि तापमान बढ़ने से पौधों की वृद्धि दर भी बढ़ जाएगी तथा कार्बन डाईऑक्साईड की बढ़ी हुई मात्रा का उपयोग वनस्पति द्वारा कर लिया जाएगा। वास्तव में ग्लोबल वार्मिंग की संकल्पना काफी जटिल विषय है जिसके संदर्भ में अनेक प्रकार के विचार व्यक्त किए जा रहे हैं। परन्तु अब अधिकतर वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि पिछले कुछ दशकों में भूतल तथा वायुमंडल के तापमान में वृद्धि दर्ज हुई है तथा भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
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