ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट किसे कहते हैं | Heat balance or heat budget in Hindi

ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट किसे कहते हैं 

ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट किसे कहते हैं | Heat balance or heat budget in Hindi

ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट किसे कहते हैं 

यद्यपिपृथ्वीसूर्य से लगातार ऊर्जा प्राप्त करती है परंतु पृथ्वी पर तापमान लगातार लगभग स्थिर बना रहता है जिसका कारण पृथ्वी द्वारा समान मात्रा में ऊर्जा का प्राप्त करना तथा उसका विकिरिण करना है। इस प्रकार पृथ्वी का एक समान मात्रा में सूर्यातप प्राप्त करना और उसका वापस जाना ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट कहलाता है।

 

  • यदि माना जाए कि पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह पर 100 इकाई ऊर्जा प्राप्त होती हैतो उसमें से 14 इकाई सीधे वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं तथा 35 इकाई परावर्तित हो जाती हैं। शेष 51 इकाई धरातल द्वारा अवशोषित की जाती हैं जिससे धरातल गर्म होता है। सौर ऊर्जा के अवशोषण से गर्म होने के पश्चात धरातल दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगता है। इसे पार्थिव विकिरण कहते हैं। इस प्रकार 51 इकाई ऊर्जा पृथ्वी द्वारा वायुमंडल में पार्थिव विकिरण के रूप में छोड़ी जाती हैजिसमें से 34 इकाई वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड और जलवाप्प द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं और शेष 17 इकाई ऊर्जा पुनः अंतरिक्ष में वापिस कर दी जाती है। इस प्रकार वायुमंडल कुल 48 इकाई ऊर्जा प्राप्त करता है तथा इस सारी ऊर्जा को अंतरिक्ष में विकिरित कर देता है । इस प्रकार कुल 100 यूनिट ऊर्जा की हानि होती है जिसमें पार्थिव विकिरण और वायुमंडल द्वारा किए जाने वाले परावर्तन का भी योगदान है। 


  • यद्यपि पृथ्वी और उसका वायुमंडल ताप संतुलन को बनाए रखता है किंतु फिर भी प्राप्त की गई तथा छोड़ी गई सूर्यातप की मात्रा में अक्षांशीय अंतर देखने को मिलता है । उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त होती है तथा कम ऊर्जा की क्षति होती है। इसके विपरीत ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की अपेक्षा अधिक ऊर्जा का ह्रास होता है। अतः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की अधिकता होती है जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में इसकी कमी होती है। अतः पृथ्वी पर उर्जा का अक्षांशीय संतुलन तभी बना रह सकता हैजब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से  ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर ऊर्जा का स्थानांतरण होता रहे । ऊर्जा का अक्षांशीय स्थानांतरण वायु और जल प्रवाह द्वारा संभव होता है । पवनें तथा समुद्री धाराएं ऊर्जा को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवीय और उपध्रुवीय क्षेत्रों की ओर ले जाती हैं जिससे कि संपूर्ण पृथ्वी पर संतुलन बना रहता है।

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