परम्परागत बजट |परम्परागत बजट में निम्नलिखित कमियाँ | Line Item Budget in Hindi
1. परम्परागत बजट (Line - Item Budget)
परम्परागत बजट (Line - Item Budget)
- बजट सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों योजनाओं तथा लक्ष्यों की औपचारिक अभिव्यक्ति करता है। निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति करने के लिए यह एक निश्चित कालिक कार्यक्रम होता है। यह नियंत्रण रखने तथा कुशलता को बढ़ाने का एक साधन है। बजट की परम्परागत व्यवस्था के अधीन कोई संगठन पिछले वर्ष के लिए अनुमोदित किये गये धन में बढ़ोतरी या कटौती करके उसको अगले वर्ष के बजट का आधार बनाता है। इसलिये यह प्रायः सुना जाता है कि पिछले साल के बजट नियतन में 20 प्रतिशत या 25 प्रतिशत बढ़ोतरी अगले बजट में की गई है। बजट की परम्परागत प्रणाली में पिछले वर्ष के खर्च को स्वतः ही ज्यों की त्यों अगले वर्ष के बजट में सम्मिलित कर लिया जाता है, बहस होती है तो केवल उस पर जो बढ़ोतरी की गई है। परम्परागत बजट प्रक्रिया में वित्तीय संसाधनों का आबंटन धन के ऐतिहासिक बंटवारे के आधार पर किया जाता है। इस राशि में कुछ परिवर्तन किया जाता है ताकि वह नई क्रियाओं और चले रहे कार्यों में सम्भावित परिवर्तनों की व्यवस्था कर सके। बढ रही प्रतिस्पर्धा के कारण, नियमित तथा सार्वजनिक संस्थानों ने लागत नियंत्रण, उत्पादन तथा बजट का नियंत्रण जैसी कई तकनीकों को अपनाया है। परम्परागत बजट प्रमुखतया विधिक एवं लेखा सम्बन्धी साधन का काम करता है। इसमें विभिन्न विभागों की व्यय सम्बन्धी आवश्यकताओं पर प्रति वर्ष खर्च होने वाले अनुमानित राशि का समकन किया जाता है। समूचे व्यय को माँगों और अनुदानों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें व्यय के मदवार वर्गीकरण पर जोर दिया जाता है। उदाहरणार्थ, स्थापना प्रभार उपस्कर तथा सामग्री ।
- फ्लेक्स निग्रो (Fleix Nigro) के अनुसार, "परम्परागत बजट स्वभावतः अधिक कठोर होता है। नियंत्रण सरकार द्वारा क्रय की गई प्रत्येक मदध्सेवा के लेखांकन द्वारा स्थापित किया जाता है।"
परम्परागत बजट का औचित्य (Relevance of Traditional Budget System)
- परम्परागत बजट या लाइन आइटम बजट उस काल की देन थी जब सरकार के कार्य सीमित थे। उस समय सार्वजनिक व्यय कम रहता था और कम से कम खर्च करने की धारणा प्रचलित थी। वित्त प्रशासन नीचे के कर्मचारियों को शंका की दृष्टि से देखता था और उन्हें नियन्त्रित करने के लिए नियन्त्रण की एक विशाल श्रृंखला उत्पन्न कर ली थी सार्वजनिक व्यय पर कठोर नियन्त्रण रखने के उद्देश्य से बजट में व्यय अनुमानों को इंगित करते समय व्यय की प्रत्येक मद ( Item ) को पंक्तिवार लिखा जाता है। विधायिका के द्वारा हर एक अलग व्यय मद के लिए स्वीकृति दी जाती। व्यय की जिस मद को विधायिका अस्वीकृत कर दे उसे खर्च करने का कार्यपालिका को कोई अधिकार नहीं होता था एवं न ही कार्यपालिका अन्य मद पर उस धनराशि को खर्च कर सकती थी। ऐसी बजट व्यवस्था से प्रशासन की गति मन्द होना स्वाभाविक था। परम्परागत बजट का मुख्य उद्देश्य विधानपालिका द्वारा सरकार के वित्तीय व्यवस्था पर नियन्त्रण और वैधानिक उत्तरदायित्व को जताना था और इसी प्रकार का उत्तरदायित्व प्रशासन के अधीनस्थ स्तरों पर हो। इस प्रकार के नियन्त्रण तथा उत्तरदायित्व से सरकारी खर्च की निरन्तरता तथा वैधानिकता को कायम करना था जिनमें (i) आवंटित धन राशि (ii) इसे खर्च करने की स्वीकृति (iii) इनसे सम्बन्धित वित्तीय नियम व उपनियम शामिल थे। स्वाधीनता के बाद आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की गयी। नव लोक प्रशासन आर्थिक मितव्ययिता तथा उत्तरदायित्व के स्थान पर विकास और सामाजिक समता को प्राथमिकता देने लगा।
- ब्रिटिश काल में व्याप्त अविश्वास तथा सन्देह के प्रशासनिक दृष्टिकोण स्वतंत्र भारत के नियोजित विकास में बाधक सिद्ध होने लगे। यह आवश्यकता महसूस हुई है कि हम अपने विकास कार्यक्रमों को शीघ्र पूरा करें ताकि आम व्यक्ति तक इसके लाभ शीघ्र पहुंच सकें। यदि परम्परागत वित्तीय प्रशासन की अवधारणाएँ विकास कार्यक्रमों के मार्ग में बाधक सिद्ध हों तो उन्हें सुधारा जाये, नवीन रूप दिया जाये।
परम्परागत बजट में निम्नलिखित कमियाँ पाई जाती हैं :-
(i) इसमें व्यय पर नियंत्रण रखने पर जोर होता है न कि खर्च के उद्देश्य पर।
(ii) इससे मौजूदा कार्मिक स्थिति तथा प्रबंध एवं कार्य की दशाओं का पता नहीं चलता।
(iii) इससे कार्यक्रम निविष्टियों और उत्पादों के मध्य संबंध का पता नहीं चल पाता।
(iv) यह कार्य के वैकल्पिक माध्यमों को निर्धारित करने के लिए मार्गदर्शक का काम नहीं करता। (v) इससे प्रत्येक विकल्प के आपेक्षिक लागतों और लाभों का पता नहीं लग पाता।
(vi) केन्द्रीय बजट अभिकरण लक्ष्यों की अपेक्षा वित्तीय लेखों और कार्यक्रमों के सम्पादन में ही अधिक रुचि लेते हैं।
(vii) यह कल्याणकारी राज्य की अपेक्षा पुलिस राज्य के लिए अधिक उपयुक्त है।
(viii) इसका इस्तेमाल केवल व्यय की वस्तुओं पर मदवार नियन्त्रण रखने के लिए किया जाता है।
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