प्रवरसेन प्रथम ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी | Pravarsen Important GK Fact in Hindi

प्रवरसेन प्रथम ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी 
Pravarsen Important GK Fact in Hindi
प्रवरसेन प्रथम ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी  | Pravarsen Important GK Fact in Hindi

प्रवरसेन प्रथम ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी

प्रवरसेन 'वाकाटक वंशके विध्यशक्ति का पुत्र था. विन्ध्यशक्ति के बाद उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी प्रवरसेन प्रथम (275 से 335 ईस्वी) शासक बना. वाकाटक वंश का वह अकेला ऐसा शासक थाजिसने सम्राट् की उपाधि धारण की थी. इससे उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा सूचित होती हैवह एक विजेता शासक थाजिसने अपने राज्य को सभी दिशाओं में विस्तृत किया.

 

प्रवरसेन प्रथम  प्रमुख तथ्य ( Pravar Sen Important Fact in Hindi)

 

  • पुराणों से पता चलता है कि प्रवरसेन प्रथम ने चार अश्वमेध यज्ञ किये थे. अल्तेकर का अनुमान हैकि उसने प्रत्येक यज्ञ एक-एक सैनिक अभियान की समाप्ति पर किया था. 
  • प्रथम अभियान में उसने मध्य प्रांत के पूर्वी तथा उत्तरी-पूर्वी भाग को जीता.
  • द्वितीय सैनिक अभियान दक्षिण में हुआ जिसमें उसने दक्षिणी बरार तथा उत्तर पश्चिमी आंध्र प्रदेश को जीत लिया. 
  • अपने शेष अभियानों में प्रवरसेन ने गुजरात तथा काठियावाड के शकों के ऊपर विजय प्राप्त की थी. 
  • इस प्रकार उसके समय में वाकाटक राज्य का विस्तार सम्पूर्ण मध्य प्रदेश तथा बरारमालवा तथा उत्तरी महाराष्ट्र. उत्तरी हैदराबाद और दक्षिणी कौशल के कुछ भागों (छत्तीसगढ़) तक हो गया था.
  • इस प्रकार अपनी विजयों के फलस्वरूप प्रवरसेन ने अपने लिए एक विशाल साम्राज्य का निर्माण कर लिया. 
  • सातवाहन साम्राज्य के विघटन के बाद प्रवरसेन पहला शासक थाजिसने दक्षिण को एक शक्तिशाली राज्य बना दियाजो शक्ति तथा साधन में अपने समय के किसी भी भारतीय राज्य से बड़ा था.  अपनी उपलब्धियों द्वारा उसने सम्राट् की उपाधि को सार्थक कर दिया. 
  • के.पी. जायसवाल जैसे विद्वान् प्रवरसेन को सम्पूर्ण उत्तरी भारत का एकछत्र शासक बताते हैंकिन्तु इस प्रकार का निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं लगता. 
  • प्रवरसेन प्रथम एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थाजिसने चार अश्वमेध यज्ञ तथा एक वाजमेय यज्ञ के अतिरिक्त अन्य अनेक वैदिक यज्ञों का भी अनुष्ठान किया था. निःसंदेह उसका शासनकाल वाकाटक शक्ति के चरम उत्कर्ष को व्यक्त करता है. 
  • प्रवरसेन प्रथम के चार पुत्र थेजो उसके समय में साम्राज्य के विभिन्न भागों के राज्यपाल बनाए गए थे. 
  • प्रवरसेन की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी अलग-अलग स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली. 
  • उसका ज्येष्ठ पुत्र गौतमीपुत्र उसी के काल में मर गया तथा दूसरे पुत्र बासीम ने एक दूसरी शाखा की स्थापना कीजिसने लगभग 525 ईस्वी तक राज्य किया.

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